अष्टम भावस्थ शनि-II संतान

अष्टम भावस्थ शनि-II संतान  

एम. के रस्तोगी
व्यूस : 6231 | अकतूबर 2005

पिछले शोध पत्र में शनि के अष्टम भावस्थ होने को रहस्यमय कहा गया था। अष्टमस्थ शनि की पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण इसका शुभ-अशुभ प्रभाव शिक्षा, संतान आदि पर होना चाहिए। पंचम भाव को पूर्व पुण्य भाव भी कहा जाता है। पूर्व जन्म के कर्मों का संतान तथा उससे प्राप्त होने वाले सुखों से सीधा संबंध है। पंचम भाव कुंडली में संतान का कारक है और अष्टम भाव पंचम से चतुर्थ भाव है, अतः संतान और उसके सख-दुख का अष्टमस्थ शनि से जुड़ना स्वाभाविक है।

नवम भाव पंचम से पंचम है। परंतु अष्टम भाव से द्वितीय मारक स्थान है। अष्टमस्थ शनि की दृष्टि दशम भाव पर है जो पंचम भाव का षष्ठ भाव है। अष्टमस्थ शनि की दृष्टि द्वितीय भाव पर है जो पंचम भाव का दशम भाव या कर्म स्थान है। इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अष्टमस्थ शनि का संतान के जीवन से घना संबंध होना चाहिए। इस दृष्टि से कुछ कुंडलियों का अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में संतान का होना, न होना, संतान के सुख-दुःख तथा संतान से प्राप्त होने वाले सुख-दुख के विषय में ज्योतिषीय विवेचना की गई है। धनवान अथवा निर्धन जीवन को सुखमय बनाने के लिए अनेक प्रकार के संग्रह करता रहता है।

अपने वंश को आगे चलाने के लिए विवाह करता है, किंतु जब तक संतान हो नहीं जाती तब तक उसे वास्तविक सुख नहीं मिलता। संतान सुख का मनुष्य के पूर्व जन्म के कार्मेां से घनिष्ठ नाता है। संतान के लिए जयोतिष में मुख्य रूप से पंचम भाव, पंचम से पंचम नवम भाव, सप्तम भाव, पुत्र कारक बृहस्पति की स्थिति तथा जैमिनि दृष्टि से पुत्रकारक ग्रह, बीजस्फुट तथा क्षेत्रस्फुट आदि का अध्ययन कर निर्णय करते हैं। संतान के अययन में संतान का होना, न होना, गर्भपात होना, संतान के सुख-दुःख तथा संतान से सुख-दुख को देखा जा सकता है।

1. संतान जन्म जन्म तारीख: 14.12.57, जन्म समय: 15ः2ः37 घंटा, जन्म स्थान: दिल्ली जातक का लग्न मेष है जिस पर सप्तम भाव से बृहस्पति की दृष्टि है। इसका बीज स्फुट मीन राशि (सम राशि) पर है। अतः संतान की संभावना कम है। परंतु अष्टम भाव से मंगल और सूर्य से युत शनि की दृष्टि पंचम भाव पर है, बृहस्पति नवम भाव तथा मीन राशि का स्वामी होकर सप्तम भाव में शुक्र की तुला राशि में स्थित है और नवम भाव में बृहस्पति की राशि धनु में बुध स्थित है। यह सब संतति का संकेत देते हैं। जातक की प्रथम संतान, लड़के का जन्म 15.12.82 को हुआ। उस समय राहु/बृहस्पति की दशा चल रही थी और ये दोनों सप्तम भाव में स्थित हैं। गोचर में बृहस्पति भी सप्तम भाव पर थे जब बच्चा गर्भ में था।

