प्रश्न विचार एवं फलकथन करने की विभिन्न विधियां

प्रश्न विचार एवं फलकथन करने की विभिन्न विधियां  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 23468 | दिसम्बर 2008

प्रश्न: प्रश्न कुंडली द्वारा विभिन्न प्रश्नों के उŸार जानने की विधि का विस्तृत वर्णन करें। प्रश्न विचार करने के लिए अन्य विधियों की भी जानकारी दें। अधिकांश लोगों को अपनी सही जन्म तारीख एवं जन्म की जानकारी नहीं रहती। ऐसे लोगों की उलझनों को सुलझाने में, उनकी समस्याओं को हल करने में और भविष्य फल बताने में प्रश्न शास्त्र मददगार साबित हो सकता है। इस पद्धति में प्रश्न पूछने के समय को आधार बनाया जाता है।

जिस प्रकार जन्म कुंडली में विभिन्न प्रकार के योग बनते हैं, उसी प्रकार प्रश्न कुंडली में भी ग्रहों के विभिन्न तरह के योग बनते हैं। ताजिक योग: ताजिक योग वार्षिक भविष्य कथन में उपयुक्त होता है, मगर प्रश्न ज्योतिष में फलकथन करने में भी इससे सफलता मिली है। यह योग निम्न होते हैं- इत्थशाल योग इशराफ योग नक्त योग कंबूल योग रद्द योग मणऊ योग खल्लासार योग।

इत्थशाल योग: इत्थशाल योग का निर्माण तब होता है जब तीव्र गति और कम भोगांश वाला ग्रह मंद गति और अधिक भोगांश वाले ग्रह से पीछे हो। शुभ या अशुभ होना दोनों ग्रहों के नैसर्गिक गुण, उनके भावों के स्वामित्व आदि पर निर्भर करता है। इस योग के घटित होने पर वांछित फलों के पूर्ण होने की आशारहती है। इस योग के लिए जरूरी है- तीव्र गति, कम भोगांश वाला ग्रह मंद गति, अधिक भोगांश वाले ग्रह से पीछे हो। दोनों ग्रहों में परस्पर दृष्टि हो। ये ग्रह दृष्टि सीमा में स्थिति हो। व्यवहार में इत्थशाल का प्रयोग लग्नेश और कार्येश के मध्य में अधिक किया जाता है अर्थात् लग्नेश और वांछित फल कारक के भाव के स्वामी के बीच में।

इशराफ योग: इसे मुशरिफ या पृथक्कारी योग भी कहते हैं। जब दो ग्रह एक दूसरे पर दृष्टिपात करते हों और तीव्र गति ग्रह 10 या अधिक अंशों से मंद गति ग्रह से आगे हो तो इशराफ योग का निर्माण होता है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण योग है और असफलता, बाधाओं का संकेत होता है। इशराफ का निर्माण करने वाले ग्रह यदि शुभ हों तो परिणाम अधिक अशुभ नहीं होते, परंतु यदि अशुभ ग्रह इशराफ का सृजन करते हैं तो परिणाम अति अशुभ होते हैं।

नक्त योग: अगर दो ग्रहों लग्नेश और कारक में दृष्टि नहीं हो मगर एक अन्य तीव्रतर गति ग्रह की इन दोनों पर दृष्टि हो तो नक्त योग का निर्माण होता है। दो ग्रहों के मध्य कोई दृष्टि नहीं हो। किसी तीसरे ग्रह की इन दोना ग्रहों लग्नेश और कार्येश पर दृष्टि हो। तीसरा ग्रह अदृष्टि वाले दोनों ग्रहों से तीव्रतर गति का होना चाहिए।

कंबूल योग: जब दो ग्रहों में इत्थशाल योग हो और उनमें से एक या दोनों के साथ चंद्र भी इत्थशाल में हो तो कंबूल योग का निर्माण होता है। कंबूल इत्थशाल और सबंधित भावों की शुद्धता को बढ़ा देता है।

रद्द योग: यदि दो ग्रह इत्थशाल में हांे और उनमें से एक वक्री या अस्त या नीच हो या 6,8,12 भाव में हो या शत्रु क्षेत्री हो या अशुभ ग्रह से दृष्ट या युति में हो तो इत्थशाल योग नष्ट हो जाता है।

