गर्भधारण संभावनाएं कब-कब

गर्भधारण संभावनाएं कब-कब  

नीलम शर्मा
व्यूस : 6631 | अप्रैल 2005

विवाह के बाद समय आता है संतानोत्पत्ति का जिसे शास्त्रों के अनुसार पितृऋण के रूप में जाना जाता है। जब बार-2 गर्भपात या गर्भधारण में देरी होती है तो दम्पति का चिंतित होना स्वाभाविक होता है। निराश दम्पति कई बार समय आने से पहले ही दत्तक संतान के बारे में सोचने लगते हैं। ऐसे समय में विज्ञान पर आधारित हमारा ज्योतिष गणना करके गर्भधारण काल की संभावित सूचना दे देता है। प्रस्तुत शोध अनेक कुंडलियों के अध्ययन का परिणाम है। अगर जन्म समय की त्रुटि न हो तो यह सिद्धांत बिल्कुल खरा उतरेगा। संभावित गर्भधारण काल जानने के आधार:

1. विंशोत्तरी महादशा

2. लग्न, सप्तांश तथा गोचर में दशानाथ की स्थिति

3. गर्भधारण काल का संभावित गोचर लग्न कंुडली में

4. मंगल, शनि तथा गुरु का गोचर एक साथ नवम, पंचम या सप्तम भाव को प्रभावित करे, क्योंकि नवम भाव वंशवृद्धि का है, पंचम संतान का व सप्तम गर्भाधान का कारक है।

5. अन्य दशाएं: अगर मिली-जुली तकनीक का सहारा लिया जाए तो परिणाम और पक्के निकलते हैं। इसमें जैमिनी चर दशा व योगिनी दशा का भी सहारा लिया गया है। यह सिद्धांत प्रयोग में लाने से पहले यह अवश्य देख लंे कि कुंडली में निःसंतान योग तो नहीं है। विंशोत्तरी दशा श./गु./शु. जैमिनी चर दशा वृश्चिक/वृष योगिनी दशा सिद्धा/भ्रामरी

1. महादशा नाथ शनि लग्न कुंडली में लाभेश होकर पंचम भाव को अपने प्रभाव में लेगा, वहीं गुरु पंचम भाव में स्वयं उपस्थित होकर अंतर्दशा नाथ बना है।

2. सप्तांश में गुरु की दूसरी राशि मीन पर शनि स्वयं बैठकर दशम दृष्टि से गुरु से संबंध बना रहा है।

3. गर्भधारण काल के अनुमानित गोचर में शनि लग्न कुंडली के पंचम तथा नवम भावों को दृष्टि दे रहा है। गुरु वक्री होकर जन्म के गुरु (पंचम भाव) पर गोचर कर रहा है तथा सप्तम व नवम भाव भी एक साथ प्रभावित हो रहे हैं। मंगल भी मीन राशि पर बैठकर अष्टम दृष्टि से सप्तम भाव को प्रभावित कर रहा है। स्त्रियों में मंगल मासिक चक्र तथा रज का कारक है और गर्भाधान के समय यह अपनी दृष्टि से युति स्थिति या दशा द्वारा जरूर प्रभाव डालेगा।


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4. अन्य दशाएं: जैमिनी चर दशा - वृश्चिक / वृष योगिनी दशा - सिद्धा/ भ्रामरी परिणाम - पुत्री का जन्म चंड़ीगढ़ में शनि की दशा व मंगल की युति के कारण 23.10.2004 को 11.36 पर आॅपरेशन से हुआ।

1. यहां पर महादशा नाथ बुध सप्तम भाव में तथा अंतर्दशा नाथ गुरु पंचमेश है।

2. सप्तांश कुंडली में गुरु नवम दृष्टि से मिथुन राशि यानी महादशा नाथ की राशि को देख रहा है और सप्तम स्थान को भी प्रभावित कर रहा है। शनि दशम दृष्टि से पंचम भाव को देख रहा है।

3. लग्न कुंडली में अनुमानित गोचर के समय गुरु नवम भाव में विराजमान थे दशम दृष्टि से ”आयुष्मान भव“ कह रहा है। मंगल देव तृतीय में बैठकर नवम भाव को वंशवृद्धि का फल दे रहा है। अन्य दशाएं थीं: जैमिनी चर दशा - कर्क / वृश्चिक योगिनी दशा - राहु / गुरु परिणाम - 22.1.2004 को 15 बजे दिल्ली में पुत्र उत्पन्न हुआ, प्रसव सामान्य।

1. महादशा नाथ बुध सप्तमेश हैं, अंतर्दशा नाथ गुरु, जो संतान का नैसर्गिक कारक है, लग्नेश है।

2. सप्तांश कुंडली में महादशा नाथ बुध पंचम स्थान में स्थित तथा गुरु से दृष्ट है। संभावनाएं अनुकूल हैं।

3. संभावित गोचर में उस समय लग्न कुंडली के नवम भाव में गुरु स्थित था। शनि वक्री होकर सप्तम में स्थित था तथा मंगल भी जन्म राशि के पंचम भाव में गोचर कर रहा था।

