गणेश जी का जन्म और उनकी महिमा

गणेश जी का जन्म और उनकी महिमा  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 23477 | जनवरी 2007

भगवान श्री गणेश का व्यक्तित्व अपने आप में अनूठा है। हाथी के मस्तक वाले, ज्ञानी और विघ्नहर्ता श्री गणेश का वाहन मूषक है। इनकी दो पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि हैं। इनकी पुत्री कलयुग में पूजनीय संतोषी माता हैं। किसी भी कार्य को करने से पूर्व इनकी अराधना की जाती है। ताकि कार्य निर्विघ्न संपन्न हो अतः शिवगण एवं गणदेवों के स्वामी होने के कारण उन्हें श्री गणेश कहते हैं।

गणपति को ‘दूर्वा’ और ‘मोदक’ अतिशयप्रिय हैं। वह स्वयं मंगल ग्रह हैं। गणपति महत्ता पर प्रकाश डाल रहे हैं -पं. लक्ष्मीशंकर शुक्ल ‘लक्ष्मेष’ यातो गणेश जी के जन्म से जुड़ी अनेक कहानियां हैं, पर ज्योतिष से जुड़ी शनि की वक्र दृष्टि से संबंधित कहानी निम्नलिखित श्री गणेश चालीसा में मिलती है।

दोहा :

जय गणपति सदगुण सदन, करिवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजा लाल।।

चैपाई गणेश महिमा वर्णन:

जय जय गणपति गणराजू।

मंगल भरण करण शुभ काजू।।

जय गज बदन सदन सुख दाता।

विश्व त्रिपुंड भाल मन भावत।।

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।

तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।।

राजित मणि मुक्तन उर माल।

स्वर्ण मुकुट सिर नयन विशाल।।

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।

मोदक भोग सुगन्धित फूलं।।

सुन्दर पीताम्बर तन साजित।

चरण पादुका मुनि मन राजत।।

धन शिव सुवन षड़ानन भ्राता।

गौरी ललन विश्व विख्याता।।

ऋद्धि-सिद्धि तब चंवर सुधारे।

म ूषक वाहन सोहत साजे।।

जन्म कथा वर्णन:

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।

अति शुचि पावन मंगलकारी।।

एक समय गिरिराजकुमारी।

पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी।।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।

तब पहुंचो तुम धरि रूपा।।

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी।

बहुविधि सेवा कीन्ह तुम्हारी।।

अति प्रसन्न ह्नै तुम वर दीन्हा।

मातु-पुत्र हित जो तप कीन्हा।।

मिलहिं पुत्र तुहिं बुद्धि विशाला।

बिना गर्भ धारण यहि काला।।

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना।

पूजित प्रथम रूप भगवाना।।

अस कहि अन्तघ्र्यान रूप ह्नै।

पलना पर बालक स्वरूप है।।

वनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठानी।

लखि मुख सुख नहिं समानी।।

बाल गणेश दर्शन:

सकल मगन मुख मंगल गावहिं।

नभ ते सुख, सुमन वर्षावहिं।।

शम्भु उमा बहु दान लुटावहिं।

सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं।।

लखि अति आनन्द मंगल साजा।

देखन भी आये शनि1 राजा।।

शनि भी दर्शन करने आए:

निज अवगुण गुनि शनि2 मन माहीं।

बालक देखन चाहत नाहीं।।

गिरिजा कुछ मन भेद बढ़ायो।

उत्सव मोर न शनि3 तुहिं भायो।।

कहन लगे शनि4 मन सकुचाई।

का करिहो शिशु मोहिं दिखाई।।

नहिं विश्वास उमा उर भयऊ।

शनि सों बालक देखन कह्यऊ।।

पड़तहिं शनि6 ट्टंग कोण प्रकाशा।

बाल सिर उड़ि गयो अकाशा।।

गिरिजा गिरी विकल ह्नै धरणी।

सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी।।

शनि कीन्ह्यो लखि सुत का नाशा।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाये।।

गज सिरस्थापन:

काटि चक्र सांे गजर सिर लायो।

बालक के धड़ ऊपर डारयो।।

प्राण मंत्र पढ़ि शंकर डारयो।

नाम ‘गणेश’ शम्भु तब कीन्हें।

प्रथम पूज्य बुद्धि, निधि वर दीन्हें।।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।

पृथ्वी कर प्रदक्षिण लीन्हा।।

चले षड़ानन गरमि मुलाई।

रचै वैठि तुम बुद्धि-उपाई।।

श्री गणेश की बुद्धि:

चरण मातु पितु के धर लीन्हें।

तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें।।

धनि गणेश कहि शिव हिय हष्र्यो।

नभ ते सुरन सुमन बहु वर्षों।।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।

शेष सहस मुख सके न गाई।।

लेखक की विनती:

मैं मति हीन मलीन दुखारी।

करहुॅ कौन विधि विनय तुम्हारी।।

मनत ‘राम सुन्दर’ प्रभुदासा।

लग प्रयाग ककरा दुर्वासा।।

अस तुम दया हीन्ह पर कीजै।

अपनी भक्ति शक्ति मुझै दीजै।।

दोहा श्री गणेश यह चालीस,

पाठ करै धरि ध्यान।

नित नव मंगल गृह वसै,

लहै जगत सनमान।।

सम्वत् अयन सहस्र दश,

ऋषि पंचमी दिनेश।

पूर्ण चालीसा भयो,

मंगल मूर्ति श्री गणेश।।

इस प्रकार प्रयाग ककरा के राम सुन्दरा प्रभुदास लिखित प्रस्तुत श्री गणेश चालीसा को हम 36 चैपाइयों के अंतर्गत सात भागों में बांटते हैं-

