दश महाविद्या : शाश्वत सृष्टि क्रम गाथा

दश महाविद्या : शाश्वत सृष्टि क्रम गाथा  

व्यूस : 9528 | अकतूबर 2012
दश महाविद्या: शाश्वत सृष्टि क्रम गाथा सागर शर्मन् सनातन धर्म के शक्ति-पथ उपासकों के लिए दश महाविद्याएं सर्वोपरि शक्तिस्वरूपा और अभीष्टदायी देवियां हैं परंतु शास्त्र का गहन विवेचन करने पर ज्ञात होता है कि इन महादेवियों का स्वरूप और भूमिका-निर्धारण ब्रह्मांड की रचना और पालन और संहार के कार्य में उनके योगदान को देखते हुए निर्धारित किया गया और दस महाविद्या की संपूर्ण गाथा, प्रलय काल से लेकर वर्तमान समय तक के सृष्टि विकास क्रम की कहानी कहती है। हिंदू काल गणना के अनुसार एक हजार चतुर्युगी बीतने पर ब्रह्मा का एक दिन और उतनी ही लंबी ब्रह्मा की रात्रि होती है। ब्रह्मा का एक दिन बीत जाने पर प्रलय रूपी रात्रि और ब्रह्मा की पूर्णायु 100 वर्ष बीत जाने पर महा प्रलय होती है जिसमें ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं का बीज रूप में लय हो जाता है। ब्रह्मांड के इस बीज रूप अस्तित्व की धारिका-संरक्षिका अधिष्ठाता शक्ति ही है, महाकालिका जो दशमहाविद्याओं में सर्वप्रथम हैं। इन महाशक्तियों अथवा महाविद्याओं को क्रमशः महारात्रि, क्रोध रात्रि, दिव्य रात्रि, सिद्धरात्रि, वीर रात्रि, कालरात्रि दारूण रात्रि, वीर रात्रि, मोहरात्रि तथा महारात्रि भी कहा जाता है जिससे स्पष्ट है कि महाकाली व कमला महारात्रियां तथा छिन्नमस्ता और बगलामुखी वीर रात्रियां कहलाती हैं। दूसरी ओर इन दश महाविद्याओं में से छिन्नमस्ता, धूमा तथा मातंगी और कमला विद्या की श्रेणी में तथा षोडशी, भुवनेश्वरी व भैरवी और बगलामुखी सिद्ध विद्याओं की श्रेणी में आती हैं। केवल महाकाली और तारा ही क्रमशः महाविद्या तथा श्री विद्या के नाम से जानी जाती हैं। वास्तव में देखा जाये तो सभी धर्मों के धर्मग्रंथों में महाप्रलय का उल्लेख अनिवार्य रूप से मिलता है। उस के वर्णन-विस्तार में अंतर हो सकता है लेकिन उन सभी ग्रंथों में वह इस सृष्टि के आरंभ की सर्वाधिक प्रथम एवम् महत्वपूर्ण घटना के रूप में समाविष्ट है। महाकाली वही आदि शक्ति हंै जिससे सृष्टि के विकास क्रम की गाथा आरंभ होती है और इस प्रकार आगे की शेष नौ और महाविद्याओं की भूमिका अपना-अपना योगदान देती हुई कमला अर्थात् महालक्ष्मी की चरम परिणति तक पहुंच जाती है। इस क्रम में प्रत्येक विद्या का स्वरूप अनुपम तथा इस प्रकार दर्शनीय है। 1. महाकाली: महाप्रलय की अधिष्ठात्री यह शक्ति महाप्रलय के दीर्घकालीन घोर अंधकार के रूप में सर्वत्र व्याप्त रहती है। यह प्रलय-रात्रि के मध्यकाल से संबंध रखती है। विश्वातीत परात्पर नाम से प्रसिद्ध महाकाल की शक्तिभूता महाकाली का विकास विश्व से पहले है। विश्व का संहार करने वाली कालरात्रि वही है। प्रलय काल के निश्चेष्ट शव के समान पड़े विश्व की अधिष्ठात्री व आलंबन रूप वही है। शत्रुओं की सेना का विनाश करके योद्धा जिस भयंकरता के साथ अट्टहास करता है वही भयानक रूप है इस महाकाली का। वह डरावनी व घोर रूपा तो है परंतु अभयपद की प्राप्ति उसी की उपासना से होती है। उसी के बाद उद्भव होता है सृष्टि के नित-नूतन रूप का। 