शुक्र

शुक्र  

व्यूस : 8436 | नवेम्बर 2013
शुक्र के जीवन से संबंधित बहुत-सी प्राचीन कथाएं है। इसमें से एक के अनुसार शुक्राचार्य को असुरों के हित की विशेष चिन्ता थी जिसके चलते उन्होंने भगवान को प्रसन्न करने के लिए अतुलनीय जप, तप, ध्यान किया जिससे प्रसन्न होकर देवाधिदेव भगवान शंकर ने उन्हें वरदान दिया कि वह देवताओं पर विजय में असुरों के सहायक होंगे तथा अजर-अमर रहेंगे। भगवान शंकर ने उन्हें समस्त संपदा का अधिकारी नियुक्त कर दिया। कथा के अनुसार ही वरदान के प्रभाव से शुक्र को समस्त सांसारिक तथा ईश्वरीय संपदाओं पर स्वामित्व प्राप्त हुआ। एक अन्य प्राचाीन ग्रन्थ के अनुसार शुक्र को केवल संपदा पर ही नहीं वरन औषधियों, मंत्र और रस पर भी स्वामित्व प्राप्त है। अतः इसकी शक्ति व प्रभाव अपार है। इनकी मान्यता है कि अपनी समस्त संपदाओं और उपलब्धियों को वह अपने शिष्यों व असुरों में बांटकर एक सच्चे योगी की तरह अपना जीवन शुरू करेें। शुक्र, असुरों के परामर्शदाता, मार्गदर्शक तथा विचारक गुरू भी हैं। वह एक महान शिक्षक हैं तथा अपने शिष्यों के प्रति दया भाव रखते हैं, विशेष रूप से असुरों के प्रति। भगवान शिव की अतुलनीय उपासना कर उन्होंने स्वयं भगवान से मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान प्राप्त किया, जिससे उन्हें मारे गये असुरों को पुनः जीवित करने की शक्ति प्राप्त हुई। एक और पौराणिक कथा के अनुसार शुक्र, वीर्य का रूप लेकर भगवान शिव के लिंग में जाकर छुप गये थे। शुक्र, अंततः दैत्यों को देवताओं पर विजय दिलाने में सफल हुए तथा इस प्रकार वह अमरत्व को प्राप्त हुए। शुक्र, सांसारिक ही नहीं, स्वर्ग की भी समस्त संपदा के स्वामी भी बन गए। ज्योतिष में ग्रहों से संबंधित ये कथाएं अपने में ग्रहों के स्वभाव व व्यक्तित्व को स्पष्ट करने तथा उनके स्वरूप को व्यक्त करने के लिए ही हैं। शुक्र का स्वभाव मूलतः दूसरों पर अपना आधिपत्य स्थापित करना तथा इस प्रकार सदा के लिए अपनी एक पहचान छोड़ जाना है। शुक्र इस संसार की विशाल संपदा का ही नहीं अपितु स्वर्ग की अमूल्य संपदा का भी स्वामित्व प्राप्त किए है। शायद इसी तथ्य के कारण ग्रहों में शुक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। सत्ता और धन एक दूसरे के सर्वश्रेष्ठ सहमित्र हैं। किन्तु संसार में प्रायः हमें ये दोनों एक - दूसरे को भ्रष्ट करते प्रतीत होते हैं। शुक्र का उत्थान सत्ता और धन पर ही आधारित है। शायद यही कारण है कि इसमें से किसी भी वस्तु को प्राप्त कर लेने पर लोग अपना घिनौना रूप प्रकट करने लगते हैं। कुण्डली के विभिन्न भावों में शुक्र का परिणाम: प्रथम भाव प्रथम भाव में शुक्र, व्यक्ति को कला में पारंगत, सुख-सुविधा में रुचि, सौंदर्य व काम कला में प्रवीणता प्रदान करता है। वह बुद्धिमान, पुत्रवान, कुशल तंत्रवादी, काम में रुचि लेने वाला, ज्ञानवान तथा सांसारिकता में रुचि रखने वाला होता है। यदि शुक्र का संबंध लाभकारी ग्रहों से हो तो रुपवान, दीर्घायु तथा शासन से लाभ प्राप्त करने वाला होता है किंतु शुक्र को अलाभकारी सहयोगी जातक को भयग्रस्त, नशे का आदी, बुरी लतों वाला, स्वास्थ्य की हानि तथा कामुक कामों