जन्म कुडली व प्रश्न कुडली की साम्यता

जन्म कुडली व प्रश्न कुडली की साम्यता  

रश्मि शर्मा
व्यूस : 15326 | जुलाई 2010

जिस प्रकार जन्मकुंडली में हमारे जीवन की समस्त घटनाओं का लेखा जोखा समाहित है उसी तरह से प्रश्नकुंडली का भी विशेष महत्व है। प्रश्न कुंडली की शुभ ग्रह स्थिति और जन्मकुंडली में पूछे गए अभीष्ट फल की प्राप्ति का योग होने की स्थिति प्रश्न फल की सिद्धि का पूर्ण संकेत है। यदि प्रश्नकुंडली का फल नकारात्मक है तथा जन्मकुंडली की दशा व गोचर भी प्रतिकूल हो तो अभीष्ट की प्राप्ति में विलंब होगा। जन्मकुंडली व प्रश्न कुंडली में शुभ योग नहीं होने की स्थिति का फल पूर्णतया नकारात्मक होगा। इस आलेख में प्रस्तुत है प्रश्नकुंडली के इसी व्यवहारिक पक्ष की सोदाहरण व्याखया जो जन्मकुंडली व प्रश्नकुंडली की साम्यता सिद्ध करती है। 

माता-पिता के लिए संतान का जन्म जहां एक वरदान की तरह है वहीं संतान की अस्वस्थता अभिशाप की तरह है। अपनी कुछ महीनों की छोटी सी मासूम बीमार बच्ची के पिता एक दिन बड़े ही मायूस होकर मेरे पास आए उन्होंने बताया कि बच्ची के दिल में जन्म से ही छेद है और अब वह निमोनिया की भी शिकार हो गई है। कोई भी डाॅक्टर इस हालत में बच्चे के ईलाज व आॅपरेशन के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने जानना चाहा कि क्या उनकी बच्ची बचेगी या नहीं? प्रश्न लगाकर जानने का प्रयास करते हैं कि प्रश्न कुंडली क्या कहती है। चर लग्न व चर नवांश पृष्ठोदय लग्न यथास्थिति में परिवर्तन दर्शा रहे हैं। केंद्र व त्रिकोण में पाप प्रभाव अधिक है।


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केंद्र में मात्र शुक्र शुभ ग्रह है जो मेष लग्न के लिए मारक (द्वितीयेश, सप्तमेश) है। चंद्र बुध के नक्षत्र में है और बुध षष्ठेश है अतः प्रश्न रोग से संबंधित है। Û कुंडली में लग्नेश नीच का व वक्री है जो चतुर्थ भाव में दिग्बलहीन होकर मारक ग्रह शुक्र से इत्थशाल में है। Û लग्न व लग्नेश दोनों पर ही किसी प्रकार की शुभ दृष्टि नहीं है। 3, 6, 9वें भाव में शुभ प्रभाव का न होना बीमारी के ठीक होने में संदेह उत्पन्न करता है। Û कुंडली में सातवें भाव के अतिरिक्त बीमारी के लिए छठा भाव व कन्या राशि को भी महत्व दिया जाता है। यहां छठे में शनि वक्री होकर स्थित है। शनि को लंबी बीमारी व दुःख का कारक माना गया है। Û चैथा भाव जो उपचार या रोग की पहचान का है वहां नीच के क्रूर ग्रह वक्री मंगल का उपस्थित होना जटिलताएं उत्पन्न कर सकता है। Û चैथा भाव दिखाता है कि उपचार सही नहीं है। Û सातवें भाव पर मंगल व शनि का दृष्टि प्रभाव बताता है कि रोग गंभीर है। Û चैथे भाव में उपस्थित वक्री ग्रह बीमारी का पुनः प्रकट होना भी दर्शाता है। Û चंद्र 12वें भाव (दुःस्थान) में स्थित है व शनि से पीड़ित है। चंद्र का वक्री ग्रह राहु से इत्थशाल असाध्य रोग का संकेत है।

Û कर्क राशि में वक्री ग्रह संक्रमण दिखाता है। Û मंगल लग्नेश होने के साथ अष्टमेश भी है इसका नीच व वक्री होना मृत्यु तुल्य कष्ट दे सकता है। Û रोगी व बीमारी के संकेतक करने वाले दशमेश व अष्टमेश (शनि व शुक्र) में पूर्ण इत्थशाल है जो बीमारी का कभी ठीक न होना दर्शाता है। Û कुंडली में बलहीन लग्नेश, चंद्र व पाप प्रभाव की अधिकता है जो बताता है कि बच्ची का बचना मुश्किल है। प्रश्न पूछे जाने के 3 दिन बाद बच्ची की मृत्यु हो गई। आइए बच्ची की जन्मकुंडली से घटना की पुष्टि करें - मेष लग्न की कुंडली में चंद्र लग्न में ही स्थित है व लग्नेश मंगल नीच का होकर चतुर्थ भाव में राहु केतु के अक्ष में स्थित है। लग्नेश, चतुर्थ में व चतुर्थेश लग्न में स्थित है


