शाबर-मेरू-तंत्र

शाबर-मेरू-तंत्र  

ब्रजकिशोर शर्मा ‘ब्रजवासी’
व्यूस : 31458 | आगस्त 2014

शाबर मंत्र साधना प्रारंभ करने से पूर्व ‘शाबर-मेरू-तंत्र’ का या ‘सर्वार्थ साधक मंत्र’ या सुमेरू मंत्र का जप अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि यह मंत्र उच्च कोटि के गुरुओं के अभाव व साधक की आवश्यक योग्यता की पूर्णता का प्रतीक है। यह मंत्र इस प्रकार है:- गुरु शठ, गुरु शठ, गुरु है वीर। गुरु साहब सुमरों बड़ी भांत। सिङ्गी टोरों बन कहां। मन नाउ करतार। सकल गुरुन की हर भले। घट्टा पकर उठा जाग। चेत संभार श्री परमहंस।। साधकों को जो पाठ जैसा मुद्रित है उसी के अनुसार जप करना चाहिए। जप 108 या 1008 बार करें और जप के बाद घृत मिश्रित गुग्गुल से आहुति भी 108 बार दें। एक बात विशेष स्मरणीय रहे जब जितना अधिक होगा उसका प्रभाव उतना ही जल्दी होगा।

शाबर-सुरक्षा-कवच-मंत्र शाबर-मेरू-तंत्र का जप करने के बाद शाबर-सुरक्षा-कवच-मंत्र का भी 108 बार जप करना चाहिए इससे पूर्ण सुरक्षा की प्राप्ति होती है। शाबर सुरक्षा का उत्कृष्ट मंत्र: ऊँ नमो आदेश गुरुन को, ईश्वरी वाचा। अजरी-बजरी बाडा बजरी, मैं बज्जरी। बांधा दशौ दुवार छवा। और को घालो, तो पलट हनुमन्त वीर उसी को मारे। पहली चैकी गनपति, दूजी चैकी हनुमंत, तीजी चैकी में भैरों, चैथी चैकी देव रक्षा करन को आवें श्रीनरसिंह देव जी। शब्द सांचा, चले मंत्र ईश्वरी वाचा।। आगे जब किसी भी प्रकार की शाबर-साधना करें, तब उक्त शाबर-सुरक्षा-कवच-मंत्र’ को केवल 7 बार जपकर स्व देह का स्पर्श करंे या फूंक लें।

स्वदेही पर अथवा जल अभिमंत्रित कर आस-पास चारों तरफ छिड़क लें या फिर जल से अपने चारों तरफ रेखा खींचे। ऐसा करने से साधना निर्विघ्न और शीघ्र सफल होगी, इसमें संदेह नहीं। साधना-रक्षक-मंत्र प्रयोग मंत्र - ऊँ नमो सर्वार्थ-साधिनी स्वाहा। इस मंत्र का ग्रहण काल में 12500 की संख्या में जप करें। दशांश हवन (1250 मंत्र), दशांश तर्पण (125 मंत्र), दशांश मार्जन (13 मंत्र) और 2 ब्राह्मणों को भोजन करायें। ब्राह्मण भोजन जितना अधिक होगा, मंत्र का प्रभाव भी उतना ही अधिक होगा। फिर आवश्यकता पड़ने पर जब किसी शाबर मंत्र का अनुष्ठान करें तब अपने आस-पास 27 बार या 108 बार उक्त मंत्र से अभिमंत्रित जल से रेखा खींच लें और अपने चारों ओर छिड़क भी लें। शाबर मंत्र को अतिशीघ्र जागृत करने की विधि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि उचित विधि से शाबर-मंत्र का प्रयोग करने के बाद भी साधना में सिद्धि नहीं मिलती। अतः साधक को शाबर मंत्र को जागृत कर लेना ही श्रेयस्कर है। इसकी अनुभूत विधियां इस प्रकार हैं:-

1. विधि: एक अखंड व बड़ा भोज-पत्र लेकर गंगाजल या गुलाब जल में अष्टगंध मिलाकर बनी स्याही से ‘दाड़िम’ (अनार) की लेखनी से जागृत करने वाले मंत्र को भोज-पत्र पर लिखें। मंत्र अधिक बड़ा हो तो 9 या 11 बार लिखंे। लेखन के साथ-साथ मानसिक मंत्रोच्चारण करते रहंे। फिर एक पाटे या चैकी पर एक नया वस्त्र बिछाकर वस्त्र के ऊपर कलश व मंत्र लिखित भोजपत्र भी रख दें। पंचोपचार या षोडशोपचार से भोजपत्र का पूजन करें व 108 बार पूजनोपरांत जप करें। ब्राह्मणों को भोजन करायंे। गरीबों को दान-दक्षिणा दें। पुनः कलश के अंदर एक दूसरा नया वस्त्र रखकर उसके ऊपर पूजा किए हुए भोजपत्र को रखकर कलश का मुंह बंद कर उसे बहती हुई नदी के जल में प्रवाहित कर दंे। मंत्र का जप प्रवाहित करते समय भी करते रहें। विसर्जन के बाद घर पर आ जायंे। साध्य मंत्र का प्रभाव शीघ्र ही फलित होता दिखाई देगा।

