क्यों?

क्यों?  

यशकरन शर्मा
व्यूस : 5192 | अकतूबर 2014

प्रश्न: अंतिम समय में गंगाजल और तुलसी दल क्यों? उत्तर: गंगाजल और तुलसीदल त्रिदोषघ्न महौषधि है। तुलसी में पारद व सुवर्ण तत्त्वों का समावेश है। गंगोदक में सर्वरोग कीटाणु-संहारिणी दिव्य शक्ति है। फ्रांस आदि देशों के विशिष्ट अस्पतालों में फिल्टर किया गंगोदक अनेक नामों से औषधियों की तरह प्रयोग में लाया जाता है। तुलसी व गंगाजल दोनों ही शुचि एवं मोक्षदायक वस्तुएं हैं। अंतिम समय में इनसे बढ़कर अन्य कोई कल्याण् ाकारी महौषधि नहीं हो सकती। प्रश्न: अंतिम समय में दीपदान क्यों? उत्तर: दीपदान से जीवात्मा को अभिमत प्रशस्त मार्ग की उपलब्धि होती है।

विज्ञान का सिद्धांत है कि अंश अपने अंशी के पास पहंुच कर ही विश्राम लेता है। ऊपर फेंका गया मिट्टी का ढेला पुनः मिट्टी की गोद में आता है। पानी का रेला, नदी अनवरत गति से प्रवाहित होकर पुनः अपने उत्पत्ति स्थल समुद्र में पहुंच कर ही शांत होती है। इसी प्रकार चैतन्यप्राण वास्तु के रूप में प्रवाहित अग्नितत्व अपने उद्गम स्थल सूर्य पिंड में पहुंचकर ही विश्राम लेता है। दीपक मृतक आत्मा के पथ को आलोकित कर, उसे गन्तव्य पर पहुंचने में सहायक होता है। प्रश्न: कपाल क्रिया क्यों? उत्तर: भारतीय मान्यताओं के अनुसार शवदाह के समय ज्येष्ठ पुत्र अर्थी के डण्डे से कपाल स्थान को तीन बार स्पर्श करते हुये चोट देता है।

इसे ‘कपाल क्रिया’ कहते हैं। भारतीय ऋषि केवल वंश-परंपरा की रक्षा हेतु गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते थे तथा अपने अमूल्य वीर्यरत्न को पुत्रोत्पादन कृत्य में प्रयोग कर डालते थे। इससे कपाल फोड़कर प्राण निकाल डालने की योग्यता नष्ट हो जाती है। जब पिता का देहांत हो जाता है तो पुत्र पिता के वात्सल्य भाव को स्मरण करके, जो कि उसने अपने मोक्ष को भी न्योछावर करके पुत्र-उत्पादन में दिखाया था-बार-बार विह्वल हो उठता है और सभी कुटुम्बियों के सामने तीन-बार मानों प्रतिज्ञा करता है- हे पितृदेव ! आपकी औध्र्व दैहिक कर्म-कलापों की क्रिया-कमी को अब मैं पूरा करूंगा। पूरा करूंगा। यही कपाल-क्रिया का वास्तविक भाव होता है।

प्रश्न: सचैल (वस्त्र सहित) स्नान क्यों? उत्तर: मृतक के साथ श्मशान भूमि तक जाने वाले संबंधियों एवं विजातियों को सचैल स्नान की आज्ञा शास्त्र देते हैं। इसका कारण यह है कि मृतक न जाने किन-किन रोगों से बिद्ध होकर शरीर त्यागने को विवश होता है। अनेक संक्रामक रोगों के कीटाणु दग्ध होने के पूर्व उसके शरीर पर चिपके रहते हैं।

शानुगामी संबंधियों को सचैल स्नान करने से, संक्रामक रोगों से बचाव हो जाता है। प्रश्न: अस्थियों को गंगा में क्यों डालें? उत्तर: हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार मृतक की अस्थियां जब तक गंगा में रहती हैं मृतात्मा शुभ लोकों में निवास करता हुआ आनन्दित रहता है। जब तक मृतात्मा की भस्म गंगा में प्रवाहित नहीं करते, मृतात्मा की परलोक यात्रा प्रारंभ नहीं होती। अस्थियों के वैज्ञानिक परीक्षण से यह सिद्ध हुआ है कि उसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में होती है जो खाद के रूप में भूमि को उपजाऊ बनाने में विशेष क्षमता रखती है।

गंगा हमारे कृषि प्रधान देश की सबसे बड़ी नदी है। अपने निरंतर गतिशील प्रवाह के कारण इसके जल की उपजाऊ शक्ति नष्ट न हो जाये, इसलिये भी इसमें अस्थिप्रवाह की परंपरा वैज्ञानिक सूझ-बूझ से रखी गई है।



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