2. उग्रतारा: दीर्घकालीन महाप्रलय के शीतकारी घोर अंधकार के बाद उदित सूर्य का जो ताप उग्र व तीव्र दाहक शक्तिमय प्रतीत होता है, वही आकाश-मंडल में प्रकट प्रथम तारा होने से उग्रतारा नामक शक्ति है जो सब प्रकार की नकारात्मकता का विनाश करके सृजन का आधार बनने को आतुर संहारक शक्ति है क्योंकि बिना समतल के नवसृष्टि की नींव का पत्थर अपने स्थान पर टिकता नहीं। प्रलय की अधिष्ठात्री यह शक्ति (रुद्र शक्ति) अवांछित और अनिष्ट की विनाशक है। यौवनकालिक सौंदर्य व शक्ति के विस्फोट के समान इसका सर्वाधिक महत्व है। यह हिरण्यगर्भ पुरूष और ब्रह्म की शक्ति है। काली का धर्म महाप्रलय करना और उग्रतारा का धर्म प्रलय करना है। दोनों विश्वसृजन से पूर्व की अधिष्ठात्री शक्तियां हैं। 3.षोडशी: यह शिव शक्ति (शिवात्मक सूर्य शक्ति) है (विश्वोत्पत्ति के क्रम में षोडशी की सत्ता का पूर्ण विकास इसी रूप में है)। पंच वक्त्र शिव स्व, पर, सूर्य, चंद्र तथा पृथ्वी इन पांच रूपों में व्यक्त हैं। इनमें से केवल सूर्य में ही षोडशी का पूर्ण विकास होता है। इसमें सूर्य इन्द्रात्मक है। शतपथ ब्राह्मण (4/2/5/14) में इसी इंद्रात्मक सूर्य को ‘इन्द्राह वै षोडशी’ कहा गया है। सूर्य में ही मन, प्राण और वाक् तीनों का विकास है। सूर्य में इन तीनों की सत्ता है। सोलह कलाओं का विकास भी इसी में है। इसीलिये सूर्य की शक्ति का नाम ही षोडशी है। भू, भुवः तथा स्वः तीनों लोक भी इसी शक्ति से उत्पन्न हुए हैं। इसलिये तंत्र में इस शक्ति को त्रिपुर सुंदरी कहा गया है। प्रातः काल का बाल सूर्य इस की साक्षात् प्रतिकृति है। यह शक्ति सब जीवों पर अंकुश रखती है। ब्रह्मा, विष्णु, यम तथा रूद्र इसके अधीन हैं। 4. भुवनेश्वरी: यह भुवनों (विश्व) की उत्पत्ति के पश्चात् उनका संचालन करने वाली शक्ति है। संसार में जितने भी जीव व प्रजा है सबको उन्हीं त्रिभुवन व्याप्त भुवनेश्वरी से अन्न मिल रहा है जिससे 84 लाख योनियों के जीव अस्तित्व में अर्थात् जीवित हैं। यह राजराजेश्वरी नाम से प्रसिद्ध है। वह तीन भुवनों के पदार्थों की रक्षा करती है। 5. छिन्नमस्ता: संसार का पालन करने वाली शक्ति अन्न का आगमन बंद हो जाने पर अंतकाल में छिन्नमस्ता बनकर नाश कर डालती है। इस शक्ति का भी महाप्रलय से विशेष संबंध है। 6. त्रिपुर भैरवी: यह दक्षिणामूर्ति काल भैरव की महाशक्ति है। त्रिपुर भैरवी उन पदार्थों का नाश करती है जिनकी रक्षा का भार त्रिपुर सुंदरी पर रहता हैं। त्रिभुवन के पदार्थों का क्षणिक विनाश इसी शक्ति पर निर्भर है। यदि छिन्नमस्ता परा डाकिनी है तो यह भैरवी अवरा डाकिनी। प्रतिक्षण पदार्थों का विनाश इसी शक्ति के द्वारा नित्य प्रलय के नियमान्तर्गत होता रहता है। 