न्याय, सच्ची मित्रता व रुचिका की जीत

न्याय, सच्ची मित्रता व रुचिका की जीत  

आभा बंसल
व्यूस : 2760 | फ़रवरी 2010

रुचिका गिरहोत्रा और अनुराधा गुप्ता की दोस्ती की मिसाल आज हर व्यक्ति की जबान पर है। 19 वर्ष बाद जो न्याय रुचिका के पिता और भाई की मौत के बाद मिला है, वह केवल अनुराधा और उसके पिता की लंबी मेहनत और लगन का ही नतीजा है। शायद यह इंतजार इतना लंबा नहीं होता, अगर उसी वक्त उसका साथ उसके स्कूल और समाज के अन्य वरिष्ठ सदस्यों ने दिया होता। तब शायद राठौर जैसे शक्तिशाली व्यक्ति अपने पद और दबदबे का इतना गलत उपयोग नहीं कर पाते।

मीडिया की आवाज के साथ संगठित सभ्य समाज की शक्ति की युति निश्चित रूप से हमारे आने वाले कल को सुधार सकती है और रुचिका जैसी अनेक लड़कियों को दुर्भाग्य का शिकार होने से बचा सकती है। पंचकूला, हरियाणा, की उभरती टेनिस खिलाड़ी, रुचिका को मरणोपरांत, 19 वर्ष बाद मिले न्याय की चर्चा आज हर घर, समाचार पत्र, चैनल, न्यायालय, प्रशासन, राजनीति, पुलिस, विभिन्न सामाजिक संगठनों, केंद्र सरकार और यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है।

14 वर्षीय रुचिका तथा उसकी सहेली आराधना के परिवारों को किस हद तक अन्याय सहना पड़ा और एक उच्च पुलिस अधिकारी की बर्बरता का शिकार बनना पड़ा, यह सर्वविदित है। रुचिका छोटी उम्र से ही टेनिस खेलने की बहुत शौकीन थी और अपनी सहेली आराधना के साथ वह अक्सर टेनिस खेलने जाती थी। उस वक्त चंडीवाड़ के डीजीपी एस पी एस राठौड़ और उनके घर के गराज में एसोसिएसन का आफिस तथा हरियाणा लाॅन टेनिस एसोशिएशन के माध्यम से अहाते में टेनिस कोर्ट था।

एक दिन जब रुचिका आराधना के साथ वहां टेनिस खेलने गई तो राठौड़ ने आराधना को वाहन कोच को बुलाने भेज दिया और रुचिका के साथ दुव्र्यवहार तथा अश्लील हरकतें कीं। लेकिन तभी वहां आराधना आ गई और रुचिका को भागने का अवसर मिल गया। उन्होंने अपने परिवार वालों को दो दिन बाद बताया जब राठौर ने रुचिका को दोबारा बुलाया। आराधना के पिता व रुचिका के पिता ने राठौर के खिलाफ शिकायत की, तो कुछ दिन बाद रुचिका का नाम स्कूल से काट दिया गया और उसके भाई को बुरी तरह से शारीरिक यातनाएं दी गईं और अनेक झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेजा जाने लगा।

उस समय रुचिका की उम्र केवल 14 वर्ष थी। उसकी मां का देहांत भी पहले ही हो चुका था। अंततः इंसाफ न मिलने से और घरवालों की परेशानी से परेशान होकर रुचिका ने 29 दिसंबर, 1993 को जहर खाकर मौत को गले लगा लिया। आइए, देखें भाग्य की भूमिका क्या है इस ज्वलंत प्रकरण में रुचिका की जन्मकुंडली में लग्नेश केंद्र के साथ-साथ कोई भी शुभ ग्रह केंद्र में नहीं है। एकमात्र बुध भी द्वादशेश होकर मारकेश व नैसर्गिक पाप ग्रह सूर्य से संयुक्त होकर पापी हो गया है।


