अंगूठे का महत्व

अंगूठे का महत्व  

व्यूस : 6888 | फ़रवरी 2009
अंगूठे का महत्व डॉ. राजन विश्वकर्मा जिस व्यक्ति का अंगूठा जितना सुविकसित, दृढ़ व सुगठित होता है, उस व्यक्ति में बौद्धिक और मानसिक विशेषताएं उतनी ही अधिक होती हैं। इसके विपरीत अंगूठे का छोटा, कमजोर, पतला व अविकसित होना व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता व नेतृत्व बल की कमी का सूचक होता है। हस्तरेखा के अध्ययन में अंगूठे की भूमिका अहम होती है। अंगूठा इच्छाशक्ति, विवेक, प्रेम व संवेदना का सूचक है। अंगूठे को व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण भी कहा जाता है। हस्त परीक्षण में अंगूठे को आधार मानते हैं। तिब्बत, बर्मा तथा मध्यपूर्वी देशों में अंगूठे की बनावट को व्यक्तित्व विश्लेषण में विशेष स्थान दिया गया है। चीनी लोगों ने अंगूठे के प्रथम पर्व की कोशिकाओं के आधार पर विस्तृत पद्धति तैयार की है। यूनान के चर्चों में पादरीगण सदैव अंगूठे से आशीर्वाद देते हैं। भारतीय संदर्भ में द्रोणाचार्य द्वारा गुरुदक्षिणा के रूप में एकलव्य से अंगूठे का मांगा जाना अंगूठे की महत्ता को उजागर करता है। फ्रांस के प्रसिद्ध हस्त रेखा विज्ञानी डी. आपेंटाइनी (डॉ. अर्पेन्टीजनी) ने भी प्रतिपादित किया है कि अंगूठा व्यक्ति का प्रतिरूप होता है। सर चार्ल्स बेल की खोज में यह वर्णन है कि चिंपांजी, जिसके शरीर की बनावट मनुष्य के शरीर की बनावट से मिलती है, का अंगूठा तर्जनी के पहले आधार तक नहीं पहुंच पाता है, जबकि मनुष्य का अंगूठा पहली अंगुली के आधार से ऊपर तक पहुंचता है। अभिप्राय यह है कि जिस व्यक्ति का अंगूठा जितना सुविकसित, दृढ़ व सुगठित होता है, उस व्यक्ति में बौद्धिक और मानसिक विशेषताएं उतनी ही अधिक होती हैं। इसके विपरीत अंगूठे का छोटा, कमजोर, पतला व अविकसित होना व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता व नेतृत्व बल की कमी का सूचक होता है। मनुष्य का अंगूठा प्रकृति ने इस तरह बनाया है कि वह अन्य अंगुलियों के विपरीत दिशा में कार्य करने में भी सक्षम होता है। यही वह शक्ति है, जो आत्मिक या मौलिक बल का संकेत देती है। नवजात बच्चों की इच्छाशक्ति नहीं होती, वह पूरी तरह अपनी मां या पालनहार पर निर्भर रहता है। इस दौरान उसका अंगूठा बंद मुट्ठी में अंगुलियों से ढका रहता है। जैसे-जैसे बच्चे की इच्छाशक्ति व बुद्धि विकसित होने लगती है, अंगूठा अंगुलियों की पकड़ से आजाद होता जाता है। ऐसा पाया गया है कि जिस नवजात शिशु का अंगूठा मुट्ठी में बंद रहता है वह अल्पबुद्धि और जिसका अंगूठा बाहर रहता है वह बुद्धिमान होता है। मंदबुद्धि और कमजोर दिमाग वाले बच्चे सदैव अंगूठे को मुट्ठी में दबाए रहते हैं। मिरगी व मूर्च्छा रोग से ग्रस्त किसी व्यक्ति का अंगूठा मूर्च्छा के समय उसके हाथ में पहले ही मुड़ जाता है। अंगूठे का इस तरह मुड़ना मिरगी या मूर्च्छा का पूर्वाभास