लाल किताब : फल कथन एवं उपाय

लाल किताब : फल कथन एवं उपाय  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 13627 | सितम्बर 2007

भारतीय ज्याेि तष क े इतिहास म ंे लाल किताब का भी अपना एक स्थान है। भविष्य कथन की पद्ध तियों में लाल किताब पद्धति अपनी सरलता के कारण प्रसिद्ध है। इस पद्ध ति को विकसित करने का श्रेय पंडित गिरधारी लाल जी को जाता है।

पंडित जी उच्च कोटि के ज्योतिषाचार्य थे जिन्होंने वैदिक ज्योतिष की सूक्ष्मता को समझते हुए जन कल्याण के लिए भविष्य कथन की इस सरल पद्धति को प्रचलित किया। वास्तव में यह पद्धति बहुत पुरानी है इसका मूल उर्दू भाषा में है। लाल किताब की विशेषता यह है कि इस में ग्रहों को शांत करने के बहुत ही सरल उपाय बताए गए हैं जिन्हें हर व्यक्ति बहुत ही सरलता से खुद कर लाभ उठा सकता है।

कुंडली में ग्रहों के प्रभावों को सरलता से समझाने के लिए उन्होंने सोया ग्रह, सोया भाव, नाबालिग कुं्रडली, अंधा ग्रह, धर्मी ग्रह आदि सरल शब्दा का प्रयोग और उनकी व्याख्या की है। लाल किताब वैदिक ज्योतिष से भिन्न है। लेकिन कुंडली के निर्माण का आधार वही वैदिक पद्धति ही है- ग्रहों की दृष्टि, दशा, वर्षफल आदि भिन्न हैं। ग्रहों के शुभाशुभ फल को जानने का तरीका भी भिन्न है।

प्रश्न: क्या लाल किताब वैदिक ज्योतिष से भिन्न है ?

उत्तर: लाल किताब वैदिक ज्योतिष से भिन्न है क्योंकि उससे फल करने के नियम वैदिक ज्योतिष से मेल नहीं खाते। फिर भी लाल किताब का मूल आधार वैैदिक ज्योतिष ही है। (अर्थात कुंडली निर्माण, भावों के कारकत्व, ग्रहों की राशियां आदि सभी मूल बातें वैदिक ज्योतिष के अनुसार ही हैं लेकिन फल कथन के नियमों में अंतर है।)

प्रश्न: लाल किताब में अंधे ग्रहों की कुंडली से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर: दशम भाव में आपस में शत्रु दो या दो से अधिक ग्रह हों तो इस तरह से बनने वाली कुंडली अंधे ग्रहों की कुंडली कहलाती है।

प्रश्न: धर्मी ग्रह से क्या तात्पर्य है?

उत्तर: किन्हीं विशेष कारणों से अपनी क्रूरता या अशुभता त्याग कर शुभ फल देनेवाला कोई ग्रह क्रूर या पापी ग्रह कहलाता है।

प्रश्न: धर्मी कुंडली से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: जिस कुंडली में क्रूर या पापी ग्रह अपना अशुभ प्रभाव त्याग देते हैं वह धर्मी कुंडली कहलाती है।

प्रश्न: धर्मी कुंडली वाले जातक पर विशेष प्रभाव क्या होता है ?

उत्तर: धर्मी कुंडली वाले जातक को बड़ी से बड़ी मुश्किल के समय ईश्वरी सहायता मिलती है और उसके कार्य सिद्ध होते हैं।

प्रश्न: कुंडली में सोया भाव किसे कहते हैं ?

उत्तर: जिस भाव में कोई ग्रह न हो और न ही उस पर किसी ग्रह की दृष्टि हो वह सोया भाव कहलाता है।

प्रश्न: नाबालिग कुंडली से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर: वह जन्मकुंडली जिसके भाव 1, 4, 7 और 10 अर्थात केंद्र भाव खाली हों या उनमें पापी ग्रह बैठे हों या अकेला बुध इनमें से किसी भाव में हो और शेष भाव खाली हों तो कुंडली नाबालिग कहलाती है।

प्रश्न: लाल किताब के अनुसार मुकाबले के ग्रह का क्या अर्थ है ?