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इस तरह केंद्र में केवल पापग्रह हैं और सभी शुभ ग्रह व लग्नेश छठे व आठवें भाव में स्थित हैं। लग्नेश चंद्र मंगल व शनि के परस्पर दृष्टि योग से पीड़ित है। अतः कुंडली के कमजोर हो जाने के कारण और प्रतिकूल ग्रह दशा व गोचर के चलते रुचिका को दुर्भाग्य का शिकार होना पड़ा। उक्त ग्रह योग अल्पायु योग का निर्माण भी कर रहा है। ऋषि पराशर के अनुसार यदि भाग्येश अष्टम भाव में हो या नीच राशिस्थ हो, तो ऐसी स्थिति में राहु के पंचमस्थ हो जाने से जातक भाग्यहीन होता है। रु

की कुंडली में प्रबल भाग्यहीन योग विद्यमान है, जिसके चलते उसे ऐसे दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा। रुचिका की कुंडली में लग्नेश चंद्र रोग स्थान में राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी मंगल के साथ है। केतु अधिष्ठित राशि के स्वामी शुक्र और भाग्येश व षष्ठेश गुरु भी अष्टम में स्थित हैं। अष्टमेश व मारकेश शनि द्वादश स्थान में बैठकर सप्तम दृष्टि से लग्नेश चंद्र व पंचमेश मंगल को देख रहा है।

सप्तम में सूर्य के साथ स्थित द्वादशेश बुध पाप कर्तरी योग से पीड़ित है। लग्नेश चंद्र और पंचमेश मंगल भी पापकर्तरी योग में हैं। राहु पंचम भाव से और सूर्य सप्तम भाव से लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। अर्थात लग्न व लग्नेश दोनों ही निर्बल और बुरी तरह से पीड़ित हैं। 12 अगस्त 1990 को जब राठौर ने रुचिका के साथ दुव्र्यवहार किया, तो उस समय उस पर शुक्र की महादशा में राहु की अंतर्दशा में शुक्र की सूक्ष्म दशा चल रही थी। गोचर में उस वक्त शुक्र कर्क राशि में गोचर के राहु व जन्मकालीन पापी ग्रह राहु सूर्य व मंगल से दृष्ट थे। किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि इन पर नहीं थी।

गोचर में राहु सप्तम मारक भाव में और जन्म कुंडली में राहु पंचम भाव में स्थित है जो पूर्व जन्म के पाप कर्म की बाधा को भी दर्शाता है। अष्टम स्थान स्थित शुक्र की महादशा में राहु की अंतर्दशा के समय रुचिका असहनीय मानसिक वेदना की शिकार रही और उसके परिवार वालों को भी काफी कष्ट झेलने पड़े। आत्महत्या के समय शुक्र में गुरु की अंतर्दशा में राहु की प्रत्यंतर व सूक्ष्म दशाएं चल रही थीं, गोचर में लग्नेश चंद्र द्वादश भाव में तथा गोचर में राहु जन्मकालीन राहु के ऊपर था व लग्न को पाप दृष्टि से देख रहा था, गोचर का मंगल और सूर्य भी जन्मकालीन चंद्र व मंगल पर षष्ठ भाव में चल रहे थे, शनि अष्टम में शुक्र और गुरु के ऊपर से गोचर कर उन्हें प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा था।

इन सब योगों के फलस्वरूप मानसिक रूप से टूटी हुई रुचिका ने अंततः जहर खाकर आत्महत्या कर ली। रुचिका का भाग्य व आयु पक्ष तो कमजोर थे ही, साथ ही उसकी मां, भाई व पिता का भाग्य भी अत्यंत कमजोर था। भाई आशू की कुंडली में भाग्येश अष्टमस्थ और गुरु नीच राशिस्थ है तथा कुंडली के महत्वपूर्ण ग्रह कालसर्प योग से ग्रस्त हैं। पिता की कुंडली में संतान भाव कालसर्प योग से ग्रस्त है।


