शनि मंगल द्वंद्व योग

शनि मंगल द्वंद्व योग  

व्यूस : 51058 | फ़रवरी 2014
‘योग’ विचार भारतीय ज्योतिष की अपनी विशेषता है। दो या अधिक ग्रहों के आपसी संबंध से ज्योतिषीय योग का निर्माण होता है। यह संबंध उनकी एक भाव में युति, भाव विनिमय, परस्पर दृष्टि आदि द्वारा जन्मकुंडली में बनता है। शुभ ग्रहों द्वारा निर्मित योग शुभ फलदायी और अशुभ ग्रहों का योग जातक के लिए कष्टकारी होता है। शनि व मंगल दोनों ही पापी ग्रह हैं और एक दूसरे के वैरी हैं। अतः कुंडली में इनका योग अशुभ फलदायी होता है। मंगल ग्रह युवा, चुस्त, बलिष्ठ, छोटे कद वाला, रक्त-गौर वर्ण, पित्त प्रकृति, शूरवीर, उग्र, रक्त नेत्र वाला, और गौरवशाली ग्रह है। इसके विपरीत शनि दुर्बल, लंबा शरीर, रूखे बाल, मोटे दांत और नाखून वाला, दुष्ट, क्रोधी, आलसी और वायु प्रकृति वाला ग्रह है। कुंडली में बलवान शनि सुखकारी तथा निर्बल या पीड़ित शनि कष्टकारक और दुखदायी होता है। इन विपरीत स्वभाव वाले ग्रहों का योग स्वभावतः भाव स्थिति संबंधी उथल-पुथल पैदा करता है। सभी ज्योतिष ग्रंथों ने इस योग का फल बुरा ही बताया है। कुछ आचार्यों ने इसे ‘द्वंद्व योग’ की संज्ञा दी है। ‘द्वंद्व’ का अर्थ है लड़ाई। यह योग लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर मंगल दोष को अधिक अमंगलकारी बनाता है जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में विवाह संबंधी कठिनाइयां आती हैं। विवाह के रिश्ते टूटते हैं, विवाह देर से होता है, विवाहोत्तर जीवन अशांत रहता है, तथा विवाह विच्छेद तक की स्थिति पैदा हो जाती है। ‘फलदीपिका’ ग्रंथ (अ. 18.3) के अनुसार: दुःखार्तोऽसत्य संधः ससवितृ तनये भूिमजे निन्दिश्च। अर्थात् ‘‘मंगल-शनि साथ हों तो व्यक्ति दुःखी, झूठ बोलने वाला, अपने वचन से फिर जाने वाला और निंदित होता है।’’ ‘सारावली’ ग्रंथ (अ. 15.6) के अनुसार: धात्विन्द्रजाल कुशल प्रवन्चक स्तेय कर्म कुशलश्च। कुजसौरयोर्विधर्मः शस्त्रविषघ्नः कलिरूचिः स्यात्।। अर्थात, ‘‘कुंडली में मंगल और शनि एक साथ होने पर जातक धातुविशेषज्ञ, धोखेबाज, लड़ाकू, चोर, शस्त्राघाती तथा विष संबंधी ज्ञान रखता है। ‘जातक भरणम्’ (द्विग्रह योगाध्याय, श्लोक-15) के अनुसार: शस्त्रास्त्र वित्संगर कर्मकर्ता स्तेयानृतप्रीतिकरः प्रकामम्। सौरव्येन हीनो नितरां नरः स्याद्ध रासुते मन्दयुतेऽतिनिन्द्यः।। अर्थात्, ‘‘जिसके जन्म समय मंगल और शनि का योग हो, वह अस्त्र-शस्त्र चलाने वाला, चोरी में तत्पर, मिथ्या बोलने वाला और सुख हीन होता है। ‘मानसागरी’ ग्रंथ (द्विग्रहयोग शनि-मंगल द्वंद्व योग फल) अनुसार: वाग्मीन्द्रजालदक्षश्च विधर्मी कलहप्रियः। विषमद्य प्रपंचाढ्यो मंदमंगल संगमे।। अर्थात्, ‘‘मंगल-शनि के योग से व्यक्ति वक्ता तथा इंद्रजाल विद्या में निपुण, धर्महीन, झगड़ालू, विष तथा मदिरा के प्रपंच से युक्त होता है। ‘होरासार’ ग्रंथ (अ. 23.19) के अनुसार: कुजमन्दयास्तु योगे नित्यार्तो वातपित्त रोगाभ्याम्। उपचय भवने नैव नृपतुल्यो लोक संपतः स्यात्ः।। अर्थात्, ‘‘मंगल और शनि की एक भाव में युति वात (गठिया) और पित्त रोग देती है। परंतु उपचय (3, 6, 10,11) भाव में यह युति जातक को सर्वमान्य बनाती है और राज सम्मान देती है। ज्ञातव्य है कि पापी ग्रह उपचय भाव में शुभ फल देते हैं। ‘संकेतनिधि’ ग्रंथ (संकेत IV.66) के अनुसार। द्यूने यमेऽसृजि तदीक्षणतश्च वातार्ता। चंचला सरूधिरा कटि चिन्ह युक्ता।। अर्थात् ‘‘यदि शनि-मंगल सातवें भाव में हों या वहां दृष्टिपात करें तब पत्नी अस्थिर बुद्धि और वात रोग से ग्रस्त होती है। उसको रूधिर की अधिकता होती है और उसके कटि प्रदेश में चिह्न होता है। (संकेत IV.88) के अनुसार: मन्देकुजे भाग्यगते तथार्द्ध शुभेन्ङ्कगै धर्मपरोऽबलेऽपि।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.