विभिन्न जातकों पर राहू-केतु के प्रभाव

विभिन्न जातकों पर राहू-केतु के प्रभाव  

व्यूस : 20791 | आगस्त 2008
विभिन्न जातकों पर राहू.केतु के प्रभाव रमेश कुमार ब्रह्मांड और ज्योतिष दोनों में राहु-केतु को संवेदनशील माना गया है। ज्योतिषीय दृष्टि से राहु जिस राशि में होता है, उससे सातवीं राशि मंे अर्थात 1800 अंशात्मक स्थिति पर केतु होता है। राहु और केतु सूर्य व चंद्र की कक्षाओं के संपात बिंदु हैं जिन्हें खगोलशास्त्र में चंद्रपात कहा जाता है। इन दोनों की कोई भी भौतिक रूप से औचित्य न होने के कारण ही इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। वस्तुतः राहु और केतु छाया ग्रह होते हुए भी मानव जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं। इनके प्रभाव को देखते हुए ही ज्योतिष में इसकी विस्तृत विवेचना की जाती है। राहु (कारक)- दादा, वाणी की कठोरता, खोजी, प्रवृŸिा, विदेश प्रवास भ्रमण, अभाव, चमड़ी पर धब्बांे, त्वचा रोग, सांप के काटने, जहर, महामारी, पर स्त्री से संबंध, नाना-नानी, निरर्थक तर्क-वितर्क, कपट, धोखे, वैधव्य, दर्द और सूजन, ऊंची आवाज से कमजोरों को दबाने, और दिल को ठेस पहुंचाने की प्रवृŸिा, अंधेरे, चुगलखोरी, पाखंड, बुरी आदतों, भूख व डर से दिल बैठने की अवस्था, अंग-भंग, कुष्ठ रोग, ताकत, खर्चे, मान-मर्यादा, शत्रु, देश से निस्कासन, तस्करी, जासूसी, आत्महत्या, शिकार, गुलामी, पत्थर, र्नै त्य कोण आदि का कारक राहु है। केतु (कारक)- मोक्ष, पागलपन, विदेश प्रवास, कोढ़, आत्महत्या, दादा-दादी, गंदी जुबान, लंबे कद, धूम्रपान, जख्म, शरीर पर धब्बे, दुबलापन, पापवृŸिा, द्वेष, खोजी प्रवृŸिा, गूढ़ता, जादूगरी, षडयंत्र, दर्शनशास्त्र, मानसिक शांति, धैर्य, वैराग्य, सरकारी जुर्माने, सपने, आकस्मिक मौत, बुरी आत्मा, वायुजनित रोग, जहर, धर्म, ज्योतिष विद्या, मुक्ति, दिवालियापन, हत्या की प्रवृŸिा, अग्नि-दुर्घटना आदि का कारक केतु ग्रह है। राहु और केतु सूर्य व चंद्र के शत्रु हैं। कहा जाता है कि राहु सूर्य का व केतु चंद्र का पक्का विरोधी है। राहु शनि और केतु मंगल की तरह प्रभाव डालता है। राहु वृष व मिथुन राशि में उच्च का तथा वृश्चिक व धनु में नीच का होता है। केतु वृश्चिक व धनु राशि में उच्च का और वृष व मिथुन में नीच का होता है। राहु और केतु अधिष्ठित राशि व साथ बैठे ग्रह के अनुसार अच्छा या बुरा प्रभाव देते हैं। जन्मकुंडली में राहु और केतु यदि निम्न स्थितियों में हों तो कैसा प्रभाव देंगे निम्नलिखित हंै- स राहु और केतु यदि केंद्र-त्रिकोण में उनके स्वामियों के साथ बैठे हों या उनके साथ शुभ दृष्टि में हों तो योगकारक बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में ये अपनी दशा-भुक्ति में शुभ परिणाम जैसे लंबी आयु, धन, भौतिक सुख आदि देते हैं। सूर्य जब राहु या केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, रमेश कुमार, अमृतसर मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है। चंद्र यदि राहु या केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन, अनियंत्रित उŸोजना आदि का शिकार होता है। वृश्चिक लग्न में यह योग जातक को अत्यधिक धार्मिक बना देता है। मंगल राहु या केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है। इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं। बुध राहु या केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है। यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है। वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है। यदि राहु या केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है। शुक्र राहु या केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों के प्रति आकर्षित होता है। शनि राहु या केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है। ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृŸिा का होता है। लेकिन अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है। किसी स्त्री के जन्म लग्न या नवांश लग्न में राहु या केतु हो तो उसके बच्चे का जन्म आपरेशन से होता है। इस योग में अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कष्ट कम होता है। यदि राहु महादशा के स्वामी ग्रह से चैथे भाव में गोचर करता है तो उथल-पुथल, कलह, कोर्ट-कचहरी आदि का सामना करना पड़ता है। राहु या केतु अपने भावाधिपति से जब षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो, तो बुरा प्रभाव देता है। राहु तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में हो तो धन व लंबी आयु देता है, जबकि केतु द्वादश में हो तो जातक को भौतिक सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है। राहु और केतु अगर सूर्य या चंद्र की राशि में हों तो अच्छा फल नहीं देते। राहु या केतु द्वारा बनाया गया एक अच्छा योग जातक को सांसारिक व भौतिक सुख देने में सफल होता है। राहु व केतु के भावाधिपति को कर्मों को सुधारने वाला ग्रह भी कहा जाता है। अगर भावाधिपति राहु या केतु से पांचवें या 9वें भाव में हो तो जातक के पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों को दर्शाता है। राहु व केतु के बीच जब शेष सात ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। राहु, केतु एवं भाव की स्थिति के अनुसार यह योग 144 प्रकार के होते हैं। ये सभी योग यदि प्रतिकूल हों तो हानि, मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट और अनुकूल हों तो लाभ देते हंै। इस प्रकार किसी जातक की जन्मकुंडली में राहु या केतु की स्थिति उसके भविष्य निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। समय रहते यदि शुभ-अशुभ योगों को पहचान लिया जाए तो जीवन को सभी ओर सकारात्मक दिशा देने में आसानी हो सकती है।



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