शनि का गोचर भी सप्तम भाव पर था और नवम भाव पर उसकी दृष्टि थी। मंगल का गोचर गर्भावस्था के समय नवम भाव पर और जन्म के समय दशम भाव पर था जिसकी दृष्टि पंचम भाव पर थी। यह सब ग्रह स्थितियां लड़के के जन्म को संकेत दे रही है। जातक की दूसरी संतान कन्या का जन्म 6.2.90 को राहु/शुक्र दशा में हुआ। राहु सप्तम भाव में स्थित है और शुक्र दशम भाव में शनि की मकर (स्त्री) राशि में स्थित है जिस पर अष्टम भाव से शनि की दृष्टि है। अतः कन्या का जन्म हुआ। गोचर में बृहस्पति तृतीय भाव में चंद्र से युत होकर सप्तम तथा नवम भाव पर दृष्टि दे रहा था। शनि नवम भाव में बुध तथा शुक्र से युत थे। मंगल का गोचर भी जन्म समय पर नवम भाव पर था। जातक की तीसरी संतान कन्या का जन्म 7.3.1994 को राहु/चंद्र की दशा में हुआ। राहु सप्तम भावस्थ है और चंद्र ने बुध की राशि में पंचम भाव से षष्ट में प्रवेश ही किया है। बृहस्पति का गोचर सप्तम भाव पर तथा शनि का गोचर एकादश भाव पर कुंभ राशि में था और शनि की पंचम भाव पर, लग्न पर तथा अष्टम भाव पर दृष्टि थी।


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यह स्थिति कन्या के जन्म का संकेत देती है। जातक की तीनों संतानें राहु की महादशा में हुईं जो सप्तम भाव में बृहस्पति से युत होकर स्थित है और बहु संतति योग बना रहा है। जन्म तारीख: 23.3.1940, जन्म समय: 18.29 घंटा, जन्म स्थान: हाथरस जातक कन्या लग्न में जन्मा है जिसपर सप्तम भाव से सूर्य, बृहस्पति तथा केतु की दृष्टि है। लग्न में चंद्र और राहु स्थित हैं। राहु तथा बृहस्पति की स्थिति बहु संतति का योग बना रही है यद्यपि बीजस्फुट मीन में (सम) है। लग्नेश बुध वक्री होकर षष्ठ भाव में है जिसे पंचम भाव में माना जा सकता है। बृहस्पति सप्तम भाव में है और शुक्र शनि से युत होकर अष्टम भाव में मंगल की मेष राशि में है।

जातक की प्रथम संतान पंुत्री का जन्म 6.7.1966 को राहु/बुध की दशा में हुआ। राहु लग्न में चंद्र के साथ कन्या राशि में है और बृहस्पति से दृष्ट है। बुध वक्री है, शनि की राशि में है। जन्म के समय बृहस्पति तथा मंगल मिथुन राशि में गोचर कर बुध पर दृष्टि डाल रहे थे और मंगल की दृष्टि पंचम भाव पर थी। जनवरी 1966 में बृहस्पति शुक्र की वृष राशि में था और पंचम भाव पर दृष्टि डाल रहा था। शनि मीन राशि सप्तम भाव पर गोचर कर लग्न पर दृष्टि डाल रहा था जहां राहु बैठा है। सारे संबंधित ग्रह अथवा राश्यिां कन्या जन्म की ओर इशारा करती हैं। जातक के प्रथम पुत्र का जन्म 1.8.1975 को राहु/चंद्र की दशा में हुआ। राहु और चंद्र लग्न में हैं जिन पर बृहस्पति की सप्तम भाव से दृष्टि है।

गोचर में बृहस्पति अष्टम भाव, मेष राशि पर, शुक्र और शनि पर चंद्र, मंगल से युत होकर दृष्टि दे रहे थे। बृहस्पति की दृष्टि द्वादश भाव में स्थित नवमेश शुक्र पर भी थी। शनि का गोचर एकादश भाव पर चंद्र की राशि कर्क पर, अष्टम भाव पर चंद्र पर तथा पंचम भाव (स्व गृह) पर था। मंगल का गोचर अष्टम भाव पर था जहां से उसकी दृष्टि पंचमेश शनि तथा लग्नेश बुध पर थी। जातक के दूसरे पुत्र का जन्म 26.10.1977 को बृहस्पति/बृहस्पति दशा में हुआ। बृहस्पति सप्तमेश है, सप्तम भाव में है और लग्न पर दृष्टि डाल रहा है। गोचर में बृहस्पति वक्री होकर दशम भाव में था और लग्नेश बुध को देख रहा था। यदि वक्रत्व का ध्यान रखें तो बृहस्पति नवम भाव से प्रभावी था और लग्न तथा पंचम भाव पर दृष्टि डाल रहा था। वैसे मार्च 1977 से पूर्व बृहस्पति नवम भाव में ही था और लग्न तथा पंचम भाव को आशीर्वाद दे रहा था।

