टोटका विज्ञान अंधविश्वास नहीं है

टोटका विज्ञान अंधविश्वास नहीं है  

गोपाल राजू
व्यूस : 13767 | फ़रवरी 2015

टोटका वह विज्ञान है जिसके संतुलित, समयबद्ध और निरन्तर प्रयोग करते रहने से समस्याओं का निराकरण संभव हो सकता है। जो बातें हमारा कार्य सिद्ध करवा देती हैं तथा हमारी समझ से बाहर हैं, उन्हें हम अलौकिक, गुह्य आदि कह देते हैं। अलौकिक अर्थात् जो हमारे लोक की न हो। ऐसे ही अलौकिक पदार्थ, प्रयोग, कर्म जो अल्प समय में और न्यूनतम प्रयास द्वारा संपन्न किए जाते हैं, टोटका कहलाते हैं। इनके फलीभूत होने के पीछे दो बातें ध्यान में रखना अति आवश्यक होती हैं। एक तो इनको करते समय कोई टोके नहीं, दूसरे इनके प्रति पूर्ण रुप से श्रद्धा और आस्था कर्ता के मन में होनी चाहिए।

आपने प्रायः सुना होगा कि कमर की नस यदि चढ़ जाए, इसे सामान्य भाषा में ‘चिक चढ़ना’ कहते हैं, तो किसी ऐसे बच्चे के पैर सात बार पीठ पर लगवाने से वह ठीक हो जाती है जो उल्टे पैर जन्मा हो।

बच्चों को नजर लग जाती है, यह अकाट्य सत्य है। नजर लगने पर प्रभावित बच्चे के ऊपर से नमक, मिर्च उतार कर जलाई जाती है।

लहसुन की कली, जायफल, नीलकंठ का पर आदि का नजरबट्टू डालना अथवा उसके माथे पर काजल का टीका लगा कर नजर के कुप्रभाव से रक्षा करना सर्वविदित है। काले धागे को पहनाना तो अधिकांशतः प्रचलित है।

छोटे बच्चे को दाँत निकलते वक्त कभी-कभी असह्य पीड़ाजनित परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके लिए एक टोटका है। बच्चे के गले में रोहू मछली के पांच दांत धागे में बांध कर लटकवा दीजिए, चमत्कारी रुप से आपको लाभ दिखाई देगा।

कभी-कभी नवजात शिशु नींद में डर कर चैंक जाते हैं जैसे किसी भयानक दृश्य से सहम गये हों। ऐसे बच्चों के गले में लहसुन की चार पांच कलियां धागे में बांध कर डाल दीजिए। सूखने पर यह नए से बदल दिया कीजिए। बच्चा नींद में डरेगा नहीं।

जन्म लेने वाली प्रथम संतान यदि लड़का है तो उसकी ‘नाल’ उसके छठी के कपड़े में बांध कर अपने पास सुरक्षित रख लें। किसी भी शुभ कार्य में अथवा अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए घर से निकलते समय उसको भी अपने साथ श्रद्धा भाव से ले जाया करें। आपका वांछित कार्य अवश्य ही पूर्ण होगा।

‘बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला’, ‘बुरी नजर वाले तेरे बच्चे शराब पिएं’, ‘बुरी नजर’, उल्टा हो तुझ पर असर’, आदि शब्द आपने ट्रकों के पीछे लिखे अवश्य देखे होंगे। दुकानों पर नींबू-मिर्च, भवनों पर राक्षस के डरावने मुखौटे, हंडिया, हल्दी की गांठ, आम के पत्तों की बंदनबार आदि भी अवश्य देखी होगी। टोटकों में अविश्वास करने वाला व्यक्ति भी इन्हें किसी न किसी रुप में प्रयोग करता अवश्य दिखाई दे जाता है।

नजर के असर को बेअसर करने के लिए लोग अपने-अपने तरीके से अथवा सुविधा अनुसार कुछ न कुछ उपक्रम करते रहते हैं। एक बार यह प्रयोग भी करके देखिए आपको आशातीत लाभ दिखाई देगा। व्यापार में उन्नति के लिए यह टोटका बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध होगा। मोटे गत्ते अथवा टीन को एक स्वास्तिक के आकार का काट लें। आटे की लेई से उस पर नाग केसर चिपका लें।

यदि आप अपने कार्य स्थल पर मिर्च अथवा नींबू टांगते हैं तो अब से इस स्वास्तिक के ऊपर धागे से पिरोकर टांगा करें। मिर्चों की संख्या सात रखा करें। अंतर स्वयं देख लें।

महिलाओं के ऊपर तीन स्थितियों में सर्वाधिक टोटके किए जाते हैं। बुराई अथवा किसी का अनर्थ करने के लिए किए गये इन टोटकों के दुष्प्रभाव बहुत ही जल्दी दिखाई देने लगते हैं। स्त्रियों की तीन संवेदनशील स्थितियाँ हैं। उनका ऋतुकाल का समय, विवाह के समय सुहाग के जोड़े में तथा गर्भावस्था के दिनों में। बुराई अथवा किसी का अनर्थ करने के लिए ऐसे अनेकों टोटके किए जाते हैं। बुराई वाले प्रयोग बहुत शीघ्रता से कार्य करते हैं। कमजोर मानसिकता वालों पर तो इनका परमाणु बम की तरह प्रभाव पड़ता है। अनर्थ के लिए किए जाने वाले टोटकों में महिलाओं तथा नवजात शिशुओं के कपड़े, उनके नाखून, उनके बाल आदि को काटा जाता है तथा जलाया और दबाया जाता है। ऐसे टोटको के पीछे ईष्र्या, द्वेष अधिक होता है। ऐसे टोटकों का प्रभाव तब अधिक होता है जब व्यक्ति इनके संपर्क में आता है। इसके लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है कि व्यक्ति को कुछ खिलाया जाय, कहीं दबा दिया जाए और उस पर से वह लांघ जाए, उसके घर, कपड़ों आदि में छिड़क दिया जाए आदि।

ऐसा नहीं कि टोटका केवल व्यक्ति पर ही प्रभाव डालते हैं। यह पशु-पक्षी, फल-फूल आदि वनस्पति, फैक्ट्री, दुकान आदि पर भी प्रभावी होते हैं। टोटकों का वैज्ञानिक आधार तो हम नहीं खोज पाए हैं, परंतु यह न समझें कि यह अंधविश्वास है। यह अदृश्य रुप में अपना कार्य कर जाते हैं। पेड़-पौधों में बलि के नाम पर जून दिया जाता है। अनेक बेलों में, कटहल आदि के पेड़ों में टोटका स्वरुप मछली दबाई जाती हैं। कुछ फलदार वृक्षों में लोहे की कील अथवा ऐसे अनेक उपक्रम जादुई शक्ति अथवा चमत्कार की तरह प्रतीत होते हैं। दरअसल इन उपक्रमों द्वारा वृक्ष-लताओं में खनिज, लवण, प्रोटीन व अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति मछली, खून आदि के विघटन से होती है। वृक्ष-लताओं की जड़ें, कोशिकाएं इनको सीधे तत्व के रुप में ग्रहण करती हैं।



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