उत्तर: दो मित्र ग्रह कुंडली में कहीं भी हों और यदि उन दोनों के साथ या किसी एक के साथ शत्रु ग्रह बैठ जाए तो उनकी आपसी मित्रता समाप्त हो जाती है और उन दोनों में मुकाबला ठन जाता है। ऐसी स्थिति वाले ग्रहों को मुकाबले के ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न: दो ग्रहों में मुकाबले में हानि किसे होगी ?

उत्तर: जिन दो ग्रहों में आपस में मुकाबला हो, उन दोनों में जिस ग्रह के साथ शत्रु ग्रह सम हो उसे ताकत मिलेगी और दूसरे को हानि होगी।

प्रश्न: लाल किताब के अनुसार ग्रहों की उच्चता-नीचता कैसे देखी जाती है ?

उत्तर: लाल किताब में ग्रहों की उच्चता-नीचता की गणना वैसे ही की जाती है जैसे वैदिक ज्योतिष में। लेकिन लाल किताब भाव के अनुसार ग्रहों की उच्चता-नीचता को महत्व देती है। जैसे सूर्य लग्न में उच्च का होता है। क्योंकि पहला भाव मंगल का और मेष राशि का माना गया है। इसी तरह शनि सप्तम, मंगल दशम, शुक्र बारहवें आदि ग्रहों की नीचता भी मानी गई है।

प्रश्न: लाल किताब के अनुसार साथी ग्रह कौन से होते हैं ?

उत्तर: दो ग्रह जब आपस में अपना स्थान अर्थात अपनी राशि, उच्च राशि, नीच राशि आदि बदल लेते हैं तब उनमें मित्रता बन जाती है भले ही वे एक दूसरे के प्राकृतिक तौर पर शत्रु ही क्यों न हों। दूसरे शब्दों में ग्रह अपना स्थान परिवर्तन कर अपनी शत्रुता भूल कर साथी बन जाते हैं।

प्रश्न: कायम ग्रह किसे कहते हैं?

उत्तर: जो ग्रह अपने भाव में किसी शत्रु ग्रह से युक्त या दृष्ट न हो उसे कायम ग्रह कहते हैं।

प्रश्न: लाल किताब के अनुसार ग्रहों में टकराव कब होता है ?

उत्तर: दो ग्रह जब आपस में एक दूसरे से छठे-आठवें हों तो उनमें टकराव हो जाता है भले ही वे एक दूसरे के प्राकृतिक तौर पर परम मित्र क्यों न हांे।

प्रश्न: लाल किताब में बुनियादी ग्रह किसे कहते हैं ?

उत्तर: दो ग्रह, भले ही वे आपस में शत्रु हों, यदि एक दूसरे से पंचम नवम हों तो एक दूसरे के सहायक हो जाते हैं और एक दूसरे की बुनियाद बनाते हैं। यह स्थिति ग्रहों की बुनियादी स्थिती कहलाती है।

प्रश्न: लाल किताब के अनुसार सोया ग्रह कौन होता है ?

उत्तर: वह ग्रह जिसकी दृष्टि में कोई ग्रह न हो और उस पर भी किसी ग्रह की दृष्टि न हो, सोया ग्रह कहलाता है। सोया ग्रह किसी की सहायता नहीं कर पाता, वह जिस भाव में बैठा होता है उस भाव के ही शुभाशुभ फल देता है।

प्रश्न: यदि ग्रह अपने पक्के घर में बैठा हो और किसी ग्रह पर दृष्टि न देता हो और न ही उस पर किसी ग्रह की दृष्टि हो तो क्या वह भी सोया कहलाएगा?

