नाग रहस्य : नाग पंचमी का सत्य

नाग रहस्य : नाग पंचमी का सत्य  

व्यूस : 21339 | आगस्त 2011
नाग रहस्य : नाग पंचमी का सत्य ! (04.08.2011) भगवान सहाय श्रीवास्तव पूरे भारतवर्ष में नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है। इस नाग पंचमी का रहस्य क्या है? इसके पीछे कौन से मत एवं कथाएं विद्यमान हैं पढ़िए इस लेख में श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी भी कहते हैं। इस दिन सारे भारत में नागों की पूजा की जाती है। पूजा की इस परंपरा के संबंध में अनेक व्याखयाएं की गयी हैं और प्रायः सभी विद्वान इस बात पर एक मत हैं कि नाग भारत की एक प्रतापी जाति थी। आधुनिक नाग इसी नाग, प्रजाति के वंशज हैं। परंतु इस बारे में कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हैं। एक पुरातत्वविद् के अनुसार नागवंशी नाग लोग जो भी हों, प्रारंभ में हिमालय में रहते थे। वे बड़े परिश्रमी तथा विद्वान थे। नाग कन्याएं अत्यंत सुंदर होती थीं। जिनके प्रसंग में भारतीय इतिहास भरा पड़ा है। अर्जुन की पत्नी उलूपी एक ऐसी ही नाग कन्या थी। नाग लोगों ने चीन और बृहत्तर भारत तक अपने संबंध बढ़ाये थे। जहां भारत की ही तरह उनकी पूजा होती है। नागों का नाम संभवतः नाग की तरह के रंग के कारण अथवा नागों को पालने में दक्ष होने के कारण पड़ा। वे नाग की तरह घात करके छिपने में दक्ष थे। नाग-पोश उनका घातक अस्त्र था व नागों को पकड़कर उनके विष का नाना विधि से प्रयोग करते थे। तक्षक ने एक ऐसे ही विष बुझे बाण से महाभारत काल में अर्जुन के पौत्र परीक्षित की जान ले ली थी। नाग वस्तुतः न आर्य थे न अनार्य और न ही विदेशी। इनके पिता कश्यप आर्य ऋषि थे जबकि उनकी दो पत्नियों विनता और कद्रू में से कद्रू अनार्य थी। ये नाग कद्रू की ही संतान थे। नाग मातृवंशी हैं और कद्रू से ही अपनी उत्पत्ति मानते हैं। पिता का उल्लेख नहीं करते हैं। अनेक नाग अपने कर्म और विद्वत्ता से ऋषि पद तक पहुंचे। ऐसे कई नागों का उल्लेख ऋग्वेद में है। कपिल मुनि भी नागराज थे जिन्होंने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म किया था। महर्षि जरतकारु भी ऐसे ही नाग थे। जरतकारु बासुकि नाग की बहन मनसा के पुत्र थे। जरतकारु के पुत्र आस्तिक ने तो जनमेजय के यज्ञ में अनेक नागों की जान बचाई थी। कुछ नाग शेष और अनंत के रूप में अति उच्च स्थान पाने में समर्थ हुए। आर्यों को समुद्र मंथन में अनंत का सहयोग लेना पड़ा था क्योंकि वे समुद्रीय कार्य में विशेष दक्ष थे। नागों ने मन्दराचल पर्वत के रास्ते पर भूमि को काटने छांटने तथा समुद्र-यात्रा में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी। बासुकि ने समुद्र मंथन में मदद की पर समुद्र की प्राप्तियों को आर्यों ने नागों में नहीं बांटा। इससे नाग रुष्ट हो गये और आर्यों को समय-समय पर तंग करने लगे। अर्जुन ने खांडव वन का दाह करके नाग जाति को बहुत हानि पहुंचायी थी। कृष्ण ने मथुरा तक फैले हुए नागों का भारी विघ्न किया। नागों ने हस्तिनापुर राज्य से बदला लेने का निश्चय किया। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने अनेक नागपुरुषों को बंदी बनाकर उन्हें आग में जीवित झोंक दिया। महर्षि जरतकारु के पुत्र आस्तिक बने नागराज। उन्होंने कुछ प्रमुख नागों को बचा लिया। रावण भी अपने को नागवंशी कहता था। नागों का क्षेत्र बहुत व्यापक था। कुरुक्षेत्र में उनका प्रमुख राज्य था। प्रयाग में भी उनका प्रमुख राज था। प्रयाग में गंगा के किनारे बासुकि का मंदिर आज भी विराजमान है। महाभारत के जरासन्ध पर्व में, मगध में राजगृह में नागवंश के राज्य का उल्लेख है। यहां राजगृह की खुदाई में मणिनाग का मंदिर भी मिला है। अर्जुन की पत्नी उलूपी के पिता राजा कोरथ्य की राजधानी हरिद्वार थी। बौद्ध युग में काशी, चंपा और मगध में शक्तिशाली नाग राजाओं का आधिपत्य