राहु की विभिन्न ग्रहों के साथ युति फल

राहु की विभिन्न ग्रहों के साथ युति फल  

रश्मि चैधरी
व्यूस : 213588 | जुलाई 2014

सूर्य + राहु

सूर्य और राहु दो ऐसे ग्रह हैं जो जो एक दूसरे से विपरीत होते हुये भी अनेक प्रकार से समान भी है। दोनों ही ग्रह विग्रहकारी क्रूर ग्रह, दार्शनिकता और राजनीति के कारक भी हैं।

कुंडली में इन दोनों ग्रहों की युति को सामान्यतः शुभ नहीं कहा जा सकता। सूर्य और राहु की युति ग्रहण योग का निर्माण करती है। कुंडली के जिस भाव में यह योग बनता है, उस भाव से संबंधित शुभ फलों में न्यूनता देता है। ऐसा जातक जिसकी कुंडली में सूर्य$राहु की युति हो वह सफल राजनेता भी होता है। मुख्यतया यह योग यदि नवम, दशम एवं एकादश भावों में हो तो राजनीति कारक भी होता है क्योंकि ये दोनों ग्रह राजनीति, प्रभुत्व एवं सत्ता के कारक ग्रह भी हैं। अतः जब कभी कुंडली में स्थित इन ग्रहों का संबंध गोचर में लाभ भाव अर्थात एकादश भाव में बनेगा तो राजनीति में सफलता देकर जातक का वर्चस्व स्थापित करेगा।

चंद्र + राहु

दो विपरीत ग्रह, एक दूसरे के शत्रु ग्रह किंतु अनेक प्रकार से समान भी हैं। दोनों ही धन तथा यात्रा के कारक ग्रह हैं। इन दोनों ग्रहों की युति यदि कुंडली के 3, 7 भावों में हो तो ऐसे जातक को अधिकाधिक यात्राएं करनी पड़ती हैं। नवम भाव में यही युति धार्मिक यात्रा का कारण भी बनती है। सप्तम भाव में व्यापार से संबंधित यात्राएं, लग्न में चंद्र$राहु की स्थिति स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होती है। दोनों ही ग्रह त्वचा के कारक भी हैं अतः लग्नस्थ चंद्र$राहु ग्रहण योग का निर्माण कर त्वचा रोग तथा मानसिक बेचैनी का कारण बनता है। इन पर यदि बुध का दूषित प्रभाव हो तो परिणाम और भी घातक होते हैं।


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चंद्रमा जल का कारक ग्रह है और राहु ‘शीशे’ का प्रतिनिधित्व करता है। परिणामतः उत्तम चंद्रमा वाले जातक का मन सदैव जल के समान निर्मल होता है। जब चंद्र + राहु पर गुरु की शुभ दृष्टि आ रही हो तो ऐसे जातक का जीवन के प्रति दृष्टिकोण सदैव शीशे की तरह पारदर्शी एवं निष्पक्ष होता है। एकादश भाव में यदि यह योग शुभ प्रभाव लेकर आ जाये तो अचानक धन लाभ भी देता है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी होकर चंद्रमा राहु के साथ द्वादश भाव में युति बनाये तो यह योग विदेश यात्रा का कारक भी होता है।

मंगल + राहु

मंगल और राहु दोनों एक दूसरे के शत्रु ग्रह- षड्यंत्र, झगड़े, विवाद, शत्रु एवं साहस, पराक्रम के भी कारक हैं। मंगल$राहु की युति कंुडली में अंगारक योग का निर्माण करती है। इस युति के फलस्वरूप जातक का व्यक्तित्व दुःसाहसी, अतिक्रोधी, कठोर, आवेगशील और षड्यंत्रकारी होता है।

लग्न में यही युति अति क्रोधी तथा अचानक दुर्घटना, द्वितीय भाव में भाइयों से मतभेद, तृतीय में पराक्रमी, चतुर्थ में माता एवं सुख के लिये अशुभ, पंचम में सफलता मंे कमी, क्षीण आयु, षष्ठ में शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता प्रदान करती है। पंचम भाव में मंगल$राहु सत्ता पक्ष से सफलता दिलाते हैं। सप्तम में जीवन साथी से मतभेद, अष्टम भाव में जीवनसाथी की आयु पर प्रश्नचिह्न लगाती है। नवम्, दशम तथा एकादश भावों में यह ग्रहयोग राजनीति में सफलता, वर्चस्व एवं प्रभुता संपन्न बनाता है।

द्वादश भाव में यदि मंगल कर्क राशि में होकर राहु के साथ युति बनाये तो ऐसे जातक का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहता है। मंगल नीच राशि में अगर द्वादश भाव में राहु के साथ होगा तो ऐसा जातक अत्यंत आक्रामक, षड्यंत्रकारी एवं हत्या करने की प्रवृत्ति वाला होगा।

बुध + राहु

बुध+राहु की युति ‘जड़त्व योग’ का निर्माण करती है। बुध ग्रह को ज्योतिषीय दृष्टि से बुद्धिमत्ता, तर्क, अभिव्यक्ति, भाषा ज्ञान, व्यापार इत्यादि का कारक माना जाता है। राहु-राजनीति, धोखा, छल-कपट, प्रपंच, फरेब, राजनीति, कलंक, विदेशी भाषा, विदेशी लोग तथा मानसिक रोगों का भी कारक है।