7. धूमावती: यह पुरूष-शून्य विधवा नाम से प्रसिद्ध महाशक्ति है। परम पुरुष महाकाल की कारणभूत इच्छा के बिना शक्ति का अस्तित्व लक्ष्य विहीन शक्ति जैसा गरिमारहित व श्रीविहीन रहता है क्योंकि सर्व दुखों का मूल कारण प्रधान रूप से दरिद्रता ही है। इसीलिये लोक में इस शक्ति का नाम दरिद्रा भी है जिससे जीवन धुंये से आच्छादित आकाश के समान दिशाविहीन दिखाई देता है। इस की कृपा होने पर सत्य-पथ प्रकाश से आलोकित हो उठता है। निष्पत्तिरूपा धूमावती प्रधान रूप से चातुर्मास में रहती है। इस कालावधि में प्राणमयी ज्योति तथा ज्योतिर्मय आत्मा हीनवीर्य रहता है। इसी तम भाव के निराकरण के लिये और कमलागमन के उपलक्ष्य में वैध प्रकाश यानी दीपावली सजाने और अग्नि क्रीडा (अतिशबाजी) का प्रचलन रहा है। 8. बगलामुखी: यह एकवक्त्र महारूद्र की महाशक्ति वल्गामुखी तथा सारे तांत्रिक जगत में बगलामुखी नाम से प्रसिद्ध है। प्राणियों के शरीर में एक अथर्वा नाम का प्राण सूत्र रहता है जिसे हम स्थूल रूप से देखने में असमर्थ रहते हैं। इसी के कारण हम अत्यंत दूरस्थ अपने निकटतम संबंधी से जुड़े रहकर उनके सुख-दुख का आंतरिक रूप से अनुभव करते हैं। इसी शक्ति सूत्र से हजारो मील दूर बैठे व्यक्ति का आकर्षण किया जा सकता है। यह उस परमेश्वर की सबसे अनोखी शक्ति का लीला-विलास है। प्रत्येक प्राणी में इस अथर्वा सूत्र को पकड़ने की अलग-अलग क्षमता होती है जो एक मानव की इंद्रियों की ग्रहण-क्षमता से परे की चीज है। यह अथर्वा रूपी मूल प्राण-वासना प्रत्येक व्यक्ति के वस्त्र, नाखून, बाल तथा रोम-रोम में वास करती है। इसीलिये किसी व्यक्ति की प्रयोग की हुई या उससे जुड़ी वस्तु के आधार पर उस व्यक्ति का मनमाना प्रयोग किया जा सकता है। इसी अथर्वा सूत्र रूपी महाशक्ति का नाम ही बगलामुखी है। इस कृत्या शक्ति की आराधना करने वाला व्यक्ति अपने शत्रु को मनमाना कष्ट पहुंचा सकता है। उनके स्वरूप संबंधी ध्यान से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है। जिह्वाग्रमादाय करेण दिवीं वामेन शत्रून् परिपीडयन्तीम्। गदाभिधातेन च दक्षिणेन पीतांबराख्यां द्विभुजां नमामि। (शाक्त प्रमोद-बगलामुखी तंत्र) ‘मैं उस दो भुजा वाली देवी को नमन करता हूं जो अपने जीभ के अगले भाग को बाहर निकाले हुए बायें हाथ से शत्रुओं को पीड़ा पहुंचा रही है तथा दायें हाथ में गदा धारण करके शत्रुओं पर आघात कर रही है। 9. मातंगी: यह शक्ति शिव के मतंग स्वरूप की महाशक्ति है जो तीन नेत्रवाली श्याम वर्णा तथा रत्न के सिंहासन पर विराजमान है। भक्तों की अभीष्ट कामनाओं को पूरा करने के साथ-साथ आसुरी वृत्ति वाले व्यक्तियों को जंगल की आग की तरह जलाकर भस्म कर देती है। देवी का यह स्वरूप राजसी और सात्विकी वृत्ति का पोषक है। अतः यह उन्हीं के योग-क्षेम का वहन करते हुए उनका पोषण ओर विकास करती है क्योंकि इन्हीं दोनों वृत्ति वाले व्यक्तियों में शिव-भाव का यथेष्ट विकास संभव होता है। 10. कमला: यह धूमावती अर्थात् दरिद्रा की प्रतिस्पर्धी शक्ति सदाशिव पुरुष की महाशक्ति है। वह धूमा के सर्वथा विपरीत है। इसका आशय सर्वविध समृद्धि और विकास से है। आज का मानव विकास के इसी चरण में पहुंच कर वर्तमान के सभी सुखों और साधनों का उपभोग कर रहा है जिसकी परिणति अपने चरम बिंदु पर पहुंचकर फिर से प्रलय की विनाश-लीला की ओर अग्रसर हो जायेगी। यही है सृष्टि का विकास क्रम और सृष्टि चक्र जो नित्य-सृष्टि व नित्य-प्रलय के धुवों के बीच गतिमान रहता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.