शाबर मंत्रों द्वारा रोग निवारण

शाबर मंत्रों द्वारा रोग निवारण  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 9735 | जून 2006

रोग विभिन्न प्रकार के होते हैं। अधिकांश तो औषधोपचार से ठीक हो जाते हैं। परंतु कुछ को मंत्रोपचार द्वारा भी ठीक किया जा सकता है। जहां दवाएं रोग का निदान करने में निष्प्रभावी हो जाएं वहां मंत्र-उपचार का सहारा लेना चाहिए। इन मंत्रों में अटपटी भाषा में बोले जाने वाले शाबर मंत्र भी हैं जिनका उल्लेख यहां किया जा रहा है। ये ऐसे मंत्र हैं जो अपना प्रभाव तुरंत दिखाते हैं। प्रयोग से पूर्व इन्हें किसी शुभ मुहूर्त में सिद्ध करना आवश्यक होता है, जिसमें विश्वास की भावना होनी चाहिए। सिर पीड़ा निवारक मंत्र हजार घर घालै, एक घर खाए, आगे चले तो पीछे जाए, फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा।

प्रयोग विधि: रोगी को सामने बिठाकर उसका माथा पकड़कर यह मंत्र पढ़कर फूंक मारें। यह क्रिया तीन बार लगातार तीन दिन तक सुबह-शाम की जाए तो रोगी का सिर दर्द समाप्त हो जाता है।


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बवासीर नाशक मंत्र ¬ छुह छलक छलाई हुं हुं क्लं क्लां क्लीं हुं।

प्रयोग विधि: एक लोटे में ताजा शुद्ध जल लेकर उस पर उक्त मंत्र को तीन बार पढ़कर रोगी को दें। रोगी उसे शौच क्रिया में प्रयोग करे। अधिकतम चालीस दिनों के नियमित इस्तेमाल से बवासीर रोग जड़ से समाप्त हो जाएगा। बुखार दूर करने हेतु मंत्र ¬ भैरव भूतनाये विकरालकाये अग्निवर्णधाये सर्व ज्वर बन्ध मोघय त्रयम्बकेति हुं। प्रयोग विधि: रविवार या मंगलवार को प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर ‘सहदेवी’ पौधे की जड़ ले आएं।

रास्ते में किसी से मत बोलें। घर आकर उस जड़ को मंत्र पढ़ते हुए धोएं। फिर तीन बार मंत्र पढ़कर उस पर फूंक मारें। फिर वह जड़ किसी कपड़े में बांधकर रोगी की दाहिनी भुजा पर मंत्र पढ़ते हुए ही बांध दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार के ज्वर नष्ट हो जाते हैं। पीलिया रोगनाशक मंत्र ‘¬ नमो आदेश गुरु को, श्रीराम सर साधा, लक्ष्मण साधा, बाण काल पीला राता नीला घोला पीला पीला, चारों गिरि जहिं नो श्री रामचंद्रजी रहे नाम, हमारी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा। प्रयोग विधि: पीतल के कटोरे में पानी भरकर रोगी को सामने बिठाएं। यह प्रयोग शनिवार से शुरू करें। एक शनिवार से शुरू कर सातवें शनिवार तक नित्य करें। नियमानुसार रोगी के शरीर को स्पर्श करते हुए एक सुई के द्वारा झाड़कर उसे पानी में डुबो दें।

मंत्र द्वारा झाड़ने की क्रिया करते रहें। प्रतिदिन सात बार मंत्र पढ़कर हर बार सुई से झाड़ें। यह नियम 49 दिनों तक (सात सप्ताह-शनि से शनि तक) निभाना चाहिए। मिर्गी-मूच्र्छा नाशक मंत्र ¬ हलाहल सरगत मंडिया, पुरिया श्रीराम जी पफूंके, मिर्गी बाई सूखे सुख होई, ¬ ठः ठः स्वाहा। प्रयोग विधि: किसी भी रविवार या मंगलवार को स्नानादि से निवृत्त होकर इस मंत्र को 21 बार पढ़ें। फिर भोजपत्र पर अनार की कलम और अष्टगंध से लिखें। उसे लोबान के धुएं में सेंक कर किसी कपड़े या ताबीज के सहारे रोगी के गले में बांध दें। इस प्रयोग से मिर्गी रोग का जड़ से नाश हो जाता है। दुखती आंख का मंत्र ¬ नमो झलमल जाहर भरी तलाई जहां बैठा हनुमन्ता, आई पफूटे न पाले न करे न पीड़ा जती हनुमन्त राखे हीड़ा। प्रयोग विधि: यह मंत्र पहले ग्रहण में जपकर सिद्ध कर लें।


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फिर आवश्यकता पड़ने पर विभूति से चाकें तो दुखती आंखों की पीड़ा दूर होगी। जहर उतारने का मंत्र ‘गंगा गौरी ये दोऊ राणी, टांक कर मारि करो विष, पाणी गंगा बांटे गौरा खाइ, अटारा भार विष निर्विष हो जाइ। गुरु की शक्ति मेरी भक्ति, फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा।’ प्रयोग विधि: रविवार को सात मिर्च उक्त मंत्र से अभिमंत्रित करके देने से विष उतर जाता है। इन शाबर मंत्रों के अतिरिक्त और भी अनेक मंत्र हैं जिनका प्रयोग रोगों से मुक्ति के लिए किया जा सकता है। यदि इन मंत्रों का विधिपूर्वक जप करके प्रयोग किया जाए तो ये अपना अचूक असर दिखाते हैं।



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