दे देता है। अंगूठे की यह क्रिया प्रायः उन लोगों में देखी गई है, जो उच्च ज्वर से पीड़ित या मरणासन्न अवस्था में होते हैं। इस अवस्था में मनुष्य तर्क व इच्छाशक्ति के बल पर इसका विरोध करता है। इस विरोध करने की दशा में अंगूठा सीधा रहता है, किंतु मृत्यु के निकट आते ही हथेली में बंद हो जाता है। चिकित्सा शास्त्र के अनुसार भी अंगूठा मस्तिष्क का मुखय बिंदु है। प्राचीन काल भारत में नस और नाड़ी चिकित्सा करने वाले वैद्यगण अंगूठे के विश्लेषण से व्यक्ति के रोग और निदान के बारे में निर्णय लिया करते थे। अंगूठा अनेक बीमारियों की पूर्व सूचना समय से बहुत पहले दे देता है। अंगूठे की लंबाई के संबंध में माना जाता है कि यह साधारणतया बृहस्पति की अंगुली (तर्जनी) के तीसरे पर्व के मध्य तक पहुंचती है। इससे ऊपर बढ़ने पर अधिक लंबा व तर्जनी के तीसरे पर्व के मध्य से नीचे होने पर छोटा माना जाता है। सामान्य रूप से अंगूठे की दोनों पोरों में दो-तीन का अनुपात होता है। इस प्रकार की लंबाई वाला अंगूठा बुद्धि और भावना का संतुलन बनाए रखने में बहुत हद तक सक्षम होता है। अंगूठे को प्रथम अंगुली से खींचने पर जो कोण बनता है, वह जातक के बौद्धिक गुण व उसके व्यक्तित्व का सूचक होता है। जिस जातक का अंगूठा अंगुलियों से नजदीकी से जुड़ा हुआ, छोटा या भद्दा हो, वह मंदबुद्धि, मूढ़ व लालची होता है। अगर प्रथम अंगुली से अंगूठा अधिक दूरी पर हो, तो व्यक्ति तीव्रबुद्धि व दूरदर्शी होता है। ऐसे अंगूठे वाले कुछ व्यक्तियों में धन अधिक खर्च करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। जिसका अंगूठा अत्यधिक लंबा हो, वह भावुक नहीं होता, बल्कि उसमें हठ की प्रवृत्ति अधिक होती है। किंतु यदि मस्तिष्क रेखा अच्छी हो, तो वह कुशल शासक होता है। लंबे अंगूठे वाले लोगों के विचारों और कर्म में समानता पाई जाती है। ऐसे लोग अपनी मर्जी के मालिक होते हैं और किसी से जल्दी प्रभावित नहीं होते। वे अच्छे आलोचक होते हैं। वे मनोबल व बुद्धि को अधिक महत्व देते हैं। इसके विपरीत छोटे अंगूठे वाले जातक प्रायः भावनाओं से नियंत्रित होते है। अधिकांश हस्तशास्त्रियों के अनुसार अंगूठे के दो पर्व होते हैं। पहला पर्व इच्छा, मनोबल व भावना का और दूसरा विवेक, बुद्धि, ज्ञान व तर्क का सूचक है। कुछ हस्तशास्त्री शुक्र पर्वत को अंगूठे का तीसरा पर्व मानते हैं, जो प्रेम और संवेदना का सूचक है। छोटे अंगूठे वाले लोगों की तुलना में लंबे अंगूठे वाले लोगों का व्यक्तित्व अच्छा होता है, क्योंकि वे अपनी भावनाओं पर सरलता से नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं। अंगूठे का पहला पोर यदि अधिक लंबा हो, तो व्यक्ति तानाशाह प्रवृत्ति का होता है और उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं होता। यदि पहला पोर लंबा हो, तो व्यक्ति की इच्छाशक्ति दृढ़ होती है और वह अच्छे स्वास्थ्य का स्वामी होता है। किंतु