संवत् 2068 के उत्तरार्द्ध से महंगाई व भ्रष्टाचार पर काबू

संवत् 2068 के उत्तरार्द्ध से महंगाई व भ्रष्टाचार पर काबू  

सुनील जोशी जुन्नकर
व्यूस : 2800 | मार्च 2011

आज के समय में महंगाई और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गया है। सरकार के लाख कोशिश करने के बाद भी महंगाई और भ्रष्टाचार रूक नहीं रहे हैं। यह प्रश्न सभी के दिमाग में घर कर गया है कि क्या यह महंगाई और भ्रष्टाचार इसी तरीके से बढ़ते रहंेगे या इनके ऊपर कभी नियंत्रण भी लगेगा? इनके ऊपर ग्रह, नक्षत्र एवं राशियों का क्या प्रभाव है? आइए, पढ़ते हैं इस लेख में... सूर्य की सायन मेष व तुला संक्रांति विषुव या गोल संक्रांति कहलाती है। मेष संक्रांति उŸार गोलीय संक्रांति है।

सूर्य की उच्चराशि मेष मंे सूर्य के स्थित रहते भारत में वसंत ऋतु रहती है। ऋतुराज वसंत से भारत में नवसंवत्सर का प्रारंभ होता है। पुनश्च मेष राशि के सूर्य में वर्ष का प्रथम सौरमास होता है, जिसे सौर चैत्र भी कहते हैं। सौर पंचांगों में मेष संक्रांति से नवीन सौर वर्ष का प्रारंभ माना जाता है। शांति व समृद्धि लायेगा नवसंवत्सर: जिस दिन मेष संक्रांति हो, उस संक्रमण कालीन लग्न को वर्ष लग्न या जगत् लग्न कहते हैं।

विक्रम संवत् 2068 में निरयणमान से सूर्य का अश्विनी नक्षत्र व मेष राशि में प्रवेश 14 अप्रैल 2011 को दोपहर 12ः59 पर होगा। इस समय कर्क लग्न 11 अंश पर स्थित रहेगा। जगत् लग्न चर व जल राशि का होने के कारण मानसूनी वर्षा पर्याप्त व शुभफलदायक होगी तथा कृषि/ वन्योपज भी खूब होगी। जगत लग्न का स्वामी शुभ ग्रह चंद्रमा है और उस पर शुक्र की शुभ दृष्टि भी पड़ रही है तथा लग्न पर सौम्य ग्रह गुरु की पूर्ण दृष्टि है, जो लग्न को बल प्रदान कर रही है। इस कारण इस वर्ष संसार में शांति व समृद्धि रहेगी और विज्ञान व प्रोद्योगिकी का विकास होगा।

किंतु लग्नेश चंद्रमा पर राहु की क्रूर दृष्टि उपरोक्त फलों में कुछ न्यूनता ला सकती है। शनि की मंगल पर दृष्टि दक्षिण प्रांतों में प्राकृतिक प्रकोप व संकट को दर्शा रही है। भुखमरी के बाद महंगाई पर काबू: जगत् लग्न चक्र मंे क्रूर ग्रह शनि व सौम्य ग्रह गुरु एकदूसरे से सप्तम स्थान में मौजूद है। यह समसप्तक योग कृषि उत्पादों/खाद्यान्न पदार्थों का क्षय करता है। अतः इस वर्ष फसलें नष्ट होने के कारण पैदावार कम होगी या जमाखोर खाद्यान्न का भण्डारण करके बाजार में कृत्रिम अभाव पैदा करेंगे जिसके फलस्वरूप अन्न आदि दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतें अत्यधिक बढ़ जायंेगी।


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उŸार प्रदेश, मध्यप्रदेश और पूर्वी भारत के अनेक स्थानों पर आवश्यक उपभोक्ता वस्तुएं महंगी होने के कारण गरीब आदमी की क्रय शक्ति से परे होंगी, जिससे भूखे मरने की नौबत आयेगी। दिनांक 08.05.2011 से गुरु के मेष राशि में प्रवेश करते ही गुरु शनि का समसप्तक योग टूट जाएगा जिससे खाद्यान्न की आपूर्ति होगी और खाद्यान्न संकट कम हो जाएगा।

वर्ष के प्रधान मंत्री का पद गुरु के पास होने के कारण देश में हरित व दुग्ध क्रांति का सूत्रपात होगा। ‘गुरु वक्रे सुभिक्षंस्यात्।’’ इस संहिता सूत्र के अनुसार 30.08.2011 को गुरु के वक्री होने से खाद्यान्न की कमी दूर होगी, भारत सरकार महंगाई पर नियंत्रण प्राप्त कर लेगी और खाद्यान्न संकट दूर हो जाएगा। गुरु के मित्र राशि में वक्री होने से शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति होगी तथा भारत के ज्ञान, प्रतिभा व बौद्धिक क्षमता का गौरव विश्व में बढ़ेगा। धान्याधिपति शुक्र होने से चावल आदि धान्यों की वृद्धि होगी।

