मंत्रों में एक निश्चित आवृति होती हैं। श्लोक में बीज लगाने से मंत्र का जन्म होता हैं। किसी मंत्र या श्लोक को सिद्ध करने के लिए बीज मंत्र को साधना आवश्यक हैं। स्वर का बहुत ज्यादा प्रभाव होता हैं। प्राचीन काल में स्वर विज्ञान का प्रयोग द्वितीय युद्ध में प्रतियोगियों को मारने के लिए भी किया गया था। पश्चिम देशों में की गई एक रिसर्च से यह ज्ञात हुआ कि गायत्री मंत्र का निरंतर जाप करने वाले व्यक्तियों का कैंसर रोग शीघ्र ठिक हुआ। स्वर विज्ञान का प्रयोग कर गंभीर रोगों का ईलाज किया जा सकता है। भारत में संगीत, मधुर ध्वनि के माध्यम से एक योग प्रणाली की तरह है, जो मानव जीव पर कार्य करती है तथा आत्मज्ञान की हद के लिए उनके उचित कार्यों को जागृत तथा विकसित करती हैं, जोकि हिंदू दर्शन और धर्म का अंतिम लक्ष्य है। मधुर लय भारतीय संगीत का प्रधान तत्व है। 'मंत्र स्वर' का आधार मधुर लय है। विभिन्न 'स्वर नाद’ केन्द्रीय तंत्रिका प्रणाली से संबंधित अनेक रोगों के इलाज में प्रभावी पाए गए हैं। चिकित्सा के रूप में संगीत के प्रयोग करने से पहले यह अवश्य पता करना चाहिए कि किस प्रकार के संगीत का उपयोग हो। संगीत चिकित्सा का सिद्धांत, सही स्वर शैली तथा संगीत के मूल तत्वों के सही प्रयोग पर निर्भर करता है। चरक ऋषि ने संगीत के औषधीय प्रभाव का वर्णन अपने ग्रंथ में किया है। ‘शब्द-कौतुहल' ग्रंथ में भी मैंद ऋषि ने वाद्यों की ध्वनि द्वारा रोग निदान तथा श्रवण-मनन-कीर्तन से रोग निवारण की बात कही है। व्यक्तिगत विकारों को ठिक करने के लिए नाद स्वर का प्रयोग लाभकारी सिद्ध हो सकता हैं। आयुर्वेद में देह धारण की तीन धातुयें बताई गई हैं- वात, पित्त और कफ। इनमें से किसी एक धातु में भी विकार आने से तत्सम्बन्धी रोग शरीर में होने लगते हैं। अतः इन तीनों धातुओं का सन्तुलन बनाये रखने के लिये शब्द शक्ति, मंत्र शक्ति और गीत शक्ति का भी प्रयोग होता रहा है। ऋषि-मुनियों द्वारा संगीत व मंत्र साधना ओऽम् द्वारा अनेक प्रकार की सिद्धियों व चमत्कारों पर अधिकार प्राप्त करना संगीत के प्रभाव का बोध कराता है। मंत्र नाद का नियमित उच्चारण करने से जीवन की अनेक व्यक्तित्व संबंधी दोषों को ठिक किया जा सकता हैं। ऊं शब्द का उच्चारण नाद स्वर में करने से बड़े बड़े रोग ठिक किए जा सकते हैं।
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