हथेली में हृदय रोग के लक्षण

हथेली में हृदय रोग के लक्षण  

सीताराम सिंह
व्यूस : 3910 | जुलाई 2017

जन्म समय का सही ज्ञान न होने पर कई बार जन्मकुंडली नहीं बनाई जा सकती, और व्यक्ति के स्वास्थ्य व संभवित रोगों का पूर्व आकलन नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में ईश्वर प्रदत्त हथेली में पाई जाने वाली रेखाएं व चिह्न इस संबंध में हमारा पूर्ण मार्गदर्शन करते हैं। इसके लिए बायीं और दाहिनी दोनों हथेलियों का आकलन किया जाता है। हृदय हमारे शरीर का सर्वश्रेष्ठ अंग है।

यह शुद्ध रक्त को शरीर के विभिन्न अंगों की आवश्यकता अनुसार उचित वेग व मात्रा में पहुंचाता है और उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है। हृदय के स्वास्थ्य व रोगों का ज्ञान हथेली की हृदय रेखा के आकलन द्वारा किया जाता है। भारतीय विद्वानों ने हृदय रेखा को ‘आयु रेखा’ कहा है, क्योंकि हृदय धड़कने तक ही आयु रहती है। अतः जिस समय पर जीवन रेखा पर क्राॅस होता है, उस समय हृदय रेखा पर भी कोई अशुभ चिह्न अवश्य होता है।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्पष्ट मणिबंध रेखाएं तथा जीवन, मस्तक, हृदय व स्वास्थ्य रेखाओं का दोष रहित होना आवश्यक होता है। स्वास्थ्य रेखा की अनुपस्थिति पाचन क्रिया को स्वस्थ रखकर अच्छे स्वास्थ्य के लिए ‘रक्षा कवच’ का कार्य करता है। पतली, गहरी, गुलाबी रंग की दोष रहित रेखायें बली व शुभ फलदायी होती हैं।

उनसे बृहस्पति, सूर्य व बुध पर्वतों की ओर जाने वाली शाखायें शुभ फलों में वृद्धि करती हैं। अपने नाम के अनुसार जीवन रेखा हमारे स्वास्थ्य और बीमारियों के बारे में पूर्ण मार्गदर्शन करती हैं। जीवन रेखा के आरंभ में ‘द्वीप’ व्यक्ति को वंशानुगत बीमारियां होना दर्शाता है। निर्बल या छोटी जीवन रेखा को बल प्रदान करने के लिए स्वस्थ हृदय रेखा और अंगूठे के इच्छा खंड को बलवान होना चाहिए। हृदय रेखा हथेली में सबसे ऊपर बुध पर्वत के नीचे से निकल कर पर्वतों के नीचे चलती हुई शनि-बृहस्पति के बीच या बृहस्पति पर्वत तक पहुंचती है। यह रेखा हृदय की भावनाओं, प्रेम तथा हृदय के स्वास्थ्य को दर्शाती है। हृदय रेखा दूषित होने पर मस्तक, जीवन व स्वास्थ्य रेखायें भी दूषित पाई जाती हैं।

स्वास्थ्य रेखा बुध पर्वत के किसी स्थान से निकलकर जीवन रेखा की ओर जाती है। दोष रहित स्वास्थ्य रेखा अच्छी सेहत व व्यापार में सफलता देती है। उस पर बिंदु द्वीप व क्राॅस रोग दर्शाते हैं। जब हृदय रेखा के मार्ग को छोटी-छोटी खड़ी रेखाएं काटती हैं, उसमें से ऊपर-नीचे शाखायें निकलती हैं तथा उस पर बिंदु, द्वीप व वृत्त उसकी शक्ति कम करते हैं। हृदय रेखा पर काला बिंदु, क्राॅस या नक्षत्र की उपस्थिति उस आयु में हृदय घात की संभावनाएं दर्शाता है। यदि इस स्थान पर हृदय रेखा समाप्त हो जाये तो हृदय गति अवरूद्ध हो जाने के कारण आकस्मिक मृत्यु भी हो सकती है। इन चिह्नों के बाद यदि रेखा निर्बल चलती है तो व्यक्ति को जीवनपर्यंत हृदय रोगों का सामना करना पड़ता है। उपरोक्त दोषों पर स्क्वायर होने से जीवन रक्षा होती है।

उपरोक्त सूत्रों को भली प्रकार दर्शाती दूषित जीवन, मस्तक, हृदय रेखा और स्वास्थ्य (बुध) रेखा का चित्र संलग्न है इसमें:-

1. हृदय रेखा में द्वीप व बिन्दु हैं और उसमें से ऊपर व नीचे छोटी रेखाएं निकल रही हैं जो हृदय रोग तथा आंखों की रोशनी कम होने का सूचक हैं। स्वास्थ्य रेखा द्वारा हृदय रेखा काटने के स्थान पर गहरा बिंदु हृदयाघात दर्शाता है।

