सूर्य पर शुक्र बिंब के अतिक्रमण का दुर्लभ खगोलीय नजारा

सूर्य पर शुक्र बिंब के अतिक्रमण का दुर्लभ खगोलीय नजारा  

व्यूस : 5344 | जून 2012
सूर्य पर शुक्र बिंब के अतिक्रमण का दुर्लभ खगोलीय नजारा (5/6 जून 2012) कल्पना तिवारी शुक्र पृथ्वी एवं सूर्य के बीच एक वर्ष में 5 बार पांच अलग-अलग बिंदुओं पर आता है और 8 वर्ष के पश्चात् पुनः नया चक्र प्रथम बिंदु से आरंभ हो जाता है क्योंकि नया चक्र 7.997 वर्ष में शुरु होता है न कि 8 वर्ष में। पृथ्वी से यह नजारा शुक्र एवं सूर्य के मध्य पांच बिंदुओं में से किसी एक बिंदु पर सौ वर्ष में एक बार दिखाई देता है। उसके बाद इस बिंदु पर ये तीनों एक सीध में आठ वर्ष के पश्चात् पुनः आते हैं जिससे यह परिदृश्य आठ वर्ष के बाद फिर दिखाई देता है। सौर मण्डल के समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है जो कि अपनी धुरी पर घूमती है एवं अपनी कक्षा में घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा भी करती है और चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है तथा अपनी कक्षा में घूमते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा यह भी सर्वविदित है कि जब सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी तीनों एक सीध में आ जाते हैं तो सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। पृथ्वी एवं सूर्य के मध्य जब चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है। चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है तथा अन्य ग्रहों की तुलना में यह पृथ्वी के निकट स्थित है। इस कारण चंद्रमा का आकार पृथ्वी पर से देखने पर अन्य ग्रहों की तुलना में बड़ा दिखाई देता है। इसी कारण जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के मध्य आता है तो सूर्य के बिम्ब को लगभग पूरा ढक लेता है। ठीक इसी प्रकार जब अन्य ग्रह भी पृथ्वी एवं सूर्य के मध्य आते हैं तो ग्रहण जैसी स्थिति ही उत्पन्न होती है परंतु ये ग्रह पृथ्वी से बहुत दूर स्थित हैं इसीलिए इनका आकार पृथ्वी पर से चंद्रमा की तुलना में बहुत छोटा दिखाई देता है और ये ग्रह पृथ्वी और सूर्य के मध्य आते हैं तो सूर्य के बिम्ब को पूरी तरह ढक नहीं पाते हैं और सूर्य के ऊपर एक बिंदु की तरह दिखाई देते हैं। भचक्र में सूर्य एवं पृथ्वी की कक्षा के मध्य केवल दो ही ग्रह, बुध एवं शुक्र स्थित हैं। अन्य सभी ग्रहों की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से बाहर है। अतः यह ग्रह सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य कभी नहीं आते वरन् पृथ्वी अपनी कक्षा में घूमते हुए सूर्य एवं इन ग्रहों के मध्य आती है। इस कारण इन ग्रहों का बिम्ब पृथ्वी पर से सूर्य के बिम्ब पर दिखाई नहीं देता है वरन् पृथ्वी का बिम्ब यदि इन ग्रहों से देखा जा सके तो सूर्य के बिम्ब पर दिखाई देता है। सूर्य एवं पृथ्वी की कक्षा के मध्य स्थित ग्रहों को आभ्यंतर ग्रह ;प्दमितपवत च्संदमजेद्ध कहा जाता है। बुध एवं शुक्र अपनी कक्षा में घूमते हुए एक निश्चित समय और अवधि के अंतर में सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य आकर ग्रहण जैसी स्थिति उत्पन्न करते हैं परंतु इनका आकार पृथ्वी पर से बहुत छोटा दिखाई देने के कारण सूर्य के बिम्ब पर इनकी परछाई एक काले बिंदु के रूप में बायें से दायें चलती हुई दिखाई देती है। इन ग्रहों की परछाई बिंदु के रूप में सूर्य के बिम्ब पर दिखाई देना ही शुक्र या बुध का संक्रमण कहलाता है। शुक्र एवं पृथ्वी एक सीध मंे आठ सौर वर्ष में पांच बार आते हैं। इसका कारण यह है कि शुक्र सूर्य के चारों ओर अपनी एक परिक्रमा 224.6987 सौर दिवस में पूरी करता है जबकि पृथ्वी एक परिक्रमा 365 दिन में पूरी करती है। इस प्रकार शुक्र (224. 6987ग13=2921) 2921 सौर दिवस में सूर्य की 13 परिक्रमा पूरी कर लेता है। जबकि पृेथ्वी (365ग8=2920$2 स्मंच क्ंले) 2922 दिनों में सूर्य की आठ परिक्रमा पूरी कर लेती है इसमें लगभग एक दिन का अंतर है। इस प्रकार (13-8=5) आठ वर्ष में पांच बार पृथ्वी एवं शुक्र एक सीध में आ पाते हैं। आठ वर्ष में पांच बार अर्थात् 8/5=1. 