उत्तर: नहीं, ऐसी स्थिति में वह जागा हुआ माना जाएगा क्योंकि वह अपने पक्के घर में स्थित है। जैसे सूर्य प्रथम व मंगल दशम भले ही किसी ग्रह को न देखते हों और न ही उन पर किसी ग्रह की दृष्टि हो, जगे ही कहलाएंगे।

प्रश्न: लाल किताब के अनुसार क्या ग्रहों की दृष्टियां वैदिक ज्योतिष की दृष्टियों से भिन्न हैं ?

उत्तर: लाल किताब के अनुसार दृष्टियां वैदिक ज्योतिष की दृष्टियों से भिन्न हंै क्योंकि लाल किताब के आधार पर ग्रह ही नहीं बल्कि भाव भी देखते हैं। जैसे प्रथम भाव सप्तम भाव पर पूर्ण, चतुर्थ भाव दशम पर पूर्ण, तृतीय भाव नवम और एकादश पर आधी, पंचम भाव नवम भाव पर आधी, आ. ठवां भाव बारहवें भाव पर एक चैथाई और द्वितीय भाव षष्ठ भाव पर एक चैथाई दृष्टि देता है।

लग्न से लेकर षष्ठ भाव तक प्रथम और सप्तम भाव से लेकर द्व ादश भाव तक बाद के भाव कहलाते हैं। अष्टम भाव पीछे मुड़कर वक्र दृष्टि से द्वितीय भाव पर दृष्टि देता है। इन भावों में बैठे ग्रह भी इसी प्रकार दृष्टि देते हैं। सप्तम, नवम, दशम, एकादश और द्वादश भावों में बैठे ग्रहों और भावों की दृष्टि किसी ग्रह या भाव पर नहीं पड़ती।

प्रश्न: लाल किताब में ग्रहों की कुर्बानी का क्या अर्थ है ?

उत्तर: जब कोई ग्रह अपनी कुर्बानी देकर दूसरे ग्रह के फल को नष्ट नहीं होने देता तो उसे ग्रह की कुर्बानी कहा जाता है। उदाहरणार्थ - बुध और शुक्र आपस में मित्र हैं लेकिन शुक्र अपनी कुर्बानी देकर बुध के फल को बचा लेता है। दूसरे शब्दों में बुध ने अपने बचाव के लिए शुक्र को कुर्बान कर दिया।

इसलिए जब भी बुध किसी कारणवश पीड़ित होगा तो शुक्र की, इसी तरह शनि पीड़ित होगा तो शुक्र की, मंगल पीड़ित होगा तो केतु की, शुक्र पीड़ित होगा तो चंद्र की, गुरु पीड़ित होगा तो केतु की, सूर्य पीड़ित होगा तो केतु की और चंद्र पीड़ित होगा तो सूर्य, गुरु और मंगल की कुर्बानी होगी। राहु व केतु ऐसे ग्रह हैं जो बुरे समय में किसी की सहायता नहीं लेते, स्वयं अपनी बलि दे देते हैं।

प्रश्न: लाल किताब के अनुसार आयु पर ग्रहों का क्या प्रभाव रहता है ?

उत्तर: जिस तरह वैदिक ज्याेि तष म ंे दशाए ं कार्य करती ह ैं उसी तरह लाल किताब के अनुसार ग्रहों के प्रभाव का चक्र 35 वर्ष का है। वर्षफल बनाते समय इसका विशेष ध्यान रखना होता है कि उस आयु में किस ग्रह का प्रभाव चल रहा है। जिस ग्रह का प्रभाव जिस वर्ष चल रहा होगा यदि उस ग्रह की वर्षफल कुंडली में स्थिति शुभ हो तो उस वर्ष शुभ और यदि अशुभ हो तो अशुभ फल प्राप्त होंगे। फल ग्रह की वर्षफल कुंडली के भाव पर निर्भर करता है। अर्थात जिस भाव में ग्रह वर्ष कुंडली में स्थित होगी उसी भाव से संबंधित और ग्रहों के कारकत्व से संबंधित शुभ व अशुभ फल प्राप्त होंगे।

प्रश्न: किस आयु में किस ग्रह का प्रभाव रहता है ?

