ध्यान में जाने के लिए क्या करना चाहिए? समाधि का क्या महत्व? ध्यान का आरम्भ योगा से किया जा सकता है। सर्वप्रथम योग करना शुरु करें। हमारे शरीर में विभिन्न चक्र होते हैं। इन चक्रों के खुल जाने से व्यक्ति समाधि अवस्था में पहुंच जाते हैं। समाधि अवस्था में व्यक्ति जो द्रश्य नहीं हैं वह समाधि में लीन व्यक्ति देख सकता हैं। जो शब्द नहीं है उन्हें वह सुख सकते हैं। हर चीज वह महसूस कर सकता हैं। यम, नियम के बिना समाधि की इस अवस्था में पहुंचना कठिन हैं। योग, ध्यान, समाधि के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति में पूर्णता ईमानदारी होनी चाहिए। आध्यात्मिक प्रशिक्षण के बिना ध्यान और समाधि तक पहुंचना संभव नहीं हैं। तीनों लोकों के परे साधक जा सकते हैं। समाधि की अवस्था किसी को सिखाई नहीं जा सकती। अनेक वर्षों के अनुभव और प्रयासों के बाद ही समाधि में जाया जा सकता हैं। एक दम से कुछ नहीं होता है। इसके लिए धैर्य और प्रयास बनाए रखना होता हैं। चित्त और भक्ति का समंवय ही योग हैं। अपने आचार-विचार को संतुलित करना आवश्यक हैं। व्यायाम को योग समझना गलत हैं। समाधि का प्रशिक्षण तो दिया जा सकता है परन्तु इसे किसी निश्चित अवधि में सिखाया नहीं जा सकता हैं। समाधि में पहुंचने के बाद व्यक्ति अपने शरीर से बाहर जा सकता हैं। ये क्रियाएं हैं। जिन्हें करने से यह असंभव कार्य भी संभव हैं। समाधि में अनेक क्रियाएं है जिन्हें करने से व्यक्ति ध्यान अवस्था से समाधि अवस्था में पहुंच सकता हैं। ध्यान, योग और समाधि को मात्र मन बहलाने, दिखावे, फैशन के लिए करना सही नहीं हैं। आध्यात्म को धर्म और आस्था से तो जोड़ सकते है। परन्तु इसका व्यवसायिकरण करना गलत हैं। यदि ऐसा होता रहा तो आध्यात्म अपना स्थान खो देगा। हर व्यक्ति अपने जिस कर्म में रत हैं उसी कार्य को श्रेष्ठतम करने का प्रयास ही उस अवधि में ध्यान के समान हैं। जैसे कोई लेखक किसी सुंदर कलात्मक लेख लिखने में मग्न है तो उसकी मग्नता की अवस्था ही समाधि और ध्यान का पहला कदम हैं। जिस कार्य को करते समय आप समस्त संसार को भूल जायें वह कार्य ही ध्यान की ओर आपका पहला प्रयास हैं। मंत्र जाप के लिए नाद उत्पन्न होना आवश्यक है। बच्चों का पालन पोषण करते समय बच्चों से यदि मंत्र जाप कराया जा रहा है तो यह जरुरी है कि सीड़ी या अन्य संगीत उपकरणों का प्रयोग न करके उन्हें स्वयं उच्चारण करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
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