में अति लिप्त बनाता है। द्वितीय भाव द्वितीय भाव में शुक्र होने पर व्यक्ति परिवार की महिलाओं का प्यार पाने वाला, व्यवसाय में लाभ कमाने वाला, वैभवषाली तथा परिवार को सुख-सुविधा पूर्ण जीवन देने वाला होता है। संगीत में रुचि तथा चांदी, दुग्ध उत्पाद, गहनों अथवा सुन्दर वस्तुओं के व्यवसाय से अत्यधिक लाभ पाने वाला होता है। ज्ञान द्वारा अच्छी आय पाने वाला तथा पैतृक संपदा का अधिकारी होता है किंतु बाधित शुक्र जीवन में अनेक कष्ट देता है। तृतीय भाव तृतीय भाव में शुक्र, जातक को कमजोर, आलसी, नेत्र रोगी, परिजनों को प्रेम करने वाला, सामान्यतः प्रसन्नचित, संगीत व कला का रसिक तथा पड़ोसियों से अच्छे संबंध रखने वाला बनाता है। यदि शुक्र, क्रूर ग्रहों (अहितकारी ग्रहों) से बाधित हो तो व्यक्ति क्रोधी, वाचाल, विपरीत लिंग वालों से संबंध न रखने वाला किंतु संतान से सुख पाने वाला होता है। वह साहसी, सुखों का इच्छुक, दूसरों को प्रभावित करने वाला तथा तीर्थयात्राओं का प्रेमी होता है। चतुर्थ भाव चतुर्थ भाव में शुक्र, जातक को सौभाग्यशाली, धनी, बुद्धिमान तथा निष्पक्ष और संतुलित वाणी प्रदान करता है। इसके प्रभाव से जातक दुराचारी, कामुकतापूर्ण, नशे का प्रेमी, विपरीत लिंग वालों के वश में, माता का भक्त, जीवन में सब प्रकार की सुख-सुविधाओं से पूर्ण, सुंदर घर में निवास करने वाला होता है और यदि शुक्र, अहितकारी ग्रहों से युति हो जाए तो हर वस्तु की प्राप्ति तो होती है परंतु प्रगति धीमी गति से होती है। आयु का 42वां वर्ष जीवन में सबसे अच्छा होता है। पंचम भाव पंचम भाव का शुक्र, व्यक्ति को कला एवं संगीत में पारंगत, सुख चाहने वाला तथा माता-पिता के प्रति निष्ठावान बनाता है। वह जुए एवं सट्टेबाजी में रुचि रखने वाला, संपत्ति से लाभ प्राप्त करने वाला, उच्च वर्ग का परामर्शदाता तथा विपरीत लिंग वालों का सहज मित्र हो जाता है। वह पुरूषों में लोकप्रिय, अधिक आय वाला तथा देवी का भक्त होता है। शांत, विरोधियों पर विजय प्राप्त करने वाला, औषधियों का ज्ञान रखने वाला तथा परिवार का नाम ऊंचा करने वाला होता है। षष्ठम् भाव शुक्र ग्रह के षष्ठम् भाव में होने पर जातक नौकरी में सुख पाने वाला होता है। क्रूर ग्रहों से प्रभावित होने पर शुक्र व्यक्ति को बुरी आदतों का गुलाम, गुप्त रोगों से पीड़ित, विपरीत लिंग वालों में रुचि रखने वाला किंतु उनके प्यार से वंचित करता है। अप्रत्याशित रुप से संपत्ति की प्राप्ति परंतु व्यसनों के कारण धन संग्रह नहीं कर पाता क्योंकि वह स्वार्थी लोगों को अपना मित्र मानकर चलता है परंतु यह सब परिणाम उल्टे भी हो सकते हैं यदि शुक्र शुभ ग्रहों के साथ हो। सप्तम् भाव सप्तम् भाव में शुक्र व्यक्ति को उदारात्मा, धनी, पुत्रवान, प्रसन्नचित, व्यवहारकुशल, अपने आकर्षण द्वारा दूसरों को प्रभावित करने वाला तथा विदेश में प्रवास करने वाला बनाता है। वह शासकीय कार्य में उन्नति करता है और सुंदर वस्तुओं का व्यवसाय करने पर अच्छा धन कमाने वाला होता है। परिवार को यश दिलवाने वाला तथा दूसरों से लाभ प्राप्त करने वाला होता है किंतु बाध् िात शुक्र, सभी प्रकार के कष्ट, जीवन साथी से क्लेश तथा आसक्त बनाता