शिक्षा एवं परीक्षा में सफलता

शिक्षा एवं परीक्षा में सफलता  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 4802 | फ़रवरी 2017

विद्या प्राप्ति व परीक्षा में सफलता प्राप्ति में बाधा देने वाले ज्योतिषीय योग क्या हैं तथा इन्हंे दूर करने हेतु अचूक उपाय विद्या या शिक्षा का विचार मुख्यतः ‘पंचम’ भाव से किया जाता है। परंतु ‘विद्या’ को ‘धन’ कहा गया है अतः द्वितीय धन भाव से किसी भी बालक की प्रारंभिक शिक्षा’ का विचार किया जाता है। साथ ही चतुर्थ भाव से भी शिक्षा का निर्णय करते हैं। नवम भाव जिसे ‘भाग्य’ भाव कहते हैं, यह पंचम से पंचम भाव होने तथा दशम भाव ‘कर्म’ भाव होने से इन दोनों से भी ‘उच्च शिक्षा’ का विचार किया जाता है। इस तरह शिक्षा का विचार 2, 4, 5, 9, 10 भावों से किया जाता है, लेकिन पंचम भाव शिक्षा या विद्या के साथ किसी भी क्षेत्र से जुड़ा ‘ज्ञान’, बुद्धि एवं विवेक का भी है। विद्या के कारक ग्रह बृहस्पति, बुध व चंद्र तथा लग्नेश एवं राशीश का विचार भी शिक्षा प्राप्ति में महत्वपूर्ण है।

यदि उपरोक्त भावों के स्वामी, कारक, लग्नेश व राशीश बली होकर केंद्र, त्रिकोण में स्थित हों तथा पाप प्रभाव से रहित हांे तो विद्या आसानी से प्राप्त हो जाती है। इसके विपरीत यदि इनके स्वामी निर्बल होकर, त्रिक भाव में हांे या पाप प्रभाव युक्त हों तो विद्या या परीक्षा में बाधा व पढ़ाई में अरुचि होती है। विद्या प्राप्ति के योग

1. यदि पंचमेश पंचम में स्वगृही या नवम या लग्न में बली (उच्च, स्वगृही या मित्रराशिगत) हो तो जातक विद्वान होकर आसानी से शिक्षा अर्जित करता है।

2. यदि तीनों ही त्रिकोण भाव में भाव परिवर्तन हो अर्थात् लग्नेश-पंचमेश में, लग्नेश-नवमेश में या पंचमेश-लग्नेश में हो तो जातक ज्ञानी होता है। इनके लग्नेश-पंचमेश में भाव परिवर्तन है तथा लग्नेश, राशीश गुरु पंचम में उच्च का स्थित है, अतः नियम-1, 2 का पालन हो रहा है। सभी जानते हैं कि ये महापुरूष ज्ञानी होने के साथ प्रसिद्ध कवि थे। साथ ही आत्मकारक ग्रह ‘सूर्य’ उच्च का द्वितीय भाव में ‘बुधादित्य’ योग बना रहा है।

3. कर्क लग्न में लग्नेश पंचम भाव या लग्न में (स्वगृही) हो तो जातक को विद्वान बनाता है। जवाहर लाल नेहरू जी की कुंडली में चंद्र लग्न में स्वगृही था। अर्थात, चंद्र लग्नेश, राशीश होकर लग्न में बली था।

4. द्वितीयेश, केंद्र या त्रिकोण में हो तो जातक अनेक विधाओं का ज्ञाता होता है। रवींद्रनाथ टैगोर की कुंडली में द्वितीयेश चतुर्थ केंद्र भाव में स्थित है।

5. गुरु का 2, 4, 5, 9 से या चतुर्थेश का नवमेश से संबंध हो तो जातक की शिक्षा में गहरी रूचि होती है।

6. यदि 11वें भाव में बुध, गुरु या गुरु, शुक्र स्थित हो तो जातक की शिक्षा में गहरी रूचि उसकी आजीविका का साधन बनती है।