6 अर्थात 1.6 वर्ष या 19 माह या 584 दिनों के अंतराल में पृथ्वी एवं शुक्र एक सीध में आते हैं। आठ वर्ष के बाद यह चक्र पुनः प्रथम बिंदु से शुरू हो जाता है। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि शुक्र एवं पृथ्वी की 13ः8 वर्ष की परिक्रमा-काल में लगभग एक दिन का अंतर रहता है। इसी कारण अगली बार ये दोनों युति बिंदु से दो दिन पहले तथा 2.3 अंश पहले युति कर लेते हैं इस प्रकार शुक्र एवं पृथ्वी के युति बिंदु प्रत्येक बार 2.3 अंश पश्चिम की ओर या पीछे की ओर खिसकते रहते हैं। शुक्र का परिक्रमा मार्ग जहां पर पृथ्वी की परिक्रमा मार्ग से मिलता है वही स्थान शुक्र का पात कहलाता है। शुक्र के इस पात पर आने पर ही शुक्र की परछाई पृथ्वी पर से एक बिंदु के रूप में सूर्य के बिम्ब पर दिखाई देती है परंतु शुक्र की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से 3.4 अंश का कोण बनाती है। इस कारण शुक्र अधिकतर इस पात से अगल-बगल से निकलता है और सूर्य पर उसकी परछाई नहीं पड़ पाती। इन सभी कारणों से 243 वर्ष में केवल चार बार ही ऐसी स्थिति बन पाती है जबकि सूर्य की परछाई शुक्र पर दिखाई देती है जो कि आठ-आठ वर्ष के अंतराल में जोड़े से होती है और इसकी पुनरावृŸिा लगभग 100 वर्ष के पश्चात् ही हो पाती है। पिछली बार यह नजारा 2004 में देखने को मिला। इसके बाद अब 8 वर्ष पश्चात् 2012 यह में पुनः दिखाई देगा। परंतु अब यह लगभग सौ वर्ष पश्चात् 2117 में ही दिखाई देगा और उसके पश्चात् 2125 में पुनः 8 वर्ष के बाद दिखाई देगा। इस वर्ष 5/6 जून 2012 को ऐसा ही एक नजारा देखने को मिलेगा। इस दिन शुक्र पृथ्वी एवं सूर्य के मध्य में एक सीध में स्थित होगा जिससे पृथ्वी से सूर्य मंडल पर शुक्र का बिम्ब एक छोटे से चल बिंदु के रूप में दिखाई देगा। ज्योतिषी इसे ग्रहण नहीं मानते परंतु यह नजारा ग्रहण जैसा ही दिखाई देगा। भारतीय समय के अनुसार सूर्य मंडल पर शुक्र की परछाई सुबह 3ः40 मिनट से आरंभ होकर 10ः19 मिनट पर समाप्त होगी। शुक्र की परछाई सूर्य के अलग-अलग स्थानों पर दिखाई देगी। सूर्य पर शुक्र का यह अतिक्रमण भारत के साथ-साथ अन्य बहुत से देशों में दिखाई देगा। यह दृश्य पूर्वी आस्ट्रेलिया, उŸार-पश्चिम, अमेरिका, उŸारी प्रशांत महासागर, जापान, इंडोनेशिया, सिंगापुर फिलीपिंस, वियतनाम, मलेशिया आदि देशों में भी दिखाई देगा। भारत में विभिन्न स्थानों पर इस दिन सूर्योदय लगभग 5ः30 बजे होगा। उसके बाद ही यह दृश्य देखा जा सकता है। इस प्रकार भारत में इस दृश्य का निकास देखा जा सकता है। शुक्र का सूर्य पर यह अतिक्रमण पिछली बार 8 जून 2004 को देखा गया था। इस बार सूर्य पर शुक्र का अतिक्रमण 5/6 जून 2012 के पश्चात् लगभग 100 वर्ष के बाद 2117 में दिखाई देगा। सौरमण्डल की यह महत्वपूर्ण घटना हम अपने जीवनकाल में दोबारा शायद ही देख पाएं। यदि पृथ्वी एवं शुक्र की कक्षा के बीच का कोण 3.4 अंश नहीं होता तो शुक्र की परछाई 8 वर्ष में पांच बार सूर्य पर दिखाई देती। परंतु 3.4 अंश का कोण होने के कारण ये तीनों (सूर्य, पृथ्वी एवं शुक्र) पूर्णतः एक सीध में प्रत्येक बार नहीं आ पाते हैं जिससे शुक्र की परछाई सूर्य पर नहीं दिखाई देती है। इस प्रकार का नजारा तभी देखा जा सकता है जबकि पृथ्वी एवं शुक्र दोनों एक दूसरे की सीध में हों। यह संयोग 243 वर्ष में केवल 4 बार ही होता है जो कि 8-8 वर्ष के अंतराल में जोड़े से होता है परंतु इसकी पुनरावृति लगभग 100 वर्ष के पश्चात ही होती है। शुक्र एवं पृथ्वी के परिक्रमा मार्ग पर बनने वाले पात भचक्र में मिथुन एवं धनु राशि में अर्थात एक-दूसरे से 180 अंश के अंतर में स्थित हैं। सूर्य मिथुन राशि में जून में रहता है तथा धनु राशि दिसंबर माह में रहता है अतः शुक्र का संक्रमण जून या दिसंबर माह में ही होता है। 2004 में यह संक्रमण दिसंबर माह मंे हुआ था अर्थात् धनु राशि में हुआ था। इस बार यह जून में अर्थात् मिथुन राशि में हो रहा है। शुक्र एवं पृथ्वी एक सीध मंे आठ सौर वर्ष में पांच बार आते हैं। इसका कारण यह है कि शुक्र सूर्य के चारों ओर अपनी एक परिक्रमा 224.6987 सौर दिवस में पूरी करता है जबकि पृथ्वी एक परिक्रमा 365 दिन में पूरी करती है।



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