2. विधि: शाबर का एक प्रभावशाली अंग है- ‘असावरी देवी’ जिसकी पूजा किए बिना शाबर की सिद्धि नहीं होती। शाबर मंत्र की साधना में रविवार की रात्रि में असावरी देवी की विधिवत् पूजा कर कांसे की थाली को राख से स्वच्छ कर उसे सामने रखें और प्रत्येक प्रहर के प्रारंभ में अभीष्ट मंत्र को 108 बार जपें। चतुर्थ प्रहर में मंत्र-जप के पश्चात् ‘खैर’ डण्डी से हिन्दी अथवा मातृ-भाषा में कहें- ‘हे मंत्र-देवी जागृत हो’ साथ ही कांसे की थाली को बजायंे। 4 प्रहर की जानकारी स्वयं जानते हों तो ठीक नहीं तो किसी विद्वान ब्राह्मण से जानकारी कर लें। उपरोक्त दोनों विधियांे को अवश्य ही पूर्ण कर लें। शाबर-मंत्र-चक्र-पूजा शाबर मंत्र की साधना में चक्र-पूजा का भी विशेष महत्व है। इसमें सिंदूर, पका हुआ अन्न, फूल, चूड़ी, बिंदी, साही का कांटा, गुड़हल (अदूल) का फूल और कली तथा विभिन्न प्रकार की सामग्रियों से पूजा करने का विधान है।

चक्र का निर्माण भोजपत्र, कांसे की थाली या किसी चैकी पर वस्त्र बिछाकर भी किया जा सकता है। प्रत्येक एक अंक से प्रारंभ कर 9 अंक तक मां भगवती के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री स्वरूप को क्रमशः अनुकूलता से एकत्रित सामग्रियों से पूजा पंचोपचार या षोडशोपचार करें। शिवा (गीदड़) को भोजन व मां को बलि प्रदान करें। पाठकगण यहां बलि का तात्पर्य पशु बलि न समझें। बलि अन्न का भी दिया जा सकता है, यही शास्त्रोक्त भी है। इस पूजा का विशेष समय शारदीय नवरात्रि का उत्तम है। ग्रहण् ाकाल व कृष्णाष्टमी भी मान्य हैं। मां को नेत्रदान भी अवश्य करें नेत्रदान से तात्पर्य बाजार में उपलब्ध कृत्रिम नेत्रों के दान से है। शाबर मंत्रों से लाभप्राप्ति हेतु यंत्र प्रयोग सामान्य मंत्र की पूर्णता के लिए ही यंत्र का निर्माण किया जाता है।

मंत्र देवता की आत्मा है तो यंत्र देवता का शरीर है। उदाहरणार्थ -‘या अली मुलखवीर’ -भय नाशक मंत्र है। इसे सिद्ध करने के बाद भय से ग्रसित व्यक्ति को झाड़ देने या फूंक देने से भय दूर हो जाता है। यह विधि ही तंत्र है। यदि कभी इस प्रयोग से लाभ न हो अथवा बार-बार भय सताता हो, तो उस पीड़ित व्यक्ति को ‘भय दोष नाशक यंत्र’ देने से उस दोष की शांति स्थायी रूप से हो जाती है। इस प्रकार ‘मंत्र-तंत्र-यंत्र’ तीनों को परस्पर जोड़कर कुछ समन्वयात्मक प्रयोग करने से अचूक फल प्राप्ति होती है। मंत्र-तंत्र-यंत्र स्वतंत्र भी हैं तथा एक दूसरे पर आधारित भी हैं। साधक इनका प्रयोग कैसे करे यह उसकी सूझ-बूझ पर निर्भर है।

अनुभवी साधक को अपने लिए और भक्तजनों के लिए अभीष्ट फल प्राप्ति के उद्देश्य से स्वयं विचारकर तीनों की एक शृंखला बनाकर समग्र शक्ति का सदुपयोग करना चाहिए। यही शास्त्र का उपदेश है। शाबर मंत्र साधना में यंत्र विद्या का प्रचलन ‘अंशतः या पूर्णतः के रूप में पहले से ही प्रचलित है। शाबर यंत्र में जो मंत्र हैं वे शाबर मंत्र विद्या के ही हैं और शेष विधि प्रचलित यंत्र शास्त्र के अनुसार भी पायी जाती है। प्रायः सभी संप्रदायों व धर्मों में 6 कर्मों

1. शांति करण,

2. मोहन-आकर्षण-वशीकरण,

3. स्तम्भन,

4. उच्चाटन,

5 विद्वेषण,

6. मारण प्रयोग तो निश्चित ही हैं।

कहीं-कहीं अन्य वर्गीकरण भी उपलब्ध हैं जिसमें पेटा अर्थात् निम्न कर्म भी होते हैं।



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