कुंडली से मिलते हैं भाग्यशाली होने के संकेत

कुंडली से मिलते हैं भाग्यशाली होने के संकेत  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 3918 | दिसम्बर 2006

इस संसार में कुछ लोग अपने जीवन में जल्दी तरक्की कर जाते हैं जबकि कुछ लोगों को इसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। कई बार इतना संघर्ष करने के बावजूद सफलता नहीं मिल पाती है। कुछ बहुत ही अमीर घर में पैदा होते हैं और कुछ लोग बहुत ही गरीब घर में। कुछ अमीर घर में पैदा होकर धीरे-धीरे गरीब हो जाते हैं और कुछ लोग गरीब घर में पैदा होकर धीरे-धीरे अमीर हो जाते हैं।

कुछ लोग बहुत अच्छा पढ़ लिखकर बेरोजगार रहते हैं और कुछ लोग थोड़ा पढ़े लिखे होने पर भी अच्छे काम काज में लग जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि बच्चे के जन्म के बाद घर में बहुत तरक्की हुई और सब कुछ अच्छा हो गया जबकि कुछ लोग कहते हैं कि जब से बच्चा पैदा हुआ मां बाप बीमार रहते हैं और घर में परेशानी आ गई है। कुछ लोग कहते हैं कि शादी के बाद पत्नी के आने से तरक्की और उन्नति होती गई जबकि कुछ लोग कहते हैं कि शादी के बाद दिन प्रतिदिन काम खराब हो रहा है। इस संसार में अधिकतर लोग चढ़ते हुए सूर्य को नमस्कार करते हैं।

अगर आप अच्छे पद पर हंै या आपको सब प्रकार की सुख सुविधा है तो आपके अनेक मित्र होंगे, अगर कुछ नहीं तो आपको कोई पूछने वाला नहीं होगा। ज्योतिष में नवम स्थान को भाग्य एवं धर्म स्थान माना जाता है। जन्मपत्री देखते समय सभी विषयों पर विस्तार पूर्वक विचार करना चाहिए। सबसे पहले लग्न को देखें, वह एक अंश से कम और 29 अंश से अधिक नहीं होना चाहिए। अगर लग्न कमजोर हो या संधि में हो तो कुंडली कमजोर होती है। लग्नेश के अस्त होने पर कुंडली में बहुत ही खराबी आ जाती है।


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ऐसे में ग्रह कितने भी अच्छे हों, कुछ न कुछ परेशानी बनी रहेगी। लग्नेश वक्री हो और अपने स्थान से छठे, आठवें या बारहवें, चला गया हो तो कंुडली कमजोर होगी। ज्योतिष में गुरु, शुक्र, बुध और पक्षबली चंद्रमा को शुभ माना गया है। अगर ये ग्रह केंद्र या त्रिकोण में हों, तो कुंडली में अरिष्ट भंग करते हैं अर्थात अच्छा योग बनाते हैं। जन्मकुंडली में त्रिकोण स्थान 1, 5, 9 और केंद्र स्थान 1, 4, 7, 10 को अच्छा माना गया है लग्न। (प्रथम स्थान) को केंद्र और त्रिकोण दोनों माना गया है।

जन्मकुंडली में आमदनी और धन के लिए दूसरा और ग्यारहवां स्थान दोनों अच्छे हंै, लेकिन तंदुरस्ती के लिए नहीं क्योंकि दूसरा स्थान मारक है और ग्यारहवां छठे से छठा है। जन्मकुंडली में 6, 8, 12 स्थानों को खराब माना जाता है। इसलिए अगर लग्नेश, भाग्येश, नवमेश, लाभेश और धनेश केंद्र या त्रिकोण में हों, तो कुंडली में अच्छा योग बन जाता है। अगर कोई अच्छा ग्रह नवम में हो, तो अच्छा फल देता है।

चंद्रमा पक्ष बली हो और उस पर किसी पापी ग्रह का प्रभाव नहीं हो, तो जन्मपत्री में बहुत ही शक्ति आ जाती है। कुंडली में चंद्रमा की स्थिति बहुत अच्छी होने से आधी कुंडली स्वतः ही शुभ है और खराब होने से अशुभ होती है। जन्मकुंडली देखते समय लग्न, चंद्र लग्न और सूर्य लग्न तीनों का विचार करना चाहिए। लग्न शरीर है, चंद्रमा मन और दिमाग है और सूर्य का संबंध आत्मा से है अर्थात सूर्य आत्मा है।

अगर तीनों की स्थिति अच्छी हो, तो जातक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल या मुख्यमंत्री अथवा आइ. ए. एस या आइ. पी. एस. अधिकारी हो सकता है। और सुख सुविधा की हर चीज प्राप्त हो सकती है। जन्मपत्री में लग्न, चंद्र लग्न और सूर्य लग्न के अनुरूप संपूर्ण कंुडली अपना फल करती है, इन तीनों को कुंडली में केंद्र बिंदु माना जाता है।

इसलिए अगर सूर्य लग्न के दोनों तरफ शुभ ग्रह आ जाते हैं या सूर्य स छठे और आठवें घरों में शुभ ग्रह स्थित होते हैं, तो सूर्य लग्न के दोनों तरफ शुभ मध्यत्व पड़ने के कारण सूर्य लग्न बलवान होता है। यही स्थिति यदि लग्न और चंद्र के दोनों तरफ हो, तो वे भी बली होते हैं। लेकिन चंद्रमा को देखते समय उसके पक्ष बल पर ध्यान देना जरूरी है। अगर चंद्रमा पक्ष में दुर्बल हो, तो उसकी शक्ति बहुत कम हो जाती है। इसलिए चंद्र लग्न के दोनों तरफ सूर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि जब सूर्य चंद्रमा के नजदीक आ जाता है तब चंद्रमा पक्ष में दुर्बल हो जाता है।


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सूर्य की शनि, राहु और केतु के साथ युति होने पर या इनकी दृष्टि में होने पर सूर्य अशुभ हो जाता है और बड़ी सीमा तक अपना अच्छा फल नहीं दे पाता। उसी तरह चंद्रमा शनि, राहु और केतु के साथ या इनकी दृष्टि में होने पर बहुत ही कमजोर हो जाता है और धन का नुकसान करता है।

लग्नेश जब पापी ग्रहों की युति या दृष्टि में आ जाता है, तो जातक बहुत ही कम पैसे कमा पाता है। उपाय: लग्नेश और भाग्येश का रत्न धारण करने से हर प्रकार की परेशानी से छुटकारा मिलता है और परिणाम 35 प्रतिशत अच्छा मिलता है।



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