7. लग्नेश व अष्टमेश में भाव परिवर्तन योग हो तो जातक शिक्षा में गहरी रूचि के साथ वैज्ञानिक बनता है।

8. लग्न में चंद्र और बुध की युति जातक को वैज्ञानिक, आचार्य या कवि बनाती है।

9. यदि लग्नेश, पंचमेश और नवमेश की युति दशम भाव में हो तो जातक की शिक्षा में गहरी रूचि के साथ वह वैज्ञानिक होता है, वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टिन की कुंडली में यह योग मौजूद है।

10. नवमेश की बुध के साथ युति जातक को विद्याभिलाषी व बुद्धिमान बनाती है। वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन की कुंडली में नवमेश शनि, बुध के साथ स्थित है। अर्थात यह योग मौजूद है।

11. यदि कुंडली में बुधादित्य योग मौजूद हो तो जातक विद्वान व खोजी प्रवृत्ति का होता है। कुंडली-1 या 2 में यह योग मौजूद है फलतः गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर व वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन दोनों ही विद्वान और खोजी प्रवृत्ति के थे।

12. मेष लग्न में पंचम भाव में सूर्य हो अर्थात स्वगृही हो तथा साथ में बुध के साथ बुधादित्य योग बनता हो तो जातक बुद्धिमान व ज्ञानी होता है।

13. तृतीय में स्थित बुध, बुद्धि व पराक्रम के साथ शिक्षा करवाता है।

14. यदि सूर्य दशम भाव में स्थित हो तथा दशमेश की इस पर दृष्टि हो तो जातक की शिक्षा में रूचि होती है तथा वह विद्वान होता है।

15. यदि बुध, 11वें भाव में स्थित हो तथा इस पर दृष्टि या युति द्वारा शुभ प्रभाव हो तो जातक की विद्या व काव्य कला में विशेष रूचि होती है।

16. पंचमेश, नवम भाव में हो या नवमेश, पंचम भाव में स्थित हो या दोनों में भाव परिवर्तन योग हो तो जातक विद्या में रूचि लेने वाला तथा बुद्धिमान होता है।

17. पंचमेश, दशम या नवम भाव में स्थित हो तो जातक विद्या का धनी होता है।

18. चतुर्थेश लग्न में वर्गोत्तम हो तो उच्च शिक्षा का योग बनता है।

19. यदि द्वितीय भाव में वर्गोत्तम गुरु या शुक्र स्थित हो तो जातक अनेक विद्या का ज्ञाता होता है।

20. यदि 2 या 11 भाव में बुध व शुक्र हो तो जातक वेदांती होता है।

21. यदि सौम्य ग्रह, लग्न में उच्च के स्थित हो तो जातक उच्च कोटि का विद्वान होता है।

22. बुध से त्रिकोण में मंगल तथा चंद्र से त्रिकोण में गुरु हो तो जातक एकाधिक विषयों का ज्ञाता होता है।

23. यदि गुरु, पंचम भाव में बली हो तो जातक बुद्धिमान होने के साथ का शिक्षित उच्च कोटि का होता है।

24. यदि 1 व 4 भाव व इनके स्वामी तथा बुध का संबंध हो तो जातक विद्या में रूचि के साथ सफल होता है।

25. यदि नवम भाव में शनि व गुरु की युति हो तो जातक की विद्या में विशेष रूचि होती है व सफल होता है।

26. यदि शनि का प्रभाव 2, 4 भाव व इनके स्वामियों तथा गुरु पर हो तो जातक शिक्षा क्षेत्र में रूचि के साथ सफल होता है।

27. पंचम भाव में शुक्र स्थित हो तो विद्या के प्रति रूचि दर्शाता है तथा जातक ग्रंथकार बनता है।

28. यदि पंचमेश सौम्य ग्रह होकर केंद्र में बली (उच्च, स्वगृही या मित्रराशिगत) स्थित हो तो जातक अध्ययन हेतु विदेश जाता है। यदि लग्नेश भी बली हो तथा सौम्य ग्रह युक्त हो तो भी जातक विदेश में शिक्षा अर्जित करता है।

