ज्योतिषीय दृष्टिकोण में रंगों का महत्व
ज्योतिषीय दृष्टिकोण में रंगों का महत्व

ज्योतिषीय दृष्टिकोण में रंगों का महत्व  

सतीश कुमार सिन्हा
व्यूस : 4934 | अकतूबर 2008

रंगों का हमारे दैनिक जीवन में काफी महत्व हैं। अगर संसार में रंग नहीं होता तो दुनिया अजीब सी लगती। इसलिए कुदरत ने रंगों के रूप में अमूल्य उपहार हमें दिया है। ज्योतिष वास्तु एवं अंकशास्त्र की दृष्टिकोण से भी रंगों का हमारे दैनिक जीवन पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

कहा जाता है कि यदि सूर्य की रश्मियों का प्रभाव जन्मपत्री में अच्छा नहीं हो, या वास्तु में पूरब की दिशा का दोष हो तो अंक ज्योतिष के आधार पर एक अंक के प्रभाव कम होने पर सुनहरा-पीला रंग, गुलाबी या भूरा रंग का इस्तेमाल करने से उस रश्मि के प्रभाव की कमी को दूर किया जा सकता है। इसलिए कहा जाता है कि रविवार को इन रंगों का इस्तेमाल करने पर पराक्रम, प्रतिष्ठा, स्वाभिमान एवं पदों में वृद्धि होती है और आत्मिक विकास अच्छा होता है।

व्यक्ति पर 1 अंक का प्रभाव कम होने पर आंख, हड्डी, हृदय आदि के रोग से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। अगर किसी भी जन्मपत्री में चंद्रमा कमजोर रहे या वास्तु में उत्तर-पश्चिम दिशा में किसी प्रकार का दोष हो या व्यक्ति पर

2 अंक का प्रभाव कम हो तो सफेद रंग का अधिक व्यवहार करना चाहिए। इससे मानसिक शांति, सौम्यता, व्यवहार कुशलता के साथ-साथ चंद्रमा के दोष से उत्पन्न बीमारियां यथा सर्दी-खांसी आदि में लाभ मिलता है। किसी जन्मपत्री में गुरु की स्थिति अच्छी नहीं हो या ईशान कोण में कमी हो या

3 अंक के प्रभाव की कमी हो तो, लीवर की बीमारियां, वंश की वृद्धि में कमी, ज्ञान की कमी रहती है। ऐसे में केसर रंग, पीला रंग एवं क्रीम कलर का इस्तेमाल करने से अच्छा प्रभाव हासिल किया जा सकता है। अगर किसी जन्मपत्री में राहु कमजोर हो या दक्षिण-पश्चिम की दिशा में दोष हो अथवा

4 अंक का प्रभाव कम हो तो स्नायु-तंत्र से संबंधित बीमारियां, लकवा, पोलियो, कुटनीतिज्ञ ज्ञान की कमी आदि बनी रहती है। ऐसी परिस्थिति में नीले रंग का इस्तेमाल करना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में बुध की स्थिति कमजोर रहे, घर की उत्तर दिशा में दोष हो या

5 अंक का प्रभाव कम रहे तो बुद्धि, विवेक में कमी बनी रहती है। ऐसी स्थिति में वाणी के प्रभाव में भी कमी रहेगी। अतः इन दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए ज्यादा-से-ज्यादा हरे रंगं का प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु की स्थिति कमजोर हो, घर में दक्षिण-पश्चिम दिशा में दोष हो या इस पर

7 अंक का प्रभाव कम हो तो घाव, ज़ख्म, फोड़ा, फुंसी, की शिकायत बनी रहती है। अतः इसके निदान के लिए धूसर रंग का अधिक इस्तेमाल करना चाहिए। जन्म कुंडली में शनि की स्थिति ठीक नहीं रहे या घर में पश्चिम दिशा में दोष हो या

8 का प्रभाव कम हो तो व्यक्ति को मानसिक अशांति के साथ वात एवं गठिया की शिकायत लगी रहती है। इसके निवारण हेतु काला एवं ग्रे रंग का अधिक इस्तेमाल करना चाहिए। यदि जन्मपत्री में मंगल की स्थिति कमजोर हो या घर की दक्षिण दिशा में दोष रहे या

9 अंक का प्रभाव कम हो तो स्फूर्ति व उत्साह में कमी, अस्थि - मज्जा में विकार देखने को मिलता है। अतः इसके निवारण के लिए चमकीला, गुलाबी, नारंगी रंग का व्यवहार अधिक करना चाहिए। इस प्रकार, यदि रंगों का सही चुनाव एवं इस्तेमाल किया जाए तो मनुष्य को विभिन्न बीमारियों से छूटकारा मिल सकता है।

यदि रंगों का सही इस्तेमाल नहीं किया जाए तो कष्ट एवं पीड़ा बनी रहती है। तभी तो कहा जाता है कि रविवार को सुनहरा पीला, सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को विभिन्न प्रकार एवं शनिवार को काला या नीले रंग का इस्तेमाल करना चाहिए।

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