शनि सिंह राशि पर गोचर कर रहा था जहां से वे लग्नेश बुध व नवम भाव को प्रभावित कर रहे थे। मंगल एकादश भाव पर गोचर कर पंचम भाव पर दृष्टि दे रहा था। शुक्र का गोचर राहु के साथ लग्न पर था। जन्म तारीख: 12.8.47, जन्म समय: 17.00 घंटा जन्म स्थान: दिल्ली जातक धनु लग्न में जन्मा है, जिस पर सप्तम भाव से चंद्र और मंगल की दृष्टि है। मंगल पंचमेश है, चंद्र अष्टमेश है। लग्नेश बृहस्पति एकादश भावों में बैठकर पंचम तथा सप्तम भाव पर दृष्टि डाल रहा है। शनि की दृष्टि भी पंचम भाव पर है। जातक का बीजस्फुट विषम राशि मिथुन में है। यह सब तथ्य बहु संतति को इंगित करते हैं। शुक्र सूर्य, बुध तथा शनि से युत होकर अष्टम भाव में है।

राहु शुक्र की राशि वृष में है। जातक की प्रथम संतान कन्या का जन्म 1.8.85 को शनि/शनि की दशा में हुआ। शनि अष्टम भाव में बुध और शुक्र से युत होकर चंद्र की कर्क राशि में है। शनि की दृष्टि पंचम भाव पर है और पंचमेश मंगल सप्तम भाव में बुध की राशि में है। ग्रहों की यह स्थिति कन्या जन्म का संकेत दे रही है। गोचर में बृहस्पति स्वगृही तथा वक्री होकर लग्न पर गोचर कर सप्तम, पंचम तथा नवम भाव पर दृष्टि डाल रहा था। शनि एकादश भाव पर शुक्र की तुला राशि पर गोचर कर पंचम भाव तथा लग्न को प्रभावित कर रहा था। शुक्र सप्तम भाव में मिथुन राशि पर था। जन्म से पहले जनवरी 85 से मंगल का चार मेष (पंचम भाव), वृष (नवम भाव पर दृष्टि), मिथुन (सप्तम भाव) पर था। जातक की दूसरी कन्या का जन्म 23.12.89 को हुआ। उस समय शनि/बुध की दशा चल रही थी।

बुध अष्टम भाव में कर्क राशि में शनि तथा शुक्र के साथ है यह स्थिति के जन्म का संकेत दे रही है। कन्या गोचर में शनि तथा बुध का गोचर लग्न पर था तथा दोनों सप्तम भाव को प्रभावित कर रहा था जहां बृहस्पति गोचर में स्थित था। मंगल द्वादश में शुक्र के साथ स्थित होकर सप्तम भाव को प्रभावित कर रहे थे। जातक की तीसरी कन्या का जन्म शनि/केतु की दशा में 1.9.91 को हुआ। केतु द्वादश भाव में स्थित है। इसके वक्रत्व के कारण इसकी दृष्टि पंचम तथा सप्तम भावों पर पड़ रही है। शनि का गोचर द्वितीय भाव (कुटुंब) पर था जहां से एकादश भाव (वृद्धि), शुक्र की तुला राशि पर थी। केतु मिथुन राशि पर सप्तम भाव पर गोचर कर रहा था, सप्तमेश बुध शुक्र के साथ कर्क राशि में था। कन्या राशि से मंगल का गोचर पंचम भाव पर दृष्टि डाल रहा था।


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जातक की चतुर्थ संतान पुत्र का जन्म 27.8.93 को शनि/शुक्र की दशा में हुआ। शुक्र अष्टम भाव से द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा है। बृहस्पति तुला (स्वामी शुक्र) राशि में स्थित होकर पंचम तथा सप्तम भाव पर दृष्टि डाल रहा है। गोचर में स्वगृही वक्री शनि पंचम तथा नवम भावों पर दृष्टि डाल रहा था। नवम भाव पर सूर्य का सिंह राशि पर गोचर था। मंगल तथा बृहस्पति का गोचर दशम भाव पर था जहां से मंगल की दृष्टि पंचम भाव (मेष राशि) पर थी। शुक्र का गोचर अष्टम भाव पर था जहां से उसकी दृष्टि द्वितीय भाव पर थी। जन्म तारीख: 30.1.1882, जन्म समय: 20.45 घंटा, जन्म स्थान: न्यूयार्क जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ, जिसपर दशम भाव से अष्टमेश मंगल की दृष्टि है। अष्टम भाव में शनि बृहस्पति से युत होकर दशम, द्वितीय तथा पंचम भावों पर दृष्टि डाल रहा है। मंगल की दृष्टि पंचम भाव पर भी है।

