मंदबुद्धि बच्चे: अभिशप्त जीवन जीने कों मजबूर

मंदबुद्धि बच्चे: अभिशप्त जीवन जीने कों मजबूर  

व्यूस : 20803 | आगस्त 2011
मंदबुद्धि बच्चेः अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर आचार्य अविनाश सिंह मंदबुद्धि बच्चा शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़ा हुआ रहता है। वह लिखाई-पढ़ाई आदि भी कर नहीं पाता। मंदबुद्धि, अर्थात् 'मेंटल रिटार्डेशन' एक आनुवंशिक बीमारी है, जो माता, या पिता के बीज की विकृति की वजह से पैदा होती है। आयुर्वेद में इसका उल्लेख जड़, वामन, अल्पायु, विकृताकृति, निर्गुण, कुणी आदि नामों द्वारा किया गया है। बच्चे माता-पिता के प्यार की निशानी और उनकी आशा की किरण होते हैं; बुढ़ापे का सहारा बनते हैं। परंतु कुछ ऐसे भी माता-पिता होते हैं, जिनके बच्चे, मंदबुद्धि होने के कारण, उनके लिए हमेशा दुख और चिंता का कारण बने रहते हैं। मंदबुद्धि के लक्षण : कुछ बच्चों को देखने से ही मालूम हो जाता है कि वे मानसिक रूप से विकलांग हैं। बच्चा मंदबुद्धि होगा, यह अनुमान पैदा होते ही लगाया जा सकता है। ऐसे बच्चों में निम्न शारीरिक विकृतियां पायी जाती हैं : मंदबुद्धि बच्चों का सिर छोटा और पीछे से चपटा होता है। उनकी आंखें छोटी, नाक दबी हुई, चपटी जीभ हमेशा मुंह के बाहर रहती है। कान अपने प्राकृतिक स्थान से नीचे और विकृताकृति के होते हैं। हाथ छोटे और कुछ चौकोर से होते हैं। उनके मुंह से लार निकलती रहती है। उनकी संधियों के जोड़ ढीले होते हैं। पैरों का अंगूठा और पहली अंगुली के बीच ज्यादा जगह होती है। जन्म के पश्चात इनकी बुद्धि का विकास धीरे-धीरे होता है। क्यों पैदा होते हैं मंदबुद्धि बच्चे?: आयुर्वेद में शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से विकलांग बच्चों के पैदा होने के मूलभूत कारण इस प्रकार कहे गये हैं: बीजात्मकर्माशयकालदोषैः मातुस्तथाऽहारविहारदोषैः। कुर्वन्ति दोषा विविधानि दुष्टाः संस्थानवर्णेन्द्रियवैकृतानि॥ (चरक संहिता) अर्थात्, पुरुष का शुक्र, स्त्री का रज, माता-पिता के खुद के गलत कर्म, गर्भाशय तथा काल आदि के दोष तथा गर्भवती माता द्वारा गलत आहार-विहार के कारण बच्चों में विकलांगता उत्पन्न होती है। पवित्रता का नाश और कायिक, मानसिक एवं वाचिक पाप कर्मों की अधिकता को आयुर्वेद अहमियत देता है। पति-पत्नी में से यदि कोई पाप कर्म, यानी अनैतिक कर्म अधिक करता है, तो उनसे उत्पन्न बच्चे मंदबुद्धि होते हैं। छोटी आयु की कन्या, या अधिक आयु वाली स्त्रियों के साथ सहवास करने से उत्पन्न बच्चे भी विकलांग हो सकते हैं। एक ही गोत्र के, या नज़दीकी रिश्ते में शादी से उत्पन्न बच्चों में भी मंदबुद्धि होने की संभावना रहती है। माता, या पिता के जन्मांगों में, या बीज की विकृति के परिणामस्वरूप भी बच्चे मंदबुद्धि होते हैं। रजस्वला स्त्री के साथ सहवास के उपरांत होने वाले गर्भ से भी मंदबुद्धि बच्चा होता है। माता-पिता के विभिन्न रोगों, जैसे तपेदिक, गंभीर रक्ताल्पता, पीलिया, प्रमेह आदि से पीड़ित रहने पर गर्भाधान से उत्पन्न बच्चा मंदबुद्धि हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान स्त्री द्वारा गलत आहार-विहार, या बहुत कम आहार लेने, या बार-बार सहवास करने आदि से भी मंदबुद्धि बच्चा पैदा हो