समय बड़ा बलवान

समय बड़ा बलवान  

आभा बंसल
व्यूस : 5794 | अप्रैल 2010

बच्चों की अच्छी परवरिष और उनके जीवन को सुखमय बनाना हर माता-पिता का कर्तव्य होता है और इस कर्तव्य का पालन करने में वे पीछे भी नहीं रहते। किंतु आज के इस बदलते माहौल में जब भौतिकतावाद और पष्चिमी सभ्यता का आॅक्टोपस हमारे समाज में अपने पैर पसार चुका है, बच्चे अपनी महत्वाकांक्षा के सामने अपने माता-पिता की भावनाओं को कोई तरजीह नहीं देते, हालांकि इसका खमियाजा उन्हें स्वयं भुगतना होता है।

नीना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब उसकी आयु विवाह के योग्य थी तब उसने अपने माता-पिता की इच्छा के बावजूद रिश्तों को ठुकरा दिया और जब आयु निकल गई, तो चेष्टा करती रह गई, उसका विवाह नहीं हो पाया। क्यों हुआ ऐसा? क्या रहे इसके ज्योतिषीय कारण? आइए, जानें... आज के समाज में जहां माता पिता बेटे और बेटी को बराबर का दर्जा देते हैं और उनकी समान रूप से शिक्षा का प्रबंध करते हंै, वहीं जब उनके विवाह का समय आता है तो बेटी के विवाह को लेकर अक्सर चिंतित हो जाते हैं।

यह बात ठीक भी है। हम समान अधिकारों की बातें चाहे जितनी भी करें, परंतु बेटी के माता पिता उसकी सुरक्षा व वैवाहिक जीवन को लेकर चिंतित सदैव रहते हैं। उनकी कोशिश यही रहती है कि वे जल्दी से जल्दी उसका विवाह कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएं। वहीं अगर लड़कियों की सोच को देखें तो वे भी अपनी पढ़ाई पूरी कर अपना कैरियर बनाना चाहती हैं, अपने वर का चुनाव अपनी पसंद से करना चाहती हैं

और ऐसा जीवनसाथी चाहती हैं जो शारीरिक, आर्थिक व मानसिक रूप से उनकी पसंद के अनुकूल हो। यहीं पर माता-पिता और बच्चों की इच्छाओं के बीच टकराव उत्पन्न होने लगता है। बच्चे अपने माता-पिता की जिम्मेदारी और उनकी मानसिक व्यथा को नहीं समझ पाते और उनकी जिम्मेदारी को गौण कर अपनी महत्वाकांक्षा को प्राथमिकता देते हैं और माता-पिता अपनी बच्चों की इच्छाओं और सपनों को अपनी जिम्मेदारियों के तले पूरा करने में असमर्थ सा महसूस करते हैं। आज के टूटते परिवारों का एक बहुत बड़ा कारण पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में तो कन्या का विवाह 16-17 साल में कर दिया जाता था।

उस समय वह मानसिक रूप से बहुत परिपक्व नहीं होती थी और ससुराल में सबके साथ सामंजस्य बिठाने में उसे कोई तकलीफ नहीं होती थी। उसे स्वयं को उनके तौर तरीकों और रहन-सहन में ढालने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। पर आज के युग में जब बेटी के कैरियर को पूरा महत्व दिया जाता है, तो विवाह के बाद उसे ससुराल में सामंजस्य स्थापित करने में थोड़ी तकलीफ महसूस होती है।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


उसका परिपक्व मन अच्छी-बुरी बातों को ज्यादा अच्छे से समझता है और वह अंकुश और जिम्मेदारियों की बजाय स्वतंत्रता चाहती है। इसी ऊहापोह और कशमकश में फंसे थे मेरी प्यारी सहेली मीना के माता-पिता। मीना की छोटी बहन नीना काफी सुंदर थी और बचपन से उसे लड़कों की तरह अपनी हर बात मनवाने की बहुत बुरी आदत थी। वह हर काम अपनी मर्जी से ही करती। विवाह की उम्र होने पर उसके लिए बहुत से अच्छे-अच्छे रिश्ते आए पर उसने हर रिश्ते पर किसी न किसी प्रकार का ऐब निकाल कर उन्हेें ठुकरा दिया। माता-पिता ने समझाने की बहुत कोशिश की पर वह बहुत जिद्दी थी और किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहती थी।

वह एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत थी। विवाह की अपेक्षा उसे अपने कैरियर में अधिक दिलचस्पी थी। जब उसके माता-पिता उसके लायक वर नहीं ढूंढ पाए तो उन्होंने दूसरी बेटियों का विवाह कर दिया। पहले नीना तो सभी रिश्ते ठुकरा रही थी और जब बाद में कुछ लड़के उसे पसंद आए, तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया क्योंकि तब तक उसकी उमर निकल चुकी थी और जाहिर है कि कोई भी लड़का अपने से बड़ी लड़की से विवाह करना पसंद नहीं करता। एक उम्र के बाद कुंआरे लड़के मिलने भी बंद हो गए (रिश्ते आने भी बंद हो गए) और वह आज तक अविवाहित है

और चाह कर भी अपने लिए अच्छा वर नहीं ढूंढ पा रही है। आइए, करें नीना की कुंडली का विश्लेषण क्योंकि यह तो उसकी कुंडली में बैठे ग्रहों का असर ही है जिसकी वजह से उसमें ऐसे गुण आए और उसके विवाह में बाधा आई। नीना का जन्म सूर्य ग्रहण में हुआ था। उसका लग्न पाप ग्रहों से बुरी तरह से पीड़ित है।