पंचम भाव में शुक्र सूर्य की युति है, शुक्र नवमेश है। बृहस्पति सप्तमेश है। ये सारे तथ्य कई संतानों का संकेत हैं। जातक के पांच संतानें शनि की महादशा (3.2.66-2.2.25) में हुईं। शनि बृहस्पति के साथ अष्टम भाव में है, नीच का है और पंचमेश है। जन्म तारीख: 23.3.1940, जन्म समय: 18.29 घंटा, जन्म स्थान: हाथरस जातक का लग्न कन्या है, जिस पर सूर्य, बृहस्पति तथा केतु की सप्तम भाव, मीन राशि से दृष्टि है। लग्न मेें चंद्र तथा राहु स्थित हैं। लग्नेश बुध वक्री होकर षष्ठ भाव में कुंभ राशि में है।

इसके वक्री होने के कारण पंचम भाव पर प्रभाव ले सकते हैं। बृहस्पति सप्तम भाव में तथा मंगल नवम भाव में है। शुक्र शनि के साथ अष्टम भाव में है। ग्रह स्थिति संतान उत्पत्ति के अनुकूल है। जातक की प्रथम संतान पुत्री का जन्म 6.7.66 को राहु/शनि की दशा में हुआ। शनि की दृष्टि पंचम भाव तथा अपनी राशि और द्वितीय भाव (कुटुंब) पर है। स्वयं शनि अष्टम भाव में शुक्र के साथ नीचा में है। राहु लग्न में चंद्र के साथ कन्या राशि में है यह स्थिति कन्या के जन्म का संकेत देती है।

गोचर में राहु शुक्र के साथ नवम भाव में था और पंचम भाव पर दृष्टि डाल रहा था जहां गोचर का चंद्र स्थित था। शनि गोचर में सप्तम भाव पर बृहस्पति की राशि में था और नवम भाव तथा लग्न पर दृष्टि दे रहा था। मंगल दशम भाव में बृहस्पति से युत होकर गोचर कर पंचम भाव पर दृष्टि डाल रहा था। बुध एकादश भाव पर गोचर कर पंचम भाव को देख रहा था। जातक के पहले पुत्र का जन्म 1.8.75 को राहु/चंद्र की दशा में हुआ। चंद्र और राहु दोनों लग्न में स्थित हैं तथा सप्तम भाव से मीन राशि से सूर्य से युत बृहस्पति द्वारा दृष्ट हैं। चंद्र एकादशेश है और लग्न में है। राहु की लग्न से पंचम तथा नवम भाव पर दृष्टि है। गोचर में राहु तृतीय भाव पर था और नवम भाव को देख रहा था।

चंद्रमा ने वृष राशि नवम भाव में प्रवेश किया था। शनि का गोचर कर्क राशि पर, एकादश भाव पर था जहां से वह लग्न, पंचम भाव तथा एकादशेश चंद्र को प्रभावित कर रहा था। बृहस्पति वक्री होकर अष्टम भाव में था जिसेे सप्तम भाव में माना जा सकता है। उसके साथ मंगल भी था। वक्री बृहस्पति की गोचरस्थ दृष्टियां एकादश भाव पर, लग्न पर थीं। मंगल एकादश द्वितीय तथा तृतीय भावों पर दृष्टि डाल रहा था। जातक के दूसरे पुत्र का जन्म 26.10.1977, बृहस्पति/बृहस्पति दशा में हुआ। बृहस्पति सप्तम भाव में बैठ कर एकादश भाव लग्न तथा एकादशेश चंद्र और तृतीय भाव पर दृष्टि डाल रहा है। गोचर में बृहस्पति मिथुन राशि में था और द्वितीय भाव, सूर्य और लग्नेश बुध तथा नवम भाव पर प्रभाव डाल रहे थे। मंगल कर्क राशि पर गोचर कर द्वितीय भाव, सूर्य, लग्नेश बुध तथा पंचम भाव को देख रहे थे।

