अष्टम भाव का राजयोग

अष्टम भाव का राजयोग  

आचार्य किशोर
व्यूस : 29728 | अकतूबर 2007

वर्तमान समय में हमारे भारत के प्रधानमंत्री के लग्न से अष्टम भाव में चंद्र, शुक्र व मंगल का होना यह सूचित करता है कि अष्टम भाव में स्थित ग्रहों का शुभ फल भी मिलता है। प्रधानमंत्री बनने से पहले मनमोहन सिंह जी रिजर्व बैंक में गर्वनर पद पर आसीन थे और उसके बाद नरसिंह राव जी के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के लिए नवम और दशम भाव का बलवान होना आवश्यक है और वे श्री सिंह की कुंडली में बलवान हैं। परंतु धन स्थान में शनि स्वगृही, अष्टम में षष्ठेश शुक्र, अष्टम में अष्टमेश चंद्र एकादश भाव का स्वामी अष्टम में और तृतीय भाव में पाप ग्रह राहु पर गुरु की दृष्टि इन सारे ग्रह योगों ने उन्हें राहु की महादशा में भारत का प्रधानमंत्री बनाया। परंतु त्रिक स्थान में शुक्र, चंद्र व मंगल ने उन्हें वित्त मंत्री के रूप में अधिक प्रसिद्धि दिलाई। इसी तरह कुछ और बड़े नेताओं को भी उनकी कुंडली के अष्टम भाव से राजयोग मिला। भूतपूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जी का लग्नेश चंद्र अष्टम भाव में है और राहु के साथ षष्ठेश गुरु की दृष्टि और द्वितीय भाव में मंगल, गुरु व केतु अष्टम भाव को दृष्टि दे रहे हैं। अष्टम भाव से राहु, चंद्र द्वितीय भाव को देख रहे हैं।


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कर्नाटक में मुख्यमंत्री रहे, वित्त विभाग में रहा और भारत के प्रधानमंत्री भी बने। तात्पर्य यह कि द्वितीय और अष्टम भाव यदि बलवान हो तो वित्त विभाग अवश्य मिलता है। देवगौड़ा जी को शुक्र की महादशा में राहु की अंतर्दशा में प्रधानमंत्री का पद मिला जबकि राहु चंद्रमा के साथ अष्टम भाव में बैठा है। शुक्र एकादश भाव में अस्त है। प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य इसलिए मिला कि नवमेश, दशमेश गुरु एवं मंगल द्वितीय भाव में बैठकर अष्टम भाव को देख रहे हैं। प्राकृतिक पाप ग्रह केतु भी धन स्थान में बैठा है। इसी तरह और भी नेताओं को अष्टम भाव से राजयोग मिला है। श्री प्रणव मुखर्जी पर मंगल की महादशा 24.3.1971 तक प्रभावी रही। वह इंदिरा गांधी जी के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे। 1971 से 1989 तक राहु की महादशा में मंत्री पद पर रहे। 1984 में इंदिरा जी के देहांत के पश्चात 1989 तक कांग्रेस पार्टी से बाहर हो गए। फिर गुरु की महादशा में 2005 तक भारत के मंत्रिमंडल में कई विभागों में रहे- कभी गृह मंत्री, कभी रक्षा मंत्री तो कभी विदेश मंत्री के रूप में। इसी प्रकार अष्टम भाव के शनि, शुक्र व बुध ने उन्हें मंत्रिपरिषद में सफलता दिलाई। कर्क लग्न के लिए तृतीयेश एवं द्वादशेश बुध अष्टम भाव में, चतुर्थ व एकादश के स्वामी शुक्र अष्टम भाव में और सप्तमेश, अष्टमेश शनि अष्टम भाव में हैं। ये तीनों ग्रह अकारक होकर अष्टम भाव से द्वितीय भाव को देख रहे हैं। इसीलिए उन्हें वित्त मंत्री के रूप में प्रसिद्धि मिली। श्री शरद पवार जी की कुंडली में छठे और बारहवें भाव में ग्रह बलवान हैं।

छठे और बारहवें भावों में स्थित ग्रहों को एक दूसरे की दृष्टि कई बार जातक को उच्च पद के साथ-साथ धराशायी भी करती है। फिर भी वह अलग-अलग विभागों में मंत्री रहे लेकिन प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। वह कई बार अपने प्रांत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। केंद्र में कई बार मंत्री रहे और आज भी हैं। इस तरह स्पष्ट है कि छठे, आठवें व बारहवें भाव से भी राजयोग मिलता है। स्वर्गीय मोरारजी देसाई पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। फिर केंद्र सरकार में नेहरू जी के जमाने से इंदिरा जी के मंत्रिमंडल तक भारत के वित्त मंत्री रहे और अंततः भारत के प्रधानमंत्री बने। उनकी कुंडली के अष्टम भाव में षष्ठेश मंगल, लग्नेश बुध और द्वादश के स्वामी शुक्र धन स्थान एवं बृहस्पति को देख रहे हैं। धन कारक बृहस्पति ने उच्च राशि में वक्री होकर नीच फल दिया। फिर भी अष्टम भाव पर बृहस्पति की दृष्टि के कारण उन्हें मंत्री का पद मिला। इस तरह अष्टम भाव के ग्रह धन स्थान को प्रभावित कर रहे हैं। स्व. देसाई के जीवन में उतार चढ़ाव अवश्य आते रहे, परंतु वित्त मंत्री के रूप में उन्हें मान-सम्मान मिला।


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