कुण्डली में शनि शुभ-अशुभ फल देता है

कुण्डली में शनि शुभ-अशुभ फल देता है  

उत्मेन्दु भट्टाचार्य
व्यूस : 19003 | अकतूबर 2014

जब किसी जातक पर साढ़ेसाती आती है तो जातक में यह जानने की ख्वाहिश बढ़ जाती है कि उनके ऊपर साढ़ेसाती कब तक बुरा प्रभाव देगी, उसके लिए साढ़ेसाती कितनी बुरी या कितनी अच्छी है। शनि की साढ़ेसाती प्रारंभ होना या शनि की ढैया का लगना, यह सब तब ही हानिकारक हो सकते हैं जब शनि की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो, जन्मकुंण्डली में खराब भावों का सूचक हो, अगर यह खराब भावा में नहीं है या दशा अंतर्दशा नहीं चल रही हो तो शनि अशुभ नहीं होता, मतलब जातक को हानि नहीं पहुंचाता। केवल देखता है कि कौन अनुचित और पाप के कार्य कर रहा है, उनको अपनी दशा-अंतर्दशा में या साढ़ेसाती के दौरान ही उन सबका फल देता है।

जन्मकुंडली जांचते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:-

1. वयक्ति की कौनसी दशा-अंतर्दशा चल रही है।

2. जिस ग्रह की दशा-अंतर्दशा चल रही हो, वह कुंडली में कहां पर स्थित है।

3. शनि कौन से भावों का स्वामी है।

4. शनि किस राशि में गोचर कर रहा है।

5. शनि की कोैनसी दृष्टि उन भावों पर या स्वामी ग्रह पर पड़ रह है। यही दृष्टि उस दशा या अंतर्दशा के मिलने वाले फल को प्रभावित करती है।

6. चंद्रमा का गोचर क्या है जन्म कुंडली में चंद्रमा किस भाव का स्वामी है।

7. चंद्रमा कुंडली में शुभ भावों से संबंध रखता है या अशुभ भावों के साथ।


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8. जन्मकुंडली में चंद्रमा किस राशि में है, राशि के शुरु में है (शुरु के अंशों में) या मध्य में या किस स्थिति में है।

9. चंद्रमा और शनि के अंशों को भी देखना चाहिए।

10. शनि किस भाव का स्वामी है, किस-किस भाव पर शनि का प्रभाव है जिससे जातक प्रभावित हो सकता है।

11. जन्मकुंडली में शनि किस अंश पर है, कौन सा नक्षत्र है, उस नक्षत्र का स्वामी ग्रह कौन सा है, स्वामी ग्रह किस भाव का स्वामी है। यह सभी देखना भी बहुत जरूरी है।

शनि ग्रह कितना शुभ या अशुभ है। शनि ग्रह जितना कष्ट और हानि देता है, उतना ही लाभ, यश और सम्मान भी देता है, यह सभी जन्मकुंडली में चंद्रमा और शनि की स्थिति और बल पर निर्भर करता है।

यदि कुंडली जांचते समय ऊपर लिखी बातों पर ध्यान दिया जाये कि जन्म कुंडली में शनि की क्या स्थिति है, शनि कितना शुभ और अशुभ है, वर्तमान में शनि से क्या लाभ पहुंच रहा है या आगे कितना नुकसान पहुंचने वाला है, इन सब बातों का ध्यान रखा जाये तो सही जांचने से फलित ठीक निकल सकता है।

शनि ब्रह्म ज्ञान का भी कारक है, यह मजदूर, न्याय का भी स्वामी है। किसी भी जगह को शुष्क और स्वादहीन कर देना शनि का खास गुण है। शनि का बुध से संबंध होने से बेईमानी अवश्य करवाता है। शनि की मंगल, राहु और सूर्य से युति तथा अष्टमेश से संबंध होने पर मारकेश का रूप बना लेता है। चतुर्थ भाव में शनि हो तो जातक ज्यादातर पुराने मकान में ही रहेगा, अगर नया मकान खरीदेगा तो उसमें रह ही नहीं पायेगा। वह शुक्र की दशा-अंतर्दशा में किसी दूसरी महिला से धन दिलाता है।

कोई नया वाहन नहीं खरीद सकेगा, अगर खरीद लिया तो ज्यादा देर तक रख नहीं सकेगा, माता का सुख न के बराबर होगा। पंचम का शनि संतान कष्ट, कुटिल, दिवालिया योग देता है। छठे भाव का शनि हो तो जातक हठी, निरोगी, शत्रुओं से अजय, पशु, ज़मीन जायदाद मिलती है। सप्तम में शनि होने से जातक झगड़ालू, रोगी, समाज से तिरस्कृत, स्वयं व्यभिचारी, स्त्री भी व्यभिचारिणी हो जाती है, अष्टम का शनि धन का नाश, रोगी, शनि-मंगल की युति पर गुप्त रोग होने की संभावना बनी रहती है, नवम मंे शनि उच्च का होने पर जातक संन्यासी, देवतुल्य होता है। बलहीन शनि पिता के लिए अरिष्ट होता है।


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शुभ शनि की दशा-अंतर्दशा में राजसŸाा से लक्ष्मी प्राप्त होती है, दशमेश शनि अपने नवांश में या शनि के नवांश में हो तो लक्ष्मी योग होता है। शनि वृषभ लग्न में नवमेश या दशमेश होता है और वह कहीं दशम या एकादश में हो तो पूर्ण लक्ष्मी योग बनता है। शनि शुक्र की युति चतुर्थ में होने पर जातक को मित्रों और स्त्रियों से धन प्राप्त होता है। यही युति अगर दशम में हो तो वैभवशाली एवं राजा के समान होता है।

अगर शनि गुरु की युति हो तो दोनों एक-दूसरे बृहस्पति के प्रभाव को ले लेते हैं मतलब शनि पर बृहस्पति का प्रभाव आ जाता है तो बृहस्पति पर शनि का। अगर शनि की दृष्टि चंद्र पर हो या चंद्र की दृष्टि शनि पर हो या दोनों इकट्ठे लग्न में हों तो उच्चकोटि का तपस्वी या महान संत, धर्म प्रचारक होता है। मेष लग्न या मेष राशि में हो तो या मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु व मीन का शनि जन्मकुंडली में हो तो जातक को किसी खास विषय पर महारत हासिल होती है।

साढ़ेसाती के दौरान अगर किसी भी जातक की जन्कुंडली में चंद्रमा पूर्ण बली, उच्च वृषभ राशि में हो या स्वराशि का हो तो शनि के शुभ प्रभावों को चंद्रमा काफी कम कर देता है। चंद्रमा के निर्बल होने या शत्रु की राशि या नीचस्थ राशि वृश्चिक के होने पर शनि की अशुभता में वृद्धि करता है तथा जातक को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और जातक मानसिक तनाव में रहता है।


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