मणऊ: जब दो ग्रहों में इत्थशाल योग हो और इनमें से तीव्र गति के ग्रह पर पाप ग्रह शनि या मंगल या दोनों की युति हो या दृष्टि हो तो मणऊ योग का सृजन होता है। इस योग से इत्थशाल के शुभ प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। मणऊ शत्रुओं से भय, कार्य में असफलता, झगड़ा, धन हानि, कर्ज आदि का सबंधित भाव ग्रहों से घटित होता है।

इत्थशाल योग के फलीभूत होने के लिए चंद्रमा की शुभता आवश्यक नहीं। मंदगति ग्रह की अपेक्षा तीव्रगति ग्रह का दोष अधिक प्रभावी होता है। ऊपर वर्णित सभी योगों के फलकथन में यह ध्यान रखना चाहिए कि दशमेश एवं कर्मेश का निर्णय जातक के स्वभाव के अनुसार हो। प्रश्न कुंडली के आधार पर कार्य की सफलता एवं असफलता का विचार यदि प्रश्न लग्न में शुभ ग्रह स्थित हो, लग्न बली हो अथवा प्रश्न लग्न शुभ ग्रहों के वर्गों में पड़ता हो अथवा प्रश्न लग्न में शीर्षोदय राशि हो तो इच्छित कार्य की सिद्धि होती है।

यदि प्रश्न लग्न पापयुक्त और पृष्ठोदय राशि में हो तो कार्य में सफलता नहीं मिलती है। यदि प्रश्न लग्न में उभयोदय राशि हो तो कार्य में कठिनाई के बाद सफलता मिलती है। यदि लग्न को लग्नेश और चंद्र दोनों ही देखते हों तो कार्य पूर्ण रूप से सिद्ध होता है। यदि उदित प्रश्न लग्न के भाव 1, 4, 5, 7, 9 या 10 में शुभ ग्रह स्थित हो और कोई अशुभ ग्रह नहीं हो तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है। प्रश्न कुंडली से कार्य के पूर्ण होने में लगने वाले समय का विचार प्रश्न लग्न और चंद्र के बीच में जितने राशि के अंक आते हैं, उतने दिन कार्य को पूरा करने में लगते हैं।

प्रश्न लग्न के नवांश लग्न का अंक अर्थात् राशि तथा नवांश लग्नेश की राशि का अंक देखते ही जो अंक, राशि के होंगे, उनके स्वामी होंगे, वे ही दिन-माह बताएंगे। ग्रहों के अनुसार समय निर्धारण सूर्य - अयन ( 6 माह) चंद्र - मिनट मंगल - दिन बुध - एक ऋतु गुरु - माह शुक्र - पक्ष (15 दिन) शनि - वर्ण कार्य की सफलता का प्रतिशत यदि प्रश्न कुंडली के लग्न पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो कार्य में 25 प्रतिशत सफलता मिलती है। यदि प्रश्न लग्न पर लग्नेश की दृष्टि हो अर्थात् प्रश्न लग्न अपने स्वामी से दृष्ट हो तो 50 प्रतिशत सफलता मिलती है।

यदि प्रश्न लग्न अपने स्वामी तथा किसी एक शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो 75 प्रतिशत सफलता मिलती है। यदि प्रश्न लग्न अपने स्वामी और किन्हीं दो शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो 85 प्रतिशत सफलता मिलती है। यदि प्रश्न लग्न अपने स्वामी के अतिरिक्त गुरु, शुक्र, बुध तथा चंद्र अर्थात् सभी शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो 100 प्रतिशत सफलता मिलती है। चोरी और गायब सामान का प्रश्न हल करने की विधि लग्न से प्रश्नकर्ता का, चंद्र से खोए हुए सामान का, चतुर्थ भाव से खोए सामान और उसकी पुनः प्राप्ति का, सप्तम भाव से चोर का, अष्टम भाव से चोर द्वारा जमा धन का तथा दशम भाव से पुलिस या सरकार का विचार किया जाता है।

चोरी हुए सामान मिलने के योग लग्नेश सप्तम में और सप्तमेश लग्न में हो। लग्नेश और सप्तमेश का सप्तम स्थान में इत्थशाल हो। लग्नेश और दशमेश का इत्थशाल हो। तृतीयेश या नवमेश का सप्तमेश से इत्थशाल हो। चंद्र जिस राशि में स्थित हो उसका स्वामी चंद्र को पूर्ण मित्र दृष्टि से देख रहा हो। धनेश और अष्टमेश का केंद्र में इत्थशाल हो या ये दोनों लग्नेश और दशमेश से दृष्ट या युक्त हों। लग्नेश और सप्तमेश लग्न, धन या लाभ स्थान में हांे। लग्नेश और दशमेश पापग्रहों से दृष्ट या युक्त हों। द्वितीयेश और अष्टमेश पर चतुर्थेश की दृष्टि हो।

