वास्तुशास्त्र का महत्त्व एवं परिचय

वास्तुशास्त्र का महत्त्व एवं परिचय  

व्यूस : 7050 | दिसम्बर 2008
वास्तुशास्त्र का महत्व एवं परिचय वास्तु शास्त्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार है। यदि आप वेदों पर और भगवान पर विश्वास करते हैं तो कोई कारण नहीं कि वास्तु पर विश्वास न करंे। जिस प्रकार हमारा शरीर पंचमहाभूतों से मिल कर बना है, उसी प्रकार किसी भी भवन के निर्माण में पंच महाभूतों का पर्याप्त ध्यान रखा जाए तो भवन में रहने वाले सुख से रहेंगे। अ थर्ववेद का एक उपवेद है स्थापत्य वेद। यह उपवेद ही हमारे वास्तु शास्त्र का आधार है। परमपिता परमात्मा की असीम कृपा से ब्रह्मा जी को जब सृष्टि की रचना का कार्य सौंपा गया, तो ब्रह्मा जी ने अपने चारों मुखों से चार वेद उत्पन्न किए तथा वास्तु विद्या, धनुर्विद्या, चिकित्सा यानी आयुर्विद्या तथा संगीतविद्या की रचना की। वेदों में ज्योतिष से संबंधित कुल 242 श्लोक हैं। ऋग्वेद में 37, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। ये श्लोक ही ज्योतिष का आधार हैं। स्थापत्य वेद भी अथर्ववेद का ही एक भाग है। बिना ज्योतिष के वास्तु विद्या अधूरी है। वास्तु और ज्योतिष का चोली दामन का साथ है। वास्तु में मुहूर्त का भी बहुत महत्व है और बिना ज्योतिष के ज्ञान के आप मुहूर्त नहीं निकाल सकते। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र श्री विश्वकर्मा जी ने जिस वास्तु शास्त्र को संसार के कल्याण के निमित्त विस्तार से कहा है उसी की चर्चा यहां की गई है। प्रभु श्री कृष्ण जी ने मथुरावासियों के लिए एक नई नगरी बसाने का विचार किया, तो विश्वकर्मा जी को बुलाकर यह आज्ञा दी कि तुम समुद्र के बीच एक ऐसा नगर बसाओ, जिसमें मथुरावासी व ब्रजवासी सुखपूर्वक रह सकें। तब विश्वकर्मा जी ने वहाँ द्वारका नाम की ऐसी नगरी बसा दी, जिसका परकोटा सोने का बना हुआ था तथा सभी भवन स्वर्ण निर्मित एवं रत्न जड़ित थे। वापी, कूप, तालाब, सरोवर, उद्यान आदि सब बनाकर चारों वर्णों के रहने के लिए अलग-अलग स्थान बनाए तथा सेना, रथ, हाथी, घोड़े आदि के स्थान भी बना दिए। उस समय वरुण देवता ने श्याम वर्ण घोड़े, कुबेर ने श्रेष्ठ रथ और रत्न आदि एवं इन्द्र ने सुधर्मा नामक सभा को द्वारिकापुरी में पहुँचा दिया। यह दृष्टांत यहां इसलिए दिया है कि विश्वकर्मा जी की कृपा हो जाए तो निर्माण कार्य में कोई बाधा नहीं आएगी। किसी भी नहर, दुर्ग, शहर, मकान, भवन, जलाशय व बाग के प्रारम्भ से पूर्व वास्तु पुरुष की पूजा का भी विधान है। वास्तु पुरुष का जन्म भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की तृतीया तिथि, शनिवार, कृतिका नक्षत्र, व्यतीपात योग, विष्टि करण, भद्रा के मध्य में, कुलिक मुहूर्त में हुआ। ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त वास्तु पुरुष की पूजा गृहारम्भ तथा गृहप्रवेश के समय की जाती है। वास्तु पुरुष के साथ गृहारम्भ करने वाले कारीगर को विश्वकर्मा का रूप समझ कर पूजा जाता है। वास्तु शास्त्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार है। यदि आप वेदों पर और भगवान पर विश्वास करते हैं तो कोई कारण नहीं कि वास्तु पर विश्वास न करंे। जिस प्रकार हमारा शरीर पंचमहाभूतों से मिल कर बना है, उसी प्रकार किसी भी भवन के निर्माण में पंच महाभूतों का पर्याप्त ध्यान रखा जाए तो भवन में रहने वाले सुख से रहेंगे। ये पंचमहाभूत हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। हमारा ब्रह्माण्ड भी इन्हीं पंच तत्वों से बना है, इसीलिए कहा जाता है ‘‘यथा पिन्ड तथा ब्रह्माण्डे’’। भगवान ने हमें ये पाँच वस्तुएँ दी हैं भ से भूमि, ग से गगन अर्थात् आकाश, व से वायु, ा (अ) से अग्नि और न से नीर अर्थात् जल। भगवान को ¬ चिन्ह द्वारा भी रेखांकित किया जाता है। ¬ के प्रतिरूप अ से अग्नि उ से जल म से वायु, ॅ अ...