2. मस्तक रेखा पर नक्षत्र, बिंदु, द्वीप और छोटी खड़ी काटती रेखायें सिर पर चोट, मानसिक चिंता व रोग की सूचक हैं।

3. स्वास्थ्य रेखा का टेढ़ा व द्वीप सहित होना पाचन क्रिया के रोग, पित्त व लिवर का ठीक से काम न करना दर्शाता है।

4. चंद्र पर्वत पर जाल, किडनी व मूत्र प्रणाली के रोग दर्शाता है। औरतें स्त्री रोगों से पीड़ित रहती हैं।

5. अंगूठा निर्बल है।

6. दूषित व निर्बल जीवन रेखा पर द्वीप, बिंदु और नीचे निकलती रेखाएं, विभिन्न बीमारियों के कारण निर्बल स्वास्थ्य को सत्यापित करती हैं।

हृदय रोग संबंधी कुछ अन्य सूत्र इस प्रकार हैं:

1. लंबे, चैड़े और नीलिमा लिए हुए नाखून दूषित रक्त प्रवाह दर्शाते हैं। ऐसी हथेली में हृदय रेखा का कांतिहीन व छिछली होना हृदय रोग दर्शाता है।

2. बिना चंद्रमा के छोटे नाखून हृदय की कमजोरी दर्शाते हैं। बड़े चंद्रमा तीव्र रक्त संचार दर्शाते हंै परंतु उम्र बढ़ने पर हृदय रोग का कारण बनते हैं।

3. छोटे चैकोर नाखून हृदय की कमजोरी दर्शाते हैं।

4. यदि हृदय रेखा शनि पर्वत के नीचे भंग हो जाये तो तीव्र हृदय आघात का खतरा रहता है। उस स्थान पर वर्ग हो तो उपचार सफल रहता है।

5. सूर्य रेखा पर द्वीप तथा जीवन रेखा पर बीमारियों के लक्षण हृदय रोग की संभावना दर्शाते हंै।

6. यदि बुध (स्वास्थ्य) रेखा के आरंभ में लाली या लाल बिंदु हो तो हृदय रोग की संभावना होती है।

7. शृंखलाकार (जंजीर की तरह) हृदय रेखा दिल का आकार बढ़ने का रोग दर्शाता है।

8. हृदय रेखा का बृहस्पति पर्वत पर जाल में मिलना हृदय बढ़ने से हृदय आघात देता है।

9. जीवन और मस्तक रेखा के आरंभ में जुड़ी हृदय रेखा तथा मानस रेखा पर क्राॅस दोनों हाथों में पाये जाने पर आकस्मिक मृत्यु होती है।

10 हृदय रेखा का मानस रेखा में मिलकर एक हो जाने पर व्यक्ति में मानवीयता के गुण नहीं होते।

वह अपने निर्णय को दृढ़तापूर्वक पूर्ण करता है और स्वेच्छाचारी होता है। मानस रेखा शनि रेखा को पार करने से पहले समाप्त हो जाय और उस पर क्राॅस हो तो असामयिक मृत्यु का लक्षण है। ज्योतिषीय विवेचन भविष्य कथन की प्रक्रिया में हस्त रेखा विज्ञान तथा ज्योतिष शास्त्र परस्पर सहयोगी व पूरक विधायें हैं। अतः बिना ज्योतिषीय विवेचन किये यह लेख अधूरा रहेगा। जन्म विवरण अनुसार बनी कुंडली में 12 राशि, नवग्रहों तथा 27 नक्षत्रों के विश्लेषण द्वारा भविष्य कथन किया जाता है। लग्न जन्मकुंडली का पहला भाव होता है, और उसी से भावों की गणना आरंभ होती है, जैसा कि संलग्न चित्र में दर्शाया गया है।

सभी अंगों को 12 भावों में बांटा गया है। जीवन में सुख दुःख का अनुभव व्यक्ति मूलतः अपनी देह से करता है। अतः दैवज्ञों ने लग्न को कुंडली का आधार माना है। ग्रहों में सूर्य का व्यक्ति के आत्मबल और हृदय से सीधा संबंध होता है। साधारणतया शरीर में रोग का विचार लग्न और कुंडली के छठे भाव के बलाबल अनुसार किया जाता है। मुख्यतया लग्न-लग्नेश, चंद्र, चंद्र राशि व राशीश, षष्ठ भाव व षष्ठेश, एकादश भाव (छठे से छठा) व एकादशेश का निर्बल (नीच, अस्त, वक्री) होकर त्रिक (6, 8, 12) भाव में स्थित होने से या त्रिकेश का इन भावों को दूषित करने पर संबंधित ग्रहों की दशा-भुक्ति, गोचर, विशेष रूप से साढ़े-साती और ढैय्या के समय विभिन्न रोग होते हैं। प्रतिकूल दशा रहते जातक रोगी रहता है।

