यदि गुरु मकर राशि में अष्टम भाव में हो तो ह्रदय रोग तो देता है साथ ही आपके लम्बे समय के अनुभव, मेहनत के बाद अचानक से शुभ फल देगा और आपको चकित कर देगा। क्रूर ग्रह वक्री हो तो शुभ फल देगा। भचक्र में जो ग्रह तीव्र गतिगामी होते है वे ग्रह शीघ्र फल प्रदायक होते है। तथा जो ग्रह मन्द गति से गोचर करते है। वे सभी ग्रह लम्बी समय तक अर्थात दीर्घकालिक फल प्रदान करते हैं। इन ग्रहों में शनि, गुरु और राहू मन्द गति ग्रह है। शेष अन्य ग्रह तीव्रगामी ग्रह कहलाते हैं। वक्री होने पर ग्रह अपने स्वभाव के विपरीत फल देता है। तीव्र गति में गोचर करने के कारण ही वह वक्र गति में गमन करता हुआ प्रतीत होता हैं। इसे अतिचारी गति स्थिति भी कहते हैं। लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि शुभ ग्रह वक्री हो तो वह सदैव अशुभ फल नहीं देगा। ऐसा ग्रह स्वास्थ्य के पक्ष से अशुभ फल देगा, पारिवारिक सुख में कमे करेगा परन्तु समाज में व्यक्ति को सम्मान दिला देगा। गुरु शुभ होकर वक्री हो तो आपको रोग मुक्त होने में लम्बा समय लग सकता हैं। ऐसे गुरु का दशा काल व्यक्ति को स्वास्थ्य सुख की कमी देगा। कोई घाव होने पर, घाव भरने में समय लगायेगा। नीच गुरु वक्री अवस्था में होने पर शिक्षा तो बहुत अच्छी देगा, धन देगा परन्तु परिवार के सुख में कमी बनाए रखेगा। यह अनुभव में पाया गया है कि ग्रह शुभ हो या अशुभ दोनों ही स्थिति में यदि वह वक्री होता है तो वह अलग अलग क्षेत्रों में शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के फल देते है। जैसे शुभ शनि वक्री हो तो व्यक्ति को निष्ठावान, अत्यधिक मेहनती और न्याय का गुण देते है। संघर्ष और प्रयास के बाद उन्नती देते है। सूर्य एवं चंद्र मार्गी ग्रह हैं, ये कभी भी वक्री नहीं होते हैं। वक्री होने पर शुभाशुभ परिवर्तन: भारतीय ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति जिस भाव में स्थित होकर वक्री होता है, उस भाव के फलादेशों में अनुकूल व सुखद परिवर्तन आते हैं। मनुष्य के विकास के लिए यह अति महत्वपूर्ण ग्रह है। गुरु का मनुष्य के आंतरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक जीवन पर समुचित प्रभाव पड़ता है। गोचरवश गुरु के वक्री रहते हुए धैर्य व गम्भीरता से कार्य की पकड़ कर नई योजना व नए कार्यों को गति देनी चाहिए।
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