संन्यास योग कारक शनि

संन्यास योग कारक शनि  

बाबुलाल शास्त्री
व्यूस : 10085 | फ़रवरी 2016

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सौरमंडल में नौ ग्रह विद्यमान हैं जो समस्त ब्रह्मांड, जीव एवं सभी क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं, जिनमें शनि की महत्वपूर्ण भूमिका है। शनि चिंतनशील, गहराइयों में जाने वाला, योगी, संन्यासी एवं खोज करने वाला ग्रह है। शनि के साथ सूर्य जो नवग्रहों में राजा एवं अग्नि तत्व ग्रह है एवं मानव शरीर संरचना का कारक है, राहु जो शनि के समान ही ग्रह है, शनि के साथ सूर्य, राहु पृथकता जनक प्रभाव रखते हैं।


Consult our expert astrologers online to learn more about the festival and their rituals


इनमें से कोई दो ग्रह जिस भाव आदि पर निज प्रभाव डाल रहे हों तो उस भाव से पृथकता हो जाती है। जैसे किसी भी जातक की कुंडली में लग्न, द्वितीय (कुटुंब भाव), चतुर्थ (सुख भाव), सप्तम (काम रति) व द्वादश (भोग) भाव व भावेशों एवं चंद्रमा पर शनि, सूर्य या राहु का प्रभाव होने से संसार के भोगों से जातक को विरक्ति हो जाती है। चंद्रमा के साथ शनि हो या दृष्टि संबंध हो या प्रभाव पड़ता हो तो जातक के मन में वैराग्य उत्पन्न होता है। फलदीपिका के अनुसार जब चंद्रमा शनि के द्रेष्काण में स्थित हो तथा उसे मंगल व शनि देख रहे हांे या चंद्रमा मंगल के नवांश में हो उस पर शनि की दृष्टि हो तो संन्यासी योग बनता है। चंद्रमा जिस राशि में स्थित हो उस राशि के स्वामी को शनि देखता हो तथा अन्य कोई ग्रह नहीं देखता हो तो जातक दीक्षा अवश्य लेता है।

कुंडली में काम का कारक शुक्र, सप्तमेश व द्वादशेश बलवान या उच्च का होने से जातक के पूर्ण ब्रह्मचारी होने का योग होता है। उदाहरण के रूप में देखें तो स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली धनु लग्न की है और लग्न में भाग्येश सूर्य स्थित है। लग्नेश गुरु लाभ भाव में हैं जिसपर पंचमेश द्वादशेश मंगल जो स्वराशि का है, की पूर्ण दृष्टि है। दशम भाव में द्वितीयेश शनि व अष्टमेश चंद्रमा की युति है। अतः द्वादशेश मंगल के प्रभाव से मन में विरक्ति व परलोक जानने की अभिरूचि एवं चंद्र शनि के प्रभाव ने संन्यासी बनाया। चंद्रमा शनि के द्रेष्काण में स्थित है। लग्नेश गुरु दो अलगाववादी ग्रह राहु-शनि के मध्य स्थित है। द्वादश में राहु है जिस पर शनि की तीसरी दृष्टि है। अतः चतुर्थ भाव भावेश गुरु व चंद्रमा शनि-राहु के प्रभाव में है।

सप्तम भाव पर शनि की पूर्ण दृष्टि है एवं द्वितीय भाव पर केतु की दृष्टि है। शुक्र स्वयं षष्ठेश होकर केतु के प्रभाव को लिये हुये कुटुम्ब भाव में बैठा है। सूर्य लग्न में शनि के केंद्रीय प्रभाव में है। नवांश कुंडली में गुरु-वृश्चिक लग्न में स्थित है जिस पर मंगल-शनि की पूर्ण दृष्टि है। कुंडली में पंचम भाव के स्वामी मंगल एवं लग्नेश व कारक गुरु में संबंध होने से इनकी कुशाग्र बुद्धि स्वभाव में तेजी व धनागम के योग बने। द्वितीय भाव में बुध-शुक्र की युति एवं मंगल से दशम होने से कुशल वक्ता व ओजस्वी वक्ता का योग बना। अतः लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश भाव, भावेशों ने संन्यासी बनाया। चंद्रमा शनि के द्रेष्काण में स्थित है। लग्नेश गुरु दो अलगाववादी ग्रह राहु-शनि के मध्य स्थित है।

द्वादश में राहु है जिस पर शनि की तीसरी दृष्टि है। अतः चतुर्थ भाव भावेश गुरु व चंद्रमा शनि-राहु के प्रभाव में है। सप्तम भाव पर शनि की पूर्ण दृष्टि है एवं द्वितीय भाव पर केतु की दृष्टि है। शुक्र स्वयं षष्ठेश होकर केतु के प्रभाव को लिये हुये कुटुम्ब भाव में बैठा है। सूर्य लग्न में शनि के केंद्रीय प्रभाव में है। नवांश कुंडली में गुरु-वृश्चिक लग्न में स्थित है जिस पर मंगल-शनि की पूर्ण दृष्टि है। कुंडली में पंचम भाव के स्वामी मंगल एवं लग्नेश व कारक गुरु में संबंध होने से इनकी कुशाग्र बुद्धि स्वभाव में तेजी व धनागम के योग बने। द्वितीय भाव में बुध-शुक्र की युति एवं मंगल से दशम होने से कुशल वक्ता व ओजस्वी वक्ता का योग बना। अतः लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश भाव, भावेशों एवं चंद्रमा पर अलगाववादी सूर्य शनि राहु ग्रहों का प्रभाव होने से ये सभी प्रकार के भोगों से अलग रहे एवं आजीवन ब्रह्मचारी रहे। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी की कुंभ लग्न की कुंडली में, षष्ठेश चंद्र, सप्तमेश सूर्य व अष्टमेश बुध स्थित हैं

। द्वितीयेश गुरु की लग्न व लग्नेश शनि पर पूर्ण दृष्टि है। लग्न में स्थित ग्रहों का प्रभाव सप्तम भाव व भावेश पर पड़ रहा है। सप्तम भाव का कारक शुक्र द्वितीय भाव में उच्च का, चतुर्थ भाव में राहु उच्च का, द्वादश भाव में मंगल उच्च का, नवम भाव में शनि उच्च का स्थित है। इस कारण इनके जीवन में धन व भोग के प्रति विरक्ति झलक रही है।


Book Navratri Maha Hawan & Kanya Pujan from Future Point


नवांश कुंडली तुला के सप्तम भाव में चंद्रमा मंगल की राशि में स्थित है तथा शनि की तीसरी दृष्टि चंद्रमा पर है। चतुर्थ भाव में राहु भावेश शनि का चंद्रमा पर प्रभाव होने से सभी सुविधायें होते हुए भी ये संन्यासी बने। अतः स्पष्ट है कि जिस जातक की कुंडली में लग्न द्वितीय चतुर्थ सप्तम द्वादश भाव तथा भावेशों एवं कारक चंद्रमा पर अलगाववादी ग्रह शनि सूर्य राहु एवं द्वादशेश का प्रभाव होता है उसे संसार के समस्त भोगों से विरक्ति हो जाती है। काम व सुखों का कारक शुक्र, सप्तमेश या द्वादशेश का बलवान या उच्च का होने से जातक के पूर्ण ब्रह्मचारी होने का योग होता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.