29. यदि पंचम भाव में शुभ ग्रह शुभ राशि में स्थित हो तो जातक कार्य क्षेत्र में रूचि के साथ उच्च शिक्षा हासिल करता है।

30. यदि पंचम भाव व भावेश पर शुभ ग्रहों का दृष्टि/ युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक विद्वान, ज्ञानी होता है।

31. यदि पंचमेश, दशम या एकादश भाव में स्थित हो तो जातक विद्वान होता है।

32. यदि चंद्र, बुध या गुरु बली होकर केंद्र में स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा हासिल करता है तथा वह बुद्धिमान, ज्ञानी होता है।

33. यदि बुध व गुरु की युति हो।

34. यदि चंद्र व बुध में परस्पर 3-11 या 5-9 स्थिति हो तथा बृहस्पति से दृष्ट हो तो जातक प्रखर बुद्धि के साथ शिक्षा अर्जित करता है।

35. यदि लग्न एवं चतुर्थ भाव में भाव परिवर्तन योग हो तो जातक उच्च शिक्षा अर्जित करता है। यदि चतुर्थेश व लग्नेश भी अपने-अपने भाव में स्वगृही हो तो पंच महापुरूष के योग बनकर उच्च शिक्षा हासिल करता है। यह योग उदाहरण कुंडली -3 (पं. नेहरू) में आसानी से देख सकते हैं।

36. यदि बृहस्पति, नवम स्थान में स्थित हो तथा बुध और शुक्र की इस पर दृष्टि हो या नवम में ये तीनों ग्रह हांे तो जातक विद्वान होकर शिक्षा में सफल होता है।

37. यदि बुध व गुरु के साथ शनि नवम में स्थित हो तो जातक विद्वान होकर शिक्षा अर्जित करता है।

38. गुरु, चंद्र, बुध यदि सप्तमेश से 4, 8, 9 भाव में हो तो जातक उच्च शिक्षा हासिल करता है।

39. चंद्र से त्रिकोण में गुरु, बुध हो तथा इनसे त्रिकोण में मंगल हो।

40. शुक्र व बुध उच्च के हों तथा गुरु केंद्र त्रिकोण में हो तो जातक प्रोफेसर/वैज्ञानिक होता है।

41. लग्न में मंगल हो, चतुर्थ में बुधादित्य योग हो तथा दशम में शनि$चंद्र हो तो जातक उच्च शिक्षा हासिल करता है।

उच्च शिक्षा योग

1. सरस्वती योग: यदि गुरु व चंद्रमा में भाव परिवर्तन योग हो या चंद्र पर गुरु की दृष्टि हो तो यह योग बनता है। ऐसे व्यक्ति सरस्वती के पुत्र कहे जाते हैं। ये काव्य, संगीत, साहित्य व कला क्षेत्र में विलक्षण होते हैं। उदाहरण कुंडली-1- रवींद्रनाथ टैगोर जी की कुंडली में यह योग मौजूद है।

2. शंख योग: यदि पंचमेश व षष्ठेश केंद्र में लग्नेश के साथ स्थित हो तो यह योग बनता है। ऐसा व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में अपार उन्नति करता है।

3. बुधादित्य योग: यदि पत्री में सूर्य$बुध एक साथ स्थित हो तो यह योग बनता है, ये खोजी प्रवृत्ति के होते हैं और शिक्षा क्षेत्र में सफलता हासिल करते हैं। उदाहरण - रवींद्र नाथ टैगोर, वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन आदि की कुंडली में यह योग मौजूद है।

विभिन्न लग्नों में उच्च शिक्षा योग

1. मेष लग्न में पंचम में बुध स्थित हो तथा पंचमेश सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो।