खरीफ फसलों की पैदावार अच्छी होगी। तुला के शनि कसेंगे भ्रष्टाचार पर नकेल: विगत संवत्सर की भांति नव संवत्सर में भी देश के मंत्रीगण, सांसद और प्रशासनिक अधिकारी घोटालों व रिश्वतखोरी आदि अनैतिक तरीकों से देश का धन हड़पकर विदेशी बैंकों में जमा करते रहेंगे। जब तक शनि कन्या राशि में है, तब तक भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों और व्यापारियों पर कानून कोई अंकुश नहीं लगा पाएगा। किंतु 15-11-2011 से दण्डाधिकारी शनि के तुला राशि में प्रवेश करने के बाद न्याय पालिका मजबूत हो जाएगी और उसका विधायिका व कार्यपालिका पर नियंत्रण होगा। माननीय न्यायाधीशों का जमीर बिकना बंद हो जाएगा तथा वे निष्पक्ष न्याय करने लगेंगे।

अनेक वर्षों से लटका लोकपाल विधेयक कानून का रूप ले लेगा क्योंकि कानून का कारक शनि अपनी उच्च राशि में संचार करेगा। फलतः लोकपाल (सुप्रीम कोर्ट का वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश/जज) लोक सेवकों (प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्रियों, सांसदों और अफसरों) के भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच कर सकेगा। परिणामतः कानून का डर (शनिदेव का भय) उत्पन्न होने के कारण भारत के लोक सेवक भ्रष्टाचार की डण्डी मारना कम कर देंगे या बंद कर देंग। तुला के श्ािन कश्मीर व उ.प्र. में सुशासन देंगे।


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विदेशी बैंकों में जमा देश का काला धन देश में वापस आने का मार्ग प्रशस्त होगा। राहु का वृश्चिक में क्रोध: 06-06-2011 से राहु वृश्चिक राशि में और केतु वृष राशि में गोचर करेगा। महर्षि पाराशर के अनुसार वृश्चिक राहु की नीच राशि है। मेदिनी संहिता के अनुसार ‘‘भौमगृहे सति राहौ राजा विरोध प्रजा भवनदाहौ अग्नि पीड़ा’’ अर्थात् जब मंगल की राशि में राहु का संचार होता है तब जनता शासक व शासकीय नीतियों का विरोध करती है तथा भूकंप विस्फोट या अग्नि आदि से प्रजा को कष्ट होता है।

12 जून से 25 जुलाई 2011 तक मंगल के वृष राशि में भ्रमण करने से राहु मंगल का समसप्तक योग बनेगा जो भूकंप, विस्फोट, या अग्नि संचार से जनधन की हानि करेगा। यह प्रकोप राहु की क्रोधाग्नि ही कही जाएगी। यह क्रोध की ज्वाला दक्षिणी प्रांतों व दक्षिणी देशों में सर्वाधिक दिखाई देगी। ग्रहण सरकार के लिए अशुभ: संवत् 2068 में दो खग्रास चंद्र ग्रहण पड़ेंगे, जो सर्वत्र भारत में दिखायी देंगे। पहला चंद्रग्रहण ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा (15.06.2011) बुधवार की रात्रि में 11ः53 से ज्येष्ठा नक्षत्र वृश्चिक राशि में प्रारंभ होगा तथा ग्रहण की समाप्ति उŸार रात्रि 03ः33 पर मूल नक्षत्र-धनु राशि में होगी।

वर्ष का द्वितीय चंद्र ग्रहण (10.12.2011) मार्गशीर्ष पूर्णिमा को सायं 06ः15 से रात्रि 09ः48 तक वृषभ राशि में पड़ेगा। पहला चंद्र ग्रहण भारत की जन्म कुंडली के सहयोग भाव (सप्तम) में होगा, जिससे भारत को विदेशी मित्र देशों का सहयोग नहीं मिलेगा। यह ग्रहण भारत की वृषभ लग्न के लिए अशुभ है। 15 जून का चंद्र ग्रहण यू.पी.ए. गठबंधन सरकार के कुटुम्ब भाव में हो रहा है, जो यू.पी.ए. गठबंधन में दरार पैदा कर सकता है।