जन्म तारीख: 18.9.52, जन्म समय: 18.4 घंटा, जन्म स्थान: पानीपत। जातक का जन्म लग्न कुंभ है जिस पर सप्तम भाव से चंद्र तथा बुध की दृष्टि है, दशम भाव से स्वगृही मंगल की दृष्टि है। लग्नेश शनि अष्टम भाव में सूर्य व शुक्र के साथ स्थित है। पंचम भाव पर मंगल तथा शनि की दृष्टि है। सप्तम, नवम तथा एकादश भावों पर बृहस्पति की दृष्टि है। संतान होने की स्थिति है। यदि बृहस्पति के वक्रत्व को ध्यान में रखकर देखें तो वह द्वितीय भाव में स्वगृही हो जाता है जिस पर शुक्र, सूर्य तथा शनि की दृष्टि हो जाती है। जातक की प्रथम संतान कन्या का जन्म 28.2.80 को मंगल/ सूर्य की दशा में हुआ। मंगल तथा सूर्य दोनों स्त्री राशि में है। वक्री बृहस्पति की दृष्टि शुक्र, शनि, मंगल तथा सूर्य पर है। गोचर में मंगल बृहस्पति से युत होकर सप्तम भाव में स्थित था और उसकी दृष्टि लग्न तथा एकादश भाव पर थी।

सूर्य का गोचर लग्न पर बुध के साथ था। गोचरीय बृहस्पति की दृष्टि एकादश भाव, लग्न तथा द्वितीय भाव पर थी। शनि का गोचर अष्टम भाव पर था और इसकी दृष्टि द्वितीय तथा पंचम भावों पर थीं। बुध का गोचर लग्न पर था जिस पर सप्तम भाव से बृहस्पति तथा मंगल की दृष्टि थी। जातक की दूसरी संतान कन्या का जन्म 4.7.81 को राहु/राहु की दशा में हुआ। राहु द्वादश भाव में स्थित है और वक्रत्व के कारण इसकी दृष्टि सप्तम भाव पर है जहां चंद्र और बुध स्थित हैं। राहु का गोचर कर्क राशि पर था जहां चंद्र तथा नवमेश शुक्र स्थित हैं। शनि तथा बृहस्पति गोचर में अष्टम भाव कन्या राशि में थे। यहां से बृहस्पति की दृष्टि द्वितीय भाव तथा गोचरीय मंगल पर थी।


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शनि की दृष्टि द्वितीय भाव तथा पंचम भाव में बुध पर थी। मंगल का गोचर वृष राशि पर था जहां से उसकी दृष्टि सप्तम तथा एकादश भावों पर थी। जन्म तारीख: 3.12.65, जन्म समय: 20.36 घंटा, जन्म स्थान: चंदन नगर (पश्चिम बंगाल) जातक का जन्म लग्न कर्क है। इस पर तथा लग्नेश पर पंचम भाव से केतु तथा षष्ठ भाव से वक्री मंगल की दृष्टि है । पंचम भाव में केतु तथा सूर्य दो क्रूर ग्रहों की वक्री बुध के साथ युति है और इस पर अष्टम भावस्थ शनि की भी दृष्टि है। बृहस्पति द्वादश भाव में है परंतु पंचमेश मंगल तथा शनि को देख रहा है। शुक्र सप्तम भाव में है और चंद्र नवम भाव में बृहस्पति की राशि मीन में है। अतः संतान उत्पत्ति में विलंब है परंतु उचित दशा में होने की संभावना है। केतु की दशा (1991) में विवाह हुआ, और शुक्र की दशा 1992 से शुरू हुई। शुक्र राहु से पीड़ित है

तथा पापकर्तरी योग में है परंतु बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी भी है। लग्न से पंचम भाव का स्वामी मंगल है परंतु वह वक्री होकर षष्ठ भाव में है। चंद्र से पंचम भाव का स्वामी स्वयं लग्नेश चंद्र है जो नवम भाव में बृहस्पति की राशि मीन में स्थित है। जातक ने 15.10.2001 को शुक्र/राहु की दशा में जुड़वां संतान पुत्र तथा पुत्री को जन्म दिया। राहु शुक्र की राशि एकादश भाव वृष में है और शुक्र पर दृष्टि डाल रहा है। शुक्र सप्तम भाव में है। यदि बृहस्पति के वक्रत्व को ध्यान में रखकर देखें तो उसका प्रभाव एकादश भाव से ले सकते हैं जहां से पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि है। सप्तम भाव तथा शुक्र पर भी दृष्टि है। वक्री मंगल को भी पंचम भाव पर प्रभावी माना जा सकता है। वक्री मंगल तथा वक्री बृहस्पति की एक दूसरे पर दृष्टि है। गोचर में शुक्र सूर्य और चंद्र की युति में तृतीय भाव कन्या राशि पर होकर नवम भााव को देख रहा था। रा