लग्नेश और दशमेश का इत्थशाल या मुथशिल योग हो। धनेश और चंद्र में इत्थशाल हो। चंद्र का लग्नेश के साथ इत्थशाल हो। बुध और चंद्र केंद्र स्थान में एक-दूसरे को देखते हों। लग्न और चंद्र को शुभ ग्रह देखते हों। सूर्य और चंद्र दोनों लग्न को देखते हों। शुभ ग्रहों का चंद्र से इत्थशाल हो और चंद्र लग्न या धन स्थान में हो।

अष्टमेश अष्टम या सप्तम स्थान में हो। सप्तमेश और सूर्य चंद्र के साथ अस्त हों। तृतीय स्थान में पापग्रह और पंचम स्थान में शुभ ग्रह हों तो चोर स्वयं धन वापिस कर देता है। तुला, वृष या कुंभ लग्न में चोरी का सामान अ व श् य िम ल त ा जाता है। ल ग् न े श् ा एकादशेश और बली चंद्र शुभ माह में इत्थशाल में हो। चंद्र राशीश पर चंद्र की दृष्टि हो। भाव 4, 7, 8 या 10 में स्थित चंद्र या बृहस्पति किसी घर का स्वामी हो, उसका लग्न या लग्नेश से संबंध हो या ऊपर वर्णित किसी भाव में वह अकेले ही स्थित हो। सप्तमेश और चंद्र अस्त हों।

लग्नेश और द्वितीयेश में इत्थशाल न हो तो खोयी वस्तु की खबर तो मिलती, किंतु वस्तु वापस नहीं मिलती। आरूढ़ पद्धति प्रश्न फल कथन पद्धति की आरूढ़ लग्न निर्धारण प्रणाली विशिष्ट है, जिसमें ज्योतिषी से जिस दिशा या विदिशा में बैठकर व्यक्ति प्रश्न करता है उस दिशा या विदिशा के लिए चित्र में दर्शाया गया निर्धारित लग्न ही आरूढ़ लग्न माना जाता है। उसी के अनुसार प्रश्न कुंडली बनाकर और उसमें ग्रह स्थापित करते हुए मध्य भाग में विराजमान दैवज्ञ प्रश्न का समाधान करता है। इस विधि में फलकर्ता का स्थान मध्य भाग में निश्चित रहता है और फलकर्ता के चतुर्दिक पृच्छकों के बैठने का स्थान भी नियत रहता है जैसे कि हर दिशा-विदिशा वाले स्थान का लग्न निश्चित माना जाता है।

प्रश्न फल कथन के आरूढ़ लग्न निर्धारण की (दिशाओं के लग्न वाली) यह पद्धति जिसे पृच्छकों की गोल मेज परिषद् वाली पद्धति कह सकते हैं, वर्तमान में नानाविध कठिनाइयों के कारण, जैसे दिशा निर्धारण में भूल हो जाने की आशंका, दैवज्ञ के चारों ओर बैठे हुए पृच्छकों की ओर घूम-घूमकर उŸार देने में कठिनाई होना, साथ ही अब प्रश्नकर्ता और उŸारदाता का ठीक आमने-सामने बैठने का स्थान निश्चित होना आदि, प्रचलन में नहीं है। आरूढ़ लग्न की अंगूठी विधि आरूढ़ लग्न निर्धारण की दूसरी विधि अंगूठी विधि है।

इसमें अंगूठी के द्वारा लग्न निर्धारण करके प्रश्न कुंडली बनाकर एवं प्रश्न कालिक ग्रहों को स्थापित करके फलकर्ता पृच्छक के प्रश्नों का फलाफल कहता है। यह एक अत्यंत सरल विधि है। इस विधि में ज्योतिषी के द्वारा कुंडली का एक रेखा चित्र बनाया जाता है जिसमें वह 1 से 12 तक के राश्यांक लग्न से आरंभ कर द्वादश भाव तक भर देता है।

