लाल किताब (दृष्टियां)
लाल किताब (दृष्टियां)

लाल किताब (दृष्टियां)  

उमेश शर्मा
व्यूस : 15645 | जून 2011

लाल किताब (दृष्टियां) उमेश शर्मा

1. आपसी मदद : किसी भी भाव में स्थित ग्रह अपने से पाचवें भाव में स्थित ग्रह को अपनी दृष्टि द्वारा मदद ही देगा चाहे वह उसका मित्र हो या शत्रु। उपरोक्त उदाहरण में शनि अपने भाव से सूर्य की मदद ही करेगा चाहे वह उसका नैसर्गिक शत्रु ही है इसी प्रकार सूर्य राहु को मदद देगा।

2. बुनियाद : कुंडली के किसी भी भाव में स्थित ग्रह से नवम भाव में स्थित ग्रह उसकी बुनियाद होंगे। उपरोक्त उदाहरण में शनि सूर्य से नवम भाव में स्थित है इसका अर्थ यह है कि शनि सूर्य की बुनियाद होगा। वास्तव में बुनियाद का अर्थ है आधार अर्थात सूर्य के फल शनि की शुभ व अशुभ स्थिति से एवं शनि के फल राहु एवं राहु के फल सूर्य की शुभाशुभ स्थिति से प्रभावित होंगे। इसी प्रकार प्रत्येक ग्रह के फल अपने से नवम भाव में स्थित ग्रहों की शुभाशुभ अवस्था से प्रभावित होगें।

3. आम हालत : आम हालत में बैठे ग्रहों की दृष्टि आपसी दुश्मनी या मित्रता के आम नियम के अनुसार होगी। 1-7, 4-10, 3-9,11, 5-9 आदि यानी पहले और सातवें भाव के ग्रह अगर मित्र या शत्रु हैं तो अपने स्वभावानुसार अपना शुभ या अशुभ फल देगें। उदाहरण के लिये मान लें कि लग्न यानी प्रथम भाव में शनि हैं और सप्तम भाव में सूर्य। चूंकि दोनों ग्रह आपस में शत्रुता रखतें हैं अतः उनकी यह अवस्था इस स्थिति में भी संरक्षित रहेगी।

4. टकराव : प्रत्येक ग्रह अपने से अष्टम भाव में स्थित ग्रह से शत्रुता करता है एवं उसके शुभ प्रभाव की हानि करता है चाहे वह उसका नैसर्गिक मित्र ही क्यों न हो। अष्टम भाव में चन्द्र एवं प्रथम भाव में बृहस्पति। दोनों मित्र ग्रह हैं परन्तु उस स्थिति में चन्द्र चूकिं बृहस्पति से अष्टम भाव में है अतः चन्द्र के फल को बृहस्पति दूषित करेगा।

5. धोखा : कुंडली के किसी भी भाव में स्थित ग्रह अपने से दसवें भाव में स्थित ग्रह को अपनी धोखे की दृष्टि से उससे संबंधित रिश्तेदारों, वस्तुओं पर अचानक अपना शुभ/अशुभ प्रभाव देगा। विशेष दृष्टि : लाल-किताब पद्धति में ग्रहों की इन दृष्टियों के साथ-साथ निम्नलिखित कुछ विशेष ग्रह स्थितियों के बारे में भी कहा गया है जिनका किसी भी कुंडली के फलित कथन में अपना महत्वपूर्ण स्थान है। . ग्रह चौथे हो जो कोई बैठा, तासीर चन्द्र वो होता है।

असर मगर उस घर में जाता, शनि जहां कि बैठा है॥ घर ग्यारह में ग्रह जो आये, तीसरा शनि वो होता हो। असर मगर उस घर में जाये, गुरु जहां कुंडली बैठा हो॥ घर चल कर जो आये दूजे, ग्रह किस्मत बन जाता है। घर दसवां अगर खाली हो, सोया हुआ कहलाता है॥ उपरोक्त उदाहरण में चतुर्थ भाव में बुध स्थित है जो कि प्रथम स्थिति के अनुसार चन्द्र का प्रभाव रखता है एवं फल ग्यारहवें भाव में स्थित शनि के अनुसार देता है। इसे और स्पष्ट रुप में समझें कि- सर्वप्रथम प्रथम स्थिति के बारे में विचार किया- बुध (चतुर्थ भाव) बुद्धि के काम, दिमागी बुद्धिमता से धन कमाना, दशम भाव (व्यवसाय, राजदरबार) पर दृष्टि। चन्द्र (प्रथम भाव) विद्या पर खर्च किया गया धन व्यर्थ न जायेगा, धन कमाने में विद्या सहायक होगी विशेषतः राजदरबार से।

शनि (एकादश भाव) अर्थात धन के आने का रास्ता, अज्ञात को जानने की प्रवृति, बेगुनाह और मासूम बच्चे की आंख का स्वामी एवं बृहस्पति का स्वभाव लिये हुए है। बृहस्पति (सप्तम भाव) गृहस्थी साधु, परिणाम : जातक एक ज्योतिषी है। जातक ने अपने जीवन में कई व्यापार किये परन्तु व्यवसायिक योग्यता होते हुए भी सफल व्यवसायी न बन सका। अन्त में ज्योतिष का अध्ययन कर उसे व्यवसाय के रुप में अपनाने के बाद आज एक सफल ज्योतिषी एवं लेखक के रुप में जाने जाते हैं। इसी उपरोक्त उदाहरण की द्वितीय स्थिति को देखें तो एकादश भाव में स्थित शनि का प्रभाव बृहस्पति के अनुसार होगा तथा उसका प्रभाव उस भाव से प्रकट होगा जहां बृहस्पति स्थित हो। परिणाम : कुंडली में बृहस्पति सप्तम भाव (पति/पत्नी का कारक भाव) में स्थित है अतः जातक का गृहस्थ जीवन पत्नी के साथ मधुर संबंध न होने के कारण कष्टमय रहा और इसके परिणाम स्वरुप दोनो में कानूनी रुप से संबंध विच्छेद हो गया।

तृतीय स्थिति कि ''घर चल कर'' फलादेश में अत्यधिक महत्व रखती है। जातक की कुंडली में यदि दूसरे भाव में कोई ग्रह बैठा है तो वह धन स्थान के फल को बहुत अच्छा करेगा यदि दसवें भाव में भी कोई ग्रह स्थित हो तो। लेकिन दसवें भाव में कोई ग्रह न हो तो दूसरे भाव में स्थित ग्रह अपना शुभ फल देने में असमर्थ होगा। इसी प्रकार दसवें भाव में कोई ग्रह हो और दूसरा भाव ख़ाली हो तो भी यही स्थिति होगी अर्थात दसवें भाव का ग्रह अपना अच्छा फल देने में असमर्थ होगा।

कुंडली में अगर दोनो भाव ख़ाली हों तो पहले घर (लग्न) के अच्छे ग्रहों का फल पूर्ण रुप से नहीं मिल पायेगा। दोनो भावों के ग्रह आपस में शत्रु हों तो अच्छे ग्रह योग होने के उपरांत भी व्यक्ति के जीवन में संघर्ष बना रहता है तथा सफलता कठिनाई से मिलती है। इसके विपरीत स्थिति में अशुभ ग्रह योग होने के उपरांत भी सफलता आसानी से मिल जाती है।



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