श्रीगणेश एक परिचय

श्रीगणेश एक परिचय  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8663 | जनवरी 2007

श्रीगणेश एक परिचय आदि देव गजानन को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं, यंत्र यत्र-तंत्र उनकी पूजा-अर्चना होती है। बुद्धि वे विद्या के दाता गणेश जी का परिचय देना सूर्य को दीप जलाने के समान है, यहां प्रस्तुत है उन्हें जानने का एक लघु प्रयासकृ गणेश परमात्मा का विघ्ननाशक स्वरूप है।

तैंतीस करोड़ देवताओं में श्रीगणेश का महत्व सबसे विलक्षण है। अतः प्रत्येक कार्य के आरंभ में, किसी भी देवता की आराधना के पूर्व, किसी भी सत्कर्मानुष्ठान में, किसी भी उत्कृष्ट से उत्कृष्ट एवं साधारण से साधारण लौकिक कार्य में भी भगवान गणेश का स्मरण, अर्चन एवं वंदन किया जाता है। गणेश शब्द की व्युत्पत्ति है। ‘गणानां जीवजातानां यः ईशः स्वामी सः गणेशः अर्थात, जो समस्त जीव जाति के ईश-स्वामी हैं वह गणेश हैं। इनकी पूजा से सभी विघ्न नष्ट होते हैं।

‘गणेशं पूजयेद्यस्तु विघ्नस्तस्य न जायते’। (पद्म पुराण, सृष्टि खंड 51/66) पुराणों में गणेश जी के जन्म से संबंधित कथाएं विभिन्न रूपों में प्राप्त होती हैं। इस संबंध में शिवपुराण, ब्रह्मवैवत्र्तपुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण, गणेश पुराण, मुद्गल पुराण एवं अन्य ग्रंथों में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है।

कथाआं े म ंे भिन्नता हाने े क े बाद भी इनका शिव-पार्वती के माध्यम से अवतार लेना सिद्ध है। कुछ लोग वेदों एवं पुराणों के विवरण को न समझ पाने के कारण यह शंका करते हैं कि गणश्े ा जी ता े भगवान शिव क े पत्रु ह।ंै फिर अपने विवाह में शिव-पार्वती ने उनका पूजन कैसे किया। इस शंका का समाधान गोस्वामी तुलसीदास निम्नलिखित दोहे में करते हैं। मुनि अनुशासन गनपति हि पूजेहु शंभु भवानि। कोउ सुनि संशय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।। अर्थात, विवाह के समय ब्रह्मवेत्ता मुनियों के निर्देश पर शिव-पार्वती ने गणपति की पूजा संपन्न की। कोई व्यक्ति संशय न करे क्योंकि देवता (गणपति) अनादि होते हैं।

तात्पर्य यह है कि भगवान गणपति किसी के पुत्र नहीं हैं। वे अज अनादि व अनंत हैं। जो भगवान शिव के पुत्र गणेश हुए वे तो उन गणपति के अवतार हैं जिनका उल्लेख वेदों में पाया जाता है। गणेश जी वैदिक देवता हैं। परंतु इनका नाम वेदों में गणेश न होकर ‘गणपति’ या ‘ब्रह्मणस्पति’ है। जो वेदों में ब्रह्मणस्पति के नाम से अनेक सूत्रों में अभिहित हैं उन्हीं देवता का नाम पुराणों में गणेश है।

ऋग्वेद एवं यजुर्वेद के मंत्रों के गणेश जी के उपर्युक्त नाम देखे जा सकते हैं। पौराणिक विवरण के अनुसार भगवान शिव ने महागणपति की आराधना की और उनसे वरदान प्राप्त किया कि आप मेरे पुत्र के रूप में अवतार लें। इसलिए भगवान महागण् ापति गणेश के रूप में शिव-पार्वती के पुत्र होकर अवतरित हुए।

अतः यह शंका निर्मूल है कि शिव विवाह में गणपति पूजन कैसे हुआ। जिस प्रकार भगवान विष्णु अनादि हैं एवं राम, कृष्ण, वामन आदि अनेक अवतार हैं उसी प्रकार गणेश जी भी महागण् ापति के अवतार हैं। गणेश जी की उपासना तंत्र शास्त्र के आचार्यों ने सभी मंगल कार्यों के प्रारंभ में गणपति पूजन का निर्देश दिया है।

