शनि, राहु व गुरु का राशि परिवर्तन भारत-पाक युद्ध के संकेत

शनि, राहु व गुरु का राशि परिवर्तन भारत-पाक युद्ध के संकेत  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 4296 | नवेम्बर 2006

इस वर्ष अक्तूबर के उत्तरार्ध में तीन दीर्घकालिक ग्रहों शनि, राहु व गुरु का एक साथ राशि परिवर्तन होगा, जो भारत के लिए शुभ नहीं है। 8 नवंबर को राहु कुंभ राशि में, 27 अक्तूबर को गुरु वृश्चिक राशि में तथा 1 नवंबर, 2006 को शनि सिंह राशि में प्रवेश करेगा। शनि धीमी गति से चलने वाला और बुद्धिमान, विजयी, कठोर एवं तीक्ष्ण प्रकृति वाला है। शनि के अंदर निर्माण और विनाश करने वाले दोनों गुण विद्यमान है। धीमी गति वाला दूसरा ग्रह राहु है। ज्योतिष में इसे छाया ग्रह के रूप में मान्यता दी गई है। राहु शनि के समान तथा केतु मंगल के समान फल देने वाला होता है। इनका महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि पृथ्वी, चंद्रमा व सूर्य के इन बिंदुओं की सीध में आने तथा 50 के कोण का अंतर कम हो जाने पर ग्रहण जैसी महान प्राकृतिक एवं खगोलीय घटना घटती है।

धीमी गति का तीसरा ग्रह है गुरु। सभी ग्रह पिंडों में सबसे अधिक भारी और भीमकाय होने से इसे गुरु अर्थात गुरु के नाम से जाना जाता है। इसका विषुवतीय व्यास 9 करोड़ 87 लाख मील है और 8 मील प्रति सेकेंड की गति से यह सूर्य की परिक्रमा करने में 12 वर्ष लगाता है। एक राशि में यह लगभग 13 माह तक भ्रमण करता है। यह पूर्व में उदित और पश्चिम में अस्त होता है। इसका राशि परिवर्तन कुंभ जैसे महान पर्व की तिथियों को प्रभावित करता है। पुराणों में इसे सर्वाधिक बलशाली, अत्यंत शुभ और कोमल वृत्ति वाला ग्रह संपत्ति एवं ज्ञान का प्रदाता और मानवता का हितैषी है। इसे देवताओं के गुरु अर्थात देवगुरु के नाम से भी पुकारा जाता है। यह न्याय, धर्म एवं नीति का प्रतीक, वृहत्त उदर वाला, गौरवर्ण, स्थूल शरीर वाला, चतुर, सत्वगुण प्रधान, परमार्थी, ब्राह्मण जाति का और आकाश तत्व वाला द्विपद ग्रह है।

इन्हीं शनि, राहु व गुरु के सम्मिलित गोचर को ही पृथ्वी और उस पर रहने वाले प्राणियों की शुभ-अशुभ घटनाओं का कारक एवं दीर्घकालिक प्रभावों का हेतु माना जाता है। शनि साढे़साती में अशुभ-शुभ धटनाओं के रूप में, राहु ग्रहण एवं आकस्मिक उत्थान-पतन के रूप में तथा बृहस्पति ज्ञान-अज्ञान एवं धर्म-अधर्म के रूप में फल देते हैं। जहां तक पापी ग्रहों शनि और राहु का प्रश्न है, ये कुंडली में जिस भाव में बैठते हैं, उसकी वृद्धि करते हैं तथा जिस भाव पर दृष्टि डालते हैं, उसकी हानि करते हैं। शुभ ग्रह (गुरु) जिस भाव में बैठते हैं, उसकी हानि करते हैं तथा जिस भाव पर दृष्टि डालते हैं उसमें शुभता आ जाती है। ज्योतिष शास्त्रों में शनि को तीसरी, सातवीं व 10वीं दृष्टि प्राप्त है तथा राहु व गुरु को पांचवी, 7वीं व 9वीं दृष्टि प्राप्त है।