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अर्थात लग्नेश व चतुर्थेश में राशि परिवर्तन है जो शरीर का सुख से या अगर चिकित्सा ज्योतिष की बात करें तो हृदय से संबंध दिखाता है। लग्नेश नीच वक्री गुरु से दृष्ट है जो किसी प्रकार से शुभ नहीं है। वक्री गुरु सेहत में किसी प्रकार का स्वास्थ्य लाभ नहीं देता। कुंडली में चंद्र द्रेष्काण का स्वामी होकर लग्न को पीड़ित कर रहा है। कुंडली के छठे भाव में 3 पाप ग्रहों का प्रभाव बीमारी की संभावना जताता है। चतुर्थ में मंगल व केतु हृदय संबंधित बीमारी की पुष्टि करते हैं। कुंडली के केंद्र में जो कि कुंडली का स्तंभ कहा गया है पाप प्रभाव अत्यधिक है। नवांश में भी केंद्र में पाप प्रभाव की अधिकता है। नवांश का लग्न मारकेश मंगल व शनि दोनों से दृष्ट है। लग्न कमजोर है अतः ठीक होने की संभावना कम है। प्रश्न पूछे जाने के वक्त बच्ची की दशा केतु, मंगल, बुध थी। केतु व मंगल चतुर्थ भाव को व इनका राशीश चंद्र लग्न को पीड़ित कर रहा है। प्रत्यंतर दशानाथ तृतीयेश व षष्टेश होकर छठे में उच्च का है जो पाप ग्रहों से पीड़ित होकर बीमारी दर्शाता है।

नवांश में भी केतु मंगल/चंद्र की राशि में स्थित है व चंद्र अष्टम भाव में उच्च का होकर नवांश के लग्नेश शुक्र को दृष्टि दे रहा है। प्रत्यंतर दशानाथ बुध राहु/केतु के अक्ष में है व शनि मंगल से पीड़ित है। अंतर्दशानाथ मंगल नवांश में नीच का है व इस कुंडली में प्रबल मारक है। जैसे ही प्रत्यंतर दशा केतु की आयी बच्ची की मृत्यु हो गई। अष्टमेश व चतुर्थेश के परिवर्तन के कारण बच्ची को हृदय रोग के कारण अपना शरीर त्यागना पड़ा। इस प्रकार कमजोर लग्न, खराब लग्नेश व खराब गोचर ने एक मां की गोद सूनी कर दी। नोट: जब जन्म लग्न व प्रश्न लग्न समान हो तो प्रश्न की सत्यता साबित होती है व उत्तर में सटिकता आती है। विवाह मनुष्य के जीवन के महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक है। हिंदू समाज में खासकर लड़कियों के माता-पिता उनके विवाह को लेकर काफी चिंतित रहते हैं।

लड़़की की आयु बढ़ने के साथ-2 माता पिता की चिंता भी बढ़ती जाती है। एक शाम ऐसी ही चिंता में ग्रस्त एक पिता ने जानना चाहा कि उनकी पुत्री का विवाह कब होगा ? प्रश्न कुंडली लगाई जो इस प्रकार थी - स्थिर लग्न, चर नवांश कुछ समय बाद स्थिति में परिवर्तन दर्शा रहा है। सम लग्न का सातवां नवांश जीव चिंता दिखाता है। लग्न चंद्र के नक्षत्र में स्थित है और चंद्र सप्तमेश से युक्त होकर विवाह प्रश्न बताता है। चंद्र स्वयं बुध के नक्षत्र में है व बुध लग्नेश से युक्त व सप्तमेश से दृष्ट होकर विवाह संबंधित प्रश्न की पृष्टि करता है। गुरु लग्न को निकटतम अंशों से देखता है


