वास्तु एवं फेंग सुइ

वास्तु एवं फेंग सुइ  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 779 | दिसम्बर 2001

भारत में वास्तु का लंबा इतिहास मिलता है। मत्स्यपुराण में अठारह वास्तु शास्त्रज्ञों का उल्लेख हैंः भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरंदर, ब्रह्मा, कुमार, नंदीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र एवं बृहस्पति। यथा:

भृगुरत्रिवसिष्ठश्च विश्वकर्मा मयस्तथा। नारदो नग्नजिच्चैव विशालाक्षः पुरन्दरः।। ब्रह्मा कुमारो नन्दीशः शौनको गर्ग एव च। वासुदेवोऽनिरूद्धश्च तथा शुक्रबृहस्पती।।

वास्तु द्वारा किसी व्यक्ति का भाग्य तो नहीं बदला जा सकता लेकिन घर या व्यवसाय को खुशहाल एवं समृद्धिशाली अवश्य बनाया जा सकता है। वास्तु के नियमों का पालन करने से हमें अधिक से अधिक ताजी वायु एवं सूर्य ऊर्जा तो मिलती ही है साथ ही साथ पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति भी मनुष्य की ऊर्जा को बढ़ाने में सहयोग प्रदान करती है। इसके साथ-साथ वास्तु के नियम स्थान को स्वच्छ रखने पर अत्यधिक ध्यान देते हैं। वास्तु द्वारा रंग चयन वातावरण को अनुकूल बना देते हैं। फेंग सुइ भी इसी प्रकार के अंदर के वातावरण को अनुकूल बनाने में बहुत सहायक है। फेंग सुइ के अनुसार प्रकृति में पांच तत्व होते हैं- काष्ठ, अग्नि, पृथ्वी, धातु तथा जल। इन पांच तत्वों में आपस में एक अच्छी नैसर्गिकता अर्थात् उत्पादन क्रिया है एवं दूसरी बुरी अर्थात विध्वंस क्रिया। जैसे उत्पाद क्रिया में काष्ठ अग्नि उत्पन्न करती है। अग्नि जला कर राख या पृथ्वी उत्पन्न करती है। पृथ्वी के नीचे धातु होती है। धातु गल कर जलीय रूप धारण करता है। जल काष्ठ उत्पन्न करता है। इसी प्रकार विध्वंस क्रिया में काष्ठ (वृक्ष) पृथ्वी को सोख लेता है। पृथ्वी जल को सोख लेती है। जल अग्नि को बुझा देता है। अग्नि धातु को गला देती है। एवं धातु के बने औजारों से काष्ट को काटा जाता है।

इस प्रकार हर तत्व दो अन्य तत्वों से उत्पाद क्रिया में और दो तत्वों से विध्वंस क्रिया द्वारा जुड़ा हुआ है। इन पांच तत्वों की दिशाएं एवं कारक तत्व निम्न वर्गों में दर्शाते हैंः-

जल स्थान पर फव्वारा, मछलीघर, पानी के चित्र लगाना शुभ होता है। काष्ठ के स्थान पर हरी-भरी तस्वीरें, पौधें आदि, अग्नि स्थान में बिजली का सामान या लाल रंग के चित्र, पृथ्वी स्थान पर पर्वतों के चित्र, मिट्टी की बनी वस्तुएं, ग्लोब आदि रखना शुभ होता है। धातु स्थान पर वायुघंटियां या सुनहरी चित्र अच्छे रहते हैं। अग्नि तत्व के स्थान पर अर्थात दक्षिण में यदि जल रखेंगे तो जल अग्नि को नष्ट कर देगा। अर्थात प्रसिद्धि नष्ट हो जाएगी और धातु रख देंगे तो मित्र या संतान से मुसीबतें आएंगी। लेकिन अग्नि स्थान पर पृथ्वी या काष्ठ की वस्तुएं भी सहायक सिद्ध होगी। फेंगसुइ के अनुसार दरवाजे पर घंटियां लटकाना बहुत ही शुभ है।

