टाइम हो गया ! पैकअप

टाइम हो गया ! पैकअप  

आभा बंसल
व्यूस : 4243 | सितम्बर 2012

लौकिक सुख के दायरे में आने वाली हर चीज पाने और सालों तक लाखों के दिलों की धड़कन बनकर शौहरत सुख का आनंद पाने वाले हरफनमौला सुपर स्टार राजेश खन्ना ने अंतिम समय में अपने निवास की चारदीवारी में गुमनामी के अंधेरों में जीने के बाद भी मौत को जितनी जिंदादिली से स्वीकार किया यह उनके कुंडली में विद्यमान ग्रह योगों का ही कमाल है।

हिंदी फिल्म जगत के सुपरस्टार राजेश खन्ना के अंतिम शब्द थे ‘टाइम हो गया पैकअप’ और वे 18 जुलाई 2012 को अपने लाखों चाहने वालों को मोह बंधन तोड़ अलविदा कहकर परम परमात्मा की शरण में चले गये लेकिन राजेश खन्ना जैसा सुपर स्टार कभी भी जनता के दिल से दूर नहीं जा सकता उनके जैसे सुपर स्टार का जलवा न कोई देख पाया है और शायद न ही देख पाएगा। राजेश खन्ना का जन्म अमृतसर में 29 दिसंबर 1942 को हुआ।

बचपन में ही उन्हें उनके नजदीकी रिश्तेदार ने गोद ले लिया और उन्हें मुंबई ले आए। बचपन में उनका नाम जतिन था पर प्यार से उन्हें काका कहा जाता था। उनके माता-पिता वहां के एक रईस थे। उनका लालन-पालन अत्यंत रईसी माहौल में हुआ। स्कूल में ही जतिन को नाटकों का बहुत शौक था और के. सी. काॅलेज जाने तक उन्होंने स्टेज पर धूम मचा दी।

पिता का विशाल कारोबार उन्हें नहीं लुभाता था और वे खुद को बड़े पर्दे पर देखना चाहते थे। उनकी रईसी का आलम यह था कि नाटकों में भाग लेने के लिए भी वे अपनी शानदार स्पोर्टस कार में जाया करते थे। 1964 में फिल्म इंडस्ट्री के कुछ निर्माताओं ने युनाइटेड प्रोडयूसर्स नाम से एक ग्रुप बना कर फिल्मफेयर मैगजीन के जरिये नई प्रतिभाओं को तलाशने के जो कान्टेस्ट करवाए,जतिन ने उनमें हिस्सा लिया और आठ फाइनलिस्टों में उन्हें चुन लिया गया।

उन्हें पहला चांस दिया जीपी सिप्पी ने अपनी फिल्म ‘राज’ में। और उन्हें नया नाम भी मिला राजेश। हालांकि चेतन आनंद की फिल्म आखरी खत पहले रिलीज हुई। इसके बाद वे नासिर हुसैन की ‘बहारों के सपने’ में आए लेकिन शक्ति सामन्त की ‘आराधना’ से उन्हें जो सफलता और लोकप्रियता मिलनी शुरू हुई उसके बाद उनके पास पीछे मुड़कर देखने की न तो फुर्सत रही, न ही जरूरत।

चंद ही बरसों में राजेश खन्ना ने दो रास्ते, आनंद, खामोशी, सच्चा झूठा, कटी पतंग, सफर, अमर प्रेम, हाथी मेरे साथी जैसी बेहद कामयाब फिल्मों की कतार खड़ी कर दी और चारो ओर उनका डंका बजने लगा। राजेश खन्ना पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने सुपर स्टारडम हासिल की। फिल्म निर्माता और वितरक उनके घर के सामने सचमुच की कतार लगाया करते थे, तब कहीं जाकर वे उनसे मिल पाते।


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उनके बंगले ‘आशीर्वाद’ के बाहर रोजाना हजारों की तादाद में लोग उनकी बस एक झलक पाने को बेताब खड़े रहते थे। लड़कियां अपने खून से उन्हें खत लिखती थी। कितनी ही लड़कियों ने उनकी फोटो से व्याह रचा लिया था और अपनी उंगली काट कर अपनी मांग लाल कर ली। उनके स्टाइल स्टेटमेंट को भी हजारों लाखों लोगों ने अपनाया-चाहे वह उनकी थोड़ा झुक कर बात करने की अदा हो या पलकंे झपकाने की।