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लड़कियों की कुंडली में गुरु पति का कारक माना गया है। यह सप्तमेश मंगल से इत्थशाल में है व दृष्ट भी है। अतः यह पुष्टि होती है कि प्रश्न विवाह से संबंधित है। Û उपचय भाव (3, 6, 10, 11) यहां पर तृतीय में चंद्र गुरु से दृष्ट है जो बताता है कि विवाह अति शीघ्र संपन्न होगा। Û लग्नेश, सप्तमेश में दृष्टि संबंध व इत्थशाल है यह भी शीघ्र होने वाले विवाह को दर्शाता है। Û चंद्र का सप्तमेश मंगल से ईशराफ बताता है कि विवाह की बातें काफी हद तक हो चुकी हैं। Û चंद्र का लाभेश गुरु से इत्थशाल भी पुष्टि करता है कि विवाह जल्द ही होगा। Û शनि विषम भाव में स्थित है (पंचम में) जिससे कहा जा सकता है कि कन्या को वर की प्राप्ति अतिशीघ्र होगी।

नोट: संतान प्रश्न हो और अगर शनि विषम भाव में हो तो पुत्र संतान होती है। Û कुंडली में शुक्र स्वराशि का है चंद्र भी स्वराशि का होकर बली है। बली शुक्र व चंद्र भी शीघ्र होने वाले विवाह की पुष्टि करते हैं। शीघ्र विवाह के कई योग प्रश्न कुंडली में उपस्थित हैं। अतः उनके पिता से पूछा गया कि कन्या के विवाह की बात कहां चल रही है? उन्होंने बताया कि बातें लगभग पूरी हो चुकी है परंतु लेन-देन पर कुछ विवाद के चलते वो इस बात से परेशान है कि क्या यह विवाह हो पाएगा या नहीं। Û नीच ग्रह सप्तमेश मंगल से चंद्र का इशराफ है यह नीच सप्तमेश नीच गुरु से दृष्ट भी है। नीच ग्रह निश्चित रूप से इच्छाओं की कुछ नीचता दिखाता ही है। लेकिन यहां नीच भंग राजयोग भी उपस्थित है सभी बातें हल हो जाएगी व विवाह शीघ्र होगा ऐसा कहा गया- (16 फरवरी 2010 को कन्या का विवाह धूम धाम से संपन्न हुआ) आइए लड़की के विवाह के लिए उसकी जन्म कुंडली का भी विश्लेषण करें - कुंडली का लग्नेश शुक्र चतुर्थ भाव में स्थित होकर शुभ है।

सप्तमेश मंगल द्वितीय भाव (जो कि सप्तम से अष्टम है) में स्थित है व राहु केतु के अक्ष में है जो विवाह में विलंब दर्शाता है। सप्तम भाव में मित्र राशि का गुरु शुभ है परंतु वह अष्टमेश भी है जो देर से विवाह या विवाह में किसी प्रकार की परेशानी दिखाता है। कारक शुक्र चतुर्थ भाव में शुभ है। चंद्र लग्न से सप्तम में भी राहु/मंगल का उपस्थित होना अच्छा नहीं है परंतु नवांश में स्थिति बेहतर है। कुंडली देखने से पता लगता है कि जातिका का विवाह थोड़ी बड़ी उम्र में होगा (27 वर्ष की अवस्था है


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जो कन्या की विवाह की औसत आयु 22-24 से कुछ ज्यादा है) प्रश्न पूछे जाते वक्त विंशोत्तरी दशा सूर्य/शुक्र थी जो दशा छिद्र है व कुछ ही दिनों में समाप्त होने वाली थी। आने वाली दशा चंद्र की थी जो नवम् भाव में सप्तमेश मंगल से दृष्ट है। विवाह के वक्त जातिका की दशा चंद्र/चंद्र/मंगल थी मंगल स्वयं सप्तमेश है। विवाह के लिए चंद्र की दशा पूर्णतः उपयुक्त है। Û गोचर में शनि पंचम भाव (कन्या) में स्थित होकर सप्तम भाव व सप्तमेश व मंगल को दृष्टि देकर विवाह के काल का निर्धारण कर रहे हैं। Û गुरु कुंभ में स्थित होकर सप्तमेश मंगल को देख रहे हैं व विवाह के लिए अपना आशीर्वाद दे रहे हैं। लड़की की कुंडली में विलंब से विवाह होने के संकेत है परंतु प्रश्न कुंडली शीघ्र विवाह दर्शा रही थी।

लड़की के विवाह की उम्र कुछ ज्यादा हो चुकी थी और कुंडली में भी विवाह का समय अत्यंत निकट आ चुका था। इस प्रकार प्रश्न कुंडली ने यह बात पहले ही पुष्ट कर दी कि विवाह में अब कोई देर नहीं है। प्रश्न पूछे जाने के 3 महीने बाद 16 फरवरी 2010 को जातिका का विवाह हो गया व माता-पिता चिंता से मुक्त हुए।



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