कांग्रेस पार्टी व प्रधानमंत्री के व्यय भाव में चंद्रमा को लगा ग्रहण कांग्रेस सरकार को भी ग्रहण लगा सकता है। यह ग्रहण वृश्चिक धनु राशि के व्यक्तियों के लिए अशुभ है। इसके कुप्रभाव से पंजाब, बंगाल, बिहार, आसाम में किन्हीं स्थानों पर संक्रामक रोग फैल सकता है। इनमें से किसी राज्य सरकार का ‘राहु’ द्वारा छत्रभंग हो सकता है। 10 दिसंबर का चंद्र ग्रहण भारत की जन्म कुंडली के लग्न भाव में तथा यू.पी.ए. गठबंधन सरकार के अष्टम भाव में होने के कारण भारत की जनता तथा भारत सरकार के लिए अनिष्ट प्रद है।


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मुंबई, कश्मीर, उ.प्र., बंगाल के लिए यह ग्रहण अशुभ फलदायी है। श्रेष्ठ सुखदायक वर्षा: मेघेश बुध फलं: इस वर्ष मेघ-पर्जन्य नायक शुभ ग्रह बुध होने के कारण मानसूनी (बरसात) वर्षा सामान्य से अधिक होगी और देश के लिए सुखदायक रहेगी। वर्ष के राजा का पद और वर्षेश लग्न का स्वामी चंद्रमा होने के कारण इस वर्ष भारत में शुद्ध पेयजल की समस्या दूर हो जाएगी। रोहिणी निवास समुद्र में होने से समकालीन व सुखदायक मानसूनी वर्षा होगी। चतुर्मेघ नामक द्रोण होने के कारण सर्वत्र वर्षा होगी।

समय निवास माली के घर में होने से समयानुकूल अधिक वर्षा होगी। संवर्त नामक नवमेघ होने के कारण वर्षाकाल के प्रारंभ में वायुवेग, आंधी-तूफान के कारण जनता को पीड़ा होगी। सूर्य का आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश और वर्षाऋतु का प्रांरभ: 22 जून से सूर्य के आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश करते ही भारत में वर्षाऋतु का प्रारंभ हो जाएगा तथा केरल व मुंबई में 22 जून के आस-पास मानसून का आगाज हो जाएगा। 20 जुलाई को सूर्य के पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करते ही गज वर्षा योग निर्मित होगा जिसके फलस्वरूप हरियाली अमावस्या (30 जुलाई) तक भारत के अधिकांश शहरों में बरसात हो जाएगी।

भारत के अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से कम या अधिक वर्षा होगी। 23 अगस्त को वर्षाऋतु समाप्त हो जाएगी। आद्र्रा प्रवेश कुंडली के सप्तम भाव में गुरु होने के कारण पश्चिम मध्यप्रदेश और पश्चिम भारत में श्रेष्ठ व सुखदायक वर्षा का योग बन रहा है। शनि की कन्या से विदाई पूर्वी भारत व पूर्वी देशों के लिए सुखद: भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। पृथ्वी कूर्मचक्र के नक्षत्रानुसार भारत की राशि कन्या है।

कन्या राशि में 09.09.2009 से शनि संचार कर रहा है और 15.11.2011 तक यहीं रहेगा। नव सम्वत में शनि हस्त व चित्रा नक्षत्र में गोचर करेगा जिससे जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, श्रीलंका आदि पीड़ित रहेंगे। 15 नवंबर 2011 से शनि के तुला राशि में प्रवेश करते ही शनि पृथ्वी मण्डल की नैऋत्य दिशा में चला जाएगा। तुला का शनि अटलांटिक महासागर के पूर्वी, पश्चिमी किनारों पर बसे देशों को पीड़ित करेगा। नैऋत्य का शनि ईशान दिशा में वेध करता है

ईशान कोण में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, ईराक आदि देश आते हैं। जब तुला के शनि का पापग्रह से वेध होगा, तब इन देशों में उपद्रव होंगे। मेदिनी संहिता के अनुसार तुला राशि के शनि की पश्चिम दृष्टि होती है तथा शनि की दृष्टि विनाशक कही गई है। वक्री होने पर शनि अधिक क्रूर हो जाता है। संवत् 2068 के अंत में (07.02.2012 ई.) से शनि तुला राशि में वक्रगतिशील होंगे जो अमेरिका, मैक्सिको आदि पश्चिमी देशों में प्राकृतिक प्रकोप, युद्ध-हिंसा, रोग-महामारी आदि उपद्रवों से वहां की जनता को कष्ट पहुंचाएगा।

किंतु कन्या राशि से शनि की विदाई भारत के लिए सुखद रहेगी। तुला का शनि भारत के समस्त विघ्नों को शांत करके सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।


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