दिनमान एवं रात्रिमान में क्यों होता है परिवर्तन

दिनमान एवं रात्रिमान में क्यों होता है परिवर्तन  

व्यूस : 11460 | सितम्बर 2012
दिनमान एवं रात्रिमान में क्यों होता है परिवर्तन कल्पना प्रति वर्ष 21-22 सितंबर को दिन एवं रात लगभग बराबर होते हैं। ऐसा क्यों होता है? क्या यह पृथ्वी के सभी स्थानों पर होता है? कर्क रेखा एवं मकर रेखा की इसमें क्या भूमिका है? क्या यह वर्ष में एक ही बार होता है? आईये, जानंे इन सभी प्रश्नों का उत्तर सूर्य उप बिंदु (ैनइ ैवसंत च्वपदजद्ध पृथ्वी पर वह स्थान होता है जहां पर सूर्य उच्चतम बिंदु पर होता है। उस स्थान पर सूर्य की किरणें एकदम सीधी पड़ती हैं क्योंकि सूर्य उस स्थान से 900 का कोण बनाता है। यह बिंदु स्थिर नहीं होता है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण यह बिंदु पूर्व से पश्चिम की ओर 24 घंटे में पृथ्वी की सतह पर एक चक्कर लगा लेता है। पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण यह बिंदु उत्तर से दक्षिण की ओर पृथ्वी की सतह पर एक परिक्रमा एक सौर वर्ष में पूरी करता है। पृथ्वी की भूमध्य रेखा पृथ्वी को दो बराबर भागों में विभक्त करती है। ऊपर वाले भाग को उत्तरी गोलार्द्ध तथा भूमध्य रेखा से नीचे वाले भाग को दक्षिणी गोलार्द्ध कहा जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा जो कि भूमध्य रेखा से 230 28’ का कोण बनाती है वह अंतिम सीमा है जहां तक सूर्य बिंदु पहुंचता है अर्थात् जहां तक सूर्य की सीधी किरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं। इसके आगे वाले स्थानों पर सूर्य बिंदु नहीं पहुंचता है तथा वहां पर हमेशा ठंड रहती है क्योंकि वहां पर सूर्य की किरणें सदैव तिरछी पड़ती है। इसी प्रकार दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा है जो कि भूमध्य रेखा से 23028’ का कोण बनाती है तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इस बिंदु से आगे सूर्य बिंदु नहीं पहुंचता है। पृथ्वी का अक्ष पश्चिम की ओर 23028’ झुका होने के कारण सूर्य बिंदु कर्क एवं मकर रेखा से आगे नहीं पहुंचता है। अतः सूर्य बिंदु कर्क रेखा से मकर रेखा के मध्य ही पृथ्वी की सतह पर उत्तर से दक्षिण की ओर एक वर्ष में एक परिक्रमा करता है तथा सर्दी, गर्मी, शिशिर, बसंत, शरद आदि ऋतु केवल कर्क रेखा से मकर रेखा के मध्य आने वाले स्थानों पर ही बनती है। इनके आगे सूर्य की तिरछी किरणें ही पहुंच पाती है अतः वहां पर सदैव ठंड का मौसम ही रहता है। जब सूर्य बिंदु कर्क रेखा पर होता है तब सूर्य कर्क राशि में होता है। इसी कारण इसे कर्क रेखा नाम दिया गया है। जब सूर्य मकर राशि में होता है तब यह बिंदु मकर रेखा पर होता है अतः इस स्थान को मकर रेखा का नाम दिया गया है। भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सदैव सीधी पड़ती है अतः वहां पर सदैव गरम ही रहता है। जब सूर्य बिंदु कर्क रेखा पर होता है तो उत्तरी गोलार्द्ध में यह बिंदु भूमध्य रेखा से सर्वाधिक उंचाई पर होता है। इस समय सूर्य बिंदु भूमध्य रेखा से 22028’ का कोण बनाता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा से भूमध्य रेखा के मध्य आने वाले लगभग सभी स्थानों पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ती है अतः उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु का आरंभ हो जाता है। यह बिंदु कर्क रेखा पर 21-22 जून को होता है तथा इसे