द्वादश भाव में बृहस्पति से युत होकर वक्री होने के कारण पंचम तथा सप्तम भावों को देख रहे थे। मंगल धनु राशि (स्वामी बृहस्पति) में गोचर कर राहु पर दृष्टि डाल रहा था। बृहस्पति का गोचर द्वादश भाव पर, तथा शनि का गोचर एकादश भाव पर था जहां से वह पंचम भाव तथा लग्न को देख रहा था। ग्रहों की स्थितियों व उनके वक्रत्व से जुड़वां संतान का संकेत मिलता है। उदाहरण और भी हैं, यदि शनि के विपरीत प्रभाव के उदाहरण न दिये जायें। किंतु अध्ययन अधूरा रहेगा इनमें दत्तक संतान, गर्भपात तथा निःसंतान जातकों की कुंडलियों का अध्ययन शामिल है। जन्म तारीख: 23.5.69, जन्म समय 15.20 घंटा, जन्म स्थान: मुंबई। जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ।

लग्न तथा सप्तम भाव राहु/केतु के अक्ष पर हैं। लग्न में बृहस्पति है परंतु केतु से पीड़ित है। सप्तम भाव में उच्च का शुक्र है बृहस्पति की मीन राशि में, परंतु राहु से पीड़ित है। लग्नेश बुध वक्री होकर नवम भाव में सूर्य से अस्त है। मंगल की नवम भाव पर तथा वक्रत्व के कारण पंचम भाव पर दृष्टि है। बृहस्पति की दृष्टि पंचम, सप्तम तथा नवम भावों पर है। नीच शनि की दृष्टि द्वितीय तथा पंचम भावों पर है। जातक का विवाह 2.1991 में केतु की महादशा में हुई। केतु की लपेट में पंचम भाव, सप्तम भाव, नवम भाव, नवमेश शुक्र, सप्तमेश व संतान कारक बृहस्पति हैं। इसके बाद शुक्र की महादशा आई, परंतु शुक्र भी राहु/केतु के अक्ष पर है। न तो ग्रह स्थिति और न ही दशा स्थिति संतान उत्पत्ति की दृष्टि से अनुकूल रही।

जातक ने 1997 में शुक्र/शुक्र/चंद्र की दशा में कन्या को गोद लिया। शुक्र उच्च का होकर सप्तम भाव में है। चंद्र एकादशेश होकर एकादश भाव में है और पंचम भाव को देख रहा है। महर्षि पराशर के अनुसार यदि पंचम भाव में मकर राशि हो और उस पर दुर्बल शनि की दृष्टि हो तो जातक संतान गोद लेता है। इस कुंडली में पंचम भाव में मकर राशि है जिसपर अष्टम भाव से नीच शनि की दृष्टि है। बृहस्पति केंद्राधिपति दोषयुक्त है।

3. गर्भपात और फिर संतान जन्म तारीख: 1.3.80, जन्म समय: 7.15 घंटा, जन्म स्थानः शिमला। जातक का लग्न कुंभ है जिस पर सप्तम भाव से चंद्र, वक्री मंगल, वक्री बृहस्पति तथा सिंह राशि से राहु की दृष्टि है। लग्न में सूर्य, वक्री बुध तथा केतु स्थित है। सात ग्रह लग्न तथा सप्तम भाव में हैं, जिनमें तीन वक्री हैं। लग्नेश शनि चैथा वक्री ग्रह है जो अष्टम भाव में स्थित है और द्वितीय भाव में स्थित उच्च शुक्र से सम सप्तक है। ग्रहों की स्थिति बहुत कुछ कह रही है। पंचम भाव शनि तथा केतु से और सप्तम भाव सूर्य और केतु से दृष्ट है। नवम भाव वक्री मंगल तथा वक्री शनि से प्रभावित है। पंचमेश बुध वक्री होकर लग्न में सूर्य से अस्त व केतु से पीड़ित है। सप्तमेश सूर्य शनि की राशि में लग्न में है, नवमेश शुक्र उच्च होकर द्वितीय भाव में है और अष्टम भाव से शनि से दृष्ट है।