था। भद्रवाह, जम्मू, कांगड़ा आदि में नाग राजाओं की देवता रूप में मूर्तियां मिलती हैं। ये मूर्तियां प्राचीन नाग राजाओं की हैं और आजकल उन भागों में इनकी पूजा की जाती है। मध्य प्रदेश, नागपुर, गढ़वाल और नागालैण्ड में भी नाग राजाओं के क्षेत्र थे। नाग और शिशु नागवंश के राजपूतों ने देश के अनेक भागों में राज किया। नाग पंचमी का पौराणिक सत्य : एक बार राक्षसों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन से अत्यंत श्वेत उच्चैःश्रवा नाम का एक अश्व निकला। उसे देखकर नाग माता कदू्र ने अपनी सपत्नी (सौत) विनता से कहा कि देखो, यह अश्व सफेद रंग का है, परंतु इसके बाल काले रंग के दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा कि नहीं। न तो यह अश्व श्वेत रंग का है, न ही काला, न ही लाल। यह सुनकर कद्रू ने कहा आप मेरे साथ शर्त लगा लो जो भी शर्त जीतेगी वही दूसरे की दासी बन जायेगी। विनता ने शर्त स्वीकार कर ली। दोनों अपने स्थान पर चली गईं। कदू्र ने अपने पुत्र नागों को बुलाकर सारा वृत्तांत सुनाया और कहा कि आप सभी सूक्ष्म आकार के होकर इस अश्व से चिपक जाओ ताकि मैं शर्त जीतकर विनता को अपनी दासी बना सकूं। माता के उस कथन को सुनकर नागों ने कहा- मां, आप शर्त जीतो या हारो, परंतु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे। कदू्र ने कहा- तुम मेरी बात नहीं मानते? मैं तुम्हें शाप देती हूं कि ''पाण्डवों के वंश में उत्पन्न जनमेजय जब सर्प यज्ञ करेगा, तब तुम सभी उस अग्नि में जल जाओगे।' माता का शाप सुनकर सभी घबराये और बासुकि को साथ लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सारी घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने कहा-चिंता मत करो, यायावर वंश में बहुत बड़ा तपस्वी जरतकारु नामक ब्राह्मण उत्पन्न होगा। उसके साथ आप अपनी बहन का विवाह कर देना। उससे आस्तिक नाम का विखयात पुत्र उत्पन्न होगा, वही जनमेजय के सर्प यज्ञ को रोककर आपकी रक्षा करेगा। ब्रह्मा जी ने यह वरदान पंचमी के दिन दिया था और आस्तिक मुनि ने भी पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी। तभी नागपंचमी की तिथि नागों को अत्यंत प्रिय है। श्रावण शुक्ल पंचमी को उपवास कर नागों की पूजा करनी चाहिए। बारह महीने तक चतुर्थी तिथि के दिन एक बार भोजन करके पंचमी को व्रत करें। पृथ्वी पर नागों के चित्र अंकित करके, काष्ठ या मिट्टी के नाग बनाकर पंचमी के दिन करवीर, कमल, चमेली आदि पुष्प, गंध, धूप और विविध नैवेद्य से उसकी पूजा करके घी, खीर, लड्डू ब्राह्मणों को खिलाएं। अनंत, बासुकि, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, घृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिया, तक्षक और पिंगल इन बारह नागों की बारह महीनों में क्रमशः पूजा करने का विधान है। यही यज्ञ विधान जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित के लिए किया था। जो भी कोई नाग पंचमी को श्रद्धापूर्वक व्रत करता है उसे शुभफल प्राप्त होता है। इस दिन नागों को दूध का स्नान-पान कराने से सभी बड़े-बड़े नाग अभय दान देते हैं। परिवार में सर्पभय नहीं रहता। वर्तमान में कालसर्प योग का प्रभाव क्षीण हो जाता है। राजस्थान में नाग पंचमी श्रावण कृष्ण पंचमी को मनायी जाती है। नाग के प्रतीक के रूप में चांदी अथवा तांबे की सर्प प्रतिमा अथवा रस्सी में सात गांठे लगाकर उसे नाग का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की जाती है। सर्प की बांबी का पूजन किया जाता है तथा दूध चढ़ाया जाता है। बांबी की मिट्टी घर में लाकर कच्चा दूध मिलाकर चक्की-चूल्हे आदि पर सर्प आकृति बनाते हैं। शेष मिट्टी में अन्न के बीज बोते हैं, जिसे खत्ती गाड़ना कहते हैं इस दिन भीगा हुआ बाजरा एवं मौंठ खाने का विधान है।



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