सकता है। गर्भावस्था में गर्भ को गिराने की कोशिश असफल होने के बाद उत्पन्न बच्चे में मानसिक विकलांगता होती है। गर्भावस्था में गर्भेदिक (एम्नियोटिक द्रव) कम होने से, या बार-बार एक्सरे लेने से भी गर्भ पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। क्या मंदबुद्धि बच्चों का जन्म रोक सकते हैं? : मंदबुद्धि बच्चों के पैदा होने के जो कारण ऊपर बताये गये हैं, उनको चिकित्सक विस्तार से समझाते हैं। वे स्वगोत्रीय विवाह, या नजदीकी रिश्ते में होने वाले विवाहों का निषेध करते हैं। विवाह करने वाले स्त्री-पुरुषों में पिछली तीन पीढ़ियों में कोई मंदबुद्धि व्यक्ति जन्मा था, या नहीं, इसकी जांच की सलाह देते हैं। रक्त की किस्म भी देखने की सलाह देते हैं। निम्न लिखित बातों का ध्यान रखें: विवाह पूर्व स्त्री-पुरुष की पिछली तीन पीढ़ियों में किसी प्रकार की विकृति न हो। स्वगोत्र में, या अत्यंत नज़दीकी रिश्ते में विवाह न करें। 16 वर्ष से पूर्व और 35 वर्ष के बाद की उम्र में स्त्री गर्भधारण न करे। मासिक धर्म के समय सहवास न करें। गर्भवती की इच्छाओं की अवहेलना न करें। गर्भावस्था में किसी भी प्रकार की व्याधि होने पर तुरंत चिकित्सा करवाएं। गर्भवती माता किसी भी प्रकार के शारीरिक और मानसिक आधात से बचे। आयुर्वेदानुसार मंदबुद्धि बच्चों में जिनका आई. क्यू. 51 से 70 प्रतिशत है, उनके लिए निम्न दवाइयों का उपयोग चिकित्सक की सलाह से एवं निगरानी में, किया जा सकता हैः बच्चों को बृहद चिंतामणि, 25 मिग्राम की मात्रा में, दिन में 2 बार नियमित चटाएं। ब्राह्मी, सोंठ, जटामांसी, शंखपुष्पी, यष्टि मधु और हर्रे को समान भाग में ले कर चूर्ण बना लें। उसे घी के साथ शक्कर की चाशनी में पका कर दो ग्राम दिन में दो बार चटाएं। मंदबुद्धि बच्चों की तालु देरी से भरती है। जब तालु नरम होती है, तब बला एवं बालछड़ वनस्पतियों से बनाये गये तेल में रुई को डुबो कर बच्चे की तालु पर रखें। इसे दो साल तक हर रोज 15 मिनट तक रखें। ब्राह्मी बूटी के दो तोले चूर्ण को, बादाम के तेल में मिला कर, काली मिर्च तथा छोटी इलायची के बीज पीस कर, प्रत्येक दिन तीन माशा पिला दें। इसके अलावा बच्चे को माता का दूध पिलाना, रोग प्रतिरोधक टीके लगाना आदि सभी काम सामान्य बच्चों के अनुसार किये जाने चाहिएं। मंदबुद्धि बच्चों के लिए स्थापित संस्थाओं में उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि में मंदबुद्धि बच्चेः काल पुरूष की कुंडली में प्रथम भाव जातक के व्यक्तित्व का होता है, जिसमें विशेष कर मस्तिष्क को प्रथम स्थान दिया गया है। इस भाव का स्थिर कारक सूर्य होता है। इसी प्रकार पंचम भाव जातक की बुद्धि का होता है, जिसका स्थिर कारक गुरु है। ज्योतिष में जातक की बुद्धि का संबंध बुध ग्रह से है। इसलिए यदि जातक का लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, पंचमेश, सूर्य, बुध और गुरु दुष्प्रभावों में रहेंगे, तो जातक मंदबुद्धि होता है। विभिन्न लग्नों में मंदबुद्धि के ग्रह योग : मेष लग्न : लग्न, या पंचम भाव में बुध हो, सूर्य द्वादश भाव में राहु से युक्त हो, लग्नेश त्रिक भावों में शनि से दृष्ट हो, गुरु षष्ठ भाव में हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। वृष लग्न : गुरु लग्न में