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जातक का विवाह 29.1.03 को हुआ। सूर्य/चंद्र की दशा में गर्भपात 12.08.03 को हुआ। क्रूर सूर्य सप्तमेश होकर केतु के साथ युत है और पंचमेश बुध को दग्ध कर रहा है। मंगल तथा राहु से युत चंद्र सप्तम भाव में सिंह राशि में स्थित होकर सूर्य और लग्नेश बुध पर दृष्टि डाल रहा है। अष्टम भाव से शनि की दृष्टि पंचम भाव पर पंचमेश बुध की दूसरी राशि कन्या से है। अतः लग्न, पंचम भाव, पंचमेश राहु/केतु के अक्ष पर होकर सूर्य, शनि तथा मंगल के पृथककारी प्रभाव में हैं। गोचर में सूर्य षष्ठ भाव में तथा चंद्र द्वादश भाव में थे। मंगल लग्न पर तथा शनि पंचम भाव पर गोचर कर रहे थे। बृहस्पति का गोचर सप्तम भाव पर था परंतु वह शनि तथा मंगल से दृष्ट था। जातक ने 15.9.04 को सूर्य/राहु की दशा में एक पुत्र को जन्म दिया। सूर्य सप्तमेश होकर लग्न में है जिस पर सप्तम भाव से बृहस्पति की दृष्टि है। राहु बृहस्पति के साथ सप्तम भाव में है। चंद्र और मंगल भी सप्तम भाव में है।

यदि शनि का वक्रत्व देखा जाए तो वह भी सप्तम भाव में प्रभावी है। गोचर में मंगल तथा सूर्य सप्तम भाव में थे। पंचमेश बुध भी सप्तम भाव पर था। राहु तृतीय भाव पर गोचर कर सप्तम, नवम तथा एकादश भावों को प्रभावित कर रहा था। चंद्र तथा बृहस्पति गोचर में अष्टम भाव में स्थित होकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहे थे। गोचर के शनि की दृष्टि बृहस्पति, चंद्र तथा राहु पर थी। 4. निःसंतान उदाहरण जन्म तारीख: 9.5.65, जन्म समय: 11.00 घंटा, जन्म स्थान: लखनऊ। जातक का जन्म लग्न कर्क है, जिस पर वृश्चिक राशि स्थित केतु की दृष्टि है। केतु पंचम भाव को नष्ट कर रहा हैं। पंचम भाव पर शनि, राहु व मंगल की भी दृष्टि है। लग्नेश चंद्र द्वितीय भाव में सिंह राशि में मंगल से पीड़ित है और अष्टम भाव के शनि से भी दृष्ट है।

पंचमेश मंगल योगकारक होते हुए भी निष्क्रिय है। क्योंकि अष्टम भाव से स्वराशि शनि से दृष्ट है। सप्तम भाव पर बृहस्पति व राहु की दृष्टि है। सप्तमेश शनि अष्टम भाव में है। नवम भाव पर केतु तथा मंगल की दृष्टि है और यह पापकर्तरी योग में है। यहां द्वादशेश बुध स्थित है। नवमेश बृहस्पति राहु से पीड़ित होकर एकादश भाव में है। बृहस्पति षष्ठेश भी है। अतः ग्रह स्थिति जातक के लिए संतान जन्म के अनुकूल नहीं है। उसका क्षेत्र स्फुट विषम राशि कुंभ में है। उसका विवाह 1988 में हुआ था। जन्म तारीख: 20.12.68, जन्म समय: 7.30 घंटा, जन्म स्थान: कांगड़ा जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ। लग्न पर शनि की राशि कुंभ में सप्तम भावस्थ सूर्य की दृष्टि है और सूर्य ही लगनेश भी है। लग्न में पंचमेश तथा अष्टमेश बृहस्पति वक्री होकर स्थित है। केतु अपने वक्रत्व के कारण लग्न, बृहस्पति, पंचमेश, पंचम भाव, सप्तम भाव तथा नवम भाव को प्रभावित कर रहा है।

