वर-वधू में से यदि किसी की भी कुंडली में सप्तमेश 00-150 तक का हो।
Û कुंडली में चंद्रमा पाप ग्रह से दृष्ट हो या उसे कोई भी शुभ या अशुभ ग्रह न देख रहे हों।
Û शनि विषम राशिगत हो।
Û मंगल व केतु या केतु या मंगल की किसी भी प्रकार से युति हो या दृष्टि संबंध हो।
Û सप्तम भाव पीड़ित हो।
Û सप्तमेश पाप ग्रह से दृष्ट हो या पाप पीड़ित हो।
Û शुक्र सिंह राशिगत हो।
Û सप्तम भाव को राहु, केतु, मंगल, शनि व सूर्य किसी भी प्रकार से देखते हों या सप्तमेश के साथ युति बनाते हांे।
Û अगर कुंडली में लग्न व सप्तम भाव से दाईं व बाईं ओर से कालसर्प दोष बनता हो।
Û कुंडली में मांगलिक दोष विद्यमान हो व वज्र, शूल, व्यातिपात, गंड, अतिगंड, व्याघात योग हो।
Û शुक्र पाप राशिगत होकर नवमांश में द्विस्वभाव राशि में हो।
Û सप्तम भाव व सप्तमेश किसी भी प्रकार से कमजोर अवस्था में हो।
Û सप्तमेश वक्री व पाप कर्तरी योग में हो। आइए अब देखते हैं, इसके कुछ जीवंत उदाहरण कारण सहित