हो, लग्नेश और बुध सूर्य से अस्त हो कर छठे, या आठवें भाव में हो, मंगल पंचम भाव में हो और चंद्र से युक्त, या दृष्ट हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। मिथुन लग्न : मंगल लग्न में, या पंचम भाव में हो, या पंचम भाव को देखता हो, पंचम भाव में गुरु हो, पंचमेश शुक्र और बुध सूर्य से अस्त हों और केतु से दृष्ट हों, तो जातक मंदबुद्धि होता है। कर्क लग्न : लग्न में बुध, सूर्य द्वादश भाव में शनि से युक्त हो, शुक्र एकादश भाव में केतु से युक्त हो, पंचमेश षष्ठ भाव में शनि से दृष्ट, या युक्त हो, गुरु अष्टम भाव में हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। सिंह लग्न : शनि लग्न को देखता हो, लग्नेश षष्ठ भाव में हो, बुध सप्तम भाव में, शुक्र चतुर्थ भाव में शनि से दृष्ट हो, गुरु अष्टम भाव में हो, तो जातक मंदबुद्धि हो सकता है। कन्या लग्न : लग्नेश बुध सूर्य से अस्त हो कर षष्ठ भाव में हो, मंगल दशम भाव में हो और चंद्र से युक्त हो, पंचमेश शनि पर मंगल की दृष्टि हो, गुरु पंचम भाव में हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। तुला लग्न : लग्नेश शुक्र अस्त हो कर षष्ठ भाव में हो, गुरु पंचम भाव में हो, पंचमेश शनि द्वादश भाव में हो और मंगल से दृष्ट हो, बुध भी अस्त हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। वृश्चिक लग्न : लग्नेश मंगल तृतीय भाव में हो और शनि से दृष्ट हो, बुध लग्न में हो और सूर्य द्वादश भाव में हो, गुरु अष्टम भाव में हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। धनु लग्न : शुक्र लग्न में हो, बुध तृतीय भाव में हो, चंद्र सूर्य से बराबर अंशों पर हो कर द्वितीय भाव में हो, लग्नेश सप्तम भाव में हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। मकर लग्न : लग्नेश शनि त्रिक भावो में सूर्य से अस्त हो, पंचमेश षष्ठ भाव में हो और गुरु से दृष्ट हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। कुंभ लग्न : गुरु लग्न में हो, लग्नेश शनि षष्ठ भाव में हो और चंद्र से युक्त, या दृष्ट हो, पंचमेश बुध सूर्य से अस्त हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। मीन लग्न : गुरु अकारक शनि, या शुक्र से युक्त, या दृष्ट हो कर लग्न में हो, या लग्न पर दृष्टि रखे, सूर्य बुध से युक्त हो कर त्रिक भावों में हो, तो जातक मंदबुद्धि होता है। यदि जन्म समय संबंधित ग्रहों की दशा चल रही हो, तो जातक जन्म से ही मंदबुद्धि होता है। उदाहरण : यह कुंडली एक स्त्री जातक की है, जो मानसिक रूप से मंदबुद्धि है। यदि इसके जन्मांग पर दृष्टि डालें, तो देखेंगे कि उसका जन्म मीन लग्न में हुआ है। लग्नेश गुरु अकारक शनि से युक्त है और पंचमेश चंद्र शनि से दृष्ट है। पंचम भाव पर अकारक शुक्र की पूर्ण दृष्टि है और राहु पंचम भाव में है। लग्न पर भी अकारक शनि और राहु की दृष्टि है। बुध सूर्य से अस्त हो कर द्वादश भाव में है। इस प्रकार ज्योतिषीय दृष्टि से लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, पंचमेश और बुध सभी दुष्प्रभावों में हैं। इसके जन्म के समय राहु की महादशा चल रही थी और उसमें शनि का अंतर था। इसी कारण यह जन्म से ही मंदबुद्धि है।



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