ज्योतिषी कुंडली चक्र की धूप, दीप और अगरबŸाी दिखाते हुए पुष्प, अक्षत, कुमकुम आदि से पूजा कर अपने पास रखी हुई सोने की अंगूठी गुरु, गणेश अथवा अपने इष्ट देव के मंत्र से अभिमंत्रित कर पृच्छक को इस हिदायत के साथ देता है कि वह उसे अपने मस्तक का स्पर्श कराते हुए, कुंडली चक्र को प्रणाम करके उसके किसी भी खंड में श्रद्धा भक्ति के साथ रख दे।

दैवज्ञ के आज्ञानुसार पृच्छक मन ही मन प्रश्न का चिंतन करते हुए शुभत्व की कामना से उस अंगूठी को निष्ठापूर्वक कुंडली चक्र के जिस खाने में रखता है उस खाने के अंक वाली राशि को आरूढ़ लग्न मानकर प्रश्न फल का विचार किया जाता है। कार्य की सफलता-असफलता के प्रश्न: प्रश्न करने वाला जिस दिशा की ओर अभिमुख हो उस दिशा की अंक संख्या, प्रश्न पूछते वक्त की प्रहर संख्या, वार संख्या और नक्षत्र की संख्या का योग करके उसे आठ से भाग देने पर जो शेष बचे उसके अनुसार कार्य की सफलता अथवा असफलता का निम्न प्रकार फल करना चाहिए।

1 या 5 शेष रहने पर कार्य शीघ्र सफल होता है। 4 या 6 शेष रहे तो कार्य लगभग 3 दिनों में सफल हो सकता है। 0 शेष बचने पर कार्य सफल नहीं होगा, ऐसा समझना चाहिए। 2, 3 या 7 शेष बचने पर देर से कार्य सिद्ध होगा, ऐसा समझना चाहिए। दिशाआंे की संख्या = 1,2,3,4 अर्थात् पूरब, पश्चिम, उŸार, दक्षिण, क्रमशः प्रहर संख्या = दिन एवं रात्रि में 3-3 घंटों के 4 प्रहर होते हैं जिनकी गणना क्रमशः सूर्योदय व सूर्यास्त से की जाती है। जिस प्रहर में पृच्छक के द्वारा प्रश्न पूछा जाता है, उसकी संख्या जोड़ी जाती है।

दिन या वार संख्या = 1. रविवार 2. सोमवार 3. मंगलवार 4. बुधवार 5. गुरुवार 6. शुक्रवार। नक्षत्र संख्या = 1 से लेकर 27 तक जिस अंक वाला नक्षत्र हो वह संख्या ग्राह्य होती है। अश्विनी आदि 27 नक्षत्र होते हैं। कैलेंडर या पंचांग से नक्षत्र संख्या ज्ञात की जाती है। प्रश्न फल निर्धारण की यह एक सरल, सुगम एवं परीक्षित विधि मानी जाती है जिसके आधार पर दैवज्ञ पृच्छक के प्रश्न का आसानी से समाधान करने में सफल होते हैं।

चोरी या गुम हुई वस्तु की प्राप्ति/अप्राप्ति ज्ञात करने की विधि: अंधलोचन नक्षत्र में गुम हुई या चोरी हुई वस्तु पूर्व में होती है और उसके शीघ्र मिलने की पूरी संभावना रहती है। रोहिणी, पुनर्वसु, उŸाराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और रेवती अंधलोचन नक्षत्र कहलाते हैं। मंदलोचन नक्षत्र में कोई वस्तु खो जाए या चोरी हो जाए तो उसकी स्थिति पश्चिम दिशा में होती है और बहुत अधिक प्रयास करने पर उसके मिलने की संभावना रहती है।

मृगशिरा, आद्र्रा, हस्त, अनुराधा, उŸाराषाढ़ा, शतभिषा और अश्विनी मंदलोचन नक्षत्र कहलाते हैं। मध्य लोचन नक्षत्र में गुम या चोरी हुई वस्तु दक्षिण दिशा में होती है। ऐसी वस्तु की प्राप्ति तो नहीं होती, पर कुछ दिनों के बाद उसके बारे में समाचार सुनने को मिल जाता है। आद्र्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वा भाद्रपद और भरणी मध्य लोचन संज्ञक नक्षत्र हैं।