ये आपके घर में सद्भाग्य के प्रवेश की सूचक है। इसी प्रकार से फेंगसुइ के सिक्के घर में लटकाने से संपत्ति आती है। सूखें फूल, बोन्साई या कांटेदार पौधे घर में रखना अशुभ माना है। हंसते हुए बुद्ध की मूर्ति धन-दौलत की प्रतीक मानी जाती है और इसे ड्राइंग रूम या आॅफिस में सजाना समृद्धि प्रदान करता है। तीन टांग वाला मेंढक भी मुंह में एक या तीन सिक्के लिए हुए धन आगमन का प्रतीक माना गया है यदि इसे मुंह घर की ओर घुसते हुए दर्शाया गया हो। इसी प्रकार आपकी व्यावसायिक मेज पर इसे इस प्रकार रखें कि यह आपके ग्राहक से पैसा ले कर आपको दे रहा है। लंबी गर्दन वाला धातु का कछुआ भी उत्तर दिशा में अथवा मेज पर रखना अति समृद्धिदायक है। इसे जल में या बिना जल के रखा जा सकता है।


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स्फटिक का गोला संबंधों को मधुर बनाता है। बतख का जोड़ा या लव-बर्ड्स भी संबंधों को मधुर बनाते हैं। इसी प्रकार पवनघंटियां उत्तर-पश्चिम दिशा में लगाना शुभ माना गया है। क्योंकि धातु के लिए यही दिशा निश्चित की गई है। अगरबती व धूपबती का प्रयोग नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। मंत्रों का उच्चारण या पवित्र धुन भी फेंग सुइ में विशेष स्थान रखती है। चलते रहने वाले बंद उपकरण घर में रखना शुभ नहीं माना गया है। बैठने के स्थान पर पीछे पर्वत आदि के चित्र स्थायित्व प्रदान करते हंै। फेंग सुइ में ड्रेगन अच्छी यांग ऊर्जा को दर्शाता है।

अतः काष्ठ का ड्रेगन पूर्व दिशा में कार्यालय को क्रियाशील कर देता है। दक्षिण कौने में स्थापित चित्र दूरदर्शिता देता है। बांस के पौधे लंबी आयु एवं अच्छा स्वास्थ्य देता है। चीनी देवता लुक लुक और साउ क्रमशः समृद्धि सम्मान एवं दीघार्यु देने वाले हैं। इनकी मूर्तियों को केवल रखने से सब कुछ मिल जाता है। यदि द्वार पर किसी बड़ी इमारत मंदिर या पेड़ का साया पड़ता हो अर्थात् द्वार भेद हो तो बा-गुआ अष्टकोणीय शीशा द्वार पर ऐसी नकारात्मक ऊर्जा को परावर्तित कर घर के अंदर नहीं आने देता।

इस प्रकार फेंग सुइ बहुत ही आसान उपायों द्वारा आवास या कार्य स्थल से नकारात्मक ऊर्जा को बाहर कर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है। इसी प्रकार पिरामिड भी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में उपयोग किए जा सकते हैं।

चीनी कला फेंग सुइ और भारतीय वास्तु पद्धति में कई मतभेद है। भारतीय वास्तु पद्धति में आठ दिशाओं के आठ देवता है। कुबेर का निवास उत्तर में है जबकि फेंग सुइ में आग्नेय कोण में संपत्ति का स्थान माना गया है। भारतीय वास्तु में ईशान में जल अच्छा माना है जबकि फेंग सुइ में उत्तर में। इसी प्रकार अग्नि का स्थान फेंग सुइ में दक्षिण में हैं एवं भारतीय वास्तु में आग्नेय कोण में। इस प्रकार दोनों पद्धतियों में अनेक अंतर हैं। दोनों पद्धतियों के मिलाने से अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। मेरा मानना है कि भारतीय पद्धति अवश्य ही भारत के अनुरूप बनी हुई है। अतः भारत में तो अवश्य ही भारतीय पद्धति अपनाएं तो बेहतर होगा। भारतीय पद्धति में भी यंत्र, मंत्र एवं तंत्र द्वारा वास्तुदोष निवारण विधियां बताई गई हैं। उनके उपयोग भी अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुए हैं।

फेंग सुइ की वस्तुएं आप घर में सजाने एवं बिना तोड़फोड़ के समृद्धि बढ़ाने में लाने के लिए अवश्य उपयोग में ला सकते हैं, लेकिन पूर्ण रूप से भारतीय वास्तु के नियम पालन ही वास्तु दोष निवारण में ठीक है।


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