2. मिथुन लग्न में लग्न में शनि, तृतीय में शुक्र, नवम में गुरु हो।

3. कर्क लग्न में लग्न में बुध, गुरु (उच्च का) व शुक्र स्थित हो।

4. कन्या लग्न में 11वें भाव में गुरु व चंद्र तथा बुध (लग्नेश) नवम भाग्य भाव में स्थित हो।

5. तुला लग्न में अष्टमस्थ शनि, गुरु से दृष्ट हो तथा नवम भाग्य स्थान में बुध (स्वगृही) हो।

6. वृश्चिक लग्न में, लग्न में बुध व सूयर्, नवम में गुरु व चंद्र हो।

7. धनु लग्न हो, लग्न में गुरु, पंचम में मंगल व चंद्र स्थित हो तो उच्च शिक्षा का योग बनता है।

विज्ञान व तकनीकी क्षेत्र में शिक्षा प्राप्ति योग

1. बुध योग: गुरु लग्न में हो तथा चंद्रमा से तृतीय भाव में सूर्य व बुध के साथ मंगल हो तो जातक विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति करता हुआ वैज्ञानिक बनता है।

2. यदि लग्नेश व अष्टमेश में भाव परिवर्तन योग हो तो जातक वैज्ञानिक होता है। उदाहरण कुंडली-4 (वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस) में लग्नेश शुक्र अष्टम भाव में व अष्टमेश गुरु लग्न में स्थित है।

3. यदि मंगल उच्च का होकर नवम भाग्य भाव में स्थित हो तथा इस पर शनि की पूर्ण दृष्टि हो तथा मंगल की पूर्ण दृष्टि से शनि को देखता हो तथा पंचमेश या गुरु केंद्र में स्थित हो तो जातक विज्ञान या तकनीकी क्षेत्र में सफलता हासिल करता है। कुंडली-4 (श्री बोस) में मंगल नवम में उच्च का, मंगल, शनि में परस्पर दृष्टि संबंध तथा गुरु लग्न केंद्र में स्थित है फलतः श्री बोस वैज्ञानिक हुए।

4. यदि अष्टमेश बली होकर, तृतीयेश से युति करे तो जातक वैज्ञानिक, आविष्कारक, अनुसंधानकत्र्ता होता है।

5. यदि दशम में चतुर्थेश बुध, शनि के साथ स्थित हो तो जातक वैज्ञानिक, तकनीकी विशेषज्ञ होता है। उदाहरण कुंडली-2 (अल्बर्ट आइंस्टीन) की कुंडली में यह योग मौजूद है, फलतः वे वैज्ञानिक थे। इनका चतुर्थेश बुध, दशम में शनि के साथ स्थित है।

6. यदि मंगल, दशमेश होकर एकादश भाव में बुध के साथ स्थित हो, नवांश कुंडली में दशमेश के नवांशेश पर मंगल एवं शनि का प्रभाव हो तथा नवमेश स्वयं नवम यानि भाग्य स्थान को देख रहा हो तो जातक तकनीकी क्षेत्र में उच्च शिक्षा हासिल करता है। विद्या बाधा, परीक्षा में असफलता के योग विद्या कारक ग्रहों का निर्बल होना:

1. यदि चंद्र, बुध, गुरु नीच, वक्री, अस्त, मृतावस्था, शत्रुराशिगत स्थित होकर पाप प्रभाव (दृष्टि या युति द्वारा) में हो तथा ये त्रिक भाव में हांे तो विद्या में मन न लगना, विद्या में बाधा, परीक्षा में असफलता देता है।

2. कुंडली में कालसर्प योग हो या पितृदोष (ग्रहण, जड़, चांडाल आदि) हो तो विद्या में बाधा उत्पन्न होती है साथ ही राहु, केतु की दशा चल रही हो।

3. कुंडली में विष योग हो तथा शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या, शनि की दशा आदि का समय चल रहा हो।

