फल कथन के कुछ नियम

फल कथन के कुछ नियम  

ईश्वर पुर्सनाणी
व्यूस : 8271 | जुलाई 2007

कुंडली देखते समय भावों व उनमें उपस्थित ग्रहों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। जल्दबाजी और उतावलेपन में किसी एक ही भाव या ग्रह को देखकर कभी फल नहीं करना चाहिए। लग्न, लग्नेश की स्थिति तथा उसकी प्रकृति, ग्रहों की परस्पर दृष्टि, कारक, अकारक, तटस्थ और बाधक ग्रहों, उनके स्थान, प्रभाव, स्थान परिवर्तन करने वाले ग्रहों, केंद्र-त्रिकोण के संबंध, प्रत्येक भाव, उसके स्वामी तथा उस स्वामी की कुंडली में स्थिति, मित्र क्षेत्री , शत्रु क्षेत्री, पापी ग्रहों, सौम्य शुभ ग्रहों के पारस्परिक संबंध, शुभ अशुभ योग, योग भंग, राज योग, दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर्दशा आदि को ध्यान में रखते हुए कुंडली का अवलोकन करना चाहिए।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


Û जिस भाव में जो राशि हो, उस राशि का स्वामी ही उस भाव का स्वामी (भावेश) कहलाता है।

Û लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली, सूर्य कुंडली तीनों का समानांतर अध्ययन करना चाहिए।

Û लग्न से छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी जहां भी बैठते हैं, उस भाव को नुकसान पहुंचाते हैं।

Û स्वगृही ग्रह अपने घर में अच्छा फल देते हैं।

Û किसी भाव में स्थित शुभ ग्रह हो वह उस घर को शुभ फल देता है। किंतु यदि कोई पापी ग्रह हो, तो अशुभ फल देता है।

Û लग्न से केंद्र (1, 4, 7, 10) और त्रिकोण (5, 9) में शुभ ग्रह अच्छा फल देते हैं।

Û लग्न से ग्यारहवें भाव में लगभग सभी ग्रह अच्छा फल देते हैं।

Û लग्न से तीसरे, छठे या 11वें भाव में पापी ग्रह अच्छा फल देते हैं।

Û जो ग्रह जिस भाव को या ग्रह को देखता है, उस पर भी अपना प्रभाव डालता है। अर्थात शुभ ग्रह के द्वारा देखे जाने पर शुभ व पापी ग्रह के द्वारा देखे जाने पर अशुभ फल देता है।

Û उच्च ग्रह और मूल त्रिकोण राशिगत ग्रह सदैव अच्छा फल देते हैं।

Û 8वें और 12वें में भावों लगभग सभी ग्रह अनिष्टकारक होते हैं।

Û केंद्र में शुक्र, बुध और गुरु अच्छे माने जाते हैं। गुरु छठे भाव में शत्रुनाशक, शनि आठवें भाव में दीर्घायु एवं मंगल दशम भाव में भाग्य को बढ़ाता है।

Û केतु जिस किसी भाव में होते हैं, उस भाव की हानि करते हैं। परंतु द्वितीय भाव में केतु और तृतीय भााव में राहु अच्छा फल देता है।

Û गुरु यदि अपने कारक भाव दूसरे, पांचवें या 7वें भाव में अकेला हो तो क्रमशः धन, पुत्र और स्त्री के लिए हानिकारक होता है।

Û कुंडली में उच्च ग्रह, स्वगृही, मूल त्रिकोण राशिगत ग्रह और वर्गोत्तम ग्रह कितने हैं।

Û कुंडली में योग कारक ग्रहों का भी प्रभाव पड़ता है। दो या दो से अधिक ग्रहों की युति या राशि परिवर्तन या दृष्टि संबंध से योग बनते हैं। ये योग शुभ या अशुभ हो सकते हैं। उदाहरणार्थ: शुभ योग, राज योग, लक्ष्मी योग, आदि। अशुभ योग: दरिद्र योग, अरिष्ट योग, केमद्रुम योग आदि।

Û बाधक चर लग्न स्थिर लग्न द्विस्वभाव लग्न एकादश नवम सप्तम बाधक ग्रह बाधा उत्पन्न करते हैं। (नवमेश और एकादशेश के बारे में मतभिन्नता है।)

Û जन्म लग्न में जो ग्रह नीच का हो और नवमांश में उच्च का, वह उच्च का फल देगा।

Û शुभ ग्रह, आत्मकारक ग्रह, योग कारक और राज योग कारक ग्रह अपनी दशा में शुभ फल देते हैं। राज योग कारक ग्रह राजयोग भी देते हैं।

Û भावेश अनुसार ग्रह अपना अपना फल देते हैं जैसे लग्नेश की दशा में शरीर व धन सुख, धनेश की दशा में आकस्मिक द्रव्य प्राप्ति, भाग्येश की दशा में भाग्योदय व भाग्य वृद्धि।

Û शुभ ग्रह केंद्राधिपति दोष युक्त और वक्री हो तो अशुभ फल देता है।

Û उच्च ग्रह या योग कारक ग्रह वक्री हों तो अशुभ फल देते हैं।

Û नीच ग्रह वक्री हों तो अच्छा फल देते हैं।

Û राज योग सैकड़ों होते हैं। इनके अतिरिक्त नीच भंग राजयोग और विपरीत राजयोग भी होते हैं। ग्रहों का नीचत्व भंग Û नीच ग्रह केंद्र में हो।


Know Which Career is Appropriate for you, Get Career Report


Û नीच ग्रह को उसी राशि का स्वामी देखे अथवा उसी राशि के स्वामी के साथ उसकी युति हो।

Û नीच ग्रह को उसी राशि का उच्च ग्रह देखे अथवा उसके साथ युति हो।

Û ग्रह का उसी राशि के स्वामी के साथ राशि परिवर्तन हो।

Û नीच ग्रह का उस राशि के उच्च ग्रह के साथ परिवर्तन योग हो।

Û नीच ग्रह नवमांश में वर्गोत्तम हो। कुंडली में ग्रह नीच का है, सिर्फ इसी को आधार बनाकर ऊपर वर्णित कारणों से ग्रह का नीचत्व भंग होता है और वह ग्रह नीच भंग राजयोग कारक भी हो सकता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.