सिद्धि/कार्य नाश: प्रश्न फल कथन की अंकों वाली यह विधि भी ठीक है जिसमें पृच्छक से 1 से 108 तक के अंकों के मध्य की कोई भी संख्या पूछी जाती है और वह जो संख्या बतलाता है उसमें 12 का भागकर बची हुई संख्या अर्थात शेष के आधार पर इस प्रकार फलकथन किया जाता है। 0, 2, 6 या 11 शेष बचे तो कार्य सिद्ध होगा। 4, 5, 8 या 10 शेष बचे तो कार्य सिद्ध नहीं होता। 1, 7 या 9 शेष बचे तो कार्य विलंब से सिद्ध होता है।

कार्य कब होगा? योगफल, गुणनफल और भागफल के आधार पर बिना किसी लग्न साधन के और बिना प्रश्न कुंडली बनाए पृच्छक के प्रश्न ‘कार्य कब होगा’ या ’कितने दिनों में होगा’ का उŸार निम्न रूप में जाना जा सकता है। विधि: तिथि, वार और नक्षत्र की संख्याओं को जोड़कर योगफल को तीन से गुणा करके गुणनफल में 6 जोड़ें और फिर उस योगफल को 9 से भाग दें। जो शेष बचे उसके आधार पर कार्य के सिद्ध होने के समय का फलकथन करें।

1 शेष होने पर 15 दिन, 2 शेष होने पर 30 दिन, 3 होने पर 2 मास, 4 होने पर 6 मास, 5 होने पर एक अहोरात्र (24 घंटे), 6 पर एक रात (12 घंटे), 7 होने पर एक प्रहर (3 घंटे), 8 होने पर एक घटी (लगभग )घंटा) और 9 होने पर 1 मिनट। प्रश्न विचार करने की अन्य विधियां पुत्र होगा या पुत्री: तिथि, वार, नक्षत्र, योग और नाम संख्या को जोड़कर योगफल में 7 से भाग देने पर शेष सम संख्या 2, 4, 6 बचे तो पुत्री और विषम संख्या 1, 3, 5, 7 बचे तो पुत्र होने की संभावना रहती है।

अंक ज्योतिष शास्त्र द्वारा प्रश्नोŸार नीचे की तालिका में हिंदी के अक्षर और उनसे संबद्ध अंक दिए गए हैं। इसके आधार पर विभिन्न प्रश्नों के उत्तर दिए जा सकते हैं जैसा कि यहां बताया जा रहा है। प्रश्न- रोगी का रोग ठीक होगा या नहीं? उŸार- रोगी के नामाक्षर के अंक, प्रश्न करने की तारीख, मास, और सन् की चारों संख्याओं को आपस में जोड़कर योगफल का प्रश्न करने वाले दिन की संख्या से गुणा कर दें।

गुणा करने के लिए रविवार को 1, सोमवार को 2, मंगल को 3, बुध को 4, गुरु को 5, शुक्र को 6, शनि को 7 से गुणा कर गणना करें। गुणनफल में 27 जोड़कर 9 से भाग दें। शेषांक के अनुसार उŸार जानें। यदि शेषांक 1 बचे तो रोगी 16 दिन में ठीक होगा। 2 शेष बचे तो रोग से मुक्ति में विलंब होगा, किंतु आयु की रक्षा हो जाएगी। यदि 3 शेष बचे तो रोग बढ़ेगा। आयु पर खतरा आएगा।

रोग से मुक्ति में कठिनाई होगी। 4 शेष बचे तो रोग घटता या बढ़ता रहेगा, लेकिन ठीक होना मुश्किल है। 5 शेष बचे तो रोग से मुक्ति शीघ्र मिलेगी। यदि शेष 6 बचे तो व्यक्ति दृष्टि एवं ग्रह दोष से पीड़ित होगा। 7 बचे तो विभिन्न उपायों से देर से ठीक होगा। 8 शेष बचे तो रोग असाध्य होता है, जल्दी ठीक नहीं होता। यदि शेष 9 या 0 बचे तो रोग का लक्षण बदलता रहेगा। रोग 40 दिनों के बाद ठीक होगा।

डाउजिंग विधि से प्रश्नोŸार इस विधि द्वारा प्रश्नों के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों उŸार प्राप्त किए जा सकते हैं। डाउजिंग विधि उसी सिद्धांत पर काम करती हैं जिस सिद्धांत पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग जमीन में पानी कहां है यह जानने के लिए ‘खोजा’ सिद्धांत का उपयोग करते हैं। डाउजिंग विधि में पेंडुलम का प्रयोग किया जाता है। फल कथन के लिए पेंडुलम के धागे को अंगूठे एवं तर्जनी से सावधानी से पकड़कर स्थिर किया जाता है।