चैथा भाव सुख, माता व जनता का भाव है। पांचवां भाव प्रेम, दोस्ती, ज्ञान, विवेक एवं पड़ोसी का भाव है। दसवां भाव पिता, सरकार, राजा व व्यवसाय का भाव है। यहां भावों व दृष्टियों के माध्यम से विशेष घटनाओं की अलग-अलग वर्षों की कुंडलियों के आधार पर इन ग्रहों के वर्तमान में पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण प्रस्तुत है। जहां तक शनि के राशि परिवर्तन का प्रश्न है, वह 1 नवंबर 2006 से सिंह राशि में प्रवेश करेगा। 6 दिसंबर 2006 से इसकी वक्री गति आरंभ होगी। जिससे धीरे-धीरे 10 जनवरी 2007 को पुनः कर्क राशि में प्रवेश करेगा। इसी वक्री, मार्गी और सामान्य गति से चलते-चलते शनि 16 जुलाई 2007 को पुनः सिंह राशि में प्रवेश करेगा जहां 10 सितंबर 2009 तक रहेगा।

शनि की यह गति और गुरु-राहु का राशि परिवर्तन स्वतंत्र भारत की कुंडली में शुभ संकेत नहीं है। इन ग्रहों की यह स्थिति भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध के संकेत देती है। पुष्य नक्षत्र, नक्षत्र स्वामी शनि, कर्क राशि, वृष लग्न। दशा का भोग्यकाल 18 वर्ष 0 माह 01 दिन। वर्तमान में शुक्र की महादशा में बुध का अंतर लगभग जून, 2008 तक रहेगा। - स्वतंत्र भारत के निर्माण के समय शनि की साढे़साती चल रही थी। लग्न में राहु तथा राशि से बारहवां मंगल था। - लग्न से चैथा व राशि से तीसरा भाव पीड़ित है। भारत आजादी से पूर्व तथा आज तक मित्रों से सुखी नहीं रहा और इन 60 वर्षों के कालखंड में भी विकसित नहीं हुआ, मात्र विकासशील देशों में आ पाया है।

- 23 जुलाई, 2002 से शनि ने मिथुन राशि पर भ्रमण शुरू किया। उसी समय भारत पर साढे़साती का प्रभाव आरंभ हुआ। - तब से आज तक साढे़साती के प्रभाव से कई अश्ुाभ एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई। ज्यों-ज्यों अन्य पापी ग्रहों के योग होने लगे, भयंकर दिल-दहला देने वाली घटनाएं होती गईं। - भारतीय संसद, धार्मिक स्थलों, गुजरात और मुंबई में सार्वजनिक स्थानों पर बम धमाके, जम्मू-कश्मीर में आए दिन आतंकी हमले और प्राकृतिक आपदाएं इसके उदाहरण हैं।

- वैसे ज्योतिष के गूढ़ रहस्य बताते हैं कि ग्रह अपने परिवर्तनों से पूर्व ही फल देना आरंभ कर देते हैं। जैसे शनि-केतु सिंह राशि में अब प्रवेश करेंगे, लेकिन मुंबई की रेलों में सिलसिलेवार बम धमाकों और वर्षा ने ऐसा कहर ढाया कि हजारों लोग काल-कवलित हो गए एवं अरबों रुपयों का नुकसान हो गया। और तो और रेगिस्तान में आई बाढ़ के कारण गांवों का नामो-निशान ही नहीं रहा। - देश के महत्वपूर्ण आयुध ठिकानों में अग्निकांड हुआ। यह ग्रहों का प्रभाव ही था कि अमेरिका जैसे ताकतवर एवं विकसित देश को आतंकवाद ने हिला कर रख दिया। - सिंह व वृश्चिक राशियां अग्नि तत्व हैं। तुला व कुंभ वायु तत्व हैं। कर्क राशि जल तत्व है। शनि और राहु वायु तत्व तथा गुरु और केतु अग्नि तत्व हैं। - अग्नि तत्व की सिंह राशि में शनि (वायु तत्व) व केतु (अग्नि तत्व) तथा कुंभ (वायु तत्व) में राहु (वायु तत्व) भ्रमण करेंगे। गुरु (अग्नि तत्व) वृश्चिक राशि में भ्रमण करेगा।