है। अष्टम् भाव अष्टम् भाव में शुक्र होने पर व्यक्ति घमंडी, रूखा तथा जीवन साथी से सुख न पाने वाला होता है। यदि शुक्र, शुभ ग्रह के प्रभाव में हो तो जीवन साथी से परितृप्त, साझेदारों, सहयोगियों से लाभ, प्रसन्नचित तथा सरकारी अधिकारियों से अच्छे संबंध प्रदान करता है किंतु बाधित शुक्र, सभी प्रकार के कष्ट, स्वार्थी स्वभाव, बातूनी तथा गुप्त रोगों का कारक होता है। नवम् भाव नवम् भाव में शुक्र, जातक को सौभाग्यशाली, नजदीकी संबंधियों से खुशी व सुख तथा तीर्थाटन में रुचि प्रदान करता है। वह धनी, प्रेमी व सहयोगी जीवन साथी, अच्छी संतान, बुद्धिमान, अच्छी आय तथा परोपकार करने वाला होता है। वह एक श्रेष्ठ व्यक्ति होता है। मातृभक्त, लेखक, बुद्धिवान, कलाकार और विभिन्न कलाओं का ज्ञाता होता है। दशम् भाव दशम् भाव में शुक्र, जातक को भाग्यवान, अधिक धन कमाने वाला तथा शासन द्वारा लाभ पाने वाला बनाता है। वह धार्मिक, दानशील तथा आध्यात्म में रुचि रखने वाला होता है। वह समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त करता है तथा संतान को प्रेम करने वाला होता है। दीर्घायु, व्यवसाय में सफलता, सुख-सुविधा प्राप्त होती है। जीवन में सम्मान प्राप्त पाने वाला, शादी के बाद भाग्योदय, ज्योतिष, कला, कविता व साहित्य में रूचि रखने वाला होता है। एकादश भाव एकादश भाव में शुक्र, जातक को अत्यंत खुशी, ईमानदारी तथा जीवन में सभी प्रकार की सुख-सुविधा प्रदान करता है। शासन से सम्मान तथा विपरीत लिंग वालों से बहुमूल्य वस्तुओं व लाभ का भागी होता है। वह दयालु, सभ्य, उदार तथा बहुत-से सेवकों का स्वामी होता है। संतान से सुख व संतोष, विभिन्न भाषाओं का ज्ञाता, बुद्धिमान तथा नकल (स्वांग) करने में माहिर होता है। उसके विश्व के अनेक स्थानों पर मित्र होते हैं। अपनी अधिकांश इच्छाओं को इसी जन्म में पूरा करने वाला होता है। द्वादश भाव द्वादश भाव में शुक्र, व्यक्ति को बुद्धिमान तथा लोक व्यवहार में कुशलता प्रदान करता है। बाधित शुक्र, पिता की संपत्ति को नष्ट करने वाला, अपयश का भागी तथा विभिन्न प्रकार के कष्ट उठाने वाला बनाता है। विपरीत लिंग वालों पर बहुत अधिक व्यय करने पर भी उनसे सुख नहीं मिल पाता किंतु उच्च का शुक्र सहायक ग्रहों के साथ सभी प्रकार का सुख देता है। वह जीवन का पूरा आनन्द लेता है। जीवन भर धन की प्राप्ति करता है। वह विभिन्न कलाओं विशेष रुप से काम कला में निपुण होता है। विभिन्न राशियों पर शुक्र का परिणामः मेष मेष राशि में शुक्र, जातक को व्यापार से धन एवं यश का भागी बनाता है। वह जटिल से जटिल समस्या का भी समाधान खोज लेते हैं। विभिन्न स्थानों की यात्रा करता है। विदेश में आवास, विपरीत लिंग वालों से सुख पाने वाला, खुशमिजाज तथा सुख-सुविधा से रहने वाला होता है। वृष वृष राशि में शुक्र होने पर जातक भूमि संपन्न होता है तथा अद्भुत अच्छे आवास में रहता है। उसे सभी प्रकार के सुख तथा उत्तम वाहन प्राप्त होते हैं। वह धार्मिक, दयालु, उदार, दूसरों की सहायता करने वाला तथा अच्छी संतान पाने वाला होता है। मिथुन व्यक्ति बुद्धिमान, बहुत-से मित्रों वाला तथा जीवंत जीवन शैली वाला होता है। यदि शुक्र मिथुन राशि में