शिशु जन्म समय ज्योतिष द्वारा इच्छित संतान प्राप्ति

शिशु जन्म समय ज्योतिष द्वारा इच्छित संतान प्राप्ति  

आभा बंसल
व्यूस : 1065 | दिसम्बर 2011

आज विज्ञान का युग है। विज्ञान के द्वारा मनुष्य प्रकृति पर विजय पाने की कोशिश करता रहा है। मेडिकल साईंस ने अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा प्राप्त कर लिया है। सांख्यिकीय आंकड़े भी सिद्ध करते हैं कि मनुष्य की आयु अब लंबी हो गई है। वैज्ञानिक इस खोज में हैं कि आनुवंशिकी (Genetics) द्वारा एैसे पेड़ पौधे पैदा किए जाएं जिनको रोग ही न हो। जीन्स में परिवर्तन कर मन चाहे प्रकार के फल, सब्जियां व अनाज प्राप्त करने का तो प्रचलन ही हो गया है।

हरित क्रांति द्वारा पैदावार कई गुना बढ़ा ली गई है। पहले छोटे-छोटे फल आते थे तो अब बड़े आकार के फल अनेक रंगांे में प्राप्त हैं। साथ ही वे कई दिनों तक खराब नहीं होते। पौधा जमीन से निकलता है कि उस पर फल आने लगते हैं। गेहूं का पौधा अब 3-4 फुट लंबा नहीं बल्कि 1-2 फुट का ही होता है लेकिन उस पर लगी बाल अधिक लंबी होती है। जिसके कारण खाद की खपत कम होती है और पैदावार अधिक मिलती है।

इसी प्रकार से जानवरों पर भी शोध किए जा रहे हैं और जीन्स में परिवर्तन कर यह कोशिश की जा रही है कि इन पर कीटाणुओं आदि का प्रभाव न पड़े और वे रोग मुक्त रहें। कुछ समय में यह प्रयोग मानव जाति पर भी अवश्य किया जाएगा। भविष्य में कोई अप्रत्याशित प्रभाव न हो जाए इस भय के कारण अभी खुल कर प्रयोग नहीं किए जा रहे हैं। वैज्ञानिकों को यह मालूम नहीं है कि जेनेटिक बदलाव क्या और असर ला सकता है जो कि इच्छित न हो। एक बार यदि यह परिवर्तन आम जनता में फैल जाता है तो उसे यथा स्थिति में लाना संभव न होगा।


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हमारे पास दूसरा पूर्णरूप से प्राकृतिक विकल्प ज्योतिष द्वारा उपलब्ध है। विदित है कि मनुष्य का भविष्य उसके जन्म समय पर आधारित है। यदि जन्मकुंडली बदल जाए तो भविष्य कथन भी बदल जाता है। इस प्रकार जन्मकुंडली बदल कर हम भविष्य बदल सकते हैं। आज के युग में आॅपरेशन द्वारा मनचाहे समय पर बच्चे का जन्म करवाना मामूली बात है। अतः बच्चे का जन्म समय पूर्व निर्धारण कर इच्छित संतान प्राप्त की जा सकती है। लेकिन क्या सर्जिकल जन्म को जन्म समय समझना चाहिए? जन्म समय कौन सा होता है पहले इस पर चर्चा करें-

जब जीव की सांस रूक जाती है उसी को प्राण निकलना कहते हैं। इसी प्रकार से प्राण भी तभी आते हैं जब शिशु पहली सांस लेता है वही उसका जन्म समय होता है। इससे पहले वह केवल मां के शरीर का भाग है। शिशु में हृदय गति तो बहुत पहले ही आ जाती है। वह हाथ पैर भी चलाने लगता है और सोचने व सुनने भी लगता है। अतः हृदय गति को जन्म समय नहीं मान सकते। हृदय गति व सांस दोनों लगभग एक साथ जाते हैं लेकिन दोनों के शुरू होने में बहुत अंतर है।