यदि छोटा हो, तो व्यक्ति में आत्म नियंत्रण का अभाव होता है। यदि यह अधिक छोटा हो, तो व्यक्ति असभ्य, लापरवाह, जिद्दी व जल्दी घबरा जाने वाला होता है। अंगूठे का दूसरा पोर यदि अत्यधिक लंबा हो, तो व्यक्ति चरित्र संदिग्ध होता है। वह किसी की बातों पर विश्वास नहीं करता। वह तर्कशक्ति को महत्व देता है और उसमें विवेक की प्रधानता पाई जाती है। अंगूठे के दूसरे पोर का छोटा या अधिक छोटा होना कमजोर तर्कशक्ति व विवेकशून्यता का सूचक होता है। ऐसे अंगूठे वाले लोग किसी कार्य को करने से पहले कुछ सोचना समझना नहीं चाहते। अंगूठे का पहला पोर अत्यधिक छोटा हो तो व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी होती है। वह लापरवाह और असभ्य होता है और उसके दिल और दिमाग में सामंजस्य का अभाव होता है। अंगूठा मोटा हो, तो व्यक्ति हठी, कामुक व असभ्य होता है। अंगूठे का चपटा होना व्यक्ति के संवेदनशील व नीच स्वभाव का द्योतक होता है। अंगूठे का छोटा होना मानसिक अस्थिरता का सूचक होता है। चौड़े अंगूठे वाले जातक स्वभाव से हठी होते हैं। अगर अंगूठा लंबा व चौड़ा हो, तो व्यक्ति में शासन करने की प्रवृत्ति होती है। वह स्वतंत्र विचार वाला होता है और किसी के अधीन नहीं रहना चाहता। यदि अंगूठा चौड़ा व छोटा हो, तो व्यक्ति हिंसक प्रवृत्ति का होता है। अंगूठे के अग्र भग का नुकीला होना संवेदनशीलता का सूचक है। ऐसा जातक कला व सौंदर्य प्रेमी होता है, किंतु उसकी इच्छाशक्ति दुर्बल होती है। वह दूसरों से बहुत जल्द प्रभावित हो जाता है। यदि नुकीले अंगूठे का प्रथम पर्व लंबा हो, तो जातक अत्यधिक भावुक होता है। अंगूठे का लचीला होना शुभ नहीं होता और जिसका अंगूठा लचीला होता है उसका जीवन अनिश्चितता से भरा होता है। अधिकांश पागल लोगों का अंगूठा इसी प्रकार का देखने में आया है। जिसके अंगूठे का सिरा वर्गाकार होता है, वह व्यवहारकुशल होता है। यदि अंगूठे के दोनों पर्व सामान्य हों, तो व्यक्ति गुणवान होता है। अगर अंगूठे का अग्र भाग चमसाकार हो तो सामान्य इच्छाशक्ति वाले जातक को मौलिकता, कार्यकुशलता व सक्रियता प्राप्त होती है। यदि प्रथम पर्व लंबा हो, तो व्यक्ति प्रवीण, सक्रिय व उत्साही होता है। मूठदार अंगूठे वाले जातक अच्छे नहीं माने जाते हैं। ऐसा अंगूठा हथेली में विद्यमान अच्छे गुणों को भी दूषित कर देता है। अंगूठा का पहला पोर चौड़ा होने के साथ साथ कांच की गोली के समान गोल हो, तो व्यक्ति जल्द उत्तेजित होने वाला व क्रोधी होता है। कुछ हस्तरेखा शास्त्री इसे वंशानुगत मानते हैं। अंगूठे का पीछे की ओर अत्यधिक झुकाव व्यक्ति के फिजूलखर्ची व मुक्त हृदय होने का द्योतक होता है। ऐसे लोग परिस्थिति के अनुरूप अपने को ढाल लेते हैं। अंगूठे के दोनों पोरों को अलग करने वाली रेखा में जौ का निशान हो तो व्यक्ति को खाने-पीने की कभी कमी नहीं होती।



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