उनका हेयर स्टाइल व पैंट के साथ पहना जाने वाला गुरु कुर्ता भी बहुत पापुलर हुआ। 1975 के बाद जब अमिताभ बच्चन ने सुपर स्टार के सिंहासन पर कब्जा जमाया तो काका की चमक भले ही फीकी पड़ी लेकिन वे लगातार फिल्मे करते रहे और कुछ फिल्मों के बाद धीरे-धीरे किनारे हो गये। राजीव गांधी के कहने पर वे राजनीति में उतरे और 1991 में नई दिल्ली सीट पर दिग्गज राजनेता लाल कृष्ण आडवानी को करारी टक्कर देते हुए महज एक हजार वोटो से हारे।

अगले ही साल इसी सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने शत्रुध्न सिन्हा को करारी मात दी लेकिन राजनीति में वे अधिक कुछ नहीं कर सके और 1996 के चुनाव में वह न केवल दिल्ली से हारे बल्कि गुजरात से भी हार गये। धीरे-धीरे राजनीति वालों ने उनसे व उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। उनकी अपने जिंदगी के रोमांटिक पहलू में झांके तो फैशन डिजायनर और अदाकारा अंजू महेन्दू से उनका सात साल का लंबा अफेयर चला।

लेकिन शादी उन्होंने की ‘बाॅबी’ से हर जवांदिल की धड़कन बनी डिम्पल कपाड़िया से। उनसे उनकी दो बेटियां हुई, टिवंकल व रिंकी। आज के स्टार अक्षय कुमार उनकी बेटी टिवंकल के ही पति हैं। पिछले दस पंद्रह वर्षों का समय राजेश खन्ना ने काफी एकाकी रूप से बिताया। हाल में उन्होंने कुछ फिल्मों में काम किया, छोटे पर्दे पर भी आए लेकिन ज्यादा कुछ नहीं कर सके। वे कुछ वर्षों से कैंसर से पीड़ित थे।

इस रोग ने उन्हें पूरी तरह से खोखला कर दिया और अंतत इस सदी का सुपर स्टार सबसे विदा लेते हुए पंचत्व में विलीन हो गया। राजेश खन्ना के निधन के साथ हिंदी फिल्मों के इतिहास में रोमांटिक फिल्मों का एक युग खत्म हो गया। 180 से अधिक फिल्मों में काम करने वाले इस शानदार अभिनेता ने 1969 से 1972 के बीच अकेले दम पर लगातार पंद्रह सुपर हिट फिल्में दी। यह ऐसा रिकार्ड है जो चार दशक बाद आज भी कायम है।

आइए करें काका की कुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण ज्योतिष के अनेक प्रसिद्ध ग्रंथों के अनुसार इनकी कुंडली में अनेक शुभ प्रसिद्ध योग विद्यमान हैं। पुष्कल योग फलदीपिका अ. 6 ।। श्लोक 19-20 ।। में वर्णित पुष्कल योग के अनुसार जन्मपत्रिका में लग्न का स्वामी और चंद्रमा जिस राशि में है उसके स्वामी एक साथ केंद्र में हों, तथा कोई बलवान ग्रह केंद्र को देखता हो तो पुष्कल योग बनता है।


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इनकी कुंडली में लग्न का स्वामी बुध और चंद्र राशि का स्वामी सूर्य एक साथ सप्तम भाव केंद्र में है तथा बलवान ग्रह मंगल, शुक्र, बुध, लग्न को देख रहे हैं जिसके कारण इनका पुष्कल योग घटित हो रहा है। इस योग के अनुसार जीवन की छोटी अवस्था से ही इन्हें उच्च भौतिक सुख सुविधाएं प्राप्त हुई तथा इतनी बड़ी कामयाबी हासिल हुई एवं लोग भी इनके दीवाने हो गये।

सरल योग फलदीपिका अ. 6/श्लोक 57, 65 में वर्णित सरल योग के अनुसार यदि अष्टमेश या अष्टम भाव अशुभ ग्रहों से युत या निरीक्षित हो और अष्टम भाव का स्वामी 6, 8, 12 वें भाव में स्थित हो तो सरल योग बनता है। इनकी कुंडली में अष्टमेश शनि अशुभ ग्रह मंगल से दृष्ट है, तथा वह बारहवें भाव में है जिसके फलस्वरूप सरल योग बन रहा है।

इस योग के अनुसार इन्हें अच्छी विद्या, बुद्धि तथा प्रतियोगिताओं में विजय मिली एवं अपनी कला के द्वारा हिंदी फिल्म जगत में विख्यात कर दिया। दीर्घायु योग सर्वार्थ चिन्तामणि अ. 7 श्लोक 7के अनुसार लग्नेश यदि केंद्र में गुरु शुक्र से युक्त या दृष्ट हो तो दीर्घायु योग बनता है।

