दाम्पत्य जीवन पर राहु का दुष्प्रभाव

दाम्पत्य जीवन पर राहु का दुष्प्रभाव  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 17140 | जुलाई 2006

दाम्पत्य जीवन पर राहु का दुप्रभाव रेनु सिंह राहु की छाया दाम्पत्य जीवन को तीव्रता से प्रभावित करती है। राहु तथा मंगल मिलकर जहां जातक को जिद्दी बनाते हैं वहीं राहु का सप्तम भाव पर प्रभाव विवाह विच्छेद तक करा देता है, कैसे? आइए जानें...

विवाह व दाम्पत्य जीवन का आकलन जन्मकुंडली के सप्तम भाव से किया जाता है। पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह पत्नी व विवाह (कलत्र) कारक होता है तथा स्त्री की कुंडली में बृहस्पति पति तथा दाम्पत्य सुख का कारक होता है।

‘‘ज्योतिष नवनीतम्’’ ग्रंथ के अनुसारः गुरुणा सहिते दृष्टे दारनाथे बलान्विते। कारके वा तथा पतिव्रतपरायणा।। अर्थात् जब सप्तमेश व कारक (शुक्र) बलवान होकर गुरु से युक्त अथवा दृष्ट हों तो जीवन साथी निष्ठावान होता है। परंतु सभी जातक ऐसे भाग्यशाली नहीं होते। सप्तम भाव, भावेश व शुक्र पर मंगल और शनि का प्रभाव मुख्य रूप से दाम्पत्य जीवन में विघ्नकारक माना जाता है, परंतु छाया ग्रह (राहु/केतु) भी इस क्षेत्र में कम दुष्प्रभावी नहीं होते।

छाया ग्रहों में राहु इहलोक तथा सांसारिक क्षेत्र में, और केतु परलोक तथा धार्मिक क्षेत्र में विशेष प्रभावी होते हैं। महर्षि पराशर के अनुसार राहु वृष ाराव लाती हैं। राहु का चंद्रमा व शुक्र दोनों पर दुष्प्रभाव होने से जातक अप्राकृतिक यौन भाव से ग्रस्त होता है। मंगल व शुक्र पर राहु का प्रभाव होने से जातक परिवार, जाति व समाज की परवाह न कर यौन संबंध स्थापित करता है। राहु का शनि पर प्रभाव होने से दीर्घकालीन रोग दाम्पत्य जीवन को दुखमय बना देते हैं। राहु का दाम्पत्य जीवन पर दुष्प्रभाव निम्न कुंडलियों में प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होता है।

कुंडली सं. 1 में राहु सप्तम भाव में नीच का है। उसकी एकादश भाव स्थित सप्तमेश मंगल और स्वक्षेत्री बृहस्पति पर दृष्टि है। दूृषित मंगल की शुक्र, शनि और चंद्रमा पर दृष्टि है। जातक ने मार्च 2002 में प्रेम विवाह किया, परंतु दूसरी स्त्रियों के चक्कर में रहता है, जिससे उसका दाम्पत्य जीवन टूटने की स्थिति में पहुंच गया है।

कुंडली सं. 2 में राहु सप्तमेश मंगल के साथ लग्न में स्थित है। कलत्रकारक शुक्र अस्त है तथा पापकत्र्तरी योग में है। सप्तम भाव पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं है। जातक अभी तक अविवाहित है।

कुंडली सं. 3 में सप्तमेश शनि लग्न में प्रतिकूल राशि में है और उस पर कोई शुभ दृष्टि नहीं है। मंगल और शुक्र की युति राहु द्वारा ग्रस्त है। मंगल की सप्तम भाव व बृहस्पति पर दृष्टि है। दिल्ली से बाहर प्रोफेशनल कोर्स करते हुए जातका का एक अन्य जाति के सहपाठी से प्रणय संबंध हुआ, वह उसके साथ बिना विवाह के रहने लगी और परीक्षा में फेल हो गई। इसका पता चलने पर उसके माता-पिता ने उसका किसी प्रकार विवाह कराया किंतु उसका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है।

कुंडली सं. 4 में लग्न व राशि कन्या है। सप्तमेश बृहस्पति द्वादश भाव में है। द्वादशेश सूर्य, अष्टमेश मंगल और षष्ठेश शनि सप्तम भाव में राहु से ग्रस्त हैं। चंद्रमा केतु से ग्रस्त है तथा उस पर सप्तम भाव स्थित ग्रहों की अशुभ दृष्टि है। सप्तम भाव व सप्तमेश के ग्रस्त होने के कारण जातका के विवाह से 11वें मास में उसके पति का स्वर्गवास हो गया।

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