4. ‘कुंडली में केमद्रुम योग हो।

5. चंद्र का नीच या अमावस्या का होना।

6. यदि 2, 4, 6, 9, 10 भाव में निर्बल अशुभ ग्रह हो या इनके स्वामी निर्बल (नीच, शत्रुराशिगत, अस्त, वक्री आदि) होकर त्रिक भाव में स्थित हो या इन पर पाप प्रभाव हो या पाप कर्तरी प्रभाव में हो तो जातक को विद्या बाधा, मन न लगना, परीक्षा में असफलता देता है।

7. यदि अशुभ राहु 2, 10, 6, 8, 12 भाव में हो तो जातक का पढ़ाई में मन नहीं लगता जिससे शिक्षा बाधित होती है। यदि अशुभ शनि 5, 8 भाव में स्थित हो तो विद्या बाधा देता है।

विद्या बाधा, दूर करने के उपाय:

1. लग्नेश, पंचमेश, नवमेश तीनों का संयुक्त रूप से त्रिशक्ति पेन्डेन्ट गले में धारण करें। यदि कालसर्प योग, ग्रहण योग हो तो इस त्रिशक्ति पेन्डेन्ट को वशीकरण या बीसा यंत्र लाॅकेट में बनवाकर गले में धारण करें।

2. यदि कुंडली में केमद्रुम योग हो तो उपरोक्त, पेन्डेन्ट गले में धारण करें।

3. यदि कुंडली में कालसर्प योग हो तो इसका कवच गले में धारण करें।

4. द्वितीयेश, चतुर्थेश, दशमेश यदि लग्नेश से मित्रता रखे तो इनके रत्न धारण करें अन्यथा मंत्र जप या दान करें।

5. यदि गुरु, चंद्र, बुध कमजोर हो और लग्नेश के रत्न से मित्रता रखते हों तो इनके रत्न धारण करें या उपाय करें।

6. जब जातक पर जिस ग्रह की महादशा चल रही होती है तो वह ग्रह अधिकतम प्रभावी होता है अतः जिस ग्रह की महादशा चल रही हो इसके यंत्र के नीचे उसका रत्न लगवाकर इसके दायीं व बायीं ओर इसको शुभत्व प्रदान करने वाले ग्रहों के रत्न को जड़ाकर शुभ प्रभाव में वृद्धि की जाती है। इससे समय अनुकूल होता है तथा विद्या बाधा दूर होती है।

7. गणेशजी व सरस्वती जी की नित्य पूजा करें, इससे राहु, केतु के अशुभ प्रभाव भी दूर होते हैं। बुद्धि, विवेक, ज्ञान, विद्या में वृद्धि होती है। इनके मंत्र जप करें। गणेश रुद्राक्ष व सरस्वती कवच गले में पहनें। इनके महायंत्र स्थापित करें।

8. दशमहाविद्या में भुवनेश्वरी व तारा जी की पूजा करें। इससे विद्या बाधा दूर होती है। यंत्र स्थापित करें।

9. विद्या, स्वास्थ्य हेतु गायत्री माता व शिवजी के महामृत्युंजय मंत्रों का नित्य जप करें।

10. यदि किसी जातक के पास जन्मपत्री न हो तो सारणी अनुसार नवग्रह पैंडल गले में पहनें।

11. विद्यार्थी की स्मरण शक्ति में वृद्धि तथा परीक्षा में सफलता हेतु रामायण की निम्न चैपाई का विश्वास के साथ जप करें- ‘‘जेहि पर कृपा करहिं करू जानि, कवि उर अजर, नमावहि बानी। मोरि सुधार ही सो सब भांति, जासु कृपा नहीं कृपा अघाती।

12. भूली हुई पढ़ाई याद करने, स्मृति बढ़ाने हेतु कमलगट्टे की माला से प्रतिदिन एक माला निम्न मंत्र का जाप करें: ‘‘गई बहोर गरीब नेबाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।’’

13. उच्च शिक्षा हेतु रूद्राक्ष माला से प्रतिदिन 1 माला निम्न मंत्र का जप करें: ‘‘गुरु ग्रह गये पठन रघुराई। अल्प काल विद्या सब आई।।