लग्न तथा षष्ठ भाव में दोनों की युति त्वचा रोग, मिर्गी अथवा लाइलाज बीमारी, जड़ बुद्धि, अस्थिरता (2, 11 में), चतुर्थ तथा पंचम में शिक्षा में विघ्न तथा धन भाव एवं लाभ भाव में अनावश्यक खर्च इत्यादि देते हैं। तृतीय भाव में संबंधियों से, सप्तम अष्टम भाव में जीवन साथी से विरोध, नवम भाव में यही युति नास्तिक बनाती है। दशम भाव में अपने निर्णयों के द्वारा ही व्यवसाय में हानि तथा द्वादश भाव में दान, यज्ञ, पूजा में अविश्वास तथा शैया सुख में कमी करती है। ‘जड़त्व योग’ जातक को चालाक, धूर्त, कपटी एवं धर्म के विरूद्ध आचरण करने वाला बनाता है। यदि इस युति पर गुरु का शुभ प्रभाव हो तो जातक अनेक भाषाओं का ज्ञाता अथवा चालाकी से अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाला होता है।


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गुरु + राहु

गुरु+राहु की युति चांडाल योग का निर्माण करती है। जिस जातक की कुंडली में दोनों ग्रहों की युति होती है, वह परंपरा विरोधी और आध्यात्मिकता में रूचि न रखने वाला होता है। ऐसी स्थिति में राहु गुरु के सात्विक और शुभ गुणों को कम कर देता है।

जिस जातक की कुंडली में लग्न में गुरु राहु की युति होती है वह नास्तिक, पाखंडी तथा धार्मिकता में रूचि न रखने वाला होता है। धन भाव में यह योग दरिद्रता का सूचक माना जाता है। किंतु यही युति यदि पंचम, नवम अथवा केंद्र भावों में हो तो ऐसा जातक ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता होता है। तृतीय, सप्तम में धार्मिक यात्राएं तथा दशम, एकादश भाव में राजनीति में सफलता मिलती है। ऐसी स्थिति में यदि राहु गुरु के नक्षत्र में भी हो तो ऐसा जातक सफल राजनेता हो सकता है। एकादश तथा द्वादश भावों में यदि यह युति है तो ऐसा जातक तंत्र साधना अथवा तांत्रिक कार्यों के द्वारा भी धनार्जन करता है।

शुक्र + राहु

राहु के साथ यदि शुक्र लग्न में है तो ‘क्रोध योग’ का निर्माण होता है। यह योग जातक को क्रोधी स्वभाव का स्वामी बनाकर आजीवन लड़ाई-झगड़े एवं विवाद का कारण बनता है, जिसके फलस्वरूप जातक को अपने कटु स्वभाव के कारण अपने जीवन में अनेकानेक नुकसान उठाने पड़ते हैं।

शुक्र और राहु एक दूसरे के परम मित्र ग्रह हैं। शुक्र प्रेम, विवाह, सौंदर्य, घुंघराले बाल एवं श्याम वर्ण इत्यादि का कारक ग्रह है।

राहु भी गुप्त संबंधों एवं प्रेम संबंधों का कारक है। व्यक्ति को श्याम वर्ण ही देता है। कुंडली में दोनों ग्रहों की युति जातक को विपरीत लिंग के प्रति स्वाभाविक आकर्षण प्रदान करती है। यदि शुक्र राहु की युति पति पत्नी दोनों की कुंडली में सप्तम भाव में है तो वैवाहिक जीवन में कष्ट एवं संबंध विच्छेद का कारण भी बनती है। ऐसे जातक के अन्यत्र संबंध अवश्य ही बनते हैं।

शनि + राहु

शनि के साथ राहु की युति को ज्योतिष में ‘नन्दी योग’ के नाम से जाना जाता है। यह युति जिस भाव में बनती है उस भाव से संबंधित कष्ट एवं जिस भाव पर दृष्टि डालती है उससे संबंधित शुभ फल प्रदान करती है। इस योग के फलस्वरूप जातक को सुख, वैभव एवं समृद्धि भी प्राप्त होती है।

शनि राहु की युति पर यदि मंगल का प्रभाव भी आ जाये तो ऐसा जातक साधारणतया क्रूर एवं आतंकवादी प्रवृत्ति का होता है।


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यह युति यदि लग्न में आ जाये तो ऐसा जातक हत्या या आत्महत्या का प्रयास भी कर सकता है। लग्न में शनि$राहु के फलस्वरूप क्षीण स्वास्थ्य, द्वितीय भाव में धनाभाव, तृतीय भाव में संबंधियों से विरोध, चतुर्थ में माता के लिये अशुभ, पंचम में सफलता में कमी, षष्ठ भाव में रोग, सप्तम में जीवन साथी से वैमनस्य, अष्टम में पैतृक संपत्ति प्राप्त करने में अड़चनंे, नवम में निर्बल भाग्य, दशम में व्यवसाय में परेशानी, एकादश में लाभ कम तथा द्वादश भाव में भी वैवाहिक सुख में कमी होती है।



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