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पाप ग्रह केंद्र में है। प्रबल अकारक मंगल व सूर्य केंद्रस्थ हैं, जबकि कोई भी शुभ ग्रह केंद्र में नहीं है। उधर रुचिका की सहेली की कुंडली में गुरु तृतीयस्थ होकर भाग्य भाव को देख रहा है, शुभ ग्रह शुक्र व बुध केंद्र में हैं और शत्रु विजय के लिए मंगल तथा शनि छठे भाव में अति उत्तम स्थिति में हैं। छठे भाव पर मंगल व शनि का प्रभाव होने के फलस्वरूप आराधना ने अदम्य साहस व विलक्षण प्रतिभा दिखा कर मीडिया को भी समाचार प्रकाशित करने को प्रेरित किया और अन्याय के विरुद्ध लड़ाई में अपने पिता आनंद प्रकाश जी का पूरा-पूरा साथ दिया। आनंद प्रकाश गुप्ता जी की कुंडली में शुभ ग्रह गुरु केंद्र में है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दशम भाव में गुरु की स्थिति के फलस्वरूप जातक को पुण्य के कार्यों के कारण कीर्ति की प्राप्ति होती है। आनंद प्रकाश गुप्ता जी ने रुचिका के साथ हुए अन्याय के विरुद्ध जबरदस्त कानूनी लड़ाई लड़ कर पुण्य का कार्य किया। यही कारण है कि इन्हें जगह-जगह पर सम्मानित किया जा रहा है। अमानवीय और बर्बरतापूर्ण व्यवहार के प्रति इनका यह युद्ध निःसंदेह सराहनीय है, जिसमें उन्हें ईश्वर कृपा से अंततः विजय प्राप्त हुई। मुकदमे में इनकी जीत का फैसला आने के समय इनकी कुंडली में दशमस्थ गुरु पर गोचर के शुभ शनि व गजकेसरी योग से युक्त गुरु की दृष्टि पड़ रही थी।ज्यो

विश्लेषण हम पाराशरी योगों से रुचिका की कुंडली का पूर्ण विश्लेषण दशाओं सहित करेंगे जो भारतीय ज्योतिष को समझने में सहायक होगा और उसकी सत्यता तथा प्रासंगिकता को रेखांकित करेगा। गंडमूल का पहला चरण पिता के लिए कष्टकारक माना गया है, जो हुआ। रुचिका का जन्म 6-2-1975 की सायं 16-50 पर चंडीगढ़ में, कर्क लग्न, धनु राशि, मूल नक्षत्र के प्रथम चरण तथा केतु की दशा में श्री सुभाषचंद्र गिरहोत्रा के यहां हुआ जो एक बैंक अधिकारी थे।

कुंडली में कई ऐसे योग हैं, जो ज्योतिषीय नियमों के अनुसार उसके जीवन में अल्प आयु योग को लक्षित करते हैं। कुंडली में लग्नेश चंद्र, छठे भाव में मंगल के साथ, पाप कर्तरी योग में विराजमान है। 12वें भाव से शनि की भी पूर्ण दृष्टि लग्नेश पर है। लग्न पर शत्रु राशि शनि में बैठे क्रूर ग्रह सूर्य की पूर्ण दृष्टि भी उसे कमजोर कर रही है। राहु का लग्न को नवम दृष्टि से देखना आयु को अचानक कम कर देने का एक अन्य दुर्योग है।

लग्नेश चंद्र अत्यंत पीड़ित एवं निर्बल है। शनि और चंद्र का परस्पर दृष्टि योग विषयोग का भी निर्माण कर रहा है। पराशर के अनुसार छठे चंद्र वाले जातक के शत्रु कितने भी प्रबल क्यों न हों, एक न एक दिन मुंह की खाकर नतमस्तक होते हैं। हरियाणा का जो पूर्व पुलिस महानिदेशक शंभू प्रसाद राठौर, 21 दिसंबर 2009 को मिले फैसले पर इतरा रहा था, 10 दिन बाद ही उसकी हंसी गायब हो गई। हां, छठे चंद्र के कारण जातक को सरकार से कष्ट मिलता है। यह बात इस संदर्भ में अक्षरशः सही उतरती है।