- यहां सिंह, तुला, वृश्चिक तथा कुंभ राशियां ज्यादा प्रभावित होंगी। तुला व कुंभ राशियां शनि और केतु से पूर्ण दृष्ट हैं। वृश्चिक में गुरु व कुंभ में राहु का भ्रमण ठीक नहीं है। आजादी के बाद वर्ष 1948, 1962, 1975 और 1990 में शनि, राहु व गुरु के भ्रमण का सम्मिलित प्रभाव देखें तो पाएंगे कि हर 10-15 वर्षों के अंतराल में कोई न कोई महत्वपूर्ण घटना अवश्य घटी। जैसे विभाजन की त्रासदी और भारत गणराज्य की स्थापना, भारत चीन युद्ध, आपातकाल और राजीव गांधी की हत्या। वर्ष 2006 या उसके आसपास देखें तो इन ग्रहों के प्रभाव से कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं घटीं।

अब तक अमेरिका के टेªड-सेंटर पर हमला, सुनामी, केटरिना, भूकंप, अतिवृष्टि, टेªनों में सिलसिलेवार बम धमाके, प्रमोद महाजन की हत्या आदि हो चुके हैं। लेकिन इन ग्रहों का प्रभाव यहीं तक नहीं रहेगा? इनसे भी विकट स्थितियां पैदा होने वाली हैं। इसका छोटा सा उदाहरण भ्रूण हत्या एवं बेबी बम है। इन्हीं को आधार बनाएं तो निम्न घटनाएं भारत या विश्व में अन्यत्र घटित होंगी। - अब तक शनि तथा राहु जल राशि में थे, अतः वे अतिवृष्टि के कारण बने। अब अग्नि व वायु राशि में होंगे और इसका प्रभाव ‘‘ग्लोबल-वार्मिंग’’ के रूप में सामने आएगा। पृथ्वी का तापक्रम बढ़ेगा। - अमेरिका या उसके आसपास वायुयान विस्फोट ये जनहानि होगी, चाहे सुरक्षा कितनी ही बढ़ा ली जाए। - ऊर्जा व गैस के संबंध में विवाद बढ़ेंगें। अमेरिका सामरिक दृष्टि से और भी कई महत्वपूर्ण फैसलों पर अमल करेगा।

संभवतया ऊर्जा व गैस भंडारों पर अतिक्रमण करें। - पाकिस्तान की राशि कन्या है। साढे़साती का प्रभाव शुरू हो गया है। वह परमाणु हमला कर सकता है। - भारत व पाकिस्तान के मध्य युद्ध होगा। भारत को अन्य देशों का समर्थन मिलेगा। उसके प्रभाव में कमी नहीं आएगी। पाकिस्तान संपूर्ण विश्व की दृष्टि में गिर जाएगा। - भारत की जनता में असंतोष बढे़गा। आर्थिक रूप से भारत कमजोर होगा। - भारत में और भी आतंकी हमले होंगे। विशेषकर मुंबई में शेयर बाजार की सुरक्षा बढ़ानी चाहिए। किसी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति की हत्या हो सकती है। - प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अधिक समय तक पद पर नहीं रह पाएंगे। देश को युवा, सुंदर एवं ऊर्जावान प्रधानमंत्री मिलेगा। - केंद्र में सत्ता परिवर्तन नहीं होगा। राजस्थान व मध्यप्रदेश की सरकारें बदलेंगी।



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