फिर फलकथन प्रारंभ करने से पहले पेंडुलम को आदेश किया जाता है कि यदि प्रश्न का उŸार ‘हां’ में हो तो वह वृŸााकार और यदि ‘न’ में हो तो आगे-पीछे अथवा दाएं-बाएं घूमे। पेंडुलम को यह आदेश अपने इष्टदेव एंव गुरु का ध्यान करते हुए दिया जाता है। पेंडुलम का धागा इस प्रकार पकड़ते हैं कि वह स्थिर रहे, हिले-डुले नहीं। प्रश्न का उत्तर पेंडुलम की गति देखकर दिया जाता है।

इस विधि से किसी व्यक्ति की खोई वस्तु मिलेगी या नहीं, कार्य में सफलता मिलेगी या नहीं, मुकदमे या मुकाबले में जीत होगी या हार जैसे प्रश्नों के उत्तर दिए जा सकते हैं। डाउजिंग विधि का संबंध एकाग्रता एवं अचेतन मस्तिष्क से माना जाता है। इस दृश्य जगत से हमारे चेतन मस्तिष्क का तथा अदृश्य जगत से अचेतन मस्तिष्क का संबंध होता है।

जिस प्रकार कोई व्यक्ति किसी सवाल का समाधान पाने के लिए उसके उपाय पर विचार करता हुआ सो जाता है और प्रातः उठने पर उसे उसका समाधान मिल जाता है, उसी प्रकार एकाग्रतापूर्वक डाउजिंग करने से अचेतन मस्तिष्क प्रश्न का उŸार पेंडुलम की सहायता से दे देता है। टैरो कार्ड पद्धति से फलकथन माना जाता है कि टैरो कार्डों में छिपे रहस्य को सर्वप्रथम पेरिस के एक राजमिस्त्री एन्टोनी कोर्ट दी गेवेलिन ने खोला।

उसने इन कार्डों से जुड़ी अनेक कहानियों पर से पर्दा हटाया किंतु गेवेलिन के समकालीन एटीला ने सर्वप्रथम इन कार्डों को लोकप्रिय बनाकर भविष्य कथन करने की इस पद्धति को उजागर किया। तदुपरांत एलिफास लेवी, ओसवाल्ट वर्थ, पाजूस आदि ने इस पद्धति को और अधिक लोकप्रिय बनाया।

बाद में इसकी लोकप्रियता मिस्र, भारत, चीन, फ्रांस, इंग्लैंड आदि विभिन्न देशों में भी धीरे-धीरे बढ़ती गई। क्रिस्टल बाॅल से भविष्य कथन क्रिस्टल बाॅल (स्फटिक) से अतीत, विद्यमान और आगम देखने की विधि अत्यंत प्राचीन है। क्रिस्टल अर्थात् स्फटिक से निर्मित इस बाॅल पर एकाग्रचित्त होकर अभ्यास करते रहने से उसमें सभी घटनाएं स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं।

उक्त पद्धतियों के अतिरिक्त ईसाइयों के धार्मिक टेस्टामेंट में भी एक दैवीय छड़ी का उल्लेख अनेक बार आया है जिसके द्वारा फलकथन किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि इस दैवीय छड़ी से डाउजिंग की जाती थी।

गुलिक द्वारा प्रश्नोŸार: प्रश्न कुंडली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गुलिक है। यह प्रश्न के फल-कथन को महत्वपूर्ण बिंदु तक शुभाशुभ रूप में प्रभावित करता है। नवग्रह अपने नैसर्गिक भावों में स्थित होकर उन भावों एवं भावेशों के लिए शुभ कारक होते हैं, जबकि गुलिक अशुभ फलकारक होता है। गुलिक की अशुभता गंभीर होती है।

गुलिक जिस भाव में बैठता है उस भाव को, उस भावाधिपति को, अपने द्वारा ग्रहीत राशीश को एवं स्वग्रहीत राशि स्वामी अधिष्ठित भाव तक के फल को खराब कर देता है। अतः जातक का प्रश्न लग्न जिस सीमा तक गुलिक से प्रभावित होगा, उसी के अनुरूप उसे अशुभ फल प्राप्त होंगे।

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