जन्मकुंडली का चतुर्थ भाव व कर्क राशि स्थित ‘अश्लेषा’ नक्षत्र (स्वामी बुध) के ग्रस्त होने पर हृदय, रक्त, छाती व फेफड़े के रोग होते हैं। पंचम भाव व सिंह राशि स्थित मघा नक्षत्र स्वामी केतु ग्रस्त होने पर हृदय रोग व पीठ दर्द होता है। सिंह राशि में ही स्थित ‘पूर्वाफाल्गुनी’ नक्षत्र (स्वामी शुक्र) पीड़ित होने पर रक्त्चाप, हृदय रोग व एनीमिया होता है। अतः हृदय रोग का संबंध और सिंह राशि से होता है और जन्मकुंडली के द्वादश भावों में से चतुर्थ व पंचम भाव से होता है।

ग्रहों में मुख्यतः सूर्य तथा चंद्रमा का संबंध हृदय से होता है। किसी भी जन्मकुंडली में सूर्य, चंद्र, चतुर्थ व पंचम भाव व उनके स्वामी (चतुर्थेश व पंचमेश) यदि निर्बल या पीड़ित हांे तो जातक को हृदयाघात हो सकता है, जिसे आम भाषा में ‘दिल का दौरा’ कहते हैं।

विभिन्न लग्नों में हृदय रोग की संभावना इस प्रकार होती है:-

1. मेष लग्न: लग्नेश मंगल षष्ठ या अष्टम भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो, पंचमेश सूर्य राहु या केतु से युक्त या दृष्ट हो, चतुर्थेश चंद्र, बुध (तृतीयेश व षष्ठेश) से युक्त चतुर्थ या पंचम भाव में हो तो हृदय रोग की संभावना होती है।

2. वृष लग्न: बृहस्पति (अष्टमेश) चतुर्थ भाव (सिंह राशि) में राहु/केतु से युक्त या दृष्ट हो, चतुर्थेश सूर्य षष्ठ या अष्टम भाव में एवं लग्नेश शुक्र वक्री या अस्त हो तो जातक को हृदय रोग हो सकता है।

3. मिथुन लग्न: लग्नेश व चतुर्थेश बुध अस्त हो और मंगल, राहु या केतु से युक्त या दृष्ट होकर चतुर्थ भाव में स्थित हो या दृष्टि संबंध हो तो जातक को हृदय रोग हो सकता है।

4. कर्क लग्न: शनि (सप्तमेश व अष्टमेश) चतुर्थ हो या वहां दृष्टिपात करे, मंगल-शुक्र षष्ठ या अष्टम भाव में हो, चंद्रमा अस्त हो और राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

5. सिंह लग्न: मंगल सूर्य से अस्त होकर राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु-चंद्र चतुर्थ भाव में स्थित होकर शनि से दृष्ट हो, तो जातक को हृदय रोग होता है।

6. कन्या लग्न: लग्नेश बुध अस्त होकर चतुर्थ भाव में स्थित हो और मंगल से दृष्ट हो, चतुर्थेश षष्ठ या अष्टम भाव में चंद्र से युक्त हो, तो जातक हृदय रोगी होता है।

7. तुला लग्न: चतुर्थेश शनि षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में, षष्ठेश बृहस्पति चतुर्थ भाव में (नीचस्थ) हो, सूर्य व चंद्र राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, तो जातक हृदय रोगी होता है।

8. वृश्चिक लग्न: लग्नेश मंगल लग्न में राहु-केतु से युक्त हो, चतुर्थ भाव का स्वामी शनि षष्ठ या अष्टम भाव में हो, सूर्य-बुध चतुर्थ भाव में हो, तो जातक हृदय रोगी होता है।

9. धनु लग्न: सूर्य व गुरु तृतीय, षष्ठ या अष्टम भाव में हो, चंद्र-शुक्र (अष्टमेश व षष्ठेश) चतुर्थ भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, शनि चतुर्थ भाव पर दृष्टिपात करे तो जातक हृदय रोग से ग्रस्त होता है।

10. मकर लग्न: गुरु चतुर्थ भाव में हो या वहां दृष्टिपात करे, सूर्य राहु केतु से युक्त हो, शनि सूर्य के नक्षत्र में हो तो जातक हृदय रोगी होता है।

11. कुंभ लग्न: बृहस्पति राहु-केतु से युक्त होकर अष्टम या द्वादश भाव में हो, मंगल व सूर्य चतुर्थ या दशम भाव में हो, शनि-चंद्र षष्ठ भाव में युक्त हों, तो हृदय रोग होता है।

12. मीन लग्न: शनि व शुक्र चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में युत होकर राहु-केतु के साथ हो, बृहस्पति अस्त होकर षष्ठ या अष्टम भाव में हो, तो जातक को हृदय रोग होता है।



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