राम नाम की सत्यता के प्रमाण

राम नाम की सत्यता के प्रमाण  

व्यूस : 11638 | अप्रैल 2008
राम नाम की सत्यता के प्रमाण पं. मनोहर शर्मा ‘पुलस्त्य’, पीठापुर हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों में राम नाम की सत्यता के असंख्य प्रमाण भरे पड़े हैं। मध्ययुगीन भक्ति कालीन सभ्यता से आधुनिक काल तक असंख्य प्रमाण देखने व सुनने में आए हंै। प्राचीन प्रमाण- सतयुग के प्रारंभ काल से ही लें तो महर्षि वाल्मीकि का उदाहरण सामने आता है, वे तो उनके उल्टे शब्द ‘मरा’ को ही जपते-जपते ब्रह्ममय हो गए। 15वीं- 16वीं सदी में तुलसीदास ने ‘रामचरित मानस’ लिखा। उसका हर शब्द मंत्र है। यदि उन मंत्रों को हृदयंगम कर लिया जाए, जप-तप-साधना के माध्यम से सिद्ध कर लिया जाए तो क्या यह प्रमाण नहीं हैं? इसी रामचरित मानस के बल पर तो अभी भी लाखों लोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रयासरत हैं। प्राचीन काल के और भी बहुत से प्रमाण हैं जिनमें गणिक, गिद्ध, अजामिल और शबरी जैसे महान भक्त हुए हैं जिन्होंने राम नाम की डंका बजाया था। सदन कसाई, केवट, शरभंग, अंगद, जामवंत, विभीषण, हनुमान, भारद्वाज, वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि ऋषि महर्षि भी हुए जिन्होंने राम नाम को महिमा मंडित किया। मध्यकालीन प्रमाण- राम नाम के सार व सत्यता के असंख्य प्रमाण मध्यकाल में बहुत मिलते हैं जिसे आजकल के वैज्ञानिक भी नहीं नकार सकते। क्योंकि सूरदास, तुलसीदास, कबीरदास, मीराबाई, भक्त रैदास, नरसी मेहता, संत तुकाराम, दादू, बिन्दू, गुरु नानक आदि महामानवों ने तत्कालीन समय में भक्तिमय काव्य महाकाव्यों में राम नाम की सरिता बहा कर विश्व को आलोकित किया था। उनके काव्य महाकाव्यों के शब्द, स्वर संपूर्ण रसमय अमृत के समान हैं जिन्हें पढ़कर, सुनकर हृदय रोमांचित हो उठता है। तुलसीदास के जीवन काल की एक घटना है। जब तुलसीदास राम के दर्शन के लिए व्याकुल हुए तो उनकी मनःस्थिति पागल सदृश हो गई थी। वह जिसे देखते उसे ही पूछते ‘‘क्या आप ही राम हैं?’‘ तभी तो वे अपने रामचरितमानस में लिखते हैं- ‘‘सीयराम मय सब जग जानी। करुहुं प्रणाम् जोरि जुग पानी।।’’ राम को प्राप्त करने के लिए भक्त को पागल जैसी मनःस्थिति पैदा करनी पड़ती है, उसे साधारण भक्ति से प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए तो पराभक्ति की आवश्यकता होती है। इस प्रकार कबीरादास जी के जीवन की भी एक घटना है। कबीर जुलाहे थे। सूत कातकर कपड़ा बनाना और ग्राहकों को प्रसन्न रखना उनका काम था। वे जिस भी ग्राहक को कपड़े यह कहकर देते कि, ‘‘राम यह कपड़ा आपके ही लिए है, यह कपड़ा राम मैंने आप ही के लिए बनाया है।’’ अब ग्राहक चाहे उनके दाम देता या न देता, वह तो उनको राममय समझकर दे ही देते। इसी प्रकार की मनःस्थिति भक्त रैदास की भी थी। भक्त रैदास जूते बनाते और ग्राहकों को यह कहकर दे देते कि, ‘‘राम ! ये जूते मैंने आप ही के लिए बनाए हंै, ये जूते आपके ही हैं।’’ अब ग्राहक उन जूतों के दाम रैदास को देते चाहे न देते, वे तो उन्हें जूते दे देते थे। भक्त शिरोमणि मीरा की ‘‘पायो जी मैंने राम रतन धन पायो’’ कितना बड़ा मार्मिक चित्रण है उनकी राम नाम की मधुर स्वर सरिता में। ‘‘वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु’’ अर्थात् ’’मेरे सद्गुरु ने राम नाम रूपी ऐसी बहुमूल्य वस्तु दी है जिसका कोई मोल ही नहीं है’’ ‘‘हरष-हरष रस गायो’’ अर्थात् ‘‘खुशी-खुशी राम नाम रूपी रस को मैंने पीया, कृष्ण रस रूपी रस का मैंने पान किया; राम नाम रूपी, कृष्ण रस रूपी अमृत का पान कर मैं धन्य हुई, अमर हुई’’। इस प्रकार भक्तिकाल के ऐसे असंख्य प्रमाण हैं, जिन्हें आजकल के अतिबुद्धिवादी लोगों की नासमझी बुद्धि क्या समझेगी? आधुनिक प्रमाण- वर्तमान समय में भी बहुत प्रमाण हैं। एक तरफ महात्मा गांधी, संत विनोबा भावे, संत ज्ञानेश्वर, एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, ओशो आदि तो दूसरी तरफ आज भी हमारे समक्ष ऐसे अनेक सिद्ध पुरुष हैं, जिन्होंने राम नाम की दिव्य अलौकिक महिमा को आलोकित किया है। वे अभी वर्तमान समय में राम नाम के अमृत रूपी रस का स्वयं कर ही रहे हैं। सर्वसाधारण को भी पान करवा रहे हैं। कुछ नाम ऐसे हैं जो अपने नाम के कारण प्रसिद्ध हैं। जैसे पुराने बाबा रामदेव जिन्होंने महाराज छत्रपति शिवाजी सामान्य मानवों के हृदय को भी आंदोलित आलेकित किया था। राम से बड़ा राम का नाम है। प्रत्येक 100 वर्षों में प्रत्येक कुल में, वंश में, संप्रदाय में, एक महान पुरुष अवश्य ही होता है, जो अपने कुल का, अपने वंश का, अपने धर्म का देवता होता है। वह राम नाम के ही समान है। बाबा हरदौल, बाबा जू शक्तिमाता, ब्रह्म बाबा, दूल्हा देव, बजरंग बली, रूपी सीय राममय व्यक्तित्व प्रत्येक 100 वर्षों के अंतराल में अवश्य ही अवतार लेते हैं और अपना धर्ममय कार्य कर इस नश्वर संसार से विदा ले लेते हैं। उदाहरण हमारे महान दार्शनिक सुकरात भक्त शिरोमणि मीरा, आदि जगद्गुरु शंकराचार्य, महर्षि दयानंद सरस्वती आदि हैं। तुलसीदास के जीवन काल की एक घटना है। जब तुलसीदास राम के दर्शन के लिए व्याकुल हुए तो उनकी मनःस्थिति पागल सदृश हो गई थी। वह जिसे देखते उसे ही पूछते ‘‘क्या आप ही राम हैं?’‘ तभी तो वे अपने रामचरितमानस में लिखते हैं- ‘‘सीयराम मय सब जग जानी। करुहुं प्रणाम् जोरि जुग पानी।।’’ राम को प्राप्त करने के लिए भक्त को पागल जैसी मनःस्थिति पैदा करनी पड़ती है, उसे साधारण भक्ति से प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए तो पराभक्ति की आवश्यकता होती है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.