उसे एक सरकारी अधिकारी से कष्ट मिला, सरकार में किसी ने सुनी नहीं, यहां तक कि सत्ता से जुड़े लोगों ने भी आखें मूंद लीं। यह भी कहा गया है कि यदि मंगल छठे भाव में हो, तो शत्रुओं का नाश करता है। रुचिका की कुंडली में चंद्र और मंगल की युति यहां विद्यमान होने के फलस्वरूप राठौर की सजा बढ़ेगी ही। इसके अलावा शनि मृत्यु स्थान का स्वामी होकर 12 वें भाव में है, जिसे छठे भाव से कमजोर चंद्र और मंगल परस्पर देख रहे हैं। यह योग भी आत्मघात पर विवश करता है।

इसी विष योग के कारण रुचिका ने परिस्थितियों से तंग आकर तनाव में आत्मघात किया। अष्टम शुक्र ने जातका को सुंदर और प्रसन्नचित्त तो बनाया, परंतु शुक्र, राहु के नक्षत्र में होने के कारण यह सुंदरता उस पर ज्यादती का कारण बन गई। 12 अगस्त 1990 को जब हरियाणा के तत्कालीन पुलिस प्रमुख शंभू प्रसाद राठौर ने उसका शारीरिक शोषण करने का प्रयास किया, उस समय राहु में शुक्र की दशा चल रही थी और कुछ दिन पहले ही शनि की ढैय्या भी आरंभ हो गई थी।

कुल मिला कर रुचिका का बुरा समय आरंभ हो गया था। इससे पूर्व 1988 में 11वें घर के स्वामी शुक्र ने, जो माता के चतुर्थ भाव से भी संबंधित है, अपनी दशा में माता से वियोग करवा दिया। राहु पंचम भाव में शिक्षा में अवरोध पैदा करता ही है। सो रुचिका को सैक्रेड हार्ट स्कूल से फीस न भरने के झूठे बहाने से बाहर निकाल दिया, जबकि तथ्य यह था कि राठौर की पुत्री भी उसी स्कूल में थी और अपनी इज्जत बचाने के लिए स्कूल पर दबाव डलवा कर रुचिका को निकलवाया गया था। यदि राहु पंचम हो और मंगल की राशि में हो, तो विपरीत लिंग के लोगों से परेशानी रहती है।


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रुचिका इस ज्योतिषीय नियम का अपवाद कैसे हो सकती थी? इस नियम से प्रभावित जातक-जातका को सरकार से कष्ट मिलता है। मंगल के कारण यहां पूरे परिवार को पुलिस से कष्ट मिला। पिता सुभाषचंद्र गिरहोत्रा, भाई आशू तथा रुचिका की सहपाठी आराधना, आराधना के पिता आनंद प्रकाश तथा उनकी पत्नी मधु प्रकाश पर डकैती जैसे केस चलाए गए। ऐसे जातक को राहु की दशा में अपमान सहना पड़ता है और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है। तृतीयेश बुध ने, बुध-आदित्य योग के कारण आराधना जैसी मित्र दी जिसने बड़ी हिम्मत से यह अभियान चलाया। कुंडली में छठे भाव का स्वामी गुरु 8वें में और 8वें का स्वामी शनि 12वें में स्थित है।

इस योग के फलस्वरूप रुचिका को ख्याति एवं मुआवजा तो मिला परंतु मरणोपरांत। इसके अलावा अवयोग के कारण जातका अपमानजनक स्थिति में रही और अल्पायु हुई। पामर योग पिता को संताप देता है। रुचिका की कुंडली में आंशिक कालसर्प योग विद्यमान है। इसके फलस्वरूप उसकी पढ़ाई छुड़वाई गई, माता का साथ 13 वर्ष की आयु में छूट गया, सरकार से विशेषकर पुलिस के आला अधिकारी से प्रताड़ना मिली और अन्याय का शिकार होना पड़ा। कालसर्प दोष की छाया गिरहोत्रा तथा आनंद प्रकाश गुप्ता दोनों के परिवारों पर है।

