नवरात्र में करें दुर्गा पूजा पं. रमेश शास्त्री मादुर्गा की महिमा से सभी परिचित हैं। मां दुर्गा के तीन स्वरूप हैं, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती इसलिए इसे त्रिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष में दो बार नवरात्रों में विशेष रूप से देवी की पूजा, पाठ, उपवास, भक्ति की जाती है।
एक बार वसंत ऋतु में तथा दूसरी बार शरद ऋतु में होती है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार शारदीय नवरात्र में देवी पूजा करने से अधिक शुभत्व की प्राप्ति होती है। देवी की भक्ति से कामना अनुसार भोग, मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। पारद दुर्गा : पाषाण एवं अन्य धातुओं की अपेक्षा पारद धातु से बनी दुर्गा की मूर्ति का पूजन करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।
इस मूर्ति को नवरात्र में प्राण प्रतिष्ठा करके पूजा करने से घर, व्यवसाय, पद प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। पारद श्री यंत्र : पारद धातु से बने श्रीयंत्र का महत्व है। इसमें एक आलौकिक शक्ति विद्यमान होती है। इस यंत्र को नवरात्र के समय पूजा प्राण प्रतिष्ठा, आचरण पूजा आदि करके अपने घर, व्यवसाय स्थल, कार्यालय, फैक्ट्री आदि में स्थापित कर सकते हैं।
इसके प्रभाव से व्यवसाय आजीविका आदि में दिनोदिन उन्नति होती है। पारद हनुमान : पारद हनुमान जी की मूर्ति का अपने घर या कार्यालय में श्रद्धा, विश्वासपूर्वक शुक्ल पक्ष के मंगलवार या पूर्णिमा के दिन पूजा, प्रतिष्ठा करके नित्य दर्शन पूजन करें, इसके प्रभाव से घर में सुख, शांति, समृद्धि आती है तथा विघ्न-बाधाओं का शमन होता है।
पारद शिव लिंग : पारद से बने शिवलिंग का विशेष महत्व माना गया है। पारद शिवलिंग की पूजा करने से ग्रहों की पीड़ा का हरण होता है। वैवाहिक जीवन में सुख, शांति बढ़ती है। नौकरी व्यवसाय, आदि में तरक्की होती है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
दुःख व बीमारियों से रक्षा होती है। इसे शुक्ल पक्ष में शुभ मास, तिथि, वार में अपने घर में स्थपित करना चाहिए। पारद शिव परिवार : भारतीय हिंदू संस्कृति में भगवान शिव की अहम् भूमिका है। शिव परिवार की स्थापना सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा देने वाली तथा सुख-समृद्धि व वैभव की प्राप्ति कराती है।
शिव परिवार में भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय व नंदी संभी साथ होते हैं। दाम्पत्य सुख व संतान प्राप्ति के लिए पारद शिव परिवार की पूजा अत्यंत ही लाभकारी होती है अधिकतर हिंदू परिवारों में इसकी स्थापना होती है। इसकी स्थापना शिव रात्रि, प्रदोष नागपंचमी आदि शुभ मुहूर्तों में की जा सकती है।