सप्तमेश शनि अष्टम भाव में मंगल तथा राहु के साथ स्थित है। नवमेश मंगल नवम भाव से द्वादश अष्टम भाव में शनि तथा राहु के साथ बैठा है। शनि षष्ठेश तथा सप्तमेश होकर अष्टम भाव में मंगल तथा राहु के साथ स्थित होकर द्वितीय तथा पंचम भावों पर दृष्टि डाल रहा है। जातक का क्षेत्र स्फुट कुंभ राशि में है जो विषम राशि है। उसका विवाह 30.4.93 को बुध/केतु की दशा में हुआ। बुध वक्री होकर षष्ठ भाव में है। इसके बाद बुध/शुक्र की दशा रही। शुक्र भी षष्ट भाव में केतु से पीड़ित है। फिर बुध/सूर्य की दशा आई। सूर्य लग्नेश होकर सप्तम भाव में शत्रु शनि की राशि में है। बुध/चंद्र की दशा में चंद्र अष्टम भाव के राहु, जो मंगल तथा शनि से युत है। से पीड़ित है।


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बुध/मंगल की दशा का मंगल अष्टम भाव में शनि तथा राहु से युत होकर द्वितीय तथा तृतीय भावों को देख रहा है। बुध/राहु की दशा का राहु अष्टम भाव में है। वर्तमान में बुध/शनि की दशा है और शनि षष्ठेश होकर अष्टम भाव में है। अतः स्थितियां संतान की आशा को धूमिल करती नजर आ रही हैं। जन्म तारीख: 24.10.70, जन्म समय 5.30 घंटा, स्थान: कानपुर जातक का कन्या लग्न में हुआ है। लग्न पर वक्री राहु तथा वक्री शनि का प्रभाव है। लग्न पापकर्तरी योग में है तथा उसमें मंगल बैठा है। लग्नेश बुध नीच सूर्य से अस्त होकर द्वितीय भाव में है और नीच शनि से दृष्ट है। लग्न तथा सप्तम भाव राहु और केतु के प्रभाव में हैं। पंचम भाव पर पंचमेश नीच शनि की अष्टम भाव से दृष्टि है। सप्तम भाव पर वक्री राहु, और केतु का प्रभाव है।

सप्तमेश बृहस्पति द्वितीय भाव में सूर्य से पीड़ित है, शत्रु शुक्र की राशि में है और अष्टम भव से षष्ठेश नीच शनि द्वारा दृष्ट है। बृहस्पति पर राहु की भी दृष्टि है। नवम भाव पर वक्री राहु का प्रभाव है। वक्री शनि का भी प्रभाव माना जा सकता है। शनि वक्री है और षष्ठेश होकर अष्टम भाव में नीच राशि में, जिसका स्वामी मंगल है, बैठा है। उस पर लग्न से मंगल की दृष्टि है। शनि पंचमेश भी है। अष्टमेश मंगल की दृष्टि पंचम भाव पर है। इस जातक का लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, सप्तम भाव, नवम भाव, पंचमेश, सप्तमेश, नवमेश सब पीड़ित हैं। पंचम भाव पृथकतावादी ग्रहों शनि, सूर्य, राहु तथा मंगल के प्रभाव में है। जातक का विवाह 1996 में शुक्र/शनि की दशा में हुआ। शनि के बाद बुध, केतु की अंतर्दशाएं आईं। अतः दशाओं ने भी संतान उत्पत्ति में सहायता नहीं की और वह निःसंतान है। इस अध्ययन से निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:

1. शुभ शनि तथा बृहस्पति का पंचम, सप्तम भाव पर संतान देते हैं।

2. राहु तथा बृहस्पति का शुभ प्रभाव लग्न तथा सप्तम भाव पर प्रभाव राहु की महादशा में अधिक संतान का द्योतक है।

3. द्वितीय भाव तथा एकादश भावों पर शुभ शनि व बृहस्पति का प्रभाव संतान देता है।

4. नीच तथा वक्री शनि संतान नहीं देता

5. केतु का लग्न तथा पंचम भाव पर प्रभाव संतान उत्पत्ति में बाधक होता है यह सब निष्कर्ष अष्टम भावस्थ शनि के उदाहरणों में हैं।


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