चिकित्सा ज्योतिष का महत्व

चिकित्सा ज्योतिष का महत्व  

बी.एल शर्मा
व्यूस : 8721 | जनवरी 2010

चिकित्सा ज्योतिष का महत्व डॉ. बी. एल. शर्मा देवताओं एवं राक्षसों ने समुद्र मंथन किया। उसमें से अमृत, विष अन्य वस्तुएं एवं श्री धनवंतरी जी प्रकट हुए। इसका वर्णन मत्स्य पुराण के अध्याय 251 में है। श्री धनवंतरी जी संसार के सबसे पहले डॉक्टर थे। उन्होंने आयुर्वेद को प्रतिष्ठित किया। उसी श्रृंखला में ऋषि चरक हुए। इस प्रकार मनुष्य मात्र के स्वास्थ्य की देखरेख के लिए बाद में अन्य आयुर्वेदाचार्य हुए। इसी कारण प्राचीन काल में अधिसंखय व्यक्ति स्वस्थ रहते थे। यहां यह उल्लेखनीय है कि यह सभी प्राचीन डॉक्टर, आयुर्वेद के साथ-साथ, ज्योतिष का भी ज्ञान रखते थे।

इसी कारण बीमारी का परीक्षण ग्रहों की स्थिति के अनुसार सरलता से करते थे। यदि आधुनिक भारत के डॉक्टर ज्योतिष का ज्ञान रखें, तो वे सरलता से निदान कर के, उचित इलाज करने में सक्षम होंगे। इसी प्रकार ज्योतिषीयों को भी मानव शरीर का ज्ञान होना आवश्यक है, जैसे जन्मपत्री में जो राशि, या ग्रह छठवें, आठवें, या बारहवें स्थान में पीड़ित हो, या इन स्थानों के स्वामी हो कर पीड़ित हो, तो उनसे संबंधित बीमारी की संभावना रहती है। इस संदर्भ में यहां, जन्मपत्री के अनुसार प्रत्येक स्थान और राशि से शरीर के कौन-कौन से अंग प्रभावित होते हैं, उनकी संक्षेप में सभी को जानकारी दी जा रही है। मेष राशि/लग्न : यह अग्नि तत्व राशि है। यह मस्तिष्क सिर, जीवन शक्ति और पित्त को प्रभावित करती है। इस लग्न वाला व्यक्ति श्रेष्ठ जीवन शक्ति वाला होता है।


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ऐसा व्यक्ति माणिक धारण करे, तो स्वास्थ्य उत्तम रहने की संभावना है। ज्योतिष शास्त्र के द्वारा बीमारियों का पूर्वानुमान लगाया जाता है। डॉक्टर, व्यक्ति के रोगी होने पर उसका इलाज करते हैं, परंतु ज्योतिष एक ऐसी विद्या है जिसके द्वारा बीमारियों का पूर्वानुमान लगा कर उनसे बचने के उपाय किये जाते हैं, बीमारी से बचा जा सकता है, या उसकी तीव्रता कम की जा सकती है।वृष राशि/लग्न : यह पृथ्वी तत्व राशि है। यह मुख, नेत्र, कंठ नली, आंत तथा वात को प्रभावित करती है।

इस लग्न वाला सामान्यतः स्वस्थ रहता है। गले में संक्रमण की शिकायत इन व्यक्तियों को अधिक रहती है। इसके लिए सावधानी बरतें, तो उत्तम होगा। मिथुन राशि/ लग्नः यह वायु तत्व राशि है। यह कंठ, भुजा, श्वास नली, रक्त नली, श्वास क्रिया तथा कफ को प्रभावित करती है। इस लग्न वाले की जीवन शक्ति सामान्य रहती है। कर्क राशि/ लग्नः यह जल तत्व राशि है। यह वक्ष स्थल, रक्त संचार और पित्त को प्रभावित करती है। इस राशि-लग्न वालों को मूंगा लाभकारी है जो जीवनदायिनी औषधि का काम करता है।

सिंह राशि/लग्न : यह अग्नि तत्व राशि है। यह जीवन शक्ति, हृदय, पीठ, मेरुदंड, आमाशय, आंत और वात को प्रभावित करती है। इस लग्न, राशि वाले में जीवन शक्ति अधिक रहती है। इनके लिए मूंगा जीवन शक्तिदायक और लाभदायक है। कन्या राशि/लग्न : जन्मपत्रिका में छठा स्थान बीमारी का स्थान माना जाता है। इस कारण जन्मपत्री का परीक्षण करते समय छठवें स्थान, या कन्या राशि का सूक्ष्म और सावधानी से परीक्षण करना चाहिए। यह पृथ्वी तत्व राशि है। यह उदर के बाहरी भाग, हड्डी, आंतें, मांस और कफ को प्रभावित करती है। राशि तुला/ लग्न : यह वायु तत्व राशि है। यह कम, श्वास क्रिया तथा पित्त को प्रभावित करती है।

