भागवत व्रत
भागवत व्रत

भागवत व्रत  

व्यूस : 7127 | दिसम्बर 2012
भागवत व्रत एक ऐसा दिव्य व संपूर्ण कामनाओं को सिद्ध करने वाला व्रत है, जिसके पालन से संपूर्ण व्रतों का लाभ प्राप्त हो जाता है। जीव मात्र के चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध हो जाते हैं। शास्त्रों में अलग-अलग कामना सिद्धि हेतु अलग-अलग व्रतों का विधान है। विद्वानों ने भागवत शब्द की व्याख्या इस रूप में की है- ‘भा’ के कहे से खुल जात भाग जीवन के ‘ग’ के कहे से गर गुमान मिट जाता है ‘व’ के कहे से वाणी शुद्ध होत है, ‘त’ के कहे से भव सागर तर जाता है भागवत के चार वर्णों का तत्व छिपा है, इन चार श्लोकों में - चतुःश्लोकी भागवत। इस दिव्य तत्व का उपदेश सहज में प्राप्त नहीं होता। यह तो सर्वान्तर्यामी परात्पर परब्रह्म की कृपा या वीतरागी संतों का सहज आशीर्वाद का परिणाम है, तभी तो नारायण ने ब्रह्मा को करुणावश, ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद, देवर्षि नारद ने वेदव्यास, वेदव्यास ने श्री शुकदेव व श्री शुकदेव बाबा ने लोक कल्याणार्थ महाराज परीक्षित को श्रवण कराया था। ब्रह्माजी ने इस भागवत तत्व का सृष्टि कार्य की पूर्णता, देवर्षि नारद ने भक्ति प्रवाह में निमग्नता, वेदव्यास ने विक्षिप्त अंतःकरण की शांति, श्री शुकदेव बाबा ने श्रीकृष्ण चरणारविंदों में सतत, अविराम लीन होने तथा महाराज परीक्षित ने लोक कल्याणार्थ श्रवण किया था। परीक्षित का लोक कल्याणार्थ श्रवण ही उनकी मुक्ति का साधन बन गया और वर्तमान जगत् में तो भागवत के स्वरूप को विकृत कर आश्रम, वृद्धाश्रम, मंदिर निर्माणादि धन संग्रह में ही तुच्छ प्रयोजन हेतु लगा दिया। जो विषय तŸवानुचिंतन, आत्मबोध, आत्मज्ञान, पूर्णेश्वर सज्ञान का था वह केवल और केवल विषयों का साधन मात्र बना दिया। हम सभी को विचार करना चाहिए, आत्म मंथन करना चाहिए कि जो भक्ति-ज्ञान- वैराग्य का साधन था, परमात्मा की प्राप्ति का अलौकिक मार्ग था, वह लौकिक साधनों का प्रतीक कैसे और किन परिस्थितियोंवश बन गया। संतों ने कहा है- है भागवत हरिरूप, इसका जो सदा चिंतन करे, वो भक्ति-ज्ञान-वैराग्य से परिपूर्ण उससे यम डरे।। चिंता हटे विपदा घटे और सम्पदा घर में भरे, सुख शांति और संतोष रूपी धन सदा उस पर हरे।। प्रेमी भक्तों का यह दिव्य रस है, जिसपर भगवत् कृपा होती है वही इस रस को प्राप्त कर अनुभव करता है, आपको भी ‘फ्यूचर पाइंट’ के सहयोग से इस दिव्य रस परिपूर्ण भागवत व्रत का ज्ञान कराया जा रहा है, आप जीवन में नियम बनायें, नित्यप्रति निष्काम भाव से चतुः श्लोकी भागवत का पाठ करने का, फिर देखिए आपके जीवन का उत्कर्ष चरमोत्कर्ष-असत् से सत्, अंधकार से प्रकाश व मृत्यु से अमृत (जीवन) की ओर कैसे पदार्पण होता है। मार्ग बदल जायेगा, ‘दैन्यता-रिक्तता अपूर्णता अथावा दुःख-शोक-मोहादि दूर होंगे, पूर्णता का समावेश होगा, पूर्णत्व की प्राप्ति होगी। संसार का प्रत्येक प्राणी पूर्णता को चाहता है, तो पूर्ण तो पूर्णेश्वर (राधा कृष्ण) में ही निहित है, अतः जीवन के सिद्धांत को समझो संयोगान्ता मरणान्तं च जीवितम्।। समस्त संग्रहों का अंत विनाश है, लौकिक उन्नतियों का अंत पतन है, संयोगों का अंत वियोग है और जीवन का अंत मरण है। पाषाण युग, वैज्ञानिक उन्नति और सत्-त्रेता- द्वापर-कलि इन चारों युगों का बार-बार आना-जाना बना रहता है। परंतु प्रभु कृपा से दिव्य भागवत् योग को वर्णित कर आपके समक्ष प्रेषित कर अपूर्व आनंद (जो वाणी का विषय नहीं है) की प्राप्ति हो रही है, उसी आनंद को आप व्रतानुरागी भी प्राप्त कर सकते हैं, बस राधाकृष्ण की पंचोपचार या षोड्शोपचार पूजा कर चतुःश्लोकी भागवत् का पाठ करें। पूजा मानसिक भी हो सकती है, जिसमें किसी साधन की आवश्यकता ही नहीं है। पूजा के बिना भी यह व्रत वरणीय है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.