सबसे आश्चर्यजनक तथ्य रुचिका प्रकरण में ये रहे कि प्रस्तुत केस में संलग्न सभी सदस्यों की कुंडलियों में पूर्ण अथवा आंशिक काल सर्प योग विद्यमान है। रुचिका के पिता श्री सुभाषचंद्र गिरहोत्रा (जन्म 20-6-1943, 14.01 झंग पाकिस्तान) की कुंडली में भी पूर्ण काल सर्प योग है। उन्हें जीवन में पत्नी, पुत्री तथा नौकरी से वंचित होना पड़ा। 19 साल अदालतों के चक्कर लगाने पड़े और कचहरियों का सिलसिला अभी और चलेगा। सातवें भाव में मंगल के कारण उनका वैवाहिक जीवन अधूरा रहा।

रुचिका की सहेली आराधना, (जन्म 7-6-1976, 01.01, चंडीगढ़) इस केस की साक्ष्य है। उसने सारे केस को आगे बढ़ाया और आॅस्ट्रेलिया से लौट कर संपूर्ण मीडिया को जानकारी देती रही। उसकी कुंडली भी कालसर्प योग से ग्रस्त है और यही कारण है कि उसका बचपन संघर्षमय बीता और युवावस्था में कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े। रुचिका के भाई आशू गिरहोत्रा, (जन्म 20.6.1973, 11.20, शिमला), को इस केस में 17 साल की उम्र में ही पुलिस के थर्ड डिग्री टाॅर्चर का शिकार होना पड़ा।

पढ़ाई छूटी और उसे कार चोरी तथा डकैती जैसे मामलों में उलझाया गया। काल सर्प दोष के अतिरिक्त उस पर उस समय राहु की दशा और उसके बाद गुरु की दशा प्रभावी थी। गुरु रोग, ऋण तथा शत्रु के भाव में नीचस्थ हैं। आराधना के पिता श्री आनंद प्रकाश गुप्ता (जन्म- 23.4.1943, 19.01, लाडवा, हरियाणा) कृषि विपणन बोर्ड में मुख्य अभियंता थे, जिन्होंने राठौर के विरुद्ध कानूनी लड़ाई को 20 साल बाद अंजाम तक पहुंचाया, भी काल सर्प दोष के शिकार हैं। इन पर 13 मुकदमे चलाए गए और निलंबित कर पदच्युत कर दिया गया। किंतु उन्होंने हार नहीं मानी और अन्याय के विरुद्ध जंग जारी रखी।

1994 से वे 450 बार कोर्ट में एपियर हुए, 400 बार सी. बी. आई. ने उनका केस स्थगित किया, हाई कोर्ट के भी 40 स्थगनों के बाद राठौर को इस मामले में केवल 6 मास की सजा सुनाई गई, जिस निर्णय पर समूचा देश न्याय प्रक्रिया और कानून व्यवस्था के विरुद्ध एक अभियान छेड़ बैठा। आज आनंद प्रकाश गुप्ता को इस मामले में एक क्रुसेडर माना जा रहा है, जो देश की न्याय व्यवस्था को भविष्य में अवश्य बदलेगा। पूरे परिवार को उनके साहस के लिए सामाजिक संस्थाओं, मानव अधिकार संगठनों तथा मीडिया द्वारा सम्मानित किया जा रहा है।

यहां काल सर्प योग के इस तथ्य को भी बल मिलता है कि जातक के जीवन में काफी संघर्ष के बाद ही कामयाबी मिलती है। इस सारे केस में यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि कालसर्प योग, चाहे वह पूर्ण हो या आंशिक, जीवन में काफी परेशानियों के बाद सफलता भी देता है।



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