अतः इनकी कुंडली में लग्नेश बुध सप्तम भाव में शुक्र से युत तथा बृहस्पति से दृष्ट है जिसके कारण गंभीर बीमारी होने के बावजूद भी इनकी दीर्घायु काल वाली मृत्यु हुई। वाशि योग सारावली ।। अ. 14 /श्लोक 1, 6 ।। इस योग के अनुसार यदि जन्मपत्रिका में सूर्य से द्वादश स्थान में चंद्रमा को छोड़कर कोई अन्य ग्रह स्थित हो तो वाशि नामक योग बनता है।

इनकी जन्मपत्रिका में सूर्य से बारहवे में मंगल स्थित होने से यह योग बना। इस योग के फल के अनुसार इन्होंने अपनी उत्कृष्ट वाणी और अच्छी बुद्धि-चातुर्य के द्वारा, अपने अच्छी अभिनय कला से हिन्दी फिल्म जगत में सुपरस्टार बनकर अपनी अमिट छाप छोड़ी, जिसको आजतक भी कोई धूमिल नहीं कर पाया। इसी योग के फल के अनुसार इन्हें सुंदर शरीर तथा राजा के समान धन-वैभव की भी प्राप्ति हुई।

जिसका परिणाम है कि वे आज अपने पीछे अपनी अरबों की संपत्ति छोड़ गये हैं। अनेक उच्च वाहन प्राप्ति योग सर्वार्थ चिन्तामणि अ. 4/श्लोक 163।। इस योग के अनुसार यदि चतुर्थेश केंद्र में हो और जिस राशि में वह स्थित है उस राशि का स्वामी ग्रह लग्न में हो तो यह योग बनता है।

इनकी कुंडली में सुखेश बुध सप्तम स्थान केंद्र में बृहस्पति की राशि में स्थित है तथा बृहस्पति लग्न में स्थित है जिसके फलस्वरूप यह योग पूर्णरूप से बन रहा है, इस योग के फल के अनुसार इन्हें अपने जीवन की छोटी अवस्था से ही उच्च कोटि वाहन का सुख प्राप्त हुआ।

देश विदेश यात्रा योग बृहत्पाराशर होराशास्त्र ।। अं. 12, श्लोक 246।। इस योग के अनुसार यदि व्ययेश पाप ग्रह से युक्त हो और व्यय भाव में पाप ग्रह हो तथा पाप ग्रह की दृष्टि व्यय भाव पर हो तो ऐसा व्यक्ति देश-विदेश की यात्राएं करता है।

इनकी कुंडली के अनुसार व्यय भाव का स्वामी शुक्र सूर्य के साथ सप्तम भाव में पाप सानिध्य में है, तथा व्यय भाव में शनि पाप ग्रह स्थित है एवं पाप ग्रह मंगल की व्यय भाव पर दृष्टि है जिसके कारण इनकी कुंडली में यह योग घटित होने से यह अपने जीवन में देश-विदेश की यात्राएं करते रहे। इनके जीवन का सबसे अधिक सफल समय राहुदशा काल था।


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1965 से जब इनकी यह दशा प्रारंभ हुई तब से इनके जीवन में उच्च सफलता का दौर शुरू हुआ। इनकी कुंडली में राहु ग्रह तीसरे भाव में सिंह राशि पर स्थित होकर बलवान है। दशमेश बृहस्पति और नवमेश शनि की अंतर्दशा में इन्हें विशेष सफलता प्राप्त हुई तथा आगे बुध की अंतर्दशा तक ये सफलता की सीढ़ियां चढते रहे।

लेकिन उसके पश्चात धीरे-धीरे इनकी कला का जादू कम होता गया है कयोंकि उसके बाद राहु में योगकारक ग्रहों की अंतर्दशाएं पूर्ण हो गयी थी तथा असफलता का दौर आरंभ हुआ जिससे इन्हें विशेष सफलता नहीं मिली। इनकी मृत्यु के समय प्रबल मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा चल रही थी तथा गोचर में ये ग्रह अशुभ स्थिति में थे।

अष्टमेश शनि की महादशा में षष्ठेश मंगल की अंतर्दशा एवं मारकेश चंद्रमा की प्रत्यंतरदशा में इनका देहान्त हुआ। गोचर के समय में भी इनके मंगल और शनि राशि से मारक भाव में तथा लग्न से सुख भाव में एक साथ गोचर कर रहे थे, जिसके फलस्वरूप इनका लंबी बीमारी के बाद अचानक देहावसान हुआ।



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