14. विद्यार्थियों को पूर्व की ओर सिर करके सोना चाहिए।

15. पढ़ते समय मुंह पूर्व, ईशान या उत्तर की ओर रहे या यदि जन्मपत्री में एकादशेश जिस राशि में स्थित है, उस राशि के स्वामी ग्रह की जो दिशा होती है उस दिशा में मुंह/ सिर (मस्तक) करके ही सोना/पढ़ाई आदि कार्य करने चाहिए। इससे सफलता मिलती है।

16. पढ़ाई करते समय पीछे की दीवार ठोस हो। खिड़की या दरवाजे न हांे। बीम के नीचे बैठना, सोना नहीं चाहिए। इस दोष को दूर करने हेतु खिड़की/दरवाजे के स्थान पर पहाड़ का फोटो लगाना चाहिए और बीम पर बांसुरियां टांग देनी चाहिए। इसमें पिरामिड का उपयोग भी लाभप्रद है।

17. बच्चों के पुस्तक आदि पाठ्यसामग्री, अलमारियां दक्षिण दीवार पर बनायंे तथा बंद रखें। टेबल लकड़ी का हो तथा त्रिकोण न हो। पढ़ाई मेज के ऊपर दीवार पर गणेश जी-सरस्वती जी का फोटो लगायें। उत्तर में पीने के पानी की व्यवस्था करें।

18. पढ़ाई मेज पर क्रिस्टल बाॅल रखें तथा दिन में न्यूनतम एक बार इसे अवश्य घुमायें। इसके अलावा मानचित्र वाला ग्लोब, स्फटिक कछुआ भी शुभ रहता है। मेज पर एजुकेशन टावर भी रखना अच्छा रहता है।

19. परीक्षा देने जाने से पूर्व मीठा दही खाकर, गणेशजी - सरस्वतीजी का आशीर्वाद लेकर जायंे तथा गाय को गुड़, रोटी खिलाकर जायें।

20. शिशु जातक के गर्भ से निकलने के बाद उसकी जीभ पर, चांदी की श्लाका शहद में भिगोकर, उसमें ‘ऐं’ मंत्र लिख देने से बालक विद्वान बनता है। यदि जन्म समय ऐसा संभव न हो तो यह क्रिया बुधवार या पंचमी को करें।

21. यदि मन की चंचलता के कारण पढ़ाई नही हो रही हो तो लौंग को अपने ऊपर से 7 बार उतार कर बाहर सड़क पर फेंक दें, मन की चंचलता दूर होकर निर्णय क्षमता में वृद्धि होगी।

22. गणेश जी को प्रतिदिन (कम से कम बुधवार/चतुर्थी को) 3 से 5 पत्तियों वाली 21 दूर्वा का पूड़ा बनाकर चढ़ायें। लाल पुष्प गुलाब, कनेर, गुलहड़ आदि चढ़ायंे। लड्डू का भोग लगायें। ऊँ गं गणपतये नमः मंत्र का जप कर इनके 12 नाम का पाठ करें। शिक्षा बाधा दूर होगी।

23. परीक्षा देने जाते समय यदि विद्यार्थी को रास्ते में किसी भी पेड़ का पत्ता गिरता दिखाई दे, तो उसे जमीन पर गिरने से पूर्व ही पकड़ कर जेब या बैग में रख लें, उस दिन परीक्षा अच्छी होगी।

24. स्वर शास्त्रानुसार जब दायां स्वर (सूर्य) चल रहा हो तब कठिन विषय पढ़ें। परीक्षा में जाते समय जो स्वर चल रहा हो उसी के अनुरूप पैर घर से बाहर रखें। परीक्षा रूम में भी ऐसा ही करें।

25. बच्चे की कल्पनाशक्ति में विकास हेतु मेज पर उड़ने वाले पक्षी फीनिक्स का चित्र, पिरामिड या ऊंची मीनार का चित्र रखना चाहिए।

26. बच्चों में कार्यक्षमता में विकास हेतु सात घंटियों वाली पवन घंटी कमरे में पश्चिम में लगायें।



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