लग्न में सूर्य के साथ शनि, केतु तथा अस्त चंद्र भी है। मन का कारक चंद्र अपने भाव से द्वादश भाव में स्थित है, अस्त है तथा शनि, केतु और सूर्य तीन पाप ग्रहों से युक्त व अकारक मंगल से दृष्ट है। इन सारे योगों के फलस्वरूप नीना स्वभाव से काफी जिद्दी है और उसमें मनोबल की कमी है। मनोबल की इस कमी के कारण उसमें सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता भी नहीं है। चंूकि सूर्य भी पाप ग्रहों के साथ है इसलिए नीना अपने अहंकार के आगे किसी की नहीं सुनती। सूर्य की इसी स्थिति के फलस्वरूप उसने अपने माता-पिता की बात को भी कोई महत्व नहीं दिया। तृतीयेश सूर्य के लग्न में होने के कारण वह निर्भीक और साहसी और सदा लड़कों जैसा अक्खड़पन का वर्ताव करती है। नीना की कुंडली के द्वितीय भाव में सौम्य ग्रह बुध और शुक्र की युति बहुत शुभ है। लग्नेश और द्वितीयेश का स्थान परिवर्तन योग भी हो रहा है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


साथ ही बुध और शुक्र पर अष्टम भाव में स्थित गुरु की दृष्टि भी पड़ रही है। इन सारे योगों ने नीना को अत्यंत रूपवान और सुंदर बनाया। लग्नेश बुध नवांश में भी अपनी राशि में स्थित है इसके कारण भी नीना अत्यंत बुद्धिमान और सुंदर है। नीना के वैवाहिक जीवन का विचार करने के लिए सप्तम भाव देखें, तो इस भाव पर ग्रहों की दृष्टि तथा इसमें उनकी स्थिति काफी अशुभ है। सप्तमेश गुरु वक्री होकर अष्टम भाव में स्थित है। सप्तम भाव में स्थित राहु पर तीन पाप ग्रहों सूर्य, शनि तथा केतु की दृष्टि है और चूंकि मंगल भी लग्न को देख रहा है, इसलिए मंगल और शनि के परस्पर दृष्टि योग का भी अप्रत्यक्ष रूप से इस भाव पर प्रभाव है।

सप्तम भाव की स्थिति जन्म लग्न, चंद्र लग्न, सूर्य लग्न, उपपद लग्न व कारकांश लग्न इत्यादि सभी महत्वपूर्ण लग्नों से अत्यंत खराब है। इस प्रकार का ग्रह योग दाम्पत्य सुख में प्रबल बाधा उत्पन्न कर देता है। लग्नस्थ शनि, धन भाव की श्रेष्ठ स्थिति तथा लाभेश मंगल के दशम भाव में होने के फलस्वरूप नीना एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है और अपने कैरियर में बहुत प्रगति कर रही है, पर जहां तक वैवाहिक जीवन की बात है, तो उसका सुख उसे नसीब नहीं हुआ। बुध और शुक्र की कुटुंब भाव में युति ने उसे एक बहुत अच्छा परिवार दिया और आर्थिक रूप से संपन्न बनाया। सप्तमेश गुरु की दृष्टि के कारण प्रारंभ में उसके लिए एक से एक अच्छे-अच्छे रिश्ते भी आए, पर अपने अहंकार और अशुभ सप्तम भाव के कारण उसने सबको ठुकरा दिया और उसका विवाह नहीं हो पाया। सप्तम भाव की स्थिति अत्यंत खराब है।

सप्तम भाव पर समस्त पाप ग्रहों सूर्य, शनि, केतु व राहु का प्रभाव है। मंगल व शनि के परस्पर दृष्टि योग का प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से इस भाव पर पड़ रहा है। सप्तमेश गुरु भी अष्टमस्थ है। इस प्रकार से सप्तम भाव को प्रभावित करने वाले सभी पक्ष क्षीण हैं। चंद्रमा भी क्षीण है। इससे स्पष्ट है की सप्तम भाव पर केवल पाप ग्रहों का कुप्रभाव है और शुभ ग्रहों के शुभ प्रभाव से यह भाव पूर्णतया वंचित है। सूर्य, शनि व राहु यह तीनों पृथकतावादी ग्रह है इनका सप्तम भाव पर सीधा और स्पष्ट प्रभाव तथा सप्तमेश का नीचस्थ और अष्टमस्थ होना व इस भाव का शुभ प्रभाव से हीन होना यह भी संकेत देता है की यदि इनका विवाह हो जाता तो भी निश्चित रूप से असफल रहता।

परंतु शुक्र की उत्तम स्थिति व सप्तम भाव व सप्तमेश की खराब स्थिति बड़ी उम्र में विवाह की सफलता का सूचक है। नवंबर 2011 के बाद विवाह की क्षीण संभावना है। गुरुवार का व्रत करना श्रेष्ठ रहेगा। अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि हर कार्य उपयुक्त उम्र में ही करना चाहिए। नीना की कुंडली में विवाह का योग क्षीण था। उसकी कुंडली के अनुसार गुरु की दशा में कई रिश्ते आए पर फलीभूत नहीं हुए।

जब भी कुंडली में ऐसे योग हों, तो चाहे जो भी कारण हो, विवाह में विलंब नहीं करना चाहिए और जब भी योग बने, तो उसे फलीभूत करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। कुछ भी हो सत्य यही है की समय से पहले और किस्मत से ज्यादा कुछ भी नहीं मिलता । किसी ने सही कहा है- समय बड़ा बलवान। शेष, महेश, गणेश, दिनेश यह सभी समय के चक्र में चहतेे हैं।


जानिए आपकी कुंडली पर ग्रहों के गोचर की स्तिथि और उनका प्रभाव, अभी फ्यूचर पॉइंट के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यो से परामर्श करें।




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.