र्धचन्द्र से भूमि और ं शून्य से आकाश इन पंच तत्वों का बोध होता है। इसी प्रकार वास्तु शब्द भी पंच तत्वों का बोध कराता है। व से वायु, ा (अ) से अग्नि, स से सृष्टि (भूमि), त से तत अर्थात् आकाश और उ से जल। जब पंच महाभूतों से शरीर बन जाता है तो मन, बुद्धि और अहंकार के सहित आत्मा का उसमें प्रवेश होता है। पंच महाभूतों के लिए पाँच ग्रहों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। पृथ्वी के लिए मंगल, जल के लिए शुक्र, अग्नि के लिए सूर्य, वायु के लिए शनि और आकाश के लिए बृहस्पति को माना गया है। मन के लिए चन्द्रमा, बुद्धि के लिए बुध और अहंकार के लिए राहु को माना गया है। केतु मोक्ष का कारक है। जिस प्रकार शरीर में इन तत्वों की कमी या अधिकता होने से व्यक्ति रोगी हो जाता है, उसी प्रकार भवन में इन तत्वों की कमी, अधिकता या सही सम्मिश्रण के अभाव में उस भवन में रहने वालों को कष्ट होता है। पंचमहाभूत से निर्मित शरीर को सुखमय और स्वस्थ्य रखने के लिए जिस भवन का निर्माण किया जाता है यदि उस भवन में भी अग्नि, भूमि, जल, वायु और आकाश तत्वों का सही ताल मेल रखा जाए तो वहाँ रहने वाले प्राणी शारीरिक, मानसिक व भौतिक रूप से सम्पन्न रहेंगे। जिस प्रकार शरीर में इन तत्वों की अधिकता या कमी होने से व्यक्ति रोगी हो जाता है उसी प्रकार भवन में इन तत्वों की कमी या अधिकता होने से वहाँ का वातावरण कष्टमय हो जाता है। पृथ्वीः पृथ्वी के बिना आवास और जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पृथ्वी गुरुत्व शक्ति और चुम्बकीय शक्ति का केन्द्र है। इन्हीं शक्तियों के कारण पृथ्वी अपने धरातल पर बनने वाले भवनों को सुदृढ़ आधार देती है। वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण के लिए भूमि की परीक्षा, मिट्टी की गुणवत्ता, भूमि की ढलान, भूखण्ड का आकार, प्रकार, भूमि से निकलने वाली वस्तुओं का शुभाशुभ विचार, भूमि तक पहुँचने के मार्ग व वेध आदि का विचार किया जाता है। जलः पृथ्वी के बाद जल का नम्बर आता है, क्योंकि जल ही हमारे जीवन का आधार है। अधिकतर बस्तियाँ समुद्र, नदी एवं झील के किनारों पर बसी हैं। शुद्ध जल के कई सात्विक गुण हैं। जल की अधिकता होने से बाढ़ आ जाती है और कमी होने से सूखा पड़ जाता है। वास्तु शास्त्र में जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नल, बोरिंग, कुंआ, भूमिगत टंकी, भवन के ऊपर की टंकी, सेप्टिक टैंक, सीवेज, नाली, फर्श की ढलान, छत की ढलान आदि का विचार किया जाता है। अग्निः अग्नि का प्रमुख स्रोत सूर्य है, जिसकी गर्मी, तेज और प्रकाश से पूरा विश्व व ब्रह्माण्ड चलायमान है। सूर्य की सापेक्षता से पृथ्वी पर दिन और रात बनते हैं। ऋतुएँ परिवर्तित होती हैं। जलवायु में परिवर्तन आते हैं। वास्तुशास्त्र में भवन के अन्दर अग्नि तत्व के उचित ताल मेल के लिए बरामदा, खिड़कियाँ, दरवाजे, बिजली के मीटर, रसोई में अग्नि जलाने के स्थान आदि का विचार किया जाता है। वायुः जिस प्रकार हमारे शरीर में वायु शरीर का संचालन करती है उसी प्रकार भवन में वायु स्वस्थ वातावरण का संचालन करती है। मानव के शारीरिक एवं मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए भवन में खुली जगह, बरामदे, छत की ऊँचाई, द्वार, खिड़कियाँ व पेड़ पौधों का विचार किया जाता है। आकाशः आकाश अनंत है। इससे शब्द की उत्पत्ति होती है। आकाश में स्थित ऊर्जा की तीव्रता, प्रकाश, लौकिक किरणंे, विद्युत चुम्बकीय तरंगें तथा गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों पर भिन्न-भिन्न पायी जाती है। वास्तु शास्त्र में आकाश तत्व को महत्व देने के लिए ब्रह्म स्थान खुला रखने को कहा जाता है। छत की ऊँचाई, बरामदा, खिड़की और दरवाजों का विचार करके भवन में आकाश तत्व को सुनिश्चित किया जाता है। भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पाँच तत्वों के उचित तालमेल से भवन के वातावरण को सुखमय बनाया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चाहता है। शरीर को चलाने के लिए अर्थ, बुद्धि को निर्मल रखने के लिए धर्म, मन को खुश रखने के लिए काम तथा आत्मा को मोक्ष चाहिए। पंचतत्वों का सही प्रयोग कर उन्हें अपने लिए सुखमय बनाया जा सकता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.