उत्तर: 35 वर्ष के चक्र में प्रथम अर्थात 1 से 6 वर्ष तक शनि, 7 से 12 तक राहु, 13 से 15 तक केतु, 16 से 21 तक गुरु, 22 से 23 तक सूर्य, 24 से 25 तक चंद्र, 26 से 27 तक शुक्र, 28 से 33 तक मंगल और 34 से 35 तक बुध का प्रभाव रहता है। इसी तरह 35 वर्ष के बाद पुनः शनि से बुध तक 70 वर्ष पूर्ण होते हैं। फिर शनि से बुध तक सभी ग्रहों की अवधि हर चक्र में बराबर रहेगी।

प्रश्न: लाल किताब के अनुसार कोई ग्रह अपना शुभाशुभ फल जीवन के किस वर्ष में देता है ?

उत्तर: 35 वर्षीय चक्र के अनुसार जो वर्ष अवधि जिस ग्रह को दी गई है उसी के अनुसार यह निकाला जाता है कि जीवन का कौन सा वर्ष जातक के लिए अधिक लाभकारी या हानिकारक होगा। उदाहरण के तौर पर सूर्य यदि अपने शत्रु ग्रह शनि के घर या राशि में स्थित हो तो दोनों की वर्ष अवधियों अर्थात 22 व 36 को जोड़र योग 58 होगा। अब इस योग में दो से भाग देने पर भागफल 29 होगा। 29वें वर्ष में जातक को अशुभ फल प्राप्त होगा। यदि ग्रह अपनी मित्र राशि में स्थित हो तो शुभ फल प्राप्त होगा।

प्रश्न: लाल किताब की वर्ष कुंडली और वैदिक ज्योतिष में वर्षफल कुंडली क्या भिन्न-भिन्न होती हैं?

उत्तर: हां, दोनों वर्षफल कुंडलियों में बहुत अंतर है और फलित करने का ढंग भी अलग-अलग है। लाल किताब की वर्षफल कुंडली बनाने के लिए एक तालिका बनाई गई है जो कुंडली के भावों और वर्षों के आधार पर है। यह तालिका बारह भाव और 120 वर्ष के अनुसार बनाई गई है। जन्म कुंडली में ग्रह जिस भाव में स्थित हो उस भाव और जिस वर्ष की वर्षफल कुंडली बनानी हो उसके आगे जो अंक लिखा गया हो उस अंक के भाव में ग्रह की स्थिति वर्षफल कुंडली में होगी।

जैसे जन्म कुंडली में गुरु चतुर्थ भाव में हो और 51वें वर्ष की वर्षफल कुंडली में गुरु की स्थिति जाननी हो तो तालिका में चतुर्थ भाव की पंक्ति के नीचे 51 वर्ष पर देखें तो संख्या 2 आएगी अर्थात वर्ष कुंडली में गुरु दूसरे भाव में रहेगा। इसी प्रकार सभी ग्रहों को वर्ष कुंडली में स्थित किया जाता है।

प्रश्न: लाल किताब में पितृ ऋण की बहुत चर्चा होती है। यह क्या है?

उत्तर: जब पूर्वजों द्वारा किए गए पापों का फल उनकी संतानों को भोगना पड़ता है तो वह पितृ ऋण कहलाता है। जब नवम भाव का कारक ग्रह गुरु किसी शत्रु भाव में स्थित हो और उस पर किसी शत्रु ग्रह की बुरी दृष्टि पड़ रही हो तो गुरु पितृ ऋण का ग्रह कहलाता है।

दूसरे शब्दों में जब किसी ग्रह के पक्के भाव अर्थात कारक भाव का स्वामी किसी शत्रु भाव में बैठ जाए और उस पर किसी शत्रु ग्रह की बुरी दृष्टि हो तो कुंडली पितृ ऋण की कही जाती है।

प्रश्न: पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए क्या उपाय करना चाहिए ?

उत्तर: जिस ग्रह के कारण पितृ ऋण हो उसकी आयु अवधि से पूर्व उसका उपाय कर लेना चाहिए अन्यथा वह अपनी अवधि में हानि अवश्य करेगा।

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