ग्रीष्म संपात कहते हैं। इस दिन उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य क्षितिज पर सबसे अधिक देर तक रहता है जिससे यह वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इस दिन सबसे छोटा दिन होता है। क्योंकि वहां पर सूर्योदय देर से होता है तथा सूर्यास्त जल्दी हो जाता है। जब सूर्य बिंदु मकर राशि में होता है तो इससे स्थिति बिल्कुल विपरीत होती है। इस समय सूर्य बिंदु दक्षिणी गोलार्द्ध में भूमध्य रेखा से सर्वाधिक ऊंचाई पर होता है। यह भूमध्य रेखा से 23028’ का कोण बनाता है। इस समय दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु का आरंभ हो जाता है तथा उत्तरी गोलार्द्ध में शिशिर ऋतु का आरंभ होता है। यह बिंदु मकर रेखा पर -है क्योंकि इसके पश्चात सूर्य की सीधी-किरणें उत्तरी गोलार्द्ध में कहीं भी नहीं पड़ती है और वहां श्शििर ऋतु का आरंभ हो जाता है। यह बिंदु मकर रेखा पर 21-22 दिसंबर को होता है तथा इसे शिशिर संपात कहते हैं क्योंकि उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें कहीं भी सीधी नहीं पड़ती है अतः इस दिन से वहां शिशिर ऋतु का आरंभ होता है। इसके पश्चात सूर्य बिंदु उत्तर की ओर प्रस्थान करने लगता है। उत्तरी गोलार्द्ध से दक्षिणी गोलार्द्ध में प्रवेश करते समय जब सूर्य बिंदु भूमध्य रेखा को पार करता है उस समय शरद संपात होता है। शरद संपात 21-22 सितंबर को होता है। इस दिन कर्क रेखा से मकर रेखा के मध्य पृथ्वी के सभी स्थानों पर दिनमान एवं रात्रिमान लगभग समान होते हैं अर्थात 12 घंटे का दिन एवं 12 घंटे की रात्रि होती है। इसका कारण यह है कि सूर्य का मध्य बिंदु पृथ्वी के मध्य बिंदु के बिल्कुल ऊपर होता है जिससे दोनों गोलार्द्ध को सूर्य का प्रकाश बराबर मिलता है। इसी दिन से उत्तरी गोलार्द्ध में शरद ऋतु का आरंभ होता है। इसी प्रकार जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में प्रवेश करते समय भूमध्य रेखा को पार करता है तब बसंत संपात होता है। इस समय भी कर्क रेखा से मकर रेखा के मध्य पृथ्वी के सभी स्थानों पर दिनमान एवं रात्रिमान बराबर होते हैं। बसंत संपात 21-22 मार्च को होता है तथा इस दिन से उत्तरी गोलार्द्ध में वसंतऋतु का आरंभ हो जाता है। इसे निम्न चित्र के माध्यम से भलीभांति समझा जा सकता है- वसंत संपात वह बिंदु है जब सूर्य उप बिंदु दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में प्रवेश करते समय भूमध्य रेखा पर होता है। मेष राशि का आरंभ या यूं कहें कि भचक्र का आरंभ यहीं से होता है। यह बिंदु स्थिर नहीं है तथा प्रतिवर्ष 50. 30’’ की गति से पश्चिम की ओर खिसकता है। पाश्चात्य ज्योतिष की समस्त गणनाएं यहीं से आरंभ होती है। चूंकि यह बिंदु चलायमान है अतः पाश्चात्य ज्योतिष में भचक्र का आरंभ बिंदु प्रत्येक वर्ष बदलता रहता है। जबकि भारतीय ज्योतिष निरयण ज्योतिष पर आधारित है। हमारी सभी गणनाएं इस बिंदु से आरंभ न होकर एक स्थिर बिंदु जो कि एक तारा है से आरंभ होती हंै। भारतीय ज्योतिष में सायन पद्धति के आधार पर ग्रहों की आकाश में वास्तविक स्थिति का पहले पता लगाया जाता है तथा उसके पश्चात उसमें अयनांश सुधार करके इस गणना के स्थिर बिंदु से आरंभ किया जाता है क्योंकि सायन पद्धति से ग्रहों की आकाश में वास्तविक स्थिति का पता लगाये बिना उनकी स्थिति निरयन में परिवर्तित करना असंभव है।



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