4. अन्य दशाएं - जैमिनी चर दशा: कर्क/कन्या योगिनी दशा - राहु/ शुक्र परिणाम: 7.11.2004 को 18ः38, पर दिल्ली में पुत्र प्रसव सामान्य रहा का आॅपरेशन द्वारा जन्म हुआ । विशेष: इसके पहले गर्भपात हुआ। इस संतान के पूर्ण विकास में भी डाॅक्टर ने शंका जताई थी तथा गर्भपात कराने की सलाह दी थी। पर ज्योतिषीय गणना द्वारा इन्हें ऐसा न करने की सलाह दी गई थी। बच्चा बिल्कुल ठीक है। विंशोत्तरी दशा: राहु/बुध/शनि योगिनी दशा: शुक्र/राहु चर दशा: वृश्चिक/मकर

1. महादशा नाथ राहु है और शास्त्रों के अनुसार इसे शनिवत राहु कहा गया है। राहु अपने दशाकाल में शनिवत् प्रभाव देगा। शनि इस कुंडली का लग्नेश है। अंतर्दशा नाथ बुध नवमेश है। प्रत्यंतर्दशा नाथ शनि नवम भाव में स्थित है और राहु के प्रभाव को इस अवधि में बढ़ाकर रखेंगे।


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2. सप्तांश कुंडली में महादशा नाथ राहु, अंतर्दशानाथ बुध की मिथुन राशि को देख रहा है। प्रत्यंतर्दशा नाथ वक्री शनि भी सप्तम भाव को देख रहा है।

3. गोचर में शनि, छठे भाव में वक्री होकर पंचम को प्रभावित कर रहा है। गुरु भी अष्टम भाव में वक्री होकर सप्तम भाव को प्रभावशाली बना रहा है। मंगल कुंडली के तृतीय भाव में बैठकर नवम भाव को प्रभावित कर रहा है।

4. अन्य दशाएं: जैमिनी चर दशा - वृश्चिक/मकर योगिनी दशा - राहु/ बुध परिणाम: 2.11.2004 को सुबह 3 बजे दिल्ली में कन्या का जन्म हुआ प्रसव सामान्य रहा। विंशोत्तरी दशा: सूर्य/चंद्र/सूर्य योगिनी दशा: सूर्य/गुरु चर दशा: मीन/मेष विवरण:

1. महादशा नाथ राह सूर्य का प्रभाव प्रबल है। स्त्रियों की कुंडली में सूर्य नवम भाव का कारक होकर वंश वृद्धि में सहायक बनता है। इस कुंडली में महादशा नाथ तथा सूर्य ही है जो कि लग्न में अंतर्दशा नाथ प्रत्यंतर्दशा नाथ चंद्र की राशि में स्थित है।

2. सप्तांश कुंडली में सूर्य फिर सप्तम भाव में स्थित है तथा चंद्र नवम भाव पर दृष्टि डाल रहा है। अर्थात सप्तम व नवम भाव सिद्धांत के अनुसार फिर प्रभावित हुए हैं।

3. संभावित गोचर काल में लग्न कुंडली के 11वें भाव में वक्री शनि स्थित होकर पंचम भााव को दृष्टि दे रहा है। गुरु लग्न में बैठकर पंचम सप्तम तथा नवम भाव को आशीर्वाद प्रदान कर रहा है। मंगल भी पंचम में विराजमान है।

4. अन्य दशाएं थीं: जैमिनी चर दशा: मीन-मेष योगिनी दशा: सूर्य-गुरु परिणाम: 18.10.2003 को सुबह 10.50 पर पिलानी में सामान्य प्रसव से पुत्र उत्पन्न हुआ।

1. महादशा नाथ सूर्य लग्न में स्थित होकर सप्तम पर प्रभाव डाल रहा है। वहीं पर शनि, अंतर्दशानाथ, भी युति कर रहा है। प्रत्यंतर्दशा नाथ बुध भी इसी युति में सहयोग करके सप्तम भाव को, जो गर्भधारण का भाव है, बली कर रहे हैं, क्योंकि बिना सप्तम के प्रभाव से गुजरे पंचम का स्थान नहीं आ सकता।

2. क्.7 में सूर्य पंचम में स्थित है। अंतर्दशा नाथ शनि सप्तम भाव का स्वामी है।

3. गोचर का गुरु लग्न कुंडली के तृतीय भाव में बैठकर सप्तम नवम भावों को आशीष दे रहा है। शनि भी लग्न में विराजकर सप्तम को दृष्टि देर रहाहै। पृथ्वी पुत्र मंगल एकादश में बैठकर पंचम पर प्रभाव डाल कर रहा है।

4. अन्य दशाएं: जैमिनी चर दशा: मीन/वृष योगिनी दशा: गुरु/मंगल परिणाम: पुत्र संतान ने 31.8.2004 को 05.30 बजे जन्म लिया। पर इससे पहले प्रथम गर्भपात हो चुका था। पाठक इसे देखने की कोशिश करें।


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