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उत्तम फलादेश करने के सामान्य नियम (1 व्यूस)

फलादेश करते समय जिस ग्रह के आधार पर फलादेश करना चाहते है उस ग्रह की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन करना जरुरी हैं। इसके साथ ही ग्रह गोचर की जानकारी भी अवश्य होनी चाहिए। फलादेश की सफलता के लिए भाव, भावेश का बल भी मालूम होना चाहिए। जिस भाव या भावेश की स्थिति कमजोर होगी उस भाव से संबंधित विषयों से कष्ट प्राप्ति के योग बन सकते हैं। भाव, भावेश और कारक का मजबूत होना कार्य की सफलता अर्थात कार्यसिद्धि का सूचक होता हैं। शुद्ध फलादेश करने के लिए सबसे पहले ज्योतिषी के पास सलाह लेने आये व्यक्ति से उसका प्रश्न स्पष्ट रूप से पूछ लेना चाहिए। एक समय में एक प्रश्न पर कार्य करना उत्तम रहता है। एक से अधिक प्रश्न होने पर प्रश्नकर्ता भ्रमित हो सकता है और आप के फलादेश में भी जांच की कमी हो सकती हैं। प्रश्न को एक स्थान पर लिख लें तथा उसके बाद प्रश्न से जुड़े भाव, भावेश और कारक, ग्रह, दशा एवं गोचर का निरिक्षण करना चाहिए। फलादेश गणना करते समय कभी भी ज्योतिषी को व्यक्तिगत नहीं होना चाहिए। व्यक्ति विशेष, पद या अन्य कारणों से अपनत्व, भावुकता का भाव आने पर फलादेश में शुद्धता की कमी ला सकता हैं। ज्योतिषी को कम और आवश्यक होने पर ही बात करनी चाहिए। व्यर्थ की सोच और व्यर्थ की बातें करने से बचना चाहिए। फलादेश करते समय गंभीर होकर फलादेश करना चाहिए। सलाह लेने वाले व्यक्ति को सही फलादेश अपना कर्तव्य समझ कर करना चाहिए. पूर्वाग्रहों से ज्योतिषी को बचना चाहिए। अन्यों की कुंडली में बनने वाले योगों के फलादेश को यथावत किसी अन्य कुंडली पर नहीं लगाना चाहिए। तथा फलादेश करने का सबसे विशेष नियम यह भी है कि ज्योतिषी को सामने बैठे व्यक्ति से प्रभावित हुए बिना फलादेश करना चाहिए। प्रभावित होकर फलादेश का निर्णय नहीं लेना चाहिए। फलादेश के साथ ही आवश्यक उपाय भी बताने चाहिए। ह्रदय से सोच कर फलादेश कभी नहीं करना चाहिए। सदैव व्यवहारिक होकर फलादेश करना चाहिए।


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