इस लग्न वालों के स्वास्थ्य के लिए नीलम लाभकारी है। वृश्चिक राशि/ लग्न : या यह जल तत्व राशि है। यह जननेंद्रिय, गुदा, गुप्तांग, रक्त संचार और वात को प्रभावित करती है। धनु राशि/लग्न : यह अग्नि तत्व राशि है। यह जांघ, नितंब तथा कफ और पाचन क्रिया को प्रभावित करती है। इसके लिए पीला पुखराज लाभकारी है। मकर राशि/लग्न : यह पृथ्वी तत्त्व राशि है। यह जांघ, घुटनों के जोड़, हड्डी, मांस तथा पित्त को प्रभावित करती है। इनके लिए नीलम और हीरा लाभकारी हैं। कुंभ राशि/लग्न : यह वायु तत्त्व राशि है। यह घुटने, जांघ के जोड़, हड्डियों-नसों, श्वास क्रिया तथा वात को प्रभावित करती है। मीन राशि/लग्नः यह जल तत्त्व राशि है। यह पांव, पांव की उंगलियों, नसों, जोड़ों, रक्त संचार तथा कफ को प्रभावित करती है।

इनके स्वास्थ्य के लिए मोती लाभकारी है। अब प्रत्येक ग्रह के पीड़ित रहने पर या कोई ग्रह छठे स्थान का स्वामी हो कर पीड़ित रहने पर कौनसी बीमारी कर सकता है, उसका संक्षेप में वर्णन करते हैं। सूर्य : हृदय, पेट, पित्त, दांयीं आंख, घाव, जलने का घाव, गिरना, रक्त प्रवाह में बाधा आदि। चंद्र : शरीर के तरल पदार्थ, रक्त बायीं आंख, छाती, दिमागी परेशानी, महिलाओं में मासिक चक्र। मंगल : सिर, जानवरों द्वारा काटना, दुर्घटना, जलना, घाव, शल्य क्रिया ऑपरेशन, उच्च रक्तचाप, गर्भपात इत्यादि। बुध : गला, नाक, कान, फेफड़े, आवाज, बुरे सपने। गुरु : यकृत, शरीर में चर्बी, मधुमेह, शुक्र चिरकालीन बीमारियां, कान इत्यादि। शुक्र : मूत्र में जलन, गुप्त रोग, आंख, आंतें, अपेंडिक्स, मधुमेह, मूत्राशय में पथरी। शनि : पांव, पंजे की नसें, लसिका तंत्र, लकवा, उदासी, थकान। राहु : हडि्डयां, जहर फैलना, सर्प दंश, क्रॉनिक बीमारियां, डर आदि। केतु : हकलाना, पहचानने में दिक्कत, आंत्र, परजीवी इत्यादि।


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ज्योतिषी को 3, 6, 8 स्थान के ग्रहों की शक्ति देखनी चाहिए। यदि यह पता लग जाए कि भविष्य में कौनसी बीमारी की संभावना है, तो उससे बचने के उपाय करते रहेंगे, जैसे हृदय रोग होने की संभावना होगी तो वसा वाले पदार्थ नहीं खाएंगे और मानसिक तनाव से बचने का प्रयास करेंगे। इसी प्रकार सर्दी की तासीर की संभावना है, तो उससे बचते रहेंगे। चिकित्सा ज्योतिष (मेडिकल एस्ट्रोलॉजी) के संबंध में कुछ नियम वेद-पुराणों में भी दिये गये हैं। विष्णु पुराण तृतीय खंड अध्याय-11 के श्लोक 78 में आदेश है कि भोजन करते समय अपना मुख पूर्व दिशा, उत्तर दिशा में रखें । उससे पाचन क्रिया उत्तम रहती है और शरीर स्वस्थ रहता है। इसी प्रकार विष्णु पुराण तृतीय अंश अध्याय-11 के श्लोक 111 में उल्लेख है कि शयन करते समय अपना सिर पूर्व दिशा में, या दक्षिण दिशा में रख कर सोवें। इससे स्वास्थ्य उत्तम रहता है।

उत्तर दिशा में सिर रख कर कभी नहीं सोवें, क्योंकि उत्तर दिशा में पृथ्वी का चुंबक नार्थ उत्तरी ध्रुव है और मानव शरीर का चुंबक सिर है। अतः 2 चुंबक एक दिशा में होने से असंतुलन होगा और नींद ठीक से नहीं आएगी तथा स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा। उच्च रक्तचाप हो जाएगा। शायद इसी कारण भारतवर्ष में मृत शरीर का सिर उत्तर में रखते हैं।

कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि क्या ज्योतिषी डॉक्टर की भूमिका निभा सकते हैं? इसका उत्तर यह है कि ज्योतिषी डॉक्टर की भूमिका नहीं निभाते, परंतु जन्मपत्रिका, या हस्तरेखा के आधार पर ज्योतिषी यह बताने का प्रयत्न करते हैं कि उक्त व्यक्ति को भविष्य में कौन सी बीमारी होने की संभावना है, जैसे जन्मपत्रिका में तुला लग्न, या राशि पीड़ित हो, तो व्यक्ति को कमर के निचले वाले भाग में समस्या होने की संभावना रहती है।

जन्मपत्रिका में बीमारी का घर छठवां स्थान माना जाता है और अष्टम स्थान आयु स्थान है। तृतीय स्थान अष्टम से अष्टम होने से यह स्थान भी बीमारी के प्रकार की ओर इंगित करता है, जैसे तृतीय स्थान में चंद्र पीड़ित हो, तो टी.बी. की बीमारी की संभावना रहती है और तृतीय स्थान में शुक्र पीड़ित हो, तो शर्करा की बीमारी 'मधुमेह' की संभावना रहती है। शनि, या राहु तृतीय स्थान में पीड़ित होने पर जहर खाना, पानी में डूबना, ऊंचाई से गिरना और जलने से घाव होना आदि की संभावना बनती है।



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