बच्चा सबसे अधिक अपनी माता से सीखता हैं। यह शिक्षा अनौपचारिक रूप से होती हैं और औपचारिक रूप से वह अपने शिक्षक से सीखता हैं। एक ही समय पर अनेक जगहों से अलग अलग बातें सीखने के कारण वह भ्रमित रहता हैं। स्कूल, घर, मित्र वर्ग, समाज, सिनेमा और घर से स्कूल के मार्ग में उसे विभिन्न घटनाएं और बातें सीखने को मिलती हैं। ये सभी घटनाएं एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। एक साथ इतनी भिन्न बातें सीखने के कारण वह भ्रमित होता हैं कि वास्तव में सही क्या हैं। वह समझ नहीं आता और घटनाओं के जाल में उलझ जाता हैं। उन्हें समझ में नहीं आता है कि उनके लिए सही क्या है और गलत क्या हैं। बच्चों के प्रति हमारा रवैया सदैव एक निर्देशक का होता हैं। एक मित्र का रवैया नहीं होता हैं और हम उन्हें सही दिशा निर्देश नहीं दे पाते हैं। इसीलिए वो अपनी बातें हमसे नहीं बांट्ते हैं। ऐसा न होने के कारण माता-पिता और बच्चों के मध्य एक दिवार खड़ी हो जाती हैं। १२ साल के बच्चे में अपनी महत्त्वाकाक्षांएं जन्म लेने लगती हैं। कुछ शारीरिक बदलाव आने शुरु होने लगते हैं। इस आयु में यदि बच्चों के मित्र घर से बाहर कम और घर के अंदर अभिभावक ही हों तो बच्चा सही ढ़ग से विकास करने लगता हैं। यदि किसी बारह साल के बच्चे के साथ वार्तालाप या विचार बांटने का अवसर प्राप्त हो तो आप जानेंगे की बच्चे को आपसे घुलने मिलने में समय लगेगा परन्तु कुछ समय के बाद वह आपको अपने मित्र के समान आपसे अपनी बातें बांटने लगेगा। इस आयु में बच्चे को सही गलत का आभास कराना सरल कार्य नहीं हैं। उस मुश्किल कार्य को ज्योतिष के सहयोग से सरल किया जा सकता हैं। बच्चे में प्रश्न करने के गुण का विकास करना चाहिए। ऐसा करने पर बच्चे को नई बातें सीखने के अवसर प्राप्त होंगे। तथा उसके अंदर की उलझने सुलझने लगेंगी। प्रश्न करने पर बच्चे को कभी टोकना नहीं चाहिए। सहजता के साथ बच्चे का प्रश्न का जवाब देना चाहिए।
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