(1) श्री गणेश महिमा वर्णन (8 चैपाई )

(2) श्री गणेश जन्म कथा वर्णन (7 चैपाई)

(3) बाल श्री गणेश दर्शन (3 चैपाई)

(4) शनि की वक्र दृष्टि दर्शन प्रभाव (7 चैपाई)

(5) गज सिर स्थापन (3 चैपाई)

(6) श्री गणेश की बुद्धि एवं ज्ञान महिमा (3 चैपाई)

(7) लेखक की विनती (3 चैपाई)।

यहां पर हमारा तात्पर्य मुख्य कथा से है जिसके तीसरे, चैथे और पांचवे भाग में श्री गणेश के सुंदर बालक रूप का वर्णन है। गिरिराज कुमारी को भारी तप करने से सुंदर रूप धारी बालक गणेश की प्राप्ति हुई, जिन्हें देखने सभी देवी देवता आए। उनमें वक्री दृष्टि धारी शनि भी थे पर वह अपने स्वभाव के कारण सुंदर बाल रूप गणश्ेा को देखने से कतरा रहे थे।

तब गिरिजा कुमारी के आग्रह पर शनि ने शिशु को देखा जिससे उसका सुंदर शीश धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया। यह देख देवी विलाप कर उठीं। देवी का विलाप देखकर श्री विष्णु भगवान शीघ्र ही अपने गरुड़ पर बैठ उड़े और अपने सुदर्शन चक्र से एक ताजा जन्मे हाथी के बच्चे के सिर को काट लाए और उस शीशहीन बालक के धड़ पर लगा दिया।

और मंत्र पढ़कर प्राण डाल दिए तथा उसका नाम गणेश रखा। श्री गणेश जी के जन्म की दूसरी कथा के अनुसार बालक का सिर स्वयं शिव ने अपने त्रिशूल से ही धड़ से अलग कर दिया था। पुत्र की यह दशा देख देवी दुःखी हो उठीं। तब श्री विष्णु ने एक ताजा जन्मे हाथी के सिर को अपने सुदर्शन चक्र से काट कर उस धड़ पर स्थापित कर दिया।

उपर्युक्त श्री गणेश चालीसा में श्री गणेश जी की महिमा, उनकी बुद्धि तथा ज्ञान का भरपूर बखान है तथा उनके पिता के आशीर्वाद से प्रथम पूजे जाने का भी उल्लेख है। श्री गणेश जी के पूर्ण स्वरूप अस्तित्व को यह चालीसा अपने आप में समेटे हुए है। उपर्युक्त कथाओं के अतिरिक्त भी श्री गणेश जी से संबंधित अनेक कथाएं हैं।

भगवान श्री गणेश का व्यक्तित्व अपने आप में अनूठा है। हाथी के मस्तक वाले, ज्ञानी और विघ्नहर्ता श्री गणेश का वाहन मूषक है। इनकी दो पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि हैं। इनकी पुत्री कलयुग में पूजनीय संतोषी माता हैं। किसी भी कार्य को करने से पूर्व इनकी अराधना की जाती है। ताकि कार्य निर्विघ्न संपन्न हो।

अतः शिवगण एवं गणदेवों के स्वामी होने के ही कारण उन्हें श्री गणेश कहते हैं। वह विद्या एवं बुद्धि के दाता हैं। उन्हें दूर्वा और मोदक सर्वप्रिय हैं। वह स्वयं ही मंगल ग्रह हैं। सर्व सिद्धिदायक गणपति मंत्र है ‘‘ऊँ गं गणपतये नमः’’। सभी कार्यों की सिद्धि हेतु इस मंत्र का जप एक संकल्प और विधान के साथ स्वच्छतापूर्वक सरल आसन में बैठ कर करने से बाधा निवारण और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और विद्या एवं ज्ञान तथा पुत्र की प्राप्ति होती है।

साथ ही विवाह में बाधा से मुक्ति और रोग से बचाव होता है तथा शत्रु पर विजय होती है। बुरे स्वप्नों को रोकने, वास्तुदोष को दूर करने आदि में शुद्ध देशी घी का दीपक जलाकर ‘ऊँ अमोदश्च शिरः पातुः प्रमोदश्च शिखोपरि’’ कवच मंत्र की माला फेरते हुए हवन करने से श्री गणेश जी प्रसन्न होते हैं। वह आदि ज्योतिषी गणपति हैं। इसका उल्लेख स्कंद पुराण में आया है।

शिवजी की आज्ञा से वह एक ज्योतिषी रूप में काशी नगरी के प्रत्येक घर में जाकर अपनी मधुरवाण् ाी से भविष्य बताते हैं। ज्योतिष कार्यों में उनका स्मरण एवं उल्लेख आवश्यक है। उनकी आकृति का वैज्ञानिक आधार है।में उनका स्वरूप विद्यमान है। इस प्रकार उनका व्यक्तित्व अपने आप में अनूठा है।

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