श्री बगलामुखी महायंत्र आराधना

श्री बगलामुखी महायंत्र आराधना  

व्यूस : 10055 | मार्च 2008
श्री बगलामुखी महायंत्र आराधना डा.भगवान सहाय श्रीवास्तव मनुष्य को पग पग पर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए वह यथासंभव उपाय करता है। इसी क्रम में वह भगवान भगवतियों की आराधना और उनके मंत्रों, तंत्रों और यंत्रों की साधना करता है। मंत्र तंत्रों की साधना जहां दुरूह, कठिन और कष्ट साध्य है, वहीं यंत्रों की उपासना सहज और सरल है। श्री बगलामुखी महायंत्र की साध् ाना उपासना से साधक का वांछित कार्य बिना किसी रुकावट के शीघ्र सिद्ध हो जाता है। शत्रु संहारक भगवती बगलामुखी की शरण में आने मात्र से ही उसे उसके सभी शत्रुओं और बाधाओं से छुटकारा मिल जाता है। गया है कि चाहे जैसे भी हो अपने शत्रुओं का शमन करना ही चाहिए। शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। वैसे तो शत्रु शमन के लिए तांत्रिक ग्रंथों में कई विधि-विधान बताए गए हैं, किंतु माता बगलामुखी के महायंत्र की साधना सर्वाधिक फलदायी होती है। इस साध् ाना से व्यक्ति के इस लक्ष्य की पूर्ति होती है। यह साधना उसके व्यक्Ÿिाव को सूर्य के समान प्रखर और तेजस्वी बनाती है। फलतः उसके शत्रु उससे भयभीत रहते हैं। उसके शारीरिक और मानसिक रोगों तथा ऋण, दरिद्रता आदि से उसे मुक्ति मिल जाती है। वहीं उसकी पत्नी और पुत्र सही मार्ग पर आकर उसकी सहायता करते हैं। उसके विश्वासघाती मित्र और व्यापार में साझीदार उसके अनुकूल हो जाते हैं। अतः आज के इस भागदौड़ के युग में श्री बगलामुखी यंत्र की साधना अन्य किसी भी साधना से अधिक उपयोगी है। यह एक परीक्षित और अनुभवसिद्ध तथ्य है। स मुकदमे में सफलता, के लिए स शत्रुओं के शमन, व्यापार आदि में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति, टोने टोटकों के प्रभाव से बचाव आदि के लिए घर में सिद्ध मुहूर्त में निर्मित, बगलामुखी तंत्र से अभिसिंचित तथा प्राण प्रतिष्ठित श्री बगलामुखी महायंत्र स्थापित करना चाहिए। स्थापना विधि: किसी भी शुक्रवार को स्नान से निवृत्त होकर पीला स्वच्छ वस्त्र धारण करें और अपने पूजाघर में पीला वस्त्र बिछाकर उस पर इस महायंत्र को स्थापित करें। यंत्र को हल्दी का तिलक लगाए और गुड़, चने और हल्दी से बना नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करके धूप, दीप जलाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें। यह क्रिया केवल प्रथम दिन यंत्र स्थापित करते समय ही करें। उसके बाद केवल नित्य धूप, दीप आदि जलाकर यंत्र का दर्शन करें। यह सारी क्रिया निष्ठापूर्वक करें, कामनाओं की पूर्ति होगी। यदि भीषण मृत्युतुल्य शत्रु बाधा हो, तो प्रतिदिन पीले वस्त्र के आसन पर बैठकर निम्नलिखित पौराणिक स्तोत्र का एक पाठ निष्ठापूर्वक कर,ें दरवाजे पर आया शत्रु भी नतमस्तक होकर वापस चला जाएगा। पौराणिक बगलामुखी स्तोत्र नमो देवि बगले! चिदानंद रूपे, नमस्ते जगद्वश-करे-सौम्य रूपे। नमस्ते रिपु ध्वंसकारी त्रिमूर्ति, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।। सदा पीत वस्त्राढ्य पीत स्वरूपे, रिपु मारणार्थे गदायुक्त रूपे। सदेषत् सहासे सदानंद मूर्ते, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।। त्वमेवासि मातेश्वरी त्वं सखे त्वं, त्वमेवासि सर्वेश्वरी तारिणी त्वं। त्वमेवासि शक्तिर्बलं साधकानाम, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।। रणे, तस्करे घोर दावाग्नि पुष्टे, विपत सागरे दुष्ट रोगाग्नि प्लुष्टे।। त्वमेका मतिर्यस्य भक्तेषु चित्ता, सषट कर्मणानां भवेत्याशु दक्षः।। जिस घर में यह महायंत्र स्थापित होता है, उस घर पर कभी भी शत्रु या किसी भी प्रकार की विपŸिा हावी नहीं हो सकती। न उस घर के किसी सदस्य पर आक्रमण हो सकता है, न ही उस परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो सकती है। इसीलिए इसे महायंत्र की संज्ञा दी गई है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध तंत्र विशेषज्ञ स्व. समरफील्ड ने इस यंत्र को सिद्ध कर एवं इसका प्रभाव देखकर कहा था कि पूरे विश्व की ताकत भी बगुलामुखी यंत्र की ताकत से बढ़कर नहीं है। इससे दृश्य/अदृश्य बाधाएं समाप्त होती हैं। यह यंत्र अपनी पूर्ण प्रखरता से प्रभाव दिखाता है। माता श्री बगलामुखी का मूल मंत्र ¬ ींीं बगलामुखि सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय। जिह्नां कीलय बु(िं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा।। अर्थ: ‘‘¬ ह्री बगलामुखी देवी सब दुष्टों की वाणी, मुख, और पैरों को स्तम्भित कर दो, जीभ को कील दो और बु(ि का नाश कर दो। माता श्री देवी बगलामुखी का एक विशेष मंत्र मंदार मंत्र है। इसकी साधना बताई गई विधि से की जाए, तो साधक कभी दरिद्र नहीं होता है। उसका शत्रु उसके सामने ठहर नहीं सकता। मंत्र: श्रीं ह्रीं ऐं भगवती बगले में श्रियं देहि-देहि स्वाहा बगला पंचदशी मंत्र ींीं क्लीं ऐं बगलामुख्यै गदा धारिण्यै स्वाहा।’’ बगला पंचदशी मंत्र की सिद्धि करना बहुत ही कठिन है क्योंकि इसके लिए किसी नवयौवना की अति आवश्यकता होती है और उसी की पूजा करनी पड़ती है। अमावस्या की रात को यह साधना की जाती है। इसमें बह्मचर्य का पालन परमावश्यक है। अन्यथा साधक की दिमागी हालत खराब हो जाने की संभावना रहती है।



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