महानिर्वाण तंत्र के दशम उल्लास में गुरु दीक्षा के अवसर पर गणपति पूजन का विधान प्रस्तुत किया गया है। तंत्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ शारदा तिलक के त्रयोदश पटल में गणपति के विभिन्न स्वरूपों एवं पूजा पद्धति का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। पूजन में तुलसी पत्र का निषेध किया गया है। किंतु नारद पुराण में गणेश जी के ‘शूर्पकर्ण’ स्वरूप एवं व्रत के प्रसिद्ध ग्रंथ व्रतराज में गजवत्र स्वरूप के पूजन में तुलसी पत्र अर्पित करने का उल्लेख है।

गणेश जी के उपासकों हेतु विभिन्न व्रतों का विधान का व्रतराज ग्रंथ में वर्णन है। इक्कीस दिवसीय गणपति व्रत, गणपति पार्थिव पूजन व्रत और इनके अतिरिक्त बारह महीनों की चतुर्थी तिथियों के व्रतों का अलग-अलग विधान उपर्युक्त ग्रंथ में वर्णित है। गणेश पुराण के क्रीड़ा खंड में युग-भेद से गणेश जी के चार रूपों की व्याख्या करके उनके चार भिन्न वाहन बताए गए हैं।

सतयुग में गणेश जी का वाहन सिंह है, वे दस भुजा वाले हंै और उनका नाम विनायक है। त्रेता युग में वाहन मोर है, छः भुजाएं हंै और नाम म्यूरेश्वर है। द्वापर में वाहन चूहा (मूषक) है, भुजाएं चार हैं और नाम गजानन है। कलियुग में दो भुजाएं हैं वाहन घोड़ा है और नाम धूम्रकेतु है।

इन चारों रूपों की उपासना विधि व लीला चरित्र का विवरण गणेश पुराण में प्राप्त होता है। वर्तमान में गणेश जी का सर्वप्रसिद्ध वाहन मूषक (चूहा) माना जाता है। विभिन्न मंत्रों के ध्यान में इनके मूषक वाहन का ही संकेत पाया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार गणेश जी को मूषक वाहन की प्राप्ति भगवती वसुंधरा (पृथ्वी) से हुई थी। वसुन्धरा ददौ तस्यै वाहनाय च मूषकम (ब्रह्मवैवर्त पुराण गणपति खंड 13/12)। भगवान गणेश की उपासना अनेक प्रकार से होती है।

उपास्य गणेशमूर्ति के प्रकार एवं अर्चना का विधान भी अलग-अलग होता है। दो से अठारह भुजा एवं एक मुखी से दशमुखी मूर्तियों का पूजन होता है और इनसे संबंधित मंत्र, कवच, यंत्र, स्तोत्र आदि का विधान तंत्र शास्त्र के मान्य ग्रंथों मंत्र महार्णव, मंत्रमहोदधि, शारदा तिलक, तंत्र सार आदि में विस्तार से पाया जाता है। विशिष्ट वस्तुओं के पूजन भेद से गणेश जी के अनेक रूप प्रसिद्ध हैं जैसे हरिद्रा गणेश, दूर्वा गणेश, शमी गणेश, गोमेद गणेश आदि।

कामना भेद से भी इनके भिन्न रूपों की उपासना की जाती है जैसे संतान प्राप्ति हेतु संतान गणपति, विद्या प्राप्ति हेतु विद्या गणपति आदि। सामान्य उपासक अपनी दैनिक उपासना में गणेश जी के प्रसिद्ध द्वादश नाम स्तोत्र, संकट नाशक स्तोत्र, गणपति अथर्वशीर्ष, गणेश कवच, शतनामस्तोत्र आदि का सुविधानुसार पाठ करके इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

विशिष्ट उपासना के अंतर्गत गणपति अथर्वशीर्ष से इनका अभिषेक किया जाता है। गणेश पुराण एवं रुद्रयामल तंत्र में वर्णित सहस्र नामस्तोत्र की नामावली के द्वारा दूर्वा से इनका अर्चन किया जाता है। गणपति योग भी वैदिक पद्धति के द्व ारा संपन्न कराया जाता है। गणपति पूजन में मुख्यतः दूर्वा, शमी के पत्ते और मोदक (लड्डू) अर्पित किए जाते हैं।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.