एक ओर संदेह रहता है कि क्या बच्चे का सिर बाहर निकलने को जन्म समय माने या पूरे शरीर को बाहर निकलने को या नाल काटने को। इनको भी जन्म समय नहीं माना जा सकता क्योंकि वह अभी स्वयं जीवित रहने की अवस्था में नहीं आया। अतः जन्म समय अवश्य ही केवल प्रथम श्वास के समय को ही कहते हैं- यह वही समय होता है जो उसके रोदन का होता है क्योंकि शिशु में श्वास आते ही प्रायः वह रोदन करता है।

अतः चाहें प्राकृतिक जन्म हो या सर्जिकल, जन्म समय प्रथम श्वास का है इसमें कोई संदेह नहीं है। इसी समय में परिवर्तन कर हम जातक के भविष्य को मनचाहा बना सकते हैं वह भी पूर्णतया प्राकृतिक रूप में। भविष्य को पूर्णतया तो कंट्रोल में नहीं लिया जा सकता क्योंकि जन्म तारीख को केवल कुछ दिन तक ही बदल सकते हैं लेकिन मुख्य परिवर्तन अवश्य ही लग्न निर्धारण कर किया जा सकता है। ग्रहों की राशियों का निर्धारण गर्भधारण तिथि का चुनाव करके कर सकते हैं। लगभग जिस माह में शिशु चाहिए उससे उल्टी गिनती गिन कर गर्भादान की तिथि चयन कर सकते हैं। अच्छे मुहूर्त में गर्भादान से यह निश्चित कर सकते हैं कि मां को कम से कम कष्ट हो एवं शिशु स्वस्थ रहे। लेकिन जातक का भविष्य उसके जन्म समय पर ही आधारित है।


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जन्म समय निर्धारण के लिए लग्न की अहम भूमिका है। इसके द्वारा आप ग्रहों के भाव निश्चित कर सकते हैं और कोशिश कर सकते हैं कि कम से कम 6-8-12 भावों में कोई ग्रह न हो। मुख्यतया ग्रह केंद्र या त्रिकोण में हों। इस प्रकार आप होने वाले जातक के स्वास्थ्य का निर्धारण कर सकते हैं। यदि आप चाहते हैं कि वह खूब नाम कमाए तो ग्रहों को लग्न में रखने की कोशिश करें। यदि आपको जातक धनवान चाहिए तो ग्रह 2-11 में स्थित हो। यदि खूब विद्यावान हो तो 4-5 भाव में ग्रह होने चाहिए। भाग्यवान के लिए 9 वें स्थान में, कर्मठ के लिए 3-10 भाव में अधिकांश ग्रह रहने चाहिए।

यह देख लेना अति आवश्यक है कि जातक को प्रथम 50 वर्षों में कौन-कौन सी दशाएं भोगनी होंगी। कहीं उसे 6-8-12 की दशाएं तो नहीं आ रही। यदि दशाएं ठीक नहीं है तो जन्म तारीख को 1-2 दिन आगे या पीछे कर के बदला जा सकता है क्योंकि इससे केवल चंद्रमा बदलेगा, अन्य ग्रह वहीं रहेंगे।

यदि आप ग्रहों के भाव में परिवर्तन लाना चाहते हैं जिससे एक राशि में रहकर भी एक ग्रह एक भाव में व दूसरा दूसरे भाव में हो तो वह प्रथम तो समय बदल कर किया जा सकता है लेकिन यदि और सूक्ष्म गणित करें तो जन्म स्थान को बदल कर भी किसी भाव को बड़ा व छोटा बना सकते हैं। अधिक अक्षांश पर भावों के साईज में अंतर आ जाता है, कुछ भाव छोटे व कुछ भाव बड़े हो जाते हैं। जबकि भूमध्य रेखा के पास सभी भाव लगभग समान साईज के हो जाते हैं। अतः स्थान परिवर्तन कर ग्रहों के भाव निर्धारित कर सकते हैं।

इस प्रकार ज्योतिष के माध्यम से हम काफी हद तक मन चाहे शिशु को जन्म दे सकते हैं। कम से कम स्वस्थ शिशु पाकर संसार को स्वस्थ बनाने में मदद कर सकते हैं।


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