हो तो वह बहुत अच्छा लेखक, विभिन्न कलाओं का ज्ञाता और जीवन में बहुत प्रसिद्धि पाता है। वह ज्ञानवान तथा अपने ज्ञान से लोगों को प्रभावित करने वाला होता है। कर्क कर्क राशि में शुक्र, व्यक्ति को विविध क्षेत्रों मं निपुणता प्रदान करता है। वह कोई भी कार्य कुशलतापूर्वक कर सकता है, चाहे वह कुछ भी करना चाहे। किसी भी कार्य की उसकी समझ गहरी और स्पष्ट होती है। वह परिश्रमी तथा अपरिवर्तनशील स्वभाव के साथ आत्मनिर्भर भी होता है। सिंह सिंह राशि में शुक्र, जातक को साहसी तथा समय-समय पर चुनौतीपूण्र् ा कार्य करने वाला बनाता है। वह विपरीत लिंग वालों से सहज ही धन लाभ प्राप्त कर पाता है किंतु संतान से विशेष सुख नहीं पाता तथा वाहन से कष्ट का भागी होता है। कन्या कन्या राशि में शुक्र जातक को जीवन में अनेक कष्टों का सामना कराता है। वह बहुत धन कमाता है परंतु निरर्थक कार्यों पर अपव्यय करता है। उसे व्यवसाय में समस्याएं, जीवन साथी से चिंता, विभिन्न शारीरिक कष्ट तथा गुप्त रोग से भय रहता है। तुला तुला राशि का शुक्र, जातक को संपत्तियों से आय व लाभ प्रदान करता है। उसमें व्यवसाय द्वारा अच्छा मुनाफा कमाने की योग्यता होती है। अपने क्षेत्रों में उच्चतम स्थान और संतान का सुख पाता है। उसमें कुशल नेता के गुण विद्यमान होते हैं तथा अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त करने वाला बनाता है। वृश्चिक वृश्चिक राशि का शुक्र, जातक को जन्म से ही दूसरे स्थान का वासी बनाता है। वाद-विवाद में निपुण किंतु अधिकतर दूसरों के लिए कार्य करने वाला होता है। अधिकतर सही-गलत में अन्तर नहीं कर पाता। वह साहसी, कुछ भी कर सकने में निपुण तथा जीवन भी कर्ज से मुक्त रहता है। धनु धनु राशि में शुक्र जातक को शासन से सम्मान तो दिलाता है परंतु उन्नति में बाधा उत्पन्न करता है। वह अपने भाग्य के विषय में चिंतित रहता है। परंतु जीवन के 42वें वर्ष के बाद भाग्य के सभी द्वार खुल जाते हैं। वह अच्छे संबंध बनाता है किंतु उनसे लाभ उठाने के प्रयास में उसका भेद खुल जाता है। मकर मकर राशि में शुक्र, जीवन साथी को रोगी तथा व्यक्ति संतान के हित के लिए चिंतित रहता है। समय-समय पर स्वास्थ्य का ध्यान आवश्यक है। पारिवारिक चिंताएं बनी रहती है किंतु विद्रोहियों पर विजय तथा जीवन में अधिकारी पद पाने वाला होता है। वह विभिन्न देशों की यात्रा करता है किंतु वाहन के कारण कष्ट का भागी होता है। कुंभ कुंभ राशि में शुक्र व्यक्ति को विभिन्न कलाओं में निपुण और पटु बनाता है। वह संतान से सभी प्रकार का सुख पाता है। बहुत आय पाने वाला तथा शिक्षा के क्षेत्र में रुचि लेने वाला होता है। व्यवसाय में अच्छा लाभ, अनेक मित्र तथा कार्य क्षेत्र में उच्चतम स्थान पाने वाला होता है। मीन मीन राशि में शुक्र, जातक को शासन से सम्मान तथा विविध सुख-सुविध् प्रदान करता है। वह अपने कार्य क्षेत्र में सर्वोच्च पद पाता है। वह संस्थान का प्रमुख, प्रधान या मंत्री हो सकता है। वह सुख-सुविधापूर्ण जीवन, उत्तम वाहन तथा सुखी मन से जीवन व्